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Saturday, 4 May, 2024
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भाजपा अगर दिए गए वादों को निभाती तो मैं मुख्यमंत्री पद पर दिखाई नहीं देता : उद्धव ठाकरे

शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक संजय राउत को दिए साक्षात्कार में उद्धव ने कहा, 'मैंने क्या मांगा था भाजपा से? जो तय था वही न! मैंने उनसे चांद-तारे मांगे थे क्या?'

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के ही मुखपत्र सामना को हाल ही में अपना पहला साक्षात्कार दिया है. सामना के संपादक संजय राउत ने ठाकरे का साक्षात्कार किया.

इसमें सीएम ठाकरे ने सभी सवालों का खुलकर जवाब दिया. वहीं भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘भाजपा अगर दिए गए वादों को निभाती तो मैं मुख्यमंत्री पद पर दिखाई नहीं देता. कोई शिवसैनिक वहां पर विराजमान हुआ होता. लेकिन ये उस दिशा में उठाया गया पहला कदम है.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने क्या मांगा था भाजपा से? जो तय था वही न! मैंने उनसे चांद-तारे मांगे थे क्या?’

इस साक्षात्कार में सीएम ने सरकार स्थापना के घटनाक्रम से लेकर विवादित नागरिकता संशोधन कानून तक, राहुल गांधी से अजित पवार तक, कई सवालों का जवाब दिया.

 

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उद्धव जी, आप झटके से उबर गए हैं क्या?
– झटका? कैसा झटका? मुझे लगा ऐसा लगता है क्या?

नहीं, ऐसा मुझे भी नहीं लगता, लेकिन…
– नहीं ही लगेगा. इसका कारण ये है कि मैं शिवसेना प्रमुख का पुत्र हूं. झटका देने का प्रयास कइयों ने करके देखा है. लेकिन किसी को भी वो जमा नहीं. परंतु शिवसेना प्रमुख ने जो झटका कइयों को दिया है, उससे वे लोग अभी भी उबरते हुए नहीं दिखाई दे रहे. ये क्षेत्र ऐसा है कि इसमें झटका या धक्का-मुक्की मानकर चलना पड़ता है. इससे पहले आपने शुरुआत करते हुए शतरंज का उल्लेख किया. शतरंज बुद्धि से खेला जानेवाला खेल निश्चित तौर पर है लेकिन उसमें विभिन्न प्यादे उसे क्या कहते हैं… प्यादा, हाथी, घोड़ा, राजा, वजीर, ऊंट हर एक की चाल हम ध्यान में रखें तो शतरंज खेलना कठिन है, ऐसा मुझे नहीं लगता.

महाराष्ट्र में इस शतरंज के खेल में षड्यंत्र और चालबाजी का स्वरूप आ गया है. उसे षड्यंत्र कहें या चालबाजी कहें, आपने उसे नाकाम कर दिया. ये झटका कइयों को लगा. ये मेरा कहने का तात्पर्य है. आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यही बड़ा झटका था, ऐसा नहीं लगता क्या?
– नहीं, एक बात ध्यान में रखो. मुख्यमंत्री पद को स्वीकारना न ही मेरे लिए झटका था और न ही मेरा सपना था. अत्यंत ईमानदारी से मैं ये कबूल करता हूं कि मैं शिवसेना प्रमुख का एक स्वप्न- फिर उसमें ‘सामना’ का योगदान होगा, शिवसेना का सफर होगा और मुझ तक सीमित कहें तो मैं मतलब स्वयं उद्धव द्वारा उनके पिता मतलब बालासाहेब को दिया गया वचन! इस वचनपूर्ति के लिए किसी भी स्तर तक जाने की मेरी तैयारी थी. उससे भी आगे जाकर एक बात मैं स्पष्ट करता हूं कि मेरा मुख्यमंत्री पद वचनपूर्ति नहीं बल्कि वचनपूर्ति की दिशा में उठाया गया एक कदम है. उस कदम को उस दिशा की ओर बढ़ाने के लिए मैंने मन से किसी भी स्तर तक जाने का तय किया था. अपने पिता को दिए गए वचन को पूरा करना ही है और मैं वो करूंगा ही.

लेकिन इस झटके से महाराष्ट्र उबरा है क्या?
– झटके कई प्रकार के होते हैं. लोगों को ये समझा है कि नहीं. पसंद आया है कि नहीं, ये महत्वपूर्ण हिस्सा है. मैंने कई बार इस मामले पर बोला है और जनता भी इसे पूरी तरह से समझी है. वचन देने और निभाने में फर्क है. वचन भंग होने पर स्वाभाविक ही है कि दुख है, गुस्सा है. उन्होंने किसके लिए ये किया? क्यों वचन दिया और क्यों मुकर गए? फिर उनके द्वारा इस तरह से वचन से मुकरने के बाद मेरे पास दूसरा विकल्प नहीं था.

परंतु इस झटके से आपके 25 वर्षों की साथी रही भाजपा उबरी क्या?
– मुझे पता नहीं. लेकिन मुझे उनसे ऐसा कहना है कि उन्होंने वचन निभाया होता तो क्या हुआ होता. ऐसा मैंने क्या बड़ा मांगा था? आसमान के चांद-तारे मांगे थे क्या? लोकसभा चुनाव से पहले जो हमारे बीच तय हुआ था उतना ही मांगा था.

आपने वचन बालासाहेब को दिया था उसकी वचनपूर्ति आपने की, ऐसा अब आपने कहा?
– नहीं. मेरा मुद्दा सही प्रकार से समझ लें. उस वचनपूर्ति की दिशा में उठाया गया वो पहला कदम है. हां, पहला कदम. यही मेरा दृष्टिकोण है.

ऐसे कितने कदम आप उठाएंगे?
– जितना उठाना पड़ेगा, उतना उठाऊंगा. मैं शिवसेना प्रमुख के शिवसैनिक को मुख्यमंत्री पद पर बिठाऊंगा, ये मेरा वचन है और उस दिशा में उठाया गया ये पहला कदम है, ऐसा मैं मानता हूं.

परंतु इसे करने के लिए आपको तत्वों और ठाकरे परिवार की परंपरा को तोड़ना पड़ा, ऐसा नहीं लगता क्या?
– हां, सही है. आप जैसा कहते हैं वैसा है. निश्चित ही है. परंतु अंतत: ऐसा था कि… शिवसेना प्रमुख ने जिंदगी में कभी भी सत्ता का कोई भी पद नहीं स्वीकारा. मेरी भी ऐसी इच्छा नहीं थी, बिल्कुल भी नहीं.

‘मातोश्री’ और शक्ति ये दो बातें हमेशा एक साथ रही हैं
लेकिन जब मुझे आभास हुआ कि जिनके साथ हम हैं अथवा थे, उनके साथ रहकर मैं अपनी वचनपूर्ति की दिशा में जा नहीं सकता और उस वचनपूर्ति के लिए यदि मुझे अलग दिशा स्वीकारनी होगी तो वैसी तैयारी होनी चाहिए उसके लिए यदि मुझे ऐसी बड़ी जिम्मेदारी स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा तो मेरे लिए लाइलाज था. वह जिम्मेदारी स्वीकार करनी ही पड़ी.

मैंने इस बार 23 जनवरी को अलग इसलिए कहा कि आपकी वचनपूर्ति होने के बाद का यह पहला जन्मदिन था ‘मातोश्री’ पर इस बार मुख्यमंत्री रह रहे थे. इस तरह से यह अलग था क्या?
मातोश्री और शक्ति… मैं सत्ता नहीं कहता. शक्ति! ये दो बातें हमेशा ही एक साथ रही हैं, आगे भी रहेंगी. सत्ता प्राप्ति अथवा सत्ता में हमारा आना यह एक अलग तरह का अनुभव निश्चित तौर पर है और था ही. मैंने जैसा कहा ‘मातोश्री’ और शक्ति के एकत्रित होने की दो बातें हैं. इसलिए नया कुछ हुआ ऐसा मुझे नहीं लगता. क्योंकि वह भीड़, वह सब जल्लोष मैं बचपन से देखता रहा हूं.

उद्धवजी, लोकसभा चुनाव से पहले एक छवि स्पष्ट थी कि शिवसेना अकेले दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. वैसी तैयारी भी हो गई थी लेकिन उसके बाद अचानक देश ने देखा कि अमित शाह आपसे मिलने आए और आप शाह के प्रचंड प्रेम में पड़ गए…
देखिए, जो करना है उसे उदारता से करना चाहिए. चोरी-छिपे नहीं करना चाहिए, यह मेरा स्वभाव है. आप देखें, वह समय वैसा था. वे सामने से आए, वे खुद से आपके पास आए, ऐसा कहने पर मुझे भी ऐसा लगा कि ठीक है. बीच के दौर में जो कुछ भी हुआ होगा फिर भी, उसके पहले सालों साल से हमारी युति थी. अब पीढ़ी बदल गई है. शायद इससे थोड़ा से यहां-वहां हुआ होगा लेकिन फिर संबंध सुधर रहे हैं और हमारा उद्देश्य और ध्येय एक होगा तो रास्ता खराब करते रहने की बजाय जो हुआ, उसे भूलकर नई शुरुआत करने में कोई हर्ज नहीं है.

विधानसभा चुनाव आए, तब सीटों के बंटवारे को लेकर थोड़ा विवाद हुआ. यह सभी ने देखा. आपने भी दो कदम पीछे लिए और युति बरकरार रखी…
हिंदुत्व के लिए बरकरार रखी. हिंदुत्व ही महत्वपूर्ण है.

हां, हिंदुत्व के लिए आपने युति बचा ली. विधानसभा चुनाव के प्रचार में हमने ऐसा देखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपका उल्लेख ‘मेरे छोटे भाई’ कहकर करते थे…
मेरे लिए उतना ही काफी था.

आप उनके छोटे भाई बन गए…
अर्थात्! उम्र में बड़े व्यक्ति का बड़ा भाई वैसे होगा!

फिर भी वह रिश्ता टिका नहीं…
इस रिश्ते को बचाए रखने के लिए दोनों ओर से प्रयास होना चाहिए था. मेरी ओर से तो इस रिश्ते को बचाए रखने का प्रयास मैंने आखिर तक किया.

और देवेंद्र तो आपका उल्लेख ‘मेरे बड़े भाई’ इसी तरह करते थे…
हां. इन दो भाइयों के बीच मैं कैची में फंस गया.

फिर आज हिंदुत्व का क्या हुआ?
हम हिंदुत्व पर कायम हैं और रहेंगे! उसमें कोई जोड़-तोड़ नहीं है!

पता चलता है लेकिन उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनें, ऐसा महाराष्ट्र का सपना था. अभी-भी कई लोगों को ऐसा लगता है कि उद्धव ठाकरे एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर हैं…
होगा, लेकिन पहले जो आपने कहा कि यह महाराष्ट्र का सपना था, ऐसा सपना किसी मामले में ही जनता द्वारा देखना यह कई जन्मों का सौभाग्य होगा, मुझे नहीं पता. यह पूर्व संचित है. खुद ऐसा सपना देखे बगैर जनता द्वारा देखना और यह अनपेक्षित रूप से अनाकलनीय रूप से मूर्त स्वरूप ले ले, यह बड़ा भाग्य ही है. खुद बालासाहेब ने घोषित किया था कि खुद कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे. चुनाव ही नहीं लड़ेंगे कहने पर सत्तापद का सवाल ही नहीं उठता था. लेकिन फिर भी उनके इस निर्णय को लेकर आलोचना हुई. आप यह बाहर रहकर कहते हैं खुद करके दिखाएं. ठीक है, फिर मैं अब खुद तुम्हें करके दिखाता हूं. मतलब हम सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठे फिर भी आलोचना होती थी, वह हुई ही है. इसलिए मैंने तय किया कि अब खुद बैठकर तुम्हें करके ही दिखाता हूं.

डॉक्टर मनमोहन सिंह इस देश के उत्कृष्ट प्रधानमंत्री थे. दो बार उन्होंने यह महत्वपूर्ण पद संभाला. देश को अराजकता की खाई से बाहर निकाला. आर्थिक मंदी से बाहर निकाला. उनका उल्लेख ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ कहकर किया गया. एक बात आपको बताता हूं, जिनसे प्रारंभ में बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखी जाती हैं. उनके द्वारा देश की बहुत बड़ी सेवा हो जाती है. आपका भी जो ‘एक्सीडेंटल सीएम’ कहकर उल्लेख करते हैं, उन्हें मैं हमेशा डॉक्टर मनमोहन सिंह का उदाहरण देता हूं.
हां. लेकिन उनकी तुलना में मैं कुछ थोड़ा ज्यादा बोलता हूं.

आप विधानसभा में जाना पसंद करेंगे या विधानपरिषद में?
आपको बताऊं क्या! असल में मुख्यमंत्री बनने से पहले मैं उस विधानभवन में जीवन में दो-चार बार से अधिक नहीं गया होऊंगा. ऐसी देश में अपवादात्मक परिस्थिति निर्माण हो गई होगी कि कोई व्यक्ति, जिसका वहां जाने का पहले कभी सपना नहीं था. वह व्यक्ति आता है वह भी मुख्यमंत्री बनकर. मैं हमेशा कहता हूं कि जिम्मेदारियों से मैं कभी पीछे नहीं भागा और भागूंगा भी नहीं. इसलिए किसी को भी आहत किए बगैर जो संभव होगा, वह मैं करूंगा.

एक आरोप आप पर हमेशा लगता है आपके पुराने मित्रों की ओर से. यह सब करने के लिए आपने अपने सिद्धांत छोड़ दिए और मुख्य मतलब हिंदुत्व से जोड़तोड़ की…
मैंने क्या धर्मांतरण किया है? और तुम कहोगे वही हिंदुत्व, ऐसा धर्म वाक्य है क्या? यह संविधान में लिखा है क्या कि ये कहेंगे वही हिंदुत्व है. आप मतलब सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ऐसा भाव कोई न दिखाए. आप कहते हो वही सही है और बाकी के लोग जो कहेंगे वह झूठ है, ऐसा दावा हास्यास्पद है. ये दावा वे अपने कार्यालय में करें तो हर्ज नहीं है.

सरकार स्थापित करते समय तीन विचारधाराएं एक साथ आई. अर्थात् कांग्रेस और राष्ट्रवादी की विचारधारा एक ही है. वो अलग नहीं है लेकिन शिवसेना के विचार के लिए दो मुख्य विरोधी विचार प्रवाह थे. यह प्रवाह एक साथ आया है…
इसमें दो भिन्न विचारधाराएं, तीन भिन्न विचारधाराएं आप कहते हो लेकिन केंद्र में जो सरकार है उसमें अभी कितनी पार्टियां हैं? उनके कितने विचार हैं? नीतीश कुमार और भाजपा की विचारधारा एक है क्या? महबूबा मुफ्ती और उनकी विचारधारा एक थी क्या? चंद्रबाबू की एक थी क्या? ममता बनर्जी उस समय सत्ता में थीं, उनकी विचारधारा एक थी क्या? जॉर्ज फर्नांडिस की विचारधारा एक थी क्या? रामविलास पासवान आज उनके साथ हैं, उनकी और भाजपा की विचारधारा एक है क्या? अब झारखंड में क्या हुआ? वहां विचारधारा मेल खाई क्या? ये सब वैसा है कि हुआ गया सब गंगा में मिल गया, ऐसा ही कहा जाए. हम गंगाजल घर में लाकर रखते हैं यह ऐसा ही है?

मतलब अब विचारधारा एक…
एक बात ध्यान रखो, सभी की विचारधारा है न. हम हिंदुत्ववादी हैं और रहेंगे ही. कांग्रेस की विचारधारा अलग है लेकिन दोनों-तीनों पार्टियां कुल मिलाकर इस देश में जितनी भी पार्टियां हैं, उनका उदाहरण लें. अपने-अपने राज्य का हित देश का हित इस विचार से कोई अलग है क्या? हमें राज का हित नहीं करना है क्या? देश का हित करना नहीं है क्या? देश में, राज्य में अराजकता फैलानी है क्या? और फिर भी हम तुम्हारे साथ आते हैं, ऐसा कहकर कोई एक साथ नहीं आया है. कश्मीर में जो विचारधारा की गफलत हुई थी, वैसी यहां हुई है क्या?

शरद पवार और सोनिया गांधी दो अलग-अलग पार्टियों के नेता हैं. कल तक आप सभी एक-दूसरे की आलोचना करते थे…
हां. की है आलोचना.

आज आप सत्ता स्थापना के लिए एकजुट हैं. इस पर भारतीय जनता पार्टी लगातार टिप्पणी कर रही है…
ठीक है न. उन्हें करने दो. लेकिन मेरा सवाल ऐसा है कि पार्टी तोड़कर लाए गए लोग आपको मंजूर हैं तो फिर उस पार्टी से हाथ मिलाया तो क्या फर्क पड़ता है? उस पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं को भारतीय जनता पार्टी ने खुद में समाहित कर ही लिया है न. कांग्रेस के कितने नेताओं को उन्होंने लिया? उन्हें विधायक क्या, सांसद क्या अथवा अन्य कई पद भी दिए हैं. वे भी उसी विचारधारा वाले थे न?

वहां जाकर वे शुद्ध हो जाते हैं…
यही है न. लेकिन यह लॉण्ड्री तुम्हारे पास ही है क्या? गंगाजल लेकर छिड़कते हुए घूमते हो सब जगह.

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