मथुरा: जैसे ही शुक्रवार को मथुरा में मतदान समाप्त हुए, सभी की निगाहें इस बात पर टिक गईं कि क्या अभिनेत्री से नैत्री बनीं हेमा मालिनी सांसद के रूप में हैट्रिक बना पाएंगी.
चुनाव आयोग के मुताबिक, शाम 5 बजे तक इस सीट पर 46.96 प्रतिशत मतदान हुआ.
जबकि 75-वर्षीया भाजपा सांसद को निर्वाचन क्षेत्र में अपने काम के आधार पर जीत का भरोसा है, बड़ी संख्या में मथुरा निवासी — कट्टर मोदी समर्थक होने के बावजूद — अपनी “लापता सांसद” से परेशान हैं. उनका कहना है कि उन्हें यहां बहुत कम देखा गया है.
सोमवार को मथुरा के हर्नोल गांव में मालिनी की चुनावी रैली में, अपने जानवरों के लिए चारा लादकर साइकिल पर बैठे सतीश ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने आज तक हेमा मालिनी को नहीं देखा है. उन्होंने कहा, “उसने हमारे क्षेत्र में कोई काम नहीं किया, न ही वह कभी आई”.
कुछ स्थानीय बीजेपी नेताओं ने भी माना है कि लोगों में गुस्सा है क्योंकि कोविड महामारी के दौरान जब जनता को अपनी सांसद की ज़रूरत थी तो वे गायब थीं.
इस विषय पर दिप्रिंट से बात करते हुए मालिनी ने कहा कि एक सांसद का काम लोगों के घरों में जाकर बैठना नहीं है.
मतदान से पहले दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में मालिनी ने कहा, “जब लोगों को मेरी ज़रूरत होती है, तो यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं उनके बीच रहूं, लेकिन जब कोई ज़रूरत नहीं है, तो मैं हर दिन लोगों के बीच क्यों रहूं? इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. पिछले 10 साल में मैंने जो काम किए हैं, उन्हें देखते हुए मेरी पार्टी ने मुझे मथुरा से एक और मौका दिया है. मैंने यहां सड़कें बनाई हैं और शहर का सौंदर्यीकरण किया है.”
अपनी चुनावी सभाओं में उन्होंने लोगों से कहा कि मथुरा में 11,000 करोड़ रुपये की लागत से ‘चौरासी कोसी’ परियोजना पर काम चल रहा है और अगर जनता ने उन्हें तीसरा कार्यकाल दिया तो इस पर आगे काम किया जाएगा.
मथुरा के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि किसी क्षेत्र का पूर्ण परिवर्तन एक सतत और कठिन कार्य है और किसी भी सांसद के लिए किसी स्थान का पूर्ण परिवर्तन करना संभव नहीं है.
उन्होंने कहा, “हेमा मालिनी एक बड़ी फिल्म स्टार हैं. किसी फिल्म स्टार से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे भी उतना ही बड़ी नेता बनेंगी. वे (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव जीतती हैं. हालांकि, पिछले 10 साल में क्षेत्र में कुछ अच्छे काम हुए हैं, जैसे कई गांवों में सड़कों का निर्माण और शहर का सौंदर्यीकरण.”
सोमवार को जाबरा गांव में मालिनी की सार्वजनिक बैठक में, सिर पर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) समर्थित टोपी और गले में भाजपा का दुपट्टा पहने विजय सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “हर कोई जानता है कि हेमा मालिनी लोगों के बीच में रहने वाली नेता नहीं हैं. कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्योंकि हम मोदीजी को वोट देंगे और उन्हें फिर से जिताएंगे, चाहे वे काम करें या नहीं.”
बैठक में घोषणा की गई कि “जिन्हें आप टीवी पर देखते थे, आज वो आमने-सामने आ रही है आपके गांव में.”
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‘वे लोगों से पूरी तरह कट चुकी हैं’
2014 में मालिनी पहली बार मथुरा से जीतीं और फिर 2019 में.
लोगों का आरोप है कि वे सिर्फ चुनाव के दौरान ही जनता के बीच रहती हैं. इस बार भी चुनावी मौसम के दौरान, उन्होंने खेतों में गेहूं काटते हुए अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली जिसकी काफी आलोचना की गई.
महामारी के समय, मथुरा में उनके कथित लापता होने के पोस्टर सामने आए, जिसमें कहा गया था कि “आपदा में मथुरा की संसद लापता”.
इस चुनावी सीज़न में कांग्रेस के मुकेश धनगर, जो मथुरा से हैं, उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने मालिनी को “बाहरी व्यक्ति” का टैग दिया और चुनाव में प्रवासी बनाम बृजवासी का मुद्दा उठाया है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “जब जनता कोविड के दौरान पीड़ित थी, हेमा मालिनी लोगों के बीच नहीं गईं. जब राया (मथुरा का शहर) में आग लगी, तो वे जनता के बीच नहीं थीं. वे लोगों से पूरी तरह कट गई हैं.”
जबकि लोग निराश हो सकते हैं, उनका तर्क है कि उन्हें टक्कर देने के लिए कोई मजबूत विपक्षी उम्मीदवार नहीं है. राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) मथुरा में टक्कर दे सकती थी, लेकिन पार्टी ने अब बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया है.
मालिनी अपने परिवार में “लापता” होने का आरोप झेलने वालीं पहली महिला नहीं हैं. उनके पति धर्मेंद्र और सौतेले बेटे सनी देओल, दोनों बॉलीवुड सितारे, ने भी राजनीति में प्रवेश किया और उनके निर्वाचन क्षेत्रों में उनके उपलब्ध न होने की शिकायतें सामने आईं.
धर्मेंद्र 2004 में राजस्थान के बीकानेर से सांसद बने थे और उनके कार्यकाल के दौरान, स्थानीय अखबारों में उनका पता पूछने वाले विज्ञापन छपे थे.
2019 में पंजाब के गुरदासपुर से जीतने वाले सनी देओल के नाम पर 2022 में लापता होने के भी पोस्टर लगे थे. बीजेपी ने इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया है.
‘हमें उम्मीदें नरेंद्र मोदी से, उनसे नहीं’
मालिनी अपनी रैलियों में दावा करती हैं कि उन्होंने मथुरा में पिछले 10 साल में ज़मीन पर बहुत काम किया है.
उन्होंने जनता से कहा, “ग्रामीणों के पास पानी और सड़क जैसी साधारण सुविधाएं भी नहीं थीं. पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया. अब शायद ही किसी को पानी की शिकायत हो. हमने गांवों में सड़कें बनवाईं हैं.”
हालांकि, जब दिप्रिंट ने मथुरा निर्वाचन क्षेत्र के बलदेव, मांट और गोवर्धन क्षेत्रों के कई गांवों का दौरा किया, तो टूटी सड़कें और उफनती नालियां दिखाई दीं.
बलदेव के प्रसिद्ध दाऊजी मंदिर के बाहर दुकान चलाने वाले भगवान दास ने कहा, “हेमा मालिनी ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया है, लेकिन हम फिर भी उन्हें वोट देंगे. हमारी उम्मीदें नरेंद्र मोदी से हैं, उनसे नहीं.”
उन्होंने कहा, “यहां, लोग भाजपा को वोट देते हैं, हेमा मालिनी को नहीं. लोगों का लक्ष्य भाजपा को दोबारा जिताना है. अगर हेमा मालिनी की जगह कोई और होता तो हम बीजेपी को ही वोट देते.”
मालिनी के करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र के लिए काम किया है. उन्होंने कहा, “अब, वे पहले की तुलना में अधिक मथुरा आती है. हालांकि, वे लोगों से कम ही बातचीत करती हैं, लेकिन वे क्षेत्र की विकास योजनाओं और विभिन्न परियोजनाओं पर काम करती हैं और विभिन्न विभागों के साथ लगातार संपर्क में भी रहती हैं.”
मालिनी ने अपनी MPLADS (संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना) निधि का आधे से अधिक हिस्सा सड़कों, लिंक सड़कों और रास्तों के निर्माण पर खर्च किया है. 17वीं लोकसभा में उन्हें 9,80,00,000 रुपये आवंटित किए गए थे, जिसमें से 5,88,96,182 रुपये खर्च किए गए हैं.
उन्होंने 2018 में पास के वृन्दावन में एक घर भी खरीदा और जब भी मथुरा आती हैं तो वहीं रुकती हैं. उनके सहयोगियों के अनुसार, वे महीने में केवल कुछ दिन ही अपने निर्वाचन क्षेत्र में बिताती हैं.
मालिनी ने दिप्रिंट से कहा, “मैं छोटे कार्यों के लिए तैयार नहीं हूं, लेकिन मैंने बड़े कार्यों को हाथ में लिया है — चौरासी कोसी परियोजना, जिसकी लागत 11,000 करोड़ रुपये है. नालों की सफाई विधायकों और स्थानीय प्रतिनिधियों का काम है, मेरा नहीं.”
इस बार रालोद मालिनी के जाट बहू होने का फायदा उठाने की उम्मीद में है.
उक्त भाजपा नेता ने कहा, “उनकी छवि साफ-सुथरी है और पिछले 10 साल में वे किसी भी विवाद में शामिल नहीं हुई हैं और मोदी खुद एक सांसद के रूप में उनके प्रयासों की सराहना करते हैं.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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