इंदौर: लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में मध्यप्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. इस क्षेत्र में प्रदेश के मालवा और निमाड़ में वोट डाले जायेंगे. इस क्षेत्र में प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की असली परीक्षा होगी. राज्य में कर्जमाफी का मुद्दा है, मगर माफ नहीं होने की वजह से कांग्रेस पार्टी पर से भरोसा टूट रहा है. इसके अलावा फसलों का समर्थन मुल्य भी मुद्दा बना हुआ है. राज्य में फसलों की उचित कीमत देने में दोनों दल नाकाम रहे हैं. पीने के पानी का संकट और बिजली कटौती भी चर्चा का विषय बने हुए हैं. कांग्रेस पार्टी का जयस पार्टी के साथ गठबंधन होने से फायदा मिल रहा है.
वहीं, निमाड़-मालवा में भाजपा की जमीन मजबूत नजर आ रही है. गुजरात से सटे होने की वजह से कई भाजपा नेताओं ने यहां डेरा डाल दिया है. खरगोन, रतलाम और धार में भी पाटीदार फैक्टर बना हुआ है. इंदौर व उज्जैन की शहरी सीटों पर ब्राह्मण वोटर्स ज्यादा है. जो भाजपा के साथ हैं. पांच लाख सवर्ण बंटे हुए नजर आ रहे है. वहीं, 2 लाख मुस्लिम वोटर्स भी असरदार है. ग्रामीण क्षेत्रों में बलाई, यादव, गुर्जर और खाती समाज प्रभावी है. ये जातियां दोनों दलों के साथ खड़े हुए नजर आ रहे हैं.
प्रदेश की खंडवा हॉट सीट बनी हुई है. भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान को मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने उनके मुकाबले अरुण यादव को प्रत्याशी बनाया है. दोनों ही पहले अपने-अपने दलों के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे चुके है. दोनों परंपरागत प्रतिद्वंदी है. यह उनका तीसरा मुकाबला है. 2009 में यादव जीते थे, 2014 में चौहान ने जीत दर्ज की थी. इस सीट पर दोनों ही दलों में गुटबाजी देखने को मिल रही है. दोनों के बीच मुकाबला कड़ा है. कांग्रेस को उम्मीद बड़ी है. इस क्षेत्र की चार विधानसभा सीटों पर उनका पलड़ा भारी है. भाजपा के पास तीन और अन्य के पास एक सीट है.
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इंदौर लोकसभा सीट पर ढाई लाख मराठी निर्णायक वोटर्स है. वर्तमान सांसद सुमित्रा महाजन को टिकट नहीं मिलने से नाराज उनकी चुनाव मैदान में लड़ने की मजबूरी को वे अच्छे से समझ रहे है. इसलिए वे भाजपा से नाराज तो है लेकिन पार्टी के परंपरागत मतदाता होने और महाजन की छवि खराब नहीं हो इसलिए वोट तो भाजपा को ही देंगे. इसके चलते यहां से भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है. कांग्रेस के उम्मीदवार पंकज संघवी इससे पहले महापौर, विधायक और सांसद के चुनाव हार चुके हैं. लेकिन वह भारी पड़ते नजर आ रहे है. ग्रामीण वोटर्स में स्थिति बेहद मजबूत मानी जा रही है.
देवास लोकसभा सीट से इस बार दोनों दलों ने गैर-राजनीतिक चेहरों को मैदान में उतारा है. भाजपा ने जज रहे महेंद्र सोलंकी और कांग्रेस ने कबीर गायक प्रहलाद टिपानिया को टिकट दिया है. दोनों ही बलाई समाज से है. इस समाज का बड़े पैमाने पर मलावा-निमाड़ में वोट बैंक है. देवास में मुकाबला बराबरी का है.
उज्जैन के मौजूदा सांसद की जगह भाजपा ने अनिल फिरोजिया को मैदान में उतारा है. यह सीट भजापा का गढ़ है. पिछले 11 चुनावों में वह 7 बार जीती है. लोकसभा की 8 सीटों में से 3 पर भाजपा का कब्जा है. कांग्रेस के उम्मीदवार बाबूलाल मालवीय है जो पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के करीबी है. यहां की पांच विधानसभा सीटे जीतने के कारण कांग्रेस का आत्मविश्वास में है.
रतलाम लोकसभा सीट में पिछली बार भाजपा ने जीती थी, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने छीन ली. भूरिया यहां से फिर मैदान में है. भाजपा ने उनके सामने झाबुआ से विधायक जीएस डामोर को मैदान में उतारा है. भाजपा यह सीट फिर से जीतना चाहती है इसलिए विधायकों को चुनाव नहीं लड़ाने के नियम को भी तोड़ा.
किसान आंदोलन का केंद्र रही मंदसौर लोकसभा सीट पर एक बार फिर भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता और कांग्रेस से राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन का मुकाबला दिखाई दे रहा है. गुप्ता को लेकर स्थानीय संगठन नाराज है. वहीं नटराजन का व्यवहार भी कार्यकताओं के लिए नाराजगी का कारण बना हुआ है.
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धार लोकसभा सीट पर बड़ा फैक्टर आदिवासी संगठन जयस है. जो कांग्रेस के साथ है. यहां से भाजपा के छतर सिंह दरबार और कांग्रेस के दिनेश ग्रेवाल मैदान में है. गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तरह बीते वर्षों में जयस के हीरालाल अलावा भी उभरे है.
कांग्रेस ने खरगोन सीट से जयस के डॉ.गोविंद सिंह को टिकट देकर धार की सीट पर मुकाबला कड़ा कर दिया है. यहां से भाजपा ने गजेंद्र सिंह पटेल को नया उम्मीदवार बनाया है. गोविंद सिंह के पास मजबूत आदिवासी वोट बैंक खड़ा है. विधानसभा में भी कांग्रेस ने सभी सीटे जीती थी.