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Thursday, 26 December, 2024
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मायावती हिन्दुत्व को अपनी दलित राजनीति के साथ जोड़ेंगी, अयोध्या में पहले ब्राह्मण सम्मेलन की तैयारी

दलित केंद्रित पार्टी बसपा ने 2007 में यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं के बीच सफलतापूर्वक पैठ बनाई, यह एक ऐसा समीकरण था जिसने पहली बार पार्टी को विधानसभा में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचा दिया था.

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लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती भी अब हिन्दुत्व का दामन थामने की तैयारी में नजर आ रही हैं और इस तरह वो भी भाजपा के मुकाबले के लिए ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ कार्ड खेलने को मजबूर नेताओं और पार्टियों की एक लंबी सूची में शामिल हो गई हैं.

बसपा प्रमुख ने ‘ब्राह्मण सम्मेलन’ की शुरुआत आने वाले हफ्ते में अयोध्या से करने का ऐलान किया है. पहले ब्राह्मण सम्मेलन के आयोजन का स्थान महत्वपूर्ण है, क्योंकि निर्माणाधीन राम मंदिर के भाजपा के चुनावी अभियान में प्रमुखता से छाए रहने की संभावना है.

दलित केंद्रित पार्टी बसपा ने 2007 में यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं के बीच सफलतापूर्वक पैठ बनाई, यह एक ऐसा समीकरण था जिसने पहली बार पार्टी को विधानसभा में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचा दिया था.

इस बीच, मायावती 2022 के चुनावों के लिए भी यही फॉर्मुला आजमाती दिख रही हैं. लेकिन वह एक व्यापक संदेश भी देना चाहती हैं—वह है हिंदुत्व कार्ड खेलने की उनकी इच्छा, खासकर जब उनके अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी योगी आदित्यनाथ के अलावा समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा मंदिरों का दौरा कर रहे हैं और साधु-संतों का आशीर्वाद ले रहे हैं.

अपना नाम न देने की शर्त पर बसपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत के पीछे कारण यह है कि यूपी की राजनीति में इसका अपना अलग ही महत्व है. धार्मिक दृष्टिकोण से अयोध्या का हिंदू आबादी के एक बड़े हिस्से से जुड़ाव है. वाराणसी, प्रयागराज और मथुरा जैसे अन्य धार्मिक स्थलों में भी सम्मेलन करने का प्रस्ताव है.’


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सम्मेलन कैसा होगा

पार्टी महासचिव और इस अभियान के प्रभारी सतीश मिश्रा और पार्टी के कई अन्य नेता 23 जुलाई को ‘मंदिर दर्शन’ के साथ इस अभियान की शुरुआत करेंगे.

पार्टी ने राज्यभर में दो दर्जन से अधिक ब्राह्मण सम्मेलनों की योजना बनाई है.

इस तरह के हर कार्यक्रम के तहत बसपा नेता पहले संबंधित शहर में मंदिर दर्शन के लिए जाएंगे और फिर जनसभा को संबोधित करेंगे. इसमें स्थानीय ब्राह्मण संगठनों, बसपा ब्राह्मण कार्यकर्ताओं और इसी जाति के तमाम बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया जाएगा.

पार्टी की अयोध्या इकाई के एक पदाधिकारी ने कहा कि विपक्ष के स्थानीय नेता और अन्य जातियों के लोग भी इसमें शामिल हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि सतीश मिश्रा के अलावा नकुल दूबे, अनंत मिश्रा और लोकसभा सांसद रितेश पांडे जैसे वरिष्ठ नेताओं की इसमें प्रमुखता से भागीदारी रहेगी.

नैरेटिव के मुकाबले के लिए एजेंडा बदला

पार्टी के ‘हिंदू’ की ओर रुख करने के बारे में बोलते हुए बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अब ‘समय आ गया है’ कि बसपा ‘लोगों की भावनाओं’ को समझे.

उक्त नेता ने कहा, ‘हमारे कई दलित भाइयों ने ‘राष्ट्रवाद’ और ‘हिंदूवाद’ के नाम पर (प्रधानमंत्री) मोदी को वोट दिया. हमें इस धारणा का मुकाबला करना होगा. किसी तरह जाटवों का एक वर्ग, खासकर युवा, अब ‘हिंदू मतदाता’ में बदल गया है, इसलिए उन्हें अपने साथ रखने के लिए हमें उन्हें यह बताना होगा कि हम उनके विचारों से सहमत हैं. हम अलग नहीं हैं. इसलिए इन ब्राह्मण सम्मेलनों और धार्मिक स्थलों को आपस में जोड़ा जा रहा है.’

अयोध्या के एक ब्राह्मण बसपा नेता ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि पार्टी को ‘लोगों की भावनाओं को समझकर’ अपनी रणनीति बनानी होगी.

ब्राह्मण नेता ने कहा, ‘यूपी की राजनीति में (मुख्यमंत्री) योगी की उपस्थिति ने ‘हिंदुत्व’ की राजनीति का नैरेटिव ही बदल दिया है. इसका मुकाबला करने के लिए अखिलेश यादव संतों से मिल रहे हैं, प्रियंका गांधी मंदिरों में जा रही हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम अब तक इन सब चीजों में नहीं थे, लेकिन हमें भी अब अपनी ‘इमेज ब्रांडिंग’ पर ध्यान देना होगा. मुझे नहीं लगता कि ‘मंदिर दर्शन’ अभियान में कुछ बुरा है.’

विश्लेषक बोले-ध्यान आकृष्ट करने के लिए हिन्दुत्व का सहारा

यूपी के राजनीतिक विश्लेषक इस कदम को पार्टी को प्रासंगिकता बनाए रखने और ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश के तौर पर देखते हैं.

लखनऊ स्थित गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर शिल्प शिखा सिंह का कहना है, ‘यह बसपा के लिए एक तरह से करो या मरो का चुनाव है. इसलिए वे अब सब कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ दिन पहले जब मायावती ने नारे में ‘सर्वजन’ शब्द का इस्तेमाल किया था तो यह संकेत था कि वह सभी को जोड़कर अपना आधार बढ़ाने की कोशिश करेंगी. अब ‘बहुमत’ को लुभाने के लिए उन्होंने इन सम्मेलनों की घोषणा की है. अगर ये ‘मंदिर दर्शन’ ध्यान आकृष्ट करते हैं तो उनकी पार्टी फोकस में आ सकती है.’

अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (आर) के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कहा, ‘ब्राह्मण मौजूदा शासन से नाराज है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह अभी बसपा के साथ चला जाएगा. हम बहनजी के ब्राह्मण सम्मेलनों और उनकी पार्टी के ‘सॉफ्ट हिन्दुत्व’ के प्रयासों का स्वागत करते हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो हमारे लिए सड़क से सदन तक लड़ सके.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें ऐसे नेता की जरूरत है. इसलिए मुझे लगता है कि ब्राह्मण सभी दलों के प्रयासों और वादों को देखने के बाद ही अपना वोट तय करेंगे. राज्य में ब्राह्मणों की आबादी 12 फीसदी से ज्यादा है.’

ब्राह्मणों के बीच पैठ 2007 की पुनरावृत्ति?

मायावती की ब्राह्मणों के बीच पैठ को उनकी 2007 के विधानसभा चुनावों में जीत का प्रमुख फैक्टर माना गया था.

उस चुनाव में बसपा ने 51 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 20 जीते थे. 2012 में पार्टी के 51 ब्राह्मण उम्मीदवारों में से केवल सात चुने गए थे. पांच साल बाद बसपा ने 52 ब्राह्मणों को टिकट दिया, जिनमें से केवल चार ही जीत हासिल कर सके.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस बार बसपा की योजना ब्राह्मणों को पिछले तीन चुनावों से ज्यादा टिकट देने की है.

बसपा के एक करीबी सूत्र ने कहा कि पार्टी अपनी ‘हिंदुत्व समर्थक’ छवि को दिखाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलनों के अलावा कुछ और भी कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रही है.

सूत्र ने आगे कहा, ‘2007 में बसपा नेताओं ने ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी चलता जाएगा’ का नारा दिया था. हो सकता है कि इस नई रणनीति को ध्यान में रखते हुए कुछ और नारों की जरूरत हो.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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