पटना: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद ने बेटे तेजस्वी को पार्टी के भीतर और अधिकार दिए जाने के रास्ते खोलते हुए, अपनी स्वीकृति के बिना तेजस्वी को नीतिगत फैसले लेने की आजादी दी है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री के इस कदम को धीरे-धीरे राजद की बागडोर पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी को सौंपने के अगले कदम के रूप में देखा जा रहा है.
राजद के विधायक दल के नेता और संसदीय बोर्ड के सदस्य तेजस्वी को जातीय जनगणना और विस्तार की रणनीति पर पार्टी का रुख तय करने के लिए अधिकृत करने का निर्णय लालू की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी के पटना आवास पर मंगलवार को हुई पार्टी विधायकों की बैठक में लिया गया.
राजद विधायक भाई वीरेंद्र यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘बैठक में लालूजी, सभी विधायक और पार्टी के नेता शामिल थे. तेजस्वी यादव के लिए जातीय जनगणना और पार्टी के विस्तार पर पार्टी का रुख तय करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था’
बुधवार को एक सर्वदलीय बैठक में बिहार के लिए जाति के आधार पर गणना करने का फैसला किया गया.
राजद के एक अन्य विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हालांकि राजद का यह प्रस्ताव तेजस्वी को पार्टी पर पूरा नियंत्रण नहीं देता है लेकिन यह उन्हें लालू से सलाह किए बिना भी पार्टी के लिए कुछ नीतिगत फैसले लेने की मंजूरी देता है.’
बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा, अब तक युवा नेता को पार्टी से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले अपने पिता से व्यक्तिगत तौर पर या फिर फोन पर सलाह लेनी पड़ती थी. ‘लेकिन यह प्रस्ताव तेजस्वी को कुछ अधिकार देता है और साथ ही उन्हें राजनीतिक आधार भी देता है.’
प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने साफ किया कि अभी तक तेजस्वी को पूर्ण अधिकार नहीं दिए गए हैं. लालू जी ‘बॉस’ बने रहेंगे.
राजद के सूत्रों के मुताबिक, चारा घोटाले के मामले में लालू के हिरासत में होने या पिछले एक साल से चल रहे उनके इलाज के चलते पार्टी के भीतर से तेजस्वी को फैसले लेने के लिए अधिक अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी.
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘दो हफ्ते पहले मैंने लालू जी को एक खुला पत्र लिखकर तेजस्वी को पूरा नियंत्रण देने के लिए कहा था. तेजस्वी ने खुद को लोगों द्वारा स्वीकार किए गए नेता के रूप में साबित किया है और 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में उन्होंने महागठबंधन (कांग्रेस, राजद और अन्य दलों के) को जीत के करीब पहुंचाया.’
हालांकि तेजस्वी का कद पिछले कुछ सालों में एक नेता के रूप में बढ़ा है, लेकिन पार्टी के भीतर कुछ हिस्सों में उनके नेतृत्व को लेकर अभी भी विरोध है.
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‘परिवार के भीतर विरोध के सुर’
क्रिकेटर से नेता बने तेजस्वी 2015 में राजद विधायक दल के नेता के लिए अपने पिता की पसंद थे. 2017 में लालू ने उन्हें अगले चुनावों के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी बनाया था.
हालांकि युवा नेता के लिए यह सब आसान नहीं रहा. 2019 का लोकसभा चुनाव लालू के सक्रिय रूप से पार्टी के प्रभारी के बिना पहला चुनाव था. इन चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.
राज्य के राजनीतिक पर्यवेक्षकों को याद है कि उसके बाद से तेजस्वी ने सामाजिक दायरे से दूरी बना ली. वह विधानसभा की कार्यवाही में भी शामिल नहीं हुए और उन्होंने दिल्ली में रहना पसंद किया.
यह 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले था. चुनावों में तेजस्वी एक नेता के रूप में उभरकर सामने आए. प्रचार के दौरान वह न केवल राजद के वोट बैंक बढ़ाने की रणनीति बना रहे थे बल्कि बेरोजगारी के मुद्दे पर नीतीश कुमार सरकार पर हमला भी कर रहे थे.
राजद और उसके सहयोगियों ने एनडीए के 125 के मुकाबले 110 सीटों पर जीत हासिल की थी.
पार्टी में आए इस बदलाव ने तेजस्वी को एक लोकप्रिय विपक्षी नेता बना दिया. फिर भी, लालू के ‘राजनीतिक उत्तराधिकारी’ को अपनी ही पार्टी के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा है.
पार्टी ने पिछले महीने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन की घोषणा से ठीक पहले इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक बैठक की थी.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव, पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती अघोषित रूप से बैठक में शामिल हुए थे. लेकिन तेजस्वी बैठक में नजर नहीं आए और दिल्ली चले आए. और फिर कैम्ब्रिज में एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने के लिए अपनी पत्नी के साथ यूके चले गए.
सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने बिहार विधानसभा के ‘विपक्ष के नेता (तेजस्वी) के साथ सलाह-मशविरा करके’ लालू को दो उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करने के लिए अधिकृत किया था. लेकिन यह साफ हो गया कि दो उम्मीदवार – मीसा भारती और फैयाज़ अहमद – तेजस्वी की पसंद नहीं थे.
तेजस्वी यादव के एक विश्वासपात्र ने कहा ‘तेजस्वी मीसा भारती से एक वादा चाहते थे कि अगर उन्हें राज्यसभा सीट दी जाती है तो वह 2024 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र संसदीय सीट से चुनाव लड़ने पर जोर नहीं देंगी, क्योंकि वह वहां से दो बार हार चुकी हैं. लेकिन उनकी तरफ से यह वादा कभी नहीं आया. फिर भी उनका राज्यसभा का नामांकन किया गया’. उन्होंने आगे कहा कि तेजस्वी को 2024 के चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करने का स्वतंत्र अधिकार दिया जाना चाहिए.
लालू के विश्वासपात्र का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि तेजस्वी अंततः राजद के नेता के रूप में अपने पद पर आसीन होंगे.
राजद के एक विधायक ने कहा, ‘अगली पीढ़ी के हाथ में पार्टी की बागडोर धीरे-धीरे दी जाएगी. अगर यह यह फैसला अचानक से किया गया तो परिवार के बीच सार्वजनिक विवाद हो सकता है. लेकिन लालू जी ने इस बारे में कोई संदेह नहीं छोड़ा है कि तेजस्वी ही उनके उत्तराधिकारी होंगे’ उन्होंने आगे कहा, ‘मंगलवार को पार्टी की राजनीतिक रणनीतियों को तय करने के लिए तेजस्वी को अधिकार देने का फैसला, उन्हें पार्टी का पूर्ण नियंत्रण सौंपने की दिशा में एक कदम है.’
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