जिस तरह से देश में गत कुछ वर्षों से राजनीति के मायने बदले हैं और राजनीतिक मतभेद मनभेद में बदलते जा रहे हैं, उसके असर से राजनीति से जुड़े परिवार भी बच नहीं पाए हैं. बदलती राजनीति ने तेज़ी से राजनीति से जुड़े परिवारों में भी गंभीर स्तर पर मनभेद पैदा कर दिए हैं. राजनीति के कारण परिवारों के बिखरने की संख्या लगातार बढ़ रही है.
कुछ वर्ष पहले तक राजनीतिक परिवारों में एक ही दल के साथ सालों साल तक जुड़े रहने की एक परंपरा थी मगर हाल के वर्षों में यह परंपरा चरमराने लगी है. अब एक ही परिवार के लोग अलग-अलग राजनीतिक दलों में जाने लगे हैं. देश भर में ऐसे कईं उदाहरण हैं यहां एक ही परिवार के लोग अपनी सुविधानुसार विभिन्न विचारधारा वाले दलों में रह कर राजनीति कर रहे हैं.
जम्मू कश्मीर भी इससे अछूता नहीं है और यहां भी ऐसे कईं उदाहरण हैं, यहां एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग राजनीतिक दलों में रह कर राजनीति में सक्रिय हैं.
जम्मू के शर्मा बंधु
ताज़ा मामला जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा का है, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है. शाम लाल शर्मा द्वारा भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के साथ ही जम्मू कश्मीर में एक और परिवार राजनीति की वजह से दो हिस्सों में बंट गया है. शाम लाल शर्मा के बड़े भाई मदन लाल शर्मा प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और फ़िलहाल कांग्रेस में ही हैं.
पेशे से व्यापारी, शाम लाल शर्मा को राजनीति और कांग्रेस में उनके बड़े भाई मदन लाल शर्मा ही ले कर आए थे. पर कुछ वर्ष कांग्रेस में एक साथ सक्रिय रहने के बाद दोनों भाईयों के राजनीतिक रास्ते अलग हो गए हैं.
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उल्लेखनीय है कि 2004 लोकसभा चुनाव में मदन लाल शर्मा के सांसद चुने जाने पर उन्हें विधानसभा से त्यागपत्र देना पड़ा था. जिस कारण उनके त्यागपत्र से रिक्त हुई अखनूर विधानसभा सीट से उनके छोटे भाई शाम लाल शर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव लड़ा व जीता. शाम लाल शर्मा ने अखनूर विधानसभा क्षेत्र से ही कांग्रेस टिकट पर 2008 के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की और बाद में जम्मू कश्मीर में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे.
प्रदेश कांग्रेस और राज्य की राजनीति में कुछ ही वर्षों में शाम लाल शर्मा अपने बड़े भाई मदन लाल शर्मा से काफी आगे निकल गए और कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाने लगे. प्रदेश कांग्रेस में दोनों भाईयों को ‘शर्मा बंधु’ के रूप में जाना जाता रहा है. प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में एक ऐसा भी समय आया जब पार्टी की अंदरूनी राजनीति दोनों के इर्द-गिर्द घूमने लगी. मगर अब एक भाई द्वारा भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाने से प्रदेश कांग्रेस की मशहूर ‘शर्मा बंधु’ की जोड़ी टूट कर बिखर गई है.
शाही परिवार में भी रास्ते अलग-अलग
जम्मू कश्मीर के पूर्व शासक रह चुके डोगरा राज परिवार के सदस्य भी अलग-अलग राजनीतिक दलों में सक्रिय हैं. स्वयं डॉ कर्ण सिंह और उनका बड़ा बेटा विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस में हैं. इस बार उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर विक्रमादित्य चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि डॉ कर्ण सिंह का छोटा पुत्र अजातशत्रु सिंह भारतीय जनता पार्टी में है और आजकल राज्य विधानपरिषद के सदस्य हैं.
अगस्त 2017 से पहले तक डोगरा राज परिवार की स्थिति और भी दिलचस्प व असमंजस भरी थी. उस समय डॉ कर्ण सिंह खुद कांग्रेस में तो थे मगर विक्रमादित्य सिंह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(पीडीपी) में थे जबकि अजातशत्रु सिंह भारतीय जनता पार्टी में थे. भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से पहले तक अजातशत्रु सिंह नेशनल कांफ्रेस में थे. यानी परिवार के तीन लोग तीन अलग-अलग राजनीतिक दलों में रह चुके है.
‘जितेन्द्र सिंह राणा व देवेन्द्र सिंह राणा’
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह राणा और उनके अनुज देवेन्द्र सिंह राणा का मामला भी ऐसा ही है. दोनों सगे भाई हैं और दोनों ही अलग-अलग राजनीतिक दलों में रहकर राजनीति में सक्रिय हैं. जितेन्द्र सिंह राणा यहां भारतीय जनता पार्टी में रह कर राजनीति कर रहे हैं वहीं देवेन्द्र सिंह राणा जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेस के वरिष्ठ नेता हैं व आजकल पार्टी की जम्मू संभाग की इकाई के प्रमुख हैं. भारतीय जनता पार्टी और नेशनल कांफ्रेस एक दूसरे के धुर विरोधी हैं.
दोनों भाईयों ने राजनीति में शुरू से ही अलग-अलग रास्ते और दिशा चुनी. राजनीति में पहले छोटे भाई देवेन्द्र सिंह राणा ने कदम रखा और नेशनल कांफ्रेस की सदस्यता लेकर राज्य विधान परिषद में पहुंचे. 2014 के विधानसभा जुनाव में देवेन्द्र सिंह राणा ने नगरोटा विधानसभा क्षेत्र से नेशनल कांफ्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर विधायक बने. एक सफल व्यापारी से राजनीति में आए देवेन्द्र सिंह राणा ने 2014 में मोदी लहर में भी शानदार जीत पाई और राजनीति में अपना लोहा मनवाया है.
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दूसरी ओर,देवेन्द्र सिंह राणा के बड़े भाई जितेन्द्र सिंह राणा पेशे से एक डॉक्टर थे और 2014 के लोकसभा चुनाव से कुछ पहले ही राजनीति में दाखिल हुए. 2014 में उन्होंने उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और अपने पहले ही चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद को हरा कर सभी को हैरान कर दिया. बाद में दिल्ली में मंत्री भी बने. इस बार जितेन्द्र सिंह राणा का मुकाबला डॉ कर्ण सिंह के बड़े बेटे विक्रमादित्य सिंह से है.
‘सज्जाद मुख्यधारा में, बिलाल अलगाववादी’
कश्मीर के अलगाववादी नेता स्वर्गीय अब्दुल गनी लोन के दोनों बेटों की कहानी और भी दिलचस्प है. एक को भारतीय संविधान पर पूरा भरोसा है जबकि दूसरा भारतीय संविधान और लोकतंत्र पर यकीन नहीं करता. स्वर्गीय अब्दुल गनी लोन के बड़े बेटे बिलाल लोन ने अलगाववादी राजनीति का दामन थाम रखा है जबकि छोटा बेटा सज्जाद लोन अलगाववादी राजनीति छोड़ कर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो चुके हैं. आज की तारिख में बिलाल लोन और उनके भाई सज्जाद लोन के रास्ते पूरी तरह से एक दूसरे से जुदा हो चुके है.
अलगाववादी राजनीति को त्याग कर मुख्यधारा की राजनीति में आए सज्जाद लोन आज जम्मू कश्मीर की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे है और धीरे-धीरे सज्जाद लोन राज्य में एक नई राजनीतिक ताकत बन रहे हैं. 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात और बाद में भारतीय जनता पार्टी के साथ उनकी नज़दीकियां कश्मीर में खूब चर्चा में हैं.
सज्जाद लोन ने 2009 में बारामुला लोकसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा मगर चुनाव हार गए थे. 2014 में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा व हंदवाडा विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल कर विधायक बने. बाद में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) व भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार में मंत्री भी बने.
मगर दूसरी तरफ उनके भाई बिलाल लोन ने अपने लिए दूसरा रास्ता चुन रखा है. बिलाल लोन शुरू से ही अलगाववादी खेमे में रहे हैं और उनकी पार्टी जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट हुर्रियत कांफ्रेस का एक प्रमुख घटक है.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.)