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Monday, 4 November, 2024
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मिमिक्री, सीटियां, वॉकआउट्स- महाराष्ट्र असेम्बली में पिछले एक साल में, चर्चा से ज़्यादा दिखा ड्रामा

कोविड के मद्देनज़र एहतियाती तौर पर असेम्बली सत्र छोटी अवधि के रहे हैं. लेकिन वो छोटी अवधि भी विरोध, सियासी हमलों और जवाबी हमलों पर ख़र्च की गई है.

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मुम्बई: बुधवार को प्रश्नकाल ख़त्म होते ही, जो आमतौर से दिन के एजेंडा का पहला आइटम होता है, महाराष्ट्र विधान सभा में अफरा-तफरी शुरू हो गई, और विपक्षी नेता ज़ोर-शोर के साथ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) मंत्री, नवाब मलिक के कैबिनेट से इस्तीफे की मांग करने लगे.

वो सदन से बाहर निकल आए और लाल कालीन वाली सीढ़ियों से नीचे उतर आए. उनमें से बहुत से विधायक चिल्ला रहे थे ‘नवाब मलिक कौन है? दाऊद का दलाल है’

मलिक को पिछले महीने प्रवर्त्तन निदेशालय ने, कथित मनी लॉण्डरिंग और अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.

हालांकि बुधवार की ये तमाशेबाज़ी, किसी भी संसदीय या विधान सभा सत्र के लिए असामान्य नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र असेम्बली के लिए ये लगभग एक आम बात हो गई है. पिछले साल बीजेपी सदस्यों द्वारा बुलाए गए समानांतर असेम्बली सत्र से लेकर, आदित्य ठाकरे के खिलाफ सीटियां, ‘काले धन’ पर पीएम नरेंद्र मोदी की मिमिक्री, और 3 मार्च को राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के खिलाफ एक प्रदर्शन के दौरान, एक एमवीए सदस्य द्वारा योगासन तक- महाराष्ट्र असेम्बली में नीतियों पर चर्चाओं या राज्य से जुड़ी बहसों के मुकाबले, नाटकबाज़ी शायद कहीं ज़्यादा देखने को मिली.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के अनुसार, महाराष्ट्र विधान सभा में हंगामे बढ़ने का एक कारण ये है, कि सुशांत सिंह राजपूत मामले के बाद सूबे की राजनीति में, विरोधियों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल को लेकर, बीजेपी के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप हावी रहे हैं. देसाई ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये बजट सत्र तो पिछले से भी ज़्यादा चरम साबित हो रहा है, और लोगों से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण वर्तमान मुद्दे नज़रअंदाज़ किए जा रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ महाराष्ट्र में (दिसंबर और जनवरी में) बेमौसम की बारिशें हुईं, जिनसे फसलों को काफी नुक़सान हुआ. किसान बिजली कनेक्शंस की समस्याओं से भी दोचार हैं. लेकिन, विधान सभा के भीतर ऐसी चर्चाओं को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है’.

वॉकआउट्स, नारेबाज़ी और शीर्षासन

इस वर्ष का बजट सत्र 3 मार्च को एक विवाद के साथ शुरू हुआ, जब राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने विधान सभा के दोनों के समक्ष, अपने पारंपरिक अभिभाषण को एक मिनट से भी कम में पूरा कर लिया, और राष्ट्रगान का इंतज़ार किए बिना सदन से बाहर निकलकर चले गए.

उसके बाद असेम्बली की सीढ़ियों पर ज़ोर-शोर से विरोध शुरू हो गया. जहां बीजेपी विधायक कर्कशतापूर्वक नारे लगा रहे थे, ‘दाऊद के दलालों को, जूते मारो सालों को’, वहीं सत्तारूढ़ एमवीएम के विधायक पिछले महीने छत्रपति शिवाजी पर कोशियारी की टिप्पणी, और उनके द्वारा राष्ट्रगान का ‘अपमान’ करने के खिलाफ विरोध जता रहे थे.

कोशियारी ने ये कहकर एमवीए नेताओं को उखाड़ दिया था, कि संत कवि सामर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी के गुरू थे. एमवीए नेताओं ने इसे ‘इतिहास को बिगाड़ना’ बताया है, और बहुत से शिक्षाविदों ने कहा है, कि इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं हैं.

कोशियारी के दावों के खिलाफ प्रदर्शन के बीच, एक एनसीपी एमएलसी संजय दौंद ने एक शीर्षासन करते हुए कह दिया, कि राज्यपाल का सर वहां है जहां उनके पांव होने चाहिएं.

उसके बाद आने वाले दिनों में भी सदन में, कुछ ख़ास विधायी कामकाज नहीं देखा गया, सिवाय सर्वसम्मति से एक बिल पारित किए जाने के, जिसके तहत राज्य में सभी चुनाव तब तक टाले जाएंगे, जब तक कि अन्य पिछड़े वर्गों के लिए राजनीतिक कोटा, जिसे पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, बहाल नहीं कर दिया जाता.

मंगलवार सत्र का पहला पूरा कार्य दिवस था. बुधवार को बीजेपी विधायकों ने सदन से वॉकआउट कर दिया, जिसके बाद उन्होंने विरोध मार्च किया और आज़ाद मैदान तक रैली निकाली, और मलिक के कैबिनेट से इस्तीफे की मांग की. ये सत्र 25 मार्च को ख़त्म हो जाएगा.

दिप्रिंट से बात करते हुए, गोंडिया से एक निर्दलीय विधायक विनोद अग्रवाल ने कहा, कि उन्हें अपने पिछड़े चुनाव क्षेत्र की समस्याओं पर बात करने के लिए, मुश्किल से ही समय मिला है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरा चुनाव क्षेत्र पिछड़ा हुआ है. ये एक आदिवासी और नक्सल (प्रभावित) ज़िला है. लोगों को अपने निर्वाचित प्रतिनिधि से बहुत सी अपेक्षाएं हैं. सदन में बोलना मेरे लिए एक बड़ा अवसर है, जिसमें मैं अपने चुनाव क्षेत्र की राशन और बिजली जैसी बुनियादी समस्याओं को सामने रख सकता हूं. लेकिन पिछले एक साल में, मुझे मुश्किल से ही (ऐसा करने का) मौक़ा मिला है’.

अग्रवाल ने पूछा, ‘महत्वपूर्ण बिलों या अलग अलग चुनाव क्षेत्रों की समस्याओं पर न के बराबर चर्चा हुई है. सदन का समय सिर्फ राजनीतिक मुद्दों पर ख़र्च होता है, और अंत में सदन को स्थगित कर दिया जाता है. मेरे जैसे विधायक इतनी दूर से आते हैं, लेकिन किसके लिए?’

‘वाझे सत्र’ से लेकर ‘म्याउ म्याउ’ तक

पिछले एक साल में महाराष्ट्र में असेम्बली सत्र, कोविड महामारी के दौरान एहतियाती उपायों के तौर पर छोटे रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञों और कुछ असेम्बली सदस्यों का कहना था, कि वो छोटी अवधि भी विरोध प्रदर्शनों, सियासी हमलों, और जवाबी हमलों पर ख़र्च की गई है.

पिछले मार्च में बजट सत्र केवल दस दिन चला था, और उसका लगभग पूरा समय अब बर्ख़ास्त किए जा चुके, पुलिसकर्मी सचिन वाझे पर चर्चा करने में ख़र्च कर दिया गया था.

बीजेपी नेता देवेंद्र फणनवीस ने कॉल डेटा रिकॉर्ड्स पेश किए थे, और दावा किया था कि ये रिकॉर्ड्स उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन छड़ों की बरामदगी की, मुम्बई पुलिस की जांच की क़लई खोलते थे. उन्होंने इस साज़िश में वाझे के शामिल होने पर भी सवाल खड़े किए.

सत्र का बाक़ी समय बीजेपी की पुलिस बल से वाझे के निलंबन की मांग, और उसके इस आरोप पर ख़र्च हुआ कि एमवीए सरकार वाझे को बचा रही है. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) ने पिछले साल मार्च में, एंटिला से जुड़े मामले में वाझे को गिरफ्तार कर लिया.

जुलाई 2021 में सदन का मॉनसून सत्र केवल दो दिन का था, जबकि शीतकालीन सत्र भी सिर्फ पांच दिन चला था.

मॉनसून सत्र पूरी तरह साफ हो गया, जिसमें पहला दिन शिवसेना के भास्कर जाधव और बीजेपी विधायकों के बीच शोरग़ुल में बीत गया, जिसके नतीजे में भास्कर के साथ ‘बदसलूकी’ के आरोप में, जो उस समय प्रे-टेम स्पीकर थे, 12 विपक्षी विधायकों को निलंबित कर दिया गया.

अगले दिन, बीजेपी ने सत्र का बहिष्कार किया, और मुम्बई के विधान भवन की सीढ़ियों पर अपना एक अलग सत्र आयोजित किया, जिसमें माइक्रोफोन, एक ‘स्पीकर’, एक ‘पीठासीन अधिकारी’, एक लाइव वेबकास्ट, और सामयिक मुद्दों पर नक़ली चर्चा समेत सब कुछ था.

पिछले साल दिसंबर में असेम्बली के शीतकालीन सत्र के दौरान, भारत में काला धन वापस लाने के बारे में बोलते हुए, शिवसेना विधायक भास्कर जाधव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिमिक्री की थी. इससे बीजेपी नेता चिढ़ गए जिन्होंने उस समय तक हंगामा जारी रखा, जब तक जाधव ने माफी नहीं मांग ली.

एक और मुद्दा जिसने सदन के भीतर घंटों के लिए बहस छेड़ दी, वो था विधायक नितेश राणे का राज्य के कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे को, अपने सवालों से तंग करना. सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर चल रहे एक वीडियो में, राणे ‘म्याउं, म्याउं, म्याउं’ कहते हुए नज़र आ रहे थे, जिस समय जूनियर ठाकरे असेम्बली में दाख़िल हो रहे थे.

शीत सत्र में स्पीकर के चुनाव से जुड़ा ड्रामा भी हावी रहा. ये पद फरवरी 2021 में कांग्रेस के नाना पटोले के इस्तीफा देने के बाद से ख़ाली पड़ा हुआ था. एमवीए ने नियमों में एक संशोधन करते हुए, पारंपरिक गुप्त मतदान की बजाय ध्वनि-मत से एक स्पीकर चुन लिया- एक ऐसा क़दम जिसका बीजेपी ने कड़ा विरोध किया.

लेकिन ये चुनाव पूरा नहीं किया जा सका, क्योंकि राज्य सरकार राज्यपाल की मंज़ूरी का इंतज़ार करती रह गई.

शिवसेना के एक पूर्व एमएलसी रवींद्र मिरलेकर ने दिप्रिंट से कहा: ‘ये स्पष्ट रूप से एक बदले की राजनीति है, जहां केंद्रीय एजेंसियां सिर्फ राजनीतिक विरोधियों को निशाना बना रही हैं. बीजेपी सदन की कार्यवाही को रोक रही है, क्योंकि उसे मालूम है कि अगर चर्चा होती है, तो ऐसी बहुत सी बातें जिन्हें वो छिपाना चाहते हैं, सामने आ जाएंगी. आख़िरकार, ये लोकतंत्र के लिए हानिकारक है’.

इसी बीच, असेम्बली सत्रों की अवधि घटाने के लिए एमवीए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए, बीजेपी विधायक आशीष शेलार ने दिप्रिंट से कहा, कि सवाल ये नहीं है कि असेम्बली सत्रों में कोई उपयोगी चर्चा या बहस हुई या नहीं, बल्कि सवाल ये है कि असेम्बली सत्र हुए भी हैं कि नहीं.

शेलार ने कहा, ‘ये सरकार सिर्फ दो-दो दिन के छोटे सत्र कर रही है. ये (चालू बजट सत्र) पहला बाक़ायदा सत्र है जो आयोजित किया जा रहा है. सरकार की सामयिक मुद्दों और नीतियों पर, किसी बहस या चर्चा में दिलचस्पी नहीं है’.

मसलन, महामारी से पहले के समय में, आमतौर से महाराष्ट्र में बजट सत्र छह सप्ताह तक चलते थे. इस साल इन्हें एक महीने से कम में समाप्त किया जा रहा है.

लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक देसाई ने कहा, कि दोनों पक्षों को एक सहमति बनाने की ज़रूरत है, ताकि सदन के अंदर किसी राजनीतिक एजेंडा का अनुसरण बंद किया जाए, और राज्य के महत्वपूर्ण मुद्दों को वरीयता दी जाए.

उन्होंने आगे कहा, ‘विधान सभा का स्तर बहुत तेज़ी से नीचे गिरा है. एक साल से अधिक से हम अपराध, ईडी, और राजनीतिक बदले पर ही चर्चा कर रहे हैं. राजनीतिक माहौल बहुत दूषित है. कहीं न कहीं इसे रोकना होगा’.

(इस खबर कों अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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