नई दिल्ली: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल के करीबी सहयोगी माने जाने वाले राघव चड्ढा की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति नियुक्त करने के फैसले ने पंजाब में एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है और विपक्ष ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय राजधानी में बैठा आप का शीर्ष नेतृत्व अब सक्रिय रूप से पंजाब के अहम फैसले कर रहा है.
इस कदम की तुलना सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) से भी की जा रही है, जिसके बारे में आरोप है कि उसने नीति निर्माण के मामले में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार का एक तरह से दिशा-निर्देश किया और यहां तक कि इसने मसौदा तैयार करने के वाले चरण में विधेयकों की समीक्षा भी की.
विगत 6 जुलाई को, पंजाब सरकार ने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री मान ने विभिन्न स्तरों पर अपनी सरकार के कामकाज की समीक्षा की थी और उनका मानना है कि ‘पंजाब सरकार को लोक प्रशासन से संबंधित सार्वजनिक महत्व के मामलों पर सलाह देने के लिए एक संस्था की आवश्यकता है.’ इस समिति से जुड़ें टर्म्स ऑफ़ रिफरेन्स (कार्यक्षेत्र और अधिकार से जुडी शर्तें) इस बात पर जोर देना का प्रयास करती हैं कि यह सलाहकार संस्था अस्थायी होगा और ‘मुख्यमंत्री की अनुकंपा’ के तहत काम करेगी.
पंजाब के नए मुख्य सचिव, विजय कुमार जंजुआ द्वारा हस्ताक्षरित इस अधिसूचना में कहा गया है कि इस संस्था के अध्यक्ष और सदस्य किसी भी तरह के मुआवजे, पारिश्रमिक, भत्तों या प्रतिपूर्ति (खर्चों के लिए किये गए भुगतान) के हकदार नहीं होंगे.
इसके बाद, 11 जुलाई को, पंजाब के मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक प्रेस बयान जारी कर राघव चड्ढा की इस समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की घोषणा की.
इस बयान में कहा गया है : ‘इस नई भूमिका में, राघव चड्ढा पंजाब की आप सरकार की जनता की भलाई के लिए की जा रही पहलों की अवधारणा बनाने और इनके कार्यान्वयन की देखरेख की जिम्मेदारी निभाएंगे और साथ ही सरकार को इसी के अनुसार वित्त संबंधी मामलों पर सलाह देंगे.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘वित्तीय मामलों में उनकी अच्छी खासी जानकारी और उनकी बुद्धिमत्ता के कर्ज में डूबे पंजाब, जो वर्तमान में घोर वित्तीय संकट से जूझ रहा है, के लिए एक वरदान जैसा साबित होने की संभावना है, क्योंकि उनसे वित्तीय योजना बनाने और पंजाब को कर्ज मुक्त बनाने हेतु एक अत्यावश्यक भूमिका निभाने की उम्मीद है.’
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार पंजाब सरकार ने अभी तक इस समिति के अन्य सदस्यों को नियुक्त नहीं किया है.
इधर, राज्य के विपक्षी दलों ने चड्ढा की इस नियुक्ति को एक ‘गैर-संवैधानिक’ पद बताया, जो दिल्ली के नेताओं को पंजाब के शासन की ‘आउटसोर्सिंग’ में सक्षम बनाने हेतु सृजित किया गया है. उनका यह भी कहना है कि चड्ढा दिल्ली में बैठे आप नेताओं के संदेशवाहक के रूप में कार्य करेंगे.’
चड्ढा, जो पंजाब से राज्यसभा सांसद हैं, की नियुक्ति एक कानूनी मसला भी बन गया है और चंडीगढ़ के एक वकील ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करते हुए इसे ‘सरकार के अंदर चलायी जा रही एक समानांतर सरकार’ का मामला बताया है.
हालांकि, आप ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि चड्ढा के नेतृत्व वाली सलाहकार समिति से पंजाब के लोगों को काफी फायदा होगा.
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आलोचना के स्वर
इस बारे में बोलते हुए शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता चरणजीत सिंह बराड़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्यमंत्री और मंत्री अपने-अपने सलाहकार स्वयं नियुक्त करते हैं. इस तरह, मान के पास उनके अपने सलाहकार हैं. राघव चड्ढा को इस तथाकथित सलाहकार समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना एक गैर-संवैधानिक पद सृजित करने के अलावा और कुछ नहीं है. वह (चड्ढा) दिल्ली में बैठे आप के शीर्ष नेतृत्व से प्राप्त निर्देशों के अनुसार ही चीजों को मैनेज करेंगे. पंजाब के शासन को आउटसोर्स कर दिया गया है.’
इसी तरह, कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने संवाददाताओं से कहा, ‘श्री चड्ढा आप के दिल्ली दरबार के लिए पंजाब में प्रतिनिधि हैं. यह कदम पंजाब को केजरीवाल की औपनिवेशिक चौकी (आउटपोस्ट) में बदलने जैसा है. वह बिना किसी जवाबदेही के एक गैर-संवैधानिक प्राधिकार बना रहे हैं.‘
हालांकि, इस सभी आरोपों को खारिज करते हुए आप के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने संवाददाताओं से कहा कि इस समिति को गठित करना पंजाब सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, साथ ही, विपक्ष के आरोपों का जवाब देने का प्रयास करते हुए उन्होंने दलील दी कि कोई भी सलाहकार संस्था किसी मुख्यमंत्री की तुलना में अधिक अधिकार संपन्न नहीं हो सकती है, जिसने अपनी शक्तियों का उपयोग करके इसे बनाया है.
भारद्वाज ने कहा, ‘यह एक सलाहकार संस्था है और अस्थायी प्रकृति वाली है. और, इसकी सबसे बड़ी बात तो यह है कि (समिति के अध्यक्ष और सदस्यों को) एक रुपये का भी भुगतान करने का प्रावधान नहीं है.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि चड्ढा को इस समिति के अध्यक्ष के रूप में इसलिए नियुक्त किया गया है ताकि नीतिगत मामलों में ‘छोटी-मोटी अस्पष्टता’ को दूर किया जा सके क्योंकि उनके पास दिल्ली में शासन के केजरीवाल मॉडल का ‘प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त ज्ञान’ है.
पंजाब के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते थे, ने कहा: ‘शायद पंजाब की आप सरकार द्वारा इस सारे मामले की वैधता का सावधानी के साथ ध्यान रखा गया है. वे हमेशा यह तर्क दे सकते हैं कि मंत्रियों और सरकारों को सभी क्षेत्रों से सलाहकार नियुक्त करने का अधिकार है. यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय भी ऐसा करता है.’
इस अधिकारी ने आगे कहा ‘इसके अलावा, उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया है कि ये सलाहकार किसी भी तरह के पारिश्रमिक या भत्तों के हकदार नहीं होंगे. लेकिन फिर भी इस तरह की नियुक्ति दिल्ली, जिसे पंजाबी अक्सर ‘दिल्ली दरबार’ कहते हैं, द्वारा किसी भी तरह के हस्तक्षेप का विरोध करने की पंजाब की राजनीतिक संस्कृति का उल्लंघन करती है.’
अपनी पहचान जाहिर न किये जाने की शर्त रखते हुए राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव ने भी कहा: ‘यह एक चुने हुए मुख्यमंत्री की स्वायत्तता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है, खासकर तब जब आप के चुनाव जीतने के बाद से ही मान के केजरीवाल के प्रॉक्सी के रूप में काम करने के बारे में चिंताएं जताई जा रहीं हैं.’
एनएसी के साथ की जा रही है तुलना
पंजाब में आप के सत्ता में आने के चार महीनों के भीतर ही मान द्वारा केजरीवाल से मिलने के लिए दिल्ली जाने के कई मामले सामने आए हैं. शासन से जुड़े मामलों पर केजरीवाल का मार्गदर्शन लेने के बारे में भी मान मुखर रहे हैं. पंजाब के मुख्य सचिव और अन्य नौकरशाहों के केजरीवाल से मिलने के लिए दिल्ली जाने की भी कम से कम एक मामला सामने आया है. दोनों राज्यों ने एक ‘नॉलेज-शेयरिंग एग्रीमेंट’ (आपस में जानकारी साझा करने के समझौते) पर भी हस्ताक्षर किए हैं.
ऊपर उद्धृत नौकरशाहों के अनुसार, पंजाब की वर्तमान स्थिति की यूपीए प्रशासन के दौरान एनएसी की भूमिका के साथ काफी सारी समानताएं हैं. साल 2006 में, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर लोकसभा सांसद होने के साथ-साथ एनएसी अध्यक्ष होने के नाते लाभ का पद धारण करने का आरोप लगाया गया था. उस क्षमता में, गांधी एक कैबिनेट मंत्री के पद के बराबर का रुतबा हासिल कर रहीं थीं.
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ए) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को संसद द्वारा कानून के तहत घोषित कार्यालय अथवा पद के अलावा भारत सरकार या किसी भी राज्य की सरकार के तहत लाभ का कोई भी अन्य पद धारण करने के लिए एक सांसद के रूप में अयोग्य घोषित किया जाएगा.’
जब भारत का चुनाव आयोग विपक्षी नेताओं द्वारा श्रीमती गांधी खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था, उसी दौरान उन्होंने 23 मार्च 2006 को अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद, उन्होंने फिर एक उपचुनाव लड़ा और उसी वर्ष 15 मई को फिर से चुनी गईं.
साल 2017 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने एनएसी से संबंधित 710 फाइलें सार्वजनिक कीं, जिनमें कथित तौर पर इस बात पर रौशनी डाली गयी थी कि कैसी नीतिगत मामलों पर कैसे श्रीमती गांधी की राय ही अंतिम राय हुआ करती थी, कैसे उनके द्वारा अक्सर आला अधिकारियों को बुलाया जाता था, और कैसे सुझावों की आड़ में अक्सर निर्देश जारी किए जाते थे.
आप के पंजाब प्रवक्ता मलविंदर सिंह कांग ने इस तरह की तुलना को खारिज करते हुए कहा, ‘आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार यह कोई कैबिनेट-रैंक का पद नहीं है. इसके अलावा, कोई भी पारिश्रमिक, भत्ते, लाभ, मुआवजा या प्रतिपूर्ति नहीं दी जानी है. अतः लाभ के पद का तो सवाल ही नहीं उठता. राजनीतिक विरोधी दो अलग-अलग चीजों की तुलना एक साथ कर रहे हैं. यह सिर्फ एक कुप्रचार है.’
इससे पहले चड्ढा को साल 2016 में – जब वह न तो सांसद थे और न ही विधायक – दिल्ली के उप- मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का सलाहकार नियुक्त किया गया था और वे कथित तौर पर प्रति माह 1 रुपये का पारिश्रमिक लेते थे.
उनकी नियुक्ति – और साथ ही दिल्ली सरकार में की गई आठ अन्य लोगों की इसी तरह की नियुक्ति – केंद्रीय गृह मंत्रालय के उन निर्देशों के तहत 2018 में पूर्वव्यापी रूप से (रेट्रोस्पेक्टिवेली) रद्द कर दी गई थी, जिनमें कहा गया था कि दिल्ली में सेवा संबंधी विभाग केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और आप सरकार को इन सलाहकार पदों को अधिसूचित करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेनी चाहिए थी.
हालांकि, पंजाब के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि यह मिसाल पंजाब के मामले में लागू नहीं होती क्योंकि राज्य सरकार के तहत आने वाले सभी विभागों पर आप का पूरा नियंत्रण है.
साल 2018 में, चुनाव आयोग ने दिल्ली में आप के 20 विधायकों को लाभ के पद ग्रहण करने के आरोप में अयोग्य घोषित किये जाने की भी सिफारिश की थी.
इस विधायकों पर दिल्ली सरकार में शामिल विभिन्न मंत्रियों की सहायता के लिए असंवैधानिक रूप से संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किये जाने का आरोप लगाया गया था.
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