scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमदेश'रेत समाधि' को बुकर प्राइज मिलने पर गीतांजलि श्री ने कहा- कभी बुकर का सपना नहीं देखा था

‘रेत समाधि’ को बुकर प्राइज मिलने पर गीतांजलि श्री ने कहा- कभी बुकर का सपना नहीं देखा था

गीतांजलि श्री ने कहा कि बुकर पुरस्कार मिलने के बाद ये उपन्यास कई और लोगों तक जाएगा जो कि अन्यथा नहीं पहुंच पाता.

Text Size:

नई दिल्ली: वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘रेत-समाधि’ हिंदी की पहली किताब है जिसने वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है. पुरस्कार जीतने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा कि ये मेरे लिए बिल्कुल अप्रत्याशित है लेकिन अच्छा है.

बुकर पुरस्कार मिलने पर गीतांजलि श्री ने कहा, ‘मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह पुरस्कार हासिल कर सकती हूं. यह बहुत बड़े स्तर की मान्यता है जिसको पाकर मैं विस्मित हूं. मैं प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं.’

हिंदी में राजकमल प्रकाशन से छपी ‘रेत समाधि’ का अंग्रेज़ी में ‘टूम ऑव सैंड’ नाम से अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है. इस पुरस्कार की घोषणा लंदन में की गई और इस दौरान लेखिका गीतांजलि श्री, डेजी रॉकवेल और अशोक महेश्वरी वहां मौजूद थे.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ अंग्रेजी में प्रकाशित (मूल या अनूदित) कृति को ही दिया जाता है. ‘रेत-समाधि’ हिन्दी उपन्यास है, जिसके डेजी रॉकवेल द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ दिया किया गया है. मूल उपन्यास को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

डेजी रॉकवेल मानती हैं कि रेत समाधि एक जटिल और समृद्ध उपन्यास है जिसे बार-बार पढ़ने पर भी आश्चर्य और रोमांच गहराता है. वे कहती हैं, ‘मैं यह निस्संदेह कह सकती हूं क्योंकि अनुवाद करते-करते मैंने खुद इसे बार-बार पढ़ा है. उसको पूरी तरह समझने मे देर लगती है इसलिए कि हमारे छोटे जलेबी–दिमाग यह काम अकेले में नही कर सकते हैं. इसका प्रकाशन 2018 में हुआ आज चार साल बाद भी लोग उसे अंग्रेजी और फ्रेंच में भी पढ़ रहे हैं.’


यह भी पढ़ें: ‘मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा’: टैगोर ने राष्ट्रवाद को क्रूर महामारी क्यों कहा था


उपन्यास को कई और लोगों तक ले जाएगा बुकर पुरस्कार

गीतांजलि श्री ने कहा कि बुकर पुरस्कार मिलने के बाद ये उपन्यास कई और लोगों तक जाएगा जो कि अन्यथा नहीं पहुंच पाता. उन्होंने कहा, ‘इसके पुरस्कृत होने में एक उदास संतुष्टि है. रेत-समाधि इस दुनिया की प्रशस्ति है जिसमें हम रहते हैं, एक विहंसती स्तुति जो आसन्न कयामत के सामने उम्मीद बनाए रखती है.’

उन्होंने कहा, ‘जब से यह किताब बुकर की लांग लिस्ट में आई तब से हिंदी के बारे में पहली बार बहुत कुछ लिखा गया. मुझे अच्छा लगा कि मैं इसका माध्यम बनी लेकिन इसके साथ ही मैं इस बात पर जोर देना चाहती हूं कि मेरे और इस पुस्तक के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं की अत्यंत समृद्ध साहित्यिक परंपरा है. इन भाषाओं के बेहतरीन लेखकों से परिचित होकर विश्व साहित्य समृद्ध होगा. इस तरह के परिचय से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी.’

राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि बुकर प्राइज मिलना हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं में लिखे जा रहे साहित्य के लिए विशिष्ठ उपलब्धि है. उन्होंने कहा, ‘इससे स्पष्ट हो गया है कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का उत्कृष्ट लेखन दुनिया का ध्यान तेजी से आकर्षित कर रहा है.’

राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम ने ट्वीट कर कहा कि यह हिंदी समाज की सामूहिक उपलब्धि है.

गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘रेत-समाधि’ 2018 में प्रकाशित हुआ था. इसका डेजी रॉकवेल द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद 2021 में ब्रिटेन में प्रकाशित हुआ.

हिंदी के लेखक इसे भारतीय भाषाओं के लिए एक बड़ी परिघटना मान रहे हैं.

रेत समाधि उपन्यास पाठकों के बीच अलग तरह का प्रभाव बनाने लगता है. इसकी शुरुआती लाइन में ही लिखा गया है, ‘एक कहानी अपने आप को कहेगी. मुकम्मल कहानी होगी और अधूरी भी, जैसा कहानियों का चलन है. दिलचस्प कहानी है. उसमें सरहद है और औरतें, जो आती हैं, जाती हैं, आरम्पार. औरत और सरहद का साथ हो तो खुदबखुद कहानी बन जाती है.’

इसी तरह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि रेत समाधि ने वैश्विक स्तर पर अपनी मुकम्मल कहानी बना ली है.


यह भी पढ़ें: दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 साल: इबारत और इबादत की जगह को कट्टरता से बचाने की ज़रूरत


‘भारत का चमकदार उपन्यास’

इस पुरस्कार की जूरी में शामिल फ्रैंक वाईन ने कहा, ‘यह भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, लेकिन जिसकी मंत्रमुग्धता और उग्र करुणा यौवन और उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को एक बहुरूपदर्शक में बुनती है.’

श्री के उपन्यास को जब बुकर की लांग लिस्ट में शामिल किया गया था तब कवि अशोक वाजपेयी ने दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में कहा था, ‘गीतांजलि ने यथार्थ की आम धारणाओं को ध्वस्त किया है और एक अनूठा यथार्थ रचा है और हमारे आस-पास के यथार्थ से मिलता जुलता है और उसके सरहदों के पार भी जाता है.’

रेत समाधि एक 80 साल की बूढ़ी दादी की कहानी है जो बिस्तर से उठना नहीं चाहती और जब उठती है तो नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छनदता आ जाती है.

दिलचस्प बात है कि रेत समाधि उपन्यास को गीतांजलि श्री ने हिंदी की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती को समर्पित की है.

गीतांजलि श्री भारत की जानी-मानी लेखिका है जो बीते तीन दशकों से लेखन के कार्य में लगी हैं. उनके अब तक पांच उपन्यास छप चुके हैं जिनमें माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह और रेत समाधि शामिल है. श्री ने कई कहानियां भी लिखी हैं.


यह भी पढ़ें: ‘अकेली लड़की की शिकायत पर नहीं होता ज्यादा यकीन’: बिहार के महिला थाने महिलाओं के लिए नहीं हैं


 

share & View comments