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Saturday, 16 November, 2024
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महाराष्ट्र के सिंधिया? विधायक और ‘पुराने सैनिक’ एकनाथ शिंदे एमवीए के लिए खतरा क्यों बन गए

महाराष्ट्र के शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे, एक दर्जन से अधिक शिवसेना विधायकों के साथ गुजरात चले गए. उनका यह कदम शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का संकेत देता है.

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नई दिल्ली: जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे 9 फरवरी को 58 साल के हुए, तो ठाणे में लगे उनके एक पोस्टर को लेकर खूब चर्चा हुई. इसमें उनकी तस्वीर के नीचे ‘भविष्य के मुख्यमंत्री’ लिखा हुआ था. 2019 में भी पिछले विधानसभा चुनाव के बाद ठाणे के शिवसैनिकों ने उन्हें पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए ठाणे में पोस्टर और बैनर लगाए थे.

इसलिए जब मंगलवार को खबर आई कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में शहरी विकास मंत्री शिंदे एक दर्जन से अधिक शिवसेना विधायकों के साथ गुजरात के सूरत में जाकर ठहरे हुए हैं, तो महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में कई लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने इस बात का अंदेशा पहले से ही था. शिंदे का ये कदम सेना के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का संकेत दे रहा है.

हालांकि अचानक से शिंदे का यूं गुजरात चले जाना हैरानी का भी कारण बन रहा है क्योंकि पिछले हफ्ते ही शिवसेना के वंशज आदित्य ठाकरे के अयोध्या जाने से पहले शिंदे को उनके आसपास देखा गया था.

शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन वाली महाराष्ट्र की एमवीए सरकार को 152 विधायकों का समर्थन (निर्दलीय उम्मीदवारों सहित 169) हासिल है.

शिंदे के कथित विद्रोह की खबर के बाद से शिवसेना ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में सदन के नेता और पार्टी के मुख्य सचेतक के पद से हटा दिया है.

इस खबर के आने से पहले के अपने बयान में शिंदे ने मराठी में एक ट्वीट करते हुए कहा था कि वह और उनके समर्थक बाल ठाकरे और आनंद दिघे -दिवंगत सेना फायरब्रांड जो शिवसेना संस्थापक के करीबी सहयोगी थे- उनकी ‘शिक्षाओं के खिलाफ नहीं जाएंगे’.

ट्वीट में कहा गया, ‘हम शिव सैनिक हैं और बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है. बालासाहेब ठाकरे और आनंद दीघे ने हमें जो सिखाया है, सत्ता के लिए हम उसके खिलाफ नहीं जाएंगे.’

दिघे के मार्गदर्शन में आगे बढ़ने वाले शिंदे ने एक लंबा सफर तय किया है.

1980 के दशक में ठाणे में एक शाखा का नेतृत्व करने वाला एक शिव सैनिक, 2004 में विधायक बनने से पहले शिंदे ठाणे नगर निगम में पार्षद रहे थे.

शिंदे ने ठाणे नगर निगम के लिए दो बार चुने गए और तीन साल तक सिविल एजेंसी की स्थायी समिति के सदस्य रहे. उन्होंने चार साल तक महाराष्ट्र विधानसभा में सदन के नेता के रूप में कार्य किया.

2004 से वह लगातार चार चुनाव जीतते आ रहे हैं. उनके बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण से सेना के सांसद हैं.

शिवसेना के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शिंदे पिछले कुछ समय से पार्टी आलाकमान द्वारा ‘अलग-थलग’ किए जाने से परेशान थे. खासकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य जैसे ‘जूनियर’ और महाराष्ट्र के पर्यावरण एवं पर्यटन मंत्री और राज्य के परिवहन मंत्री अनिल परब की पार्टी में पूछ बढ़ने के बाद से उनकी नाराजगी जाहिर होने लगी थी.

शिंदे मुंबई के सैटेलाइट शहर और पार्टी के गढ़ ठाणे में शिवसेना के सबसे वरिष्ठ नेता हैं.

2014 में जब शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, तो पार्टियों के फिर से एक साथ आने से पहले उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया था. सरकार बनने के बाद वे मंत्री बने.

कथित विद्रोह तब शुरू हुआ जब पार्टी राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी कर रही है. इन चुनावों को 2024 के विधानसभा चुनावों के लिए एक लिटमस टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है.


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वह ‘शिवसेना से नाखुश’ क्यों

पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक, जब पार्टी भाजपा के साथ सत्ता में थी तो मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे को लेकर शिवसेना के भीतर मतभेद थे.

पिछले महीने दोनों दल 701 किलोमीटर के छह-लेन हिंदू हृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र समृद्धि महामार्ग का क्रेडिट लेने के लिए लड़ाई कर रहे थे. यह एक्सप्रेसवे नागपुर, वर्धा, अमरावती, वाशिम, बुलढाणा, औरंगाबाद, जालना, अहमदनगर, नासिक और ठाणे के 10 जिलों से होकर गुजरता है.

इसका निर्माण जनवरी 2019 में शुरू हुआ था और महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) इसके निर्माण में लगा था. यह विभाग उस समय लोक निर्माण विभाग के मंत्री शिंदे के अधीन आता था.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शिंदे इस परियोजना को आगे बढ़ा रहे थे लेकिन उनकी पार्टी ने इसका विरोध किया.

शिवसेना के एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन बाद में, पार्टी ने अपना रुख बदल लिया.’

सूत्रों के मताबिक शिंदे उद्धव के भाजपा से नाता तोड़ने के फैसले से खुश नहीं थे.

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने बताया, ‘वह बाल ठाकरे के समय के एक पुराने सैनिक हैं. भले ही उन्हें एमवीए सरकार में मंत्री बनाया गया हो, लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ शिवसेना के गठजोड़ से खुश नहीं थे.’

क्या शिंदे महाराष्ट्र के ज्योतिरादित्य सिंधिया बनेंगे – मध्य प्रदेश के एक पूर्व कांग्रेस नेता, जो कथित तौर पर पार्टी द्वारा दरकिनार किए जाने के लिए 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे? या उद्धव ठाकरे उन्हें वापस ले आएंगे?

ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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