मध्य प्रदेश में भाजपा के प्रमुख नेता उम्मीदवारों के नामों पर विचार करने के लिए भोपाल में डेरा डाले हुए हैं तो कांग्रेस के प्रमुख नेता दिल्ली में हैं.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के इस वक़्त 165 तो कांग्रेस के 58 सदस्य हैं. राज्य में इस बार 28 नवंबर को मतदान है. इस चुनाव के लिए नामांकन की तिथि काफी करीब आने के साथ ही सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में उम्मीदवारों के नामों पर मंथन शुरू हो गया है.
भाजपा के प्रमुख नेता उम्मीदवारों के नामों पर विचार करने के लिए भोपाल में डेरा डाले हुए हैं तो कांग्रेस के प्रमुख नेता दिल्ली में हैं और दूसरी पंक्ति के नेता प्रदेश की कमान थामे हुए हैं.
सरल शब्दों में कहा जाए तो भाजपा की ‘ए’ टीम उम्मीदवारों के चयन में शामिल हैं तो कांग्रेस की ‘बी’ टीम उम्मीदवारों के नाम पर मंत्रणा कर रही है.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन बार से लगातार जीत हासिल कर रही भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. इसलिए दोनों दल ‘करो या मरो’ जैसा जोर लगा रहे हैं. भाजपा जहां लगातार चौथा चुनाव जीतकर इतिहास रचने के सपने देख रही है तो कांग्रेस 15 साल के वनवास की अवधि पूरी कर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है. अब तक जारी हुए वीडियो और बयान से दोनों दलों की प्रचार शैली आक्रामक प्रतीत हो रही है.
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फिलहाल दोनों में से किसी भी दल ने उम्मीदवारों के नामों पर मुहर नहीं लगाई है, जिससे पता चले कि दोनों दलों के भीतर सब कुछ ठीक चल रहा है. प्रदेश की राजनीति को गहराई से जानने वाले बताते हैं कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों में टिकट को लेकर मारामारी चल रही है. भाजपा के प्रदेश दफ्तर में प्रदर्शन का दौर चल रहा है. बड़े नेता अपने-अपने तरह से सक्रिय हैं, दूसरी ओर कांग्रेस में उम्मीदवारी दिल्ली से तय होनी है, लिहाजा सारे नेता दिल्ली में केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों में व्यस्त हैं. इसके चलते प्रदेश में पार्टी की ‘बी’ टीम ने कमान संभाल रखी है.
भाजपा की रणनीति
भाजपा मध्य प्रदेश की सत्ता पर 15 साल से काबिज़ है. लिहाज़ा उसे तीखे सत्ताविरोधी रुझान का सामना करना पड़ रहा है. उसने इससे निपटने की रणनीति भी बना रखी है. दावा किया जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व ने सभी विधायकों के कामकाज का आंतरिक सर्वे कराया है. जिसमें पाया गया है कि लगभग 40 फीसदी विधायकों के ख़िलाफ़ नाराज़गी है. पार्टी से जुड़े सूत्र दावा करते हैं कि ऐसे में इनके टिकट काटे जा सकते हैं या इनकी सीट बदली जा सकती है.
फिलहाल भाजपा के प्रमुख नेता और चुनाव अभियान समिति के संयोजक व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के भोपाल स्थित आवास पर सुबह से दावेदारों का जमावड़ा लगा रहता है, सभी अपने अपने आवेदन लेकर उनके आवास पर ही पहुंचते हैं. फिलहाल तोमर पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि इस माह के अंत तक सभी उम्मीदवारों के नाम की घोषणा हो जाएगी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह और महामंत्री सुहास भगत भोपाल और राज्य में सक्रिय हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ को रोक दिया है और टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में लग गए हैं.
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भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं,‘मध्य प्रदेश में टिकट बंटवारे के तीन आधार हैं. पहला, राज्य की इकाई का अपना आंकलन है. दूसरा, कार्यकर्ताओं की रायशुमारी से प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए तैयार की गई तीन नामों की सूची. तीसरा, थर्ड पार्टी सर्वे और जनता फीडबैक. केवल इन्हीं तीन बातों का ध्यान रखकर टिकट दिया जाएगा.’
स्थानीय पत्रकार दीपक गोस्वामी कहते हैं, ‘एंटी इनकंबेंसी से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ की तरह भाजपा मध्य प्रदेश में भी विधायकों के टिकट काट सकती है. हालांकि टिकट बंटवारे में प्रदेश नेतृत्व से ज्यादा केंद्रीय नेतृत्व की चलेगी. ज्यादातर नामों पर अंतिम मुहर राज्य के नेतृत्व की सहमति से अमित शाह की टीम ही लगाएगी.’
कांग्रेस की रणनीति
भाजपा जहां बड़ी संख्या में उम्मीदवार बदलने की तैयारी में है, तो कांग्रेस में चल रहे शीतयुद्ध के कारण उम्मीदवारों के नाम तय नहीं हो पा रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की योजना भाजपा के विपरीत दिख रही है. एक ओर जहां सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए अपने मौजूदा विधायकों में से बहुत सारें लोगों को टिकट नहीं देने पर विचार कर रही है, वहीं कांग्रेस अपने 57 विधायकों में से 42 को फिर से चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है.
पीटीआई की एक खबर के मुताबिक कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि पार्टी ने अपने 42 मौजूदा विधायकों का कार्य संतोषजनक पाया है इसलिए उन्हें राज्य विधानसभा चुनावों में फिर से उतारने की तैयारी की जा रही है. उन्होने कहा, ‘पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ भी किसी विधायक का टिकट काटने के पक्ष में नहीं हैं. पार्टी के 71 उम्मीदवारों की पहली सूची जल्दी ही जारी होने वाली है जिसमें इन विधायकों के नाम भी शामिल हैं.’
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फिलहाल कांग्रेस के प्रमुख नेता प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया का ज्यादा समय दिल्ली में बीत रहा है. कांग्रेस की ‘बी’ टीम प्रदेश में सक्रिय है. इनमें मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा, पंकज चतुर्वेदी, जेपी धनोपिया, दुर्गेश शर्मा आदि प्रमुख हैं.
कांग्रेस के नेता और मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा है कि सभी नेता अपने काम में लगे हैं, कौन कहा है इसकी उन्हें जानकारी नहीं है, मगर इस चुनाव में भाजपा को उखाड़ देंकने का संकल्प कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने लिया है.
कांग्रेस के टिकट बंटवारे की रणनीति पर पत्रकार दीपक गोस्वामी कहते हैं, ‘कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. मध्य प्रदेश में लगभग हर सीट पर अलग-अलग कम से कम तीन गुटों के उम्मीदवार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. ऐसे में किसी एक को टिकट देकर बाकी को साधने का काम पार्टी को करना पड़ रहा है. शायद यही कारण है कि पार्टी अभी तक अपने प्रत्याशियों को कोई लिस्ट नहीं जारी कर पाई है.’
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना कहते हैं, ‘पार्टी में किसी तरह की गुटबाज़ी नहीं है. टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार साफ कहा है कि जो हमने सर्वे कराया है उस के हिसाब से जीतने वाले प्रत्याशी को टिकट दिया जाएगा.’
जानबूझकर टिकट बंटवारे में कर रहे देरी
राज्य में कांग्रेस की सियासत पर गौर करें तो इन दिनों सभी प्रमुख नेताओं के प्रतिनिधि राजधानी में पहले की तुलना में कहीं ज्यादा सक्रिय हैं, क्योंकि उनके आका दिल्ली में व्यस्त हैं. दूसरी ओर भाजपा के प्रमुख नेता राजधानी और प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय हैं ताकि असंतोष पर किसी तरह काबू पाया जा सके.
राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटैरिया कहते हैं, ‘कांग्रेस राज्य में तय रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है. नेताओं का दिल्ली में डेरा है और कांग्रेस के टिकटों पर अंतिम मुहर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ही लगाएंगे. दूसरी ओर, भाजपा में उम्मीदवारों के नामों का फैसला संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को करना है.’
पटैरिया ने आगे कहा ,‘मौजूदा सरकार के प्रति आक्रोश का कांग्रेस को फायदा मिलेगा. हालांकि भाजपा की ताकत जमीनी स्तर पर उसका कैडर है. लिहाजा चुनाव के नतीजे रोचक हो सकते हैं.’
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फिलहाल मतदान में करीब एक महीने का ही वक्त बचा है लेकिन दोनों पार्टियां उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर रही हैं. कांग्रेस ने कई बार पहली सूची जारी करने की बात की लेकिन यह अभी तक जारी नहीं हो सकी है.
राजनीतिक विश्लेषक लोकेंद्र सिंह इस देरी की वजह बताते हुए कहते हैं, ‘बड़े राजनीतिक दल जानबूझकर उम्मीदवारों की सूची देर से जारी करते हैं. इसमें उनका फायदा होता है. जिन लोगों को टिकट नहीं मिल पाता है उनकी बगावत से होने वाला नुकसान कम होता है, अगर वे स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भी खड़े होते हैं तो उन्हें प्रचार का मौका कम मिलता है.’
(समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)