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Sunday, 5 May, 2024
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शिवसेना ने कहा- UPA में बड़े बदलाव की जरूरत, BJP विरोधी मोर्चे के लिए 6 नेताओं का नाम भी सुझाया

मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि यूपीए का मालिकाना हक 7/12 कांग्रेस के नाम पर है. उसमें बदलाव किए बिना विपक्षी नेताओं को मजबूती से एक साथ लाना संभव नहीं दिखाई देता.

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मुंबई: महाविकास अघाड़ी में दिखे ताजा मतभेदों के बीच शिवसेना ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में बड़े बदलाव का सुझाव देते हुए एक बार फिर अपने सहयोगी दल कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे सहित आधा दर्जन क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं का नाम लिया और कहा कि ये सभी एक नई विपक्षी एकजुटता का नेतृत्व करने में सक्षम होंगे.

शिवसेना ने अपने पार्टी मुखपत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में लिखा, ‘यूपीए का मालिकाना हक 7/12 कांग्रेस के नाम पर है. उसमें बदलाव किए बिना विपक्षी नेताओं को मजबूती से एक साथ लाना संभव नहीं दिखाई देता.’

संपादकीय में पार्टी ने छह नेताओं शिवसेना प्रमुख ठाकरे, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एम.के. स्टालिन का नाम लेते हुए कहा कि ये सभी गैर कांग्रेसी, क्षेत्रीय नेता प्रतिभावन व्यक्ति हैं जिनके साथ नई एकजुटता के संदर्भ में चर्चा करना जरूरी है.

शिवसेना ने संपादकीय में लिखा, ‘इसके लिए कांग्रेस ने अगुवाई नहीं की इसलिए ममता बनर्जी को आगे आना पड़ा. उन्होंने प्रगतिशील ताकतों से आह्वान किया है.’

दरअसल शिवसेना कांग्रेस के नेतृत्व के बाहर विपक्षी एकता की संभावनाएं तलाश रही है. सीएम ठाकरे ने पिछले महीने तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को मुंबई में आमंत्रित किया था और लंच पर भाजपा के खिलाफ विपक्षी मोर्चे पर चर्चा की थी.

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पिछले साल नवंबर में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुंबई के दौरे पर आई थी. तब शिवसेना नेता और मुख्यमंत्री ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने सीएम से मुलाकात की और ‘अपने मजबूत बंधन को आगे ले जाने’ के बारे में खास चर्चा की थी. विपक्षी एकता पर ठाकरे के साथ बैठक के बाद बनर्जी ने एनसीपी प्रमुख पवार से उनके आवास पर मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए संवाददाताओं से कहा था कि अब कोई यूपीए नहीं है.

बीते दो सालों में, शिवसेना कई बार पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने का सुझाव दे चुकी है क्योंकि पार्टी के भीतर कई लोगों को लगता है कि कांग्रेस के गांधी परिवार के मुकाबले, पवार के नेतृत्व में बने संयुक्त विपक्ष में शिवसेना की बात ज़्यादा सुनी जाएगी.

कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन- महाविकास अघाड़ी में दिखे ताजा मतभेदों के बीच शिवसेना ने कांग्रेस को चुभने वाली यह बात कही है. बीते दो सालों में एनसीपी और शिवसेना के नेतृत्व के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. वहीं कांग्रेसी नेता परायेपन की शिकायत करते रहे हैं.

हाल ही में, जीशान सिद्दीकी और प्रणति शिंदे जैसे कांग्रेस विधायकों ने राज्य सरकार द्वारा बाहरी विधायकों को सब्सिडी वाले घर देने की योजना की सार्वजनिक रूप से आलोचना की थी. इस सप्ताह की शुरुआत में, राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने सीएम ठाकरे को पत्र लिखकर एमवीए के न्यूनतम साझा कार्यक्रम को लागू करने का आग्रह किया था.

कथित तौर पर असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों के एक समूह ने भी सोनिया गांधी को पत्र लिखकर उनसे मिलने की इच्छा जताई है.


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यूपीए में कौन है और क्या कर रहा है, इस पर संशय

शिवसेना ने कहा कि भाजपा के पास व्यापक बहुमत है. उसके बावजूद केंद्र का एजेंडा गैर-भाजपा शासित राज्यों के कामकाज में बाधा उत्पन्न करना है और उन्हें काम नहीं करने देना है.

इसके लिए उन्होंने पंजाब का उदाहरण दिया, जहां आप ने इस महीने की शुरुआत में भारी बहुमत से जीत हासिल की है. पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार के शपथ लेने के तुरंत बाद केंद्र ने चंडीगढ़ प्रशासन के सभी अधिकारियों को केंद्र के अधीन लाने का फैसला ले लिया. इस कदम को आप के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार और प्रशासन के कामकाज में टकराव पैदा करने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है.

शिवसेना ने केंद्रीय एजेंसियों द्वारा एमवीए के नेताओं को कथित रूप से निशाना बनाए जाने का भी जिक्र किया. उन्होंने इसे महाराष्ट्र में एमवीए सरकार को अस्थिर करने की भाजपा की साजिश करार दिया. शिवसेना ने सीधे तौर पर कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा, ‘इन लोगों के अनुसार (बॉलीवुड फिल्म) ‘द कश्मीर फाइल्स’ को टैक्स-फ्री नहीं करने वाले सभी राज्यों के मुख्यमंत्री देश के दुश्मन हैं. तो क्या विपक्षी दल के पास इस तरह की मानसिकता से बाहर निकालने का दम-खम है?’

‘अगर ऐसा होता भी है, तो क्या उस फैसले के पीछे आम सहमति होगी? वास्तव में संप्रग में कौन शामिल है और क्या कर रहा है, इस बारे में संदेह है.’

सामना के संपादकीय में गुरुवार को शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के एजेंडे को भी आगे बढ़ाते हुए चेतावनी दी कि कोई भी भाजपा विरोधी मोर्चा तभी मजबूत हो पाएगा, जब नया एकजुट विपक्ष इस बात को ध्यान में रखेगा कि ‘देश सभी का है, लेकिन हिंदू सिरमौर हैं.’

पार्टी ने कहा, ‘भाजपा उत्तर प्रदेश में इसलिए जीती क्योंकि उसके आगे धर्मनिरपेक्षता की बहस फीकी पड़ गई.’


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‘कांग्रेस को विपक्षी दल के रूप में बने रहने की जरूरत’

हांलांकि सामना के संपादकीय में गुरुवार को अप्रत्यक्ष रूप से यूपीए का नेतृत्व करने की कांग्रेस की क्षमता पर सवाल उठाया गया था. लेकिन साथ ही यह भी दोहराया कि कांग्रेस के बिना विपक्षी गठबंधन संभव नहीं होगा. शिवसेना ने कहा कि ममता बनर्जी भी इसे मानती हैं.

शिवसेना ने कहा, ‘गैर-भाजपा शासित राज्यों के कामकाज में अड़ंगा डालकर लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है. ममता बनर्जी ने कांग्रेस समेत विभिन्न दलों के नेताओं को लिखे अपने पत्र में सभी प्रगतिशील ताकतों से आह्वान किया कि वे भाजपा के अन्याय और तानाशाही से लड़ने के लिए एकजुट होकर आगे आएं. उन्होंने कांग्रेस को यह पत्र भी लिखा था. इसका मतलब साफ है. वे भी स्वीकार करती हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है.’

वह आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस को निश्चित रूप से एक विपक्षी दल के रूप में बने रहना चाहिए. यहां तक कि नितिन गडकरी ने भी इसे लेकर अपनी राय व्यक्त की है. उन्होंने कांग्रेस पार्टी को मजबूत होने की बात कही है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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