scorecardresearch
Sunday, 12 May, 2024
होमराजनीति'मेवात की राजनीति में मेव राजवंशों का दबदबा रहा है'- क्षेत्र के अतीत और वर्तमान के नेताओं पर एक नज़र

‘मेवात की राजनीति में मेव राजवंशों का दबदबा रहा है’- क्षेत्र के अतीत और वर्तमान के नेताओं पर एक नज़र

नेताओं के बीच दुश्मनी से इस क्षेत्र का कभी भला नहीं हुआ है. नूंह विधायक आफताब अहमद के मुताबिक, मेवात के राजनीतिक नेतृत्व ने लोगों के मुद्दे तो उठाए हैं, लेकिन सच यह है कि उनकी आवाज नहीं सुनी गई.

Text Size:

गुरुग्राम: हरियाणा का नूंह जिला, जहां पिछले सप्ताह सांप्रदायिक झड़पें हुईं, मेवात क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इस क्षेत्र में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और राजस्थान का कुछ हिस्सा भी शामिल है.

2011 की जनगणना के अनुसार वर्तमान में नूंह की आबादी में मेव मुसलमानों की हिस्सेदारी 79 प्रतिशत है. 31 जुलाई को हुई झड़पों, जिसमें छह लोग मारे गए और 70 से अधिक लोग घायल हो गए, ने इस क्षेत्र में समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. यह घटना तब हुई जब अगले साल लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

हालांकि, राज्य विधानसभा की 90 सीटों में से नूंह में सिर्फ तीन सीटें हैं. साथ ही संख्या के खेल में मेव नेतृत्व का कोई बड़ा प्रभाव नहीं है.

नूंह जिले के अंतर्गत तीन सीटें नूंह, पुन्हाना और फिरोजपुर झिरका हैं. वर्तमान में, तीनों सीटें कांग्रेस के पास है. तीनों विधायक मेव मुस्लिम हैं. नूंह से आफताब अहमद, पुन्हाना से मोहम्मद इलियास और फिरोजपुर झिरका विधानसभा क्षेत्र से मोमन खान विधायक हैं.

चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के मुताबिक, पलवल जिले की एकमात्र विधानसभा सीट हथीन- जिसमें होडल और पलवल भी हैं- से 1972 के बाद से इस समुदाय से केवल तीन बार विधायक चुना गया है. गुरुग्राम के सोहना में भी मेव मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है लेकिन यहां इस समुदाय से कभी कोई विधायक नहीं चुना गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

2019 के राज्य चुनावों में, गुरुग्राम के हथीन और सोहना दोनों सीटें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास चले गए. प्रवीण डागर और संजय सिंह क्रमशः दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे.

नूंह के इतिहासकार सद्दीक अहमद मेव ने कहा, “मेवात (क्षेत्र) में हमारे पास अच्छे और बड़े नेता हैं. लेकिन समस्या यह है कि लोगों की स्थिति सुधारने पर ध्यान केंद्रित करने से ज्यादा, उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ दुश्मनी पैदा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है.”

2007 और 2008 में क्रमशः हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होने से पहले सभी मेव-वर्चस्व वाली विधानसभा सीटें फरीदाबाद संसदीय सीट का हिस्सा थी. मेव नेताओं ने इस संसदीय सीट से केवल तीन बार- 1980 में तैय्यब हुसैन (कांग्रेस), 1984 में रहीम खान (कांग्रेस) और 1988 के लोकसभा चुनाव में खुर्शीद अहमद (लोकदल)- ने जीत हासिल की.

अहमद कहते हैं, “पिछले परिसीमन में, हथीन फरीदाबाद का हिस्सा बन गया, जबकि नूंह, पुन्हाना और फिरोजपुर झिरका गुरुग्राम संसदीय सीट में चले गए. इसके कारण मेव मुस्लिम नेताओं को संसद पहुंचना काफी आसान हो गया, क्योंकि मेव वोट विभाजित हो गए. इस तरह व्यवस्था में मेव मुसलमानों का प्रतिनिधित्व, जो पहले से ही कम था, और भी कम हो गया.”

भारत में वंशवाद की राजनीति आम है और मेवात क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है. दरअसल, मेवात में सत्ता हमेशा चंद राजनीतिक परिवारों के हाथ में ही रही है.

अहमद मेव को भी समुदाय से नए नेतृत्व के उभरने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती. उन्होंने कहा, “नया नेतृत्व आम तौर पर विश्वविद्यालयों से उभरता है. लेकिन दुर्भाग्य से, नूंह में हमारा कोई विश्वविद्यालय नहीं है. इन राजवंशों और कुछ संपन्न परिवारों के बच्चे मेवात के बाहर शिक्षा प्राप्त करते हैं, लेकिन आम लोग शायद ही यह वहन कर सकें.”

दिप्रिंट हरियाणा में मेव नेतृत्व और इस क्षेत्र में प्रभुत्व रखने वाले विभिन्न राजनीतिक परिवारों के बारे में आपको बता रहा है.

वर्षों से मेव नेतृत्व

मेवात में दो सबसे प्रमुख राजनीतिक परिवार खुर्शीद अहमद और तैय्यब हुसैन के थे. चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई संसदीय और विधानसभा चुनाव लड़े और कई बार पार्टियां बदली.

राजनीति में कूदने से पहले खुर्शीद अहमद ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत की. वह 1962 और 1982 के बीच पांच बार विधान सभा (एमएलए) के सदस्य बने. उन्होंने 1962, 1968 और 1991 में नूंह का और 1977 और 1987 में तौरू का प्रतिनिधित्व किया.

वह 1988 में एक उपचुनाव में लोकसभा के लिए चुने गए. ज्यादातर समय तक के साथ रहने वाले अहमद ने लोकदल के टिकट पर 1987 का विधानसभा चुनाव और 1988 का लोकसभा चुनाव लड़ा. 2020 में उनकी मृत्यु हो गई.

उनके पिता कबीर अहमद 1975 और 1982 के उपचुनाव में विधायक बने. उनके बेटे आफताब अहमद, जो नूंह से अभी विधायक हैं, 2009 और 2019 में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की.


यह भी पढ़ें: मणिपुर हिंसा पर बोलीं BJP सांसद हेमा मालिनी — ‘एक अकेले मोदी जी और I.N.D.I.A पड़ा है पीछे’


तैय्यब हुसैन अहमद के समकालीन थे. इतिहासकार मेव के मुताबिक, उनके पिता यासीन खान स्वतंत्रता से पहले 1926 से 1946 तक अविभाजित पंजाब से विधायक रहे थे.

हुसैन को तीन राज्यों- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से विधायक होने का अनूठा गौरव प्राप्त है. चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि वह 1971-1976 (गुरुग्राम सीट) और 1980-1986 (फरीदाबाद सीट) से सांसद भी रहे. 2008 में उनकी मृत्यु हो गई.

उनके बेटे जाकिर हुसैन तीन बार विधायक और हरियाणा वक्फ बोर्ड के प्रशासक हैं. उन्होंने 1991 का चुनाव टौरू (परिसीमन से पहले मेवात का एक हिस्सा) से निर्दलीय के रूप में जीता. 2000 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर सीट जीती, जबकि 2014 में वह इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के उम्मीदवार के रूप में नूंह से विधायक बने.

हुसैन की बेटी जाहिदा खान 2008 और 2018 में राजस्थान के मेवात क्षेत्र (खमन विधानसभा सीट) से विधायक बनीं और वर्तमान सरकार में मंत्री हैं. हुसैन के दूसरे बेटे फजल हुसैन भी राजस्थान की तिजारा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, हुसैन के भाई हामिद हुसैन भी 2000 में इनेलो के टिकट पर नूंह से एक बार विधायक बने थे.

वैसे परिवार जो कम प्रसिद्ध हैं

रहीम खान, जो 1984 के संसदीय चुनावों में फ़रीदाबाद लोकसभा सीट से जीते थे, मेवात में एक और राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वह 1967, 1973 और 1982 में नूंह विधानसभा सीट से हर बार निर्दलीय विधायक बने. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उनके भाई सरदार खान ने 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर नूंह सीट जीती थी, जबकि उनके बेटे मोहम्मद इलियास ने 1991 में कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी.

आंकड़ों से पता चलता है कि इलियास 2009 और 2019 में क्रमशः INLD के टिकट पर और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में नूंह जिले की पुन्हाना सीट से चुने गए थे.

राजनीतिक परिवार के एक अन्य मुखिया शकरुल्ला खान फिरोजपुर झिरका से तीन बार विधायक बने- 1977 में निर्दलीय, 1982 और 1991 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में. वह दो बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे. उनके बेटे, नसीम अहमद ने दो बार (2009 -2014 और 2014-2019) इनेलो विधायक के रूप में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

एक अन्य नेता, अज़मत खान, जो 1987 में लोकदल के टिकट पर फिरोजपुर झिरका विधानसभा सीट से चुने गए और मंत्री बने थे. उनके बेटे, आज़ाद मोहम्मद 1996 में उसी सीट से समता पार्टी के टिकट पर और 2005 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे. वह अपने पहले कार्यकाल में विधानसभा उपाध्यक्ष और दूसरे कार्यकाल में मंत्री बने. खान के बेटे रहीसा खान 2014 में पुन्हाना से निर्दलीय विधायक बने.

नूंह से कांग्रेस विधायक आफताब अहमद ने कहा, “हालांकि, मेवात के राजनीतिक नेतृत्व ने स्थानीय लोगों से संबंधित मुद्दे उठाए हैं, लेकिन उनकी आवाज कभी सुनी ही नहीं गई.”

उन्होंने कहा, “यहां के लोग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं, लेकिन उनके पास अपने खेतों की सिंचाई के लिए पानी नहीं है. भूजल खारा है. वे पूरी तरह से बारिश पर निर्भर हैं. मेरे पिता खुर्शीद अहमद के समय से ही नहर की मांग उठती रही है. लेकिन अभी तक इसपर कुछ भी ठोस काम नहीं हुआ है. नहर की आधारशिला अब रखी जा चुकी है, लेकिन वास्तविक काम कब शुरू होगा, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.”

उन्होंने कहा, इसी तरह 2012 में नूंह में एक मेडिकल कॉलेज शुरू किया गया था, लेकिन उसमें डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है.

उन्होंने दावा किया कि अस्पताल में उपकरण तो हैं लेकिन उन्हें चलाने के लिए वहां पर्याप्त लोग नहीं हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बजरंग दल कार्यकर्ता की मौत पर हरियाणा के AAP नेता के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज, AAP और BJP में झड़प


 

share & View comments