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Sunday, 22 December, 2024
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कोश्यारी की विदाई क्यों चाहते हैं उद्धव,इस तरह हुई थी इस पूरे झगड़े की शुरुआत

महाराष्ट्र के राज्यपाल के साथ उद्धव ठाकरे की खींचतान तभी शुरू हो गई थी जब वह मुख्यमंत्री थे. केरल और तमिलनाडु से लेकर राजस्थान और पंजाब तक अधिकांश गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसी ही कहानी चल रही है.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को केंद्र सरकार द्वारा राज्य को भेजा गया ‘अमेज़ॅन पार्सल’ बताते हुए उन्हें उनके पद से हटाने की मांग की है. उन्होंने राज्यपाल को हटाने के लिए सभी दलों से एकजुट होने का भी आग्रह किया है.

ठाकरे ने यह मांग वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में पिछले सप्ताह एक समारोह में कोश्यारी द्वारा की गयी उस टिप्पणी के मद्देनजर की गई है. पिछले गुरुवार को आयोजित इस कार्यक्रम में कोश्यारी ने बी.आर. अंबेडकर और भाजपा नेता नितिन गडकरी जैसे आधुनिक युग के प्रतीकों की तुलना में छत्रपति शिवाजी को ‘पुराने समय का प्रतीक’ बताया था.

यह कोई पहली बार नहीं है जब ठाकरे की कोश्यारी के साथ झड़प हुई हो. जब उद्धव मुख्यमंत्री थे तब भी दोनों के बीच कई बार झगड़े हुए थे. अंततः इस साल की शुरुआत में उनकी पार्टी के एक धड़े के टूटने के बाद उन्हें इस पद से हाथ धोना पड़ा था.

हालांकि, राज्य सरकार और राजभवन के बीच विवाद का भड़कना सिर्फ महाराष्ट्र के मामले में अनोखी बात नहीं है. वास्तव में, वे लगभग उन राज्यों में आम बात प्रतीत होते हैं जो केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) के विरोध में खड़ी पार्टियों द्वारा शासित होते हैं.

राज्यपाल, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, को अक्सर ऐसे राज्यों में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है. यह धारणा तब से और भी मजबूत हो गई है जब जगदीप धनखड़, जिनके पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान राजभवन और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कार्यालय के बीच लगातार विवाद देखा गया था, ने इस साल की शुरुआत में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है.

यहां हम गैर-भाजपा राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच हुई हालिया आमने-सामने की कुछ तकरारों पर एक नजर डाल रहे हैं.

दिल्ली: अरविंद केजरीवाल बनाम वी. के. सक्सेना

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राष्ट्रीय राजधानी के उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर- एलजी) के बीच तनावपूर्ण संबंधों की खबरें व्यापक रूप से सामने आती रहीं हैं. दिल्ली के वर्तमान एलजी वी.के. सक्सेना ने इस साल जुलाई में दिल्ली की आबकारी नीति की सीबीआई जांच के लिए इस साल जुलाई में वर्तमान एलजी वी.के. सक्सेना द्वारा दिल्ली की आबकारी नीति की सीबीआई जांच के लिए कहे जाने के बाद ये संबंध पर एक नए निचले स्तर पर आ गए थे

एक तरफ जहां केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने इस साल मई में नियुक्त किए गए सक्सेना पर भाजपा की ओर से काम करने का आरोप लगाया है, वहीं सक्सेना ने बिजली सब्सिडी योजना और स्कूल की कक्षाओं में निर्माण में हुए घोटाले सहित केजरीवाल सरकार की विभिन्न पहलों की जांच और रिपोर्ट मांगी है.

सक्सेना के पूर्ववर्तियों से भी केजरीवाल के संबंध खराब ही रहे थे .

तमिलनाडु: एम.के. स्टालिन बनाम आर.एन. रवि

तमिलनाडु में, राज्य सरकार और राजभवन के बीच के संबंध इस हद तक बिगड़ गए हैं कि सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और उसके सहयोगियों ने राज्यपाल आर.एन. रवि को पद से हटाए जाने की मांग के साथ मुहिम छेड़ रखी है.

डीएमके नेताओं द्वारा हस्ताक्षरित और इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रपति भवन को भेजे गए एक ज्ञापन में तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022 – जो राज्य सरकार को राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करने का अधिकार देता है – सहित विधानसभा द्वारा पारित किए जाने के बाद ऐसे कुल 20 बिलों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन पर राज्यपाल द्वारा अब तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं.

अपनी तरफ से राज्य्पाल रवि ने पिछले महीने के कोयम्बटूर विस्फोट – जिसे उन्होंने ‘आतंकवादी हमला’ बताया था- मामले की जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने में सरकार की देरी पर सवाल उठाया है.

केरल: पिनाराई विजयन बनाम आरिफ मोहम्मद खान

पिछले 15 नवंबर को, तिरुवनंतपुरम में राजभवन के बाहर का क्षेत्र सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के नेताओं के विरोध का स्थल बन गया था. उनका नारा था : ‘(राज्यों के कामकाज में) हस्तक्षेप’ को कम करने के लिए राज्यपाल के पद को पूरी तरह से समाप्त करना.’ यह विरोध प्रदर्शन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य सरकार के बीच वर्षों तक चली खींचतान के बाद आयोजित हुआ था

दिसंबर 2020 में, जब उस वर्ष मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को लेकर देश भर में आंदोलन तेज हो रहे थे, तब राज्यपाल खान ने इस मामले पर चर्चा करने हेतु विधानसभा का एक सत्र बुलाने की कैबिनेट की सिफारिश को ठुकरा दिया था.

उसी साल, जब केरल सरकार ने केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था, तो केरल के राज्यपाल ने सरकार को प्रोटोकॉल तोड़ने के लिए जबरदस्त फटकार लगाई थी और मामले पर रिपोर्ट भी मांगी थी.

इस महीने की शुरुआत में, केरल कैबिनेट ने राज्यपाल को राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था, इसके तुरंत बाद खान ने कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को उनके पदों से इस्तीफा देने के लिए कहा था.

वरिष्ठ नौकरशाह के.आर. ज्योतिलाल, जिन्होंने राज्यपाल के अतिरिक्त निजी सहायक के रूप में भाजपा सदस्य हरि एस कर्ता की नियुक्ति पर अपनी असहमति व्यक्त की थी, को हटाने को लेकर भी मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच मतभेद रहे हैं.

राज्यपाल ने कथित तौर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर यह आरोप भी लगाया था कि उन्हें अक्टूबर में मुख्यमंत्री के 10 दिवसीय विदेश दौरे के बारे में सूचित नहीं किया गया था.

झारखंड: हेमंत सोरेन बनाम रमेश बैस

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल रमेश बैस के बीच की आमने-सामने की तकरारों की श्रृंखला की नवीनतम कड़ी के रूप में इस महीने के अंत में राज्य्पाल ने उनके पास भेजे गए झारखंड आबकारी (संशोधन) विधेयक, 2022 को पुनर्विचार की मांग करते हुए वापस कर दिया था. इस विधेयक को इस साल अगस्त में झारखंड विधानसभा द्वारा पारित किए जाने के बाद बैस को भेजा गया था.

राज्यपाल अवैध खनन मामले में विधायक के रूप में सोरेन की अयोग्यता पर भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की अगस्त की सिफारिश भी दबाये हुए हैं. जहां सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पूर्वाग्रह को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का ‘टूलकिट’ कहा है, वहीं मुख्यमंत्री ने खुद राज्यपाल पर उनके खिलाफ बड़ी साजिश चलाने का आरोप लगाया है.

तेलंगाना: केसीआर बनाम तमिलिसाई सौंदरराजन

मंजूरी के लिए भेजे गए विधेयकों को दबाये रखना राज्यपालों द्वारा अपनी ताकत दिखाने के एक आम तरीके के रूप में देखा जाता है. तेलंगाना विधानसभा के सितंबर सत्र के दौरान पारित छह में से पांच विधेयकों को 10 नवंबर तक राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन द्वारा मंजूरी नहीं दी गई थी.

इस बीच, सौंदरराजन ने के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपमानित किये जाने और उन्हें नीचा दिखाए जाने के आरोप लगाए हैं. राज्यपाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह दावा किया है कि उन्हें लगा कि उनके फोन टैप किए जा रहे हैं.

इससे पहले सितंबर महीने में, भाजपा की तमिलनाडु इकाई की पूर्व प्रमुख सौंदरराजन ने आरोप लगाया था कि तेलंगाना सरकार ने एक महिला होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया है.

पंजाब: भगवंत मान बनाम बनवारीलाल पुरोहित

इस साल मार्च में भगवंत मान सरकार के शपथ लेने के बाद से पंजाब की आप सरकार के राज्यपाल के साथ संबंध भी लगभग तनावपूर्ण हो गए हैं.

एक ओर जहां विश्वविद्यालय की नियुक्तियों पर कई विवाद हुए हैं, वहीँ राज्यपाल ने सितंबर में मान सरकार द्वारा विधानसभा में अपनी पार्टी की ताकत दिखाने के लिए एक विशेष सत्र आयोजित करने के कैबिनेट के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. बाद में राज्यपाल द्वारा अनुमोदित किए जाने से पहले सत्र को इस सत्र को एक नियमित सत्र में बदल दिया गया था.

छत्तीसगढ़ : भूपेश बघेल बनाम अनुसुईया उइके

इस महीने की शुरुआत में मुख्यमंत्री बघेल को लिखे एक पत्र में, राज्यपाल उइके ने उनसे राज्य में आदिवासियों के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण को फिर से बहाल करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देने को कहा था.

यह पत्र छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के एक फैसले का पालन करते हुए लिखा गया है जिसमें राज्य में समग्र आरक्षण की ऊपरी सीमा को 50 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. इसने राज्य सरकार को राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए निर्धारित आरक्षण को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 32 प्रतिशत करने के अपने पहले के फैसले से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था.

इससे एक साल पहले, बघेल ने कहा था कि झीरम घाटी में 2013 के कथित माओवादी हमले पर न्यायिक आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत करना ‘स्थापित परम्परा’ के खिलाफ था, और दावा किया था कि इस तरह के जांच निष्कर्ष राज्य सरकार को सौंपे जाते रहे हैं.

इससे एक महीने पहले, उइके ने राज्य के कवर्धा शहर में उस वर्ष हुए कथित सांप्रदायिक हिंसा की जांच में ‘निष्पक्ष दृष्टिकोण और पड़ताल’ की मांग की थी.

इस साल की शुरुआत में, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल का विधानसभा द्वारा पारित छह विधेयकों पर उनकी सहमति लंबित होने को लेकर राज्य सरकार के साथ विवाद भी हुआ था.

राजस्थान: अशोक गहलोत बनाम कलराज मिश्र

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि उन्होंने राज्य की अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के साथ हमेशा सद्भाव बनाए रखने की कोशिश की है . हालांकि, दोनों के बीच संबंध एक से अधिक मामलों में तनावपूर्ण रहे हैं.

ऐसा ही एक प्रकरण तब हुआ था जब साल 2020 में कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी. उस समय हालांकि गहलोत ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत पारित करने हेतु सत्र का आह्वान किया था, वहीँ राज्यपाल ने सदन का सत्र के बुलाने के लिए अपनी अनुमति देने से पहले कैबिनेट द्वारा इस बारे में पारित प्रस्तावों को दो बार खारिज कर दिया था. इसने कांग्रेस को यह आरोप लगाने के लिए प्रेरित किया कि वह ‘ऊपर से दबाव’ में थे.

इस साल की शुरुआत में, राज्य सरकार ने राजस्थान राज्य वित्तपोषित विश्वविद्यालय विधेयक का प्रस्ताव दिया था, जो अगर लागू होता है तो मुख्यमंत्री को राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने का अधिकार होगा, जिससे (इतने लंबे समय तक कुलाधिपति के रूप में कार्यरत) राज्यपाल को एक ‘विजिटर’ के रूप में सीमित किया जा सकेगा. यह इस बात को भी सुनिश्चित करेगा कि इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की कोई भूमिका न हो.

अनुवाद- रामलाल

(इस खबर को अंग्रेजी मे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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