नई दिल्ली: ‘नेता चुनाव प्रचार करने आ रहे हैं लेकिन पानी की बात कोई नहीं कर रहा है. हम किसानों के लिए पानी की समस्या सबसे बड़ी है. हमारे यहां भूजल स्तर बहुत नीचे है. ट्यूबबेल से पानी निकालकर खेती करना बहुत महंगा पड़ता है. हर साल जलस्तर और भी नीचे होता जा रहा है जिससे खेती करना और महंगा होता जा रहा है. नहर है लेकिन ज़्यादातर समय उसमें पानी नहीं रहता है.’
ये बात मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले के मेहंगाव तहसील के इमरखी गांव के रहने वाले किसान उम्मेद सिंह भदौरिया ने बतायी.
उन्होंने कहा कि चुनावों में नेता हमारी समस्याओं पर बात नहीं करते हैं. हमारे यहां खेती तो छोड़िए गर्मी आते ही पीने के पानी का संकट हो जाता है. गर्मियों के चार महीने पानी को लेकर हाहाकार मचा रहता है लेकिन अभी इस पर कोई बात नहीं हो रही हैं.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने ‘वचनपत्र’ और भारतीय जनता पार्टी ने ‘दृष्टिपत्र’ जारी किया है, मगर इन दलों ने सत्ता में आने पर प्रदेश के पेयजल संकट के सार्थक निदान के लिए कोई खास पहल की बात नहीं कही है.
सत्ताधारी भाजपा के दृष्टि पत्र और कांग्रेस के वचन-पत्र (चुनावी घोषणा) का विश्लेषण करने के बाद तस्वीर जो सामने निकलकर आई है, वह जलसंकट के मुद्दे पर बहुत ही निराशाजनक और असंवेदनशील रवैये को ज़ाहिर करती है.
आपको बता दें मध्य प्रदेश भारत का वह राज्य है, जिसका एक बड़ा इलाका जल संकट ग्रस्त रहता है, राज्य में बुंदेलखंड क्षेत्र का भी एक बड़ा हिस्सा आता है, इसी तरह से महाकौशल, विध्य और चंबल संभाग भी जल संकटग्रस्त क्षेत्र है. इन इलाकों में साल के छह माह से अधिक समय गंभीर जल संकट रहता है. इस साल तो राज्य के 52 ज़िलों में से 35 से अधिक ज़िले जल संकटग्रस्त थे, पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा था. लोग रात-रात भर जागकर पीने के पानी का इंतज़ाम कर रहे थे.
राज्य के हालात और जलसंकट का ज़िक्र करें तो सिचाई के अभाव में मध्य प्रदेश का एक बड़ा इलाका बंजर पड़ा हुआ है. किसान और मज़दूर एवं समाज के सभी वर्गों के लोग बढ़ते जलसंकट से त्रस्त रहे.
पानी संरक्षण के लिए दो दशक से काम कर रहे समाजसेवी और जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. संजय सिंह का कहना है, ‘मध्य प्रदेश भारत का वह राज्य है, जहां सबसे अधिक छोटी नदियां पाई जाती हैं. प्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई सतही जल से होती है, प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार अधिकांश हिस्सा पठारी और असमतल है, भूगर्भीय जल का स्तर अत्यधिक गहरा है. जनवरी के बाद से अंधिकाश जलस्रोत या तो पानी देना बंद कर देते हैं या सूख जाते हैं. इसके बाद पूरी गर्मियों के मौसम में पेयजल की गंभीर किल्लत रहती है, इसके बावजूद भी राजनीतिक दलों को चुनाव में जल संकट कोई मुद्दा दिखाई नहीं दिया.’
सिंह ने दोनों दलों के चुनाव पूर्व जारी ‘वचनपत्र’ और ‘दृष्टिपत्र’ का अध्ययन करने के बाद कहा, ‘राजनीतिक दलों में जल के प्रति इस तरह के उपेक्षित व्यवहार से हर कोई आहत है.’
आपको बता दें कि भाजपा ने अपने ‘दृष्टिपत्र’ में सिंचाई क्षेत्र बढ़ाने के साथ नल-जल योजना का ज़िक्र किया है, मगर इसका खाका नहीं खींचा है कि घरों तक पानी पहुंचाने के लिए किस तरह इस योजना पर अमल किया जाएगा. वहीं कांग्रेस ने ‘वचनपत्र’ में बुंदेलखंड पैकेज के दुरुपयोग का तो आरोप लगाया है, मगर निदान पर ज़ोर नहीं दिया है.
इस साल गर्मियों में मध्य प्रदेश गंभीर जल संकट की चपेट में था. इस साल मई में खबर आई थी कि यहां के 165 बड़े जलाशयों में से 65 बांध लगभग सूख गए थे और 39 जलाशयों में उनकी क्षमता का 10 फीसद से भी कम पानी शेष बचा था.
साथ ही मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन विभाग के आयुक्त कार्यालय के प्रमुख इंजीनियर (ईएससी) प्रभाकांत कटारे ने बताया था कि ‘प्रदेश के कुल 378 स्थानीय नगरीय निकायों में से 11 नगरीय निकायों में चार दिन में एक बार पानी की आपूर्ति हो पा रही है. 50 निकायों में तीन दिन में एक बार तथा 117 निकायों में एक दिन छोड़कर पानी की आपूर्ति की जा रही है.’
फिलहाल ऐसे गंभीर जल संकट की स्थिति में राजनीतिक दलों के पास अपना कोई नज़रिया नहीं है.
ग्वालियर में रहने वाले पत्रकार दीपक गोस्वामी कहते हैं, ‘अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते हैं जब ग्वालियर के अखबार पीने के पानी की समस्या वाली खबरों से भरे रहते थे. यहां के ज़्यादातर मोहल्लों में दो दिन में एक बार पानी आता था. खबर चल रही थी कि चंबल से पानी लाया जाएगा. लेकिन बारिश हुई, पानी की समस्या से निजात मिली. लोग पानी की समस्या भूल गए. अब उन्हें अगली गर्मी में इसकी याद आएगी. अब चुनाव में जब जनता पानी को भूल गई तो राजनीतिक दल क्यों याद रखेंगे. दरअसल मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से में जलसंकट एक समस्या है लेकिन सिर्फ सरकारों और लोगों की उदासीनता के चलते यह विकराल रूप धारण करता जा रहा है.’
(समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)