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Sunday, 22 December, 2024
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राज्यपाल की जगह CM को राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में लाना चाहती है ममता सरकार, लाएगी नया कानून

केंद्र सरकार ने इस कदम की निंदा की और कहा कि वो पश्चिम बंगाल कैबिनेट के फैसले के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू करने से पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देशों को देखेगी.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने गुरुवार को कहा कि राज्य की कैबिनेट ने सर्वसम्मति से राज्यपाल जगदीप धनखड़ की जगह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सभी राज्य विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने का फैसला किया है.

राज्य सचिवालय में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए बसु ने कहा, ‘हम जल्द ही विधानसभा में इस बारे में आवश्यक संशोधन के साथ एक विधेयक पेश करेंगे.‘

इस बीच, पश्चिम बंगाल सरकार के सूत्रों ने कहा कि यदि राज्यपाल विधेयक को अपनी मंजूरी नहीं देते हैं, तो राज्य प्रशासन ‘अध्यादेश का रास्ता अपनाएगी’.

विश्वविद्यालय प्रशासन को लेकर जारी यह तनातनी ममता और धनखड़, जो आपस में कटु संबंधों के लिए जाने जाते हैं, के बीच ताजे संघर्ष का बिंदु बन गया है.

बंगाल सरकार के इस फैसले के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार कोई कार्रवाई शुरू करने से पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों को देख रही है.

सरकार ने कहा, ‘शिक्षा व्यवस्था को राजनीति से ऊपर होना चाहिए, यह ताबूत की आखिरी कील है. सत्ताधारी पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) अब राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के सभी मामलों को संभालेगी. यह पश्चिम बंगाल में शिक्षा प्रणाली के पूर्ण राजनीतिकरण जैसा है.‘

उन्होंने कहा, ‘हर किसी को यह समझना चाहिए कि भविष्य में कोई नया मुख्यमंत्री होगा और यह एक त्रासदी साबित हो सकता है. वह भी ऐसे समय में जब राज्य सरकार स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की नियुक्ति में हुई अनियमितताओं को लेकर सीबीआई जांच का सामना कर रही है. इस तरह का फैसला अब तक पूरे देश में कहीं भी सुनने को नहीं मिला है. हम यूजीसी के दिशानिर्देशों को देख रहे हैं और यदि आवश्यक हुआ तो कार्रवाई करेंगे.’

कुछ इसी तरह का विवाद अप्रैल में तमिलनाडु में भी शुरू हुआ था, जहां द्रमुक सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच चल रहे विवाद के बीच राज्य विधानसभा ने राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने के लिए राज्य प्रशासन को सशक्त बनाने हेतु एक विधेयक पारित किया था.


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टीएमसी, राज्यपाल के बीच विवाद का ताजा बिंदु

राज्यपाल धनखड़ सभी राज्य विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति (चांसलर) हैं.

चांसलर के रूप में राज्यपाल की भूमिका उन विश्वविद्यालयों को संचालित करने वाली विधानों (स्टटूटेस) द्वारा निर्धारित की जाती है जो राज्य सरकारों के दायरे में आते हैं.

30 दिसंबर 2021 को धनखड़ ने ट्विटर पर एक पोस्ट के जरिये यह आरोप लगाया था कि राज्य के 24 विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में नियत प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.

उसी महीने, जब राजभवन में धनखड़ द्वारा बुलाई गई बैठक में पश्चिम बंगाल के निजी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति और कुलपति कोविड-19 प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए अनुपस्थिति रहे, तो राजयपाल ने उनकी इस अनुपस्थिति को ‘चौंकाने वाला संघवाद (युनियनिज्म)’ करार दिया था .

अप्रैल 2022 में राज्यपाल ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एच.के. द्विवेदी से आलिया विश्वविद्यालय के कुलपति के एक वायरल वीडियो में छात्रों द्वारा उन्हें कथित तौर पर प्रताड़ित किए जाने के बारे में एक रिपोर्ट मांगीं थी. राज्यपाल धनखड़ को जनवरी 2020 में कलकत्ता विश्वविद्यालय और दिसंबर 2019 में जादवपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा था.

इस बीच, विपक्षी पार्टी माकपा ने राज्य कैबिनेट के इस फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया.

माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा, ‘यह बहुत साफ है कि ममता बनर्जी इस राज्य में हर किसी चीज को नियंत्रित करना चाहती हैं, तो फिर विश्वविद्यालयों को क्यों छोड़ दें? क्या वह उस पद को संभालने के योग्य भी हैं?’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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