मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि एल्गार परिषद मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा अपने हाथ में लेने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है.
केंद्र ने पिछले महीने मामले की जांच पुणे पुलिस से लेकर एनआईए को सौंप दी थी. राज्य की शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस सरकार ने उस समय इस फैसले की आलोचना की थी.
हालांकि अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) संजय कुमार ने गुरुवार को कहा, ‘मामला एनआईए को हस्तांतरित करने पर राज्य गृह विभाग को कोई आपत्ति नहीं है.’
पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केंद्र के इस फैसले की यह कहते हुए आलोचना की थी कि केंद्र सरकार को जांच में दखल देने का पूरा अधिकार है, लेकिन एनआईए को जांच सौंपने से पहले उसे राज्य सरकार को विश्वास में लेना चाहिए था.
उन्होंने कहा कि मामला एनआईए को उस समय सौंपा गया जब राकांपा प्रमुख शरद पवार विशेष जांच दल (एसआईटी) से इसकी जांच की मांग कर रहे थे.
एनआईए ने पिछले सप्ताह पुणे की एक निचली अदालत में एक आवेदन कर मामले से जुड़े दस्तावेजों, जब्त किए गए डेटा और अदालती कार्रवाई के दस्तावेजों को मुंबई में एनआईए की विशेष अदालत को सौंपे जाने का अनुरोध किया था.
हालांकि, उस समय बचाव पक्ष ने एनआईए के आवेदन का विरोध किया था और कहा था कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने अपनी याचिका में जो कारण दिए हैं, वे मामले को विशेष एनआईए अदालत को सौंपने के लिए पर्याप्त और विधि-सम्मत नहीं हैं.
बचाव पक्ष के एक वकील सिद्धार्थ पाटिल ने दलील दी थी कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 के अनुसार केवल उच्च न्यायालय ही किसी मामले को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित कर सकता है.
मामला 31 दिसंबर 2017 को यहां शनिवारवाड़ा में हुई एल्गार परिषद सभा में दिए गए भाषणों और अगले दिन जिले में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के निकट हुई हिंसा से संबंधित है.
पुणे पुलिस का दावा है कि सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था और इस दौरान दिए गए भाषणों से हिंसा भड़की.
इस मामले में वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाले कार्यकर्ताओं सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेन्द्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और वरवर राव को कथित रूप से माओवादियों से संबंध रखने को लेकर गिरफ्तार किया गया था.