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Thursday, 21 November, 2024
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किरोड़ी लाल मीणा ने किया मोदी सरकार के क्रीमी लेयर रुख का विरोध, BJP पर उनके ताज़ा हमले के पीछे की वजह

राजस्थान भाजपा के असंतुष्ट नेता ने पहले भी लोकसभा चुनाव में हार के बाद अपने रुख के साथ-साथ राज्य में कथित भ्रष्टाचार को उजागर करके पार्टी को शर्मसार किया है.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के विपरीत रुख अपनाते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया है.

मीणा ने पहले भी अपनी पार्टी से अलग रुख अपनाया है, ताकि खुद के लिए एक अलग पहचान बनाई जा सके. इस साल की शुरुआत में उन्होंने पार्टी की लोकसभा हार और राजस्थान में कथित भ्रष्टाचार पर अपने रुख से भाजपा को शर्मसार किया था.

राजस्थान के नेता, जिन्होंने इस साल जून तक कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला था, ने बुधवार को जयपुर में मीडिया से बात करते हुए अपने विचार को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण का इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा, “मेरे गांव में मेरा एक पड़ोसी पिछले 30 सालों से दिहाड़ी पर जी रहा है और अब उसका बेटा भी दिहाड़ी मजदूर बन गया है. दूसरी ओर, मैं पहले डॉक्टर बना, फिर विधायक और फिर मंत्री. मेरा भाई आईएएस अधिकारी बन गया, लेकिन मेरा पड़ोसी अभी भी उसी जगह पर है. अब उसे (पड़ोसी को) अपनी ज़िंदगी बेहतर करने का मौका मिलना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “मैं क्रीमी लेयर को (आरक्षण से) बाहर करने के पक्ष में हूं और इसीलिए मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रहा हूं.”

मीणा का यह रुख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह राजस्थान में प्रमुख मीणा आदिवासी समुदाय से आते हैं. राज्य की आबादी में करीब 10 फीसदी हिस्सा मीणा समुदाय का है और माना जाता है कि आरक्षण नीति से सबसे ज्यादा फायदा उन्हें ही हुआ है और समुदाय के कई सदस्य नौकरशाही में हैं.

आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने का समर्थन करके मीणा ज़ाहिर तौर पर अपने समुदाय के वंचितों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं.

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए मीणा ने पूछा, “आरक्षण से अभी भी लाभ नहीं उठा रहे अन्य वंचित समूहों को कोटा का लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए?”

उन्होंने कहा, “जिन लोगों को समय रहते सशक्त बनाया गया है, उन्हें लाभ से बाहर रखा जाना चाहिए — यही आरक्षण नीति का सार है और इसीलिए मैंने कोर्ट के विचार का समर्थन किया है.”

मीणा की राय के विपरीत, मोदी सरकार ने यह विचार व्यक्त किया है कि एससी/एसटी समुदायों के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में कोटा के लाभों से वंचित करने के लिए क्रीमी लेयर अवधारणा को लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि जाति और पिछड़ेपन का कलंक अभी भी उन पर लगा हुआ है.

छत्तीसगढ़ से भाजपा सांसद चिंतामणि महाराज ने पहले दिप्रिंट से कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के क्रीमी लेयर अवलोकन को लेकर बहुत भ्रम पैदा किया गया है.

वर्तमान में क्रीमी लेयर का सिद्धांत केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर लागू होता है.

उन्होंने कहा, “एसटी की तुलना ओबीसी क्रीमी लेयर से कैसे की जा सकती है? नौकरशाही और न्यायपालिका में कितने एसटी शीर्ष पदों पर हैं? क्रीमी लेयर की यह बात अनावश्यक है.”


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मीणा की ‘बगावत’

आम चुनावों और राजस्थान में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के तुरंत बाद जून की शुरुआत में मीणा ने राजस्थान मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, जहां पार्टी 25 सीटों से घटकर 14 पर आ गई थी. हालांकि, उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया.

राज्य भाजपा सूत्रों के अनुसार, तीन सप्ताह बाद मीणा ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से मुलाकात की और उनसे अपना इस्तीफा स्वीकार करने का दबाव बनाया, लेकिन शर्मा ने इनकार कर दिया. इसके बाद मीणा ने डाक से अपना इस्तीफा भेजा और जून में एक धार्मिक कार्यक्रम में यह भी खुलासा किया कि उन्होंने कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने मीणा को उनके इस्तीफे के मामले पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली बुलाया.

कथित तौर पर नड्डा ने मीणा से इस्तीफा वापस लेने को कहा, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात नहीं मानी कि “वे किसी नेता से नाराज़ नहीं हैं.” उन्होंने कहा, “मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों ने चुनाव में मेरा समर्थन नहीं किया है और इसलिए मैं इस्तीफा दे रहा हूं.” उन्होंने यह भी कहा कि “नए मुख्यमंत्री या किसी और से उनका कोई विवाद नहीं है.”

हालांकि, राज्य बीजेपी इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि “मीणा कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं और उन्हें सीएम के रूप में शीर्ष पद की उम्मीद थी, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने पीढ़ीगत बदलाव लाने के लिए पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को यह पद दे दिया.”

नेता ने समझाया, “मीणा को डिप्टी सीएम पद के लिए भी नहीं चुना गया, जो दीया कुमारी को मिला और दूसरा प्रेम चंद बैरवा को. इसके अलावा, उनके कृषि विभाग के बजट को भी (एक अन्य मंत्री) मदन दिलावर के साथ बांट दिया गया. तब से, मीणा ने सीएम को पत्र लिखने से लेकर राज्य सरकार को जांच में डालने तक एक या दूसरे मोर्चे पर धर्मयुद्ध का नेतृत्व किया है.”

पार्टी सूत्रों ने कहा कि अपने गढ़ दौसा और सवाई माधोपुर की लोकसभा सीटों पर हार का हवाला देते हुए इस्तीफा देने के बाद से, मीणा न तो कार्यालय गए हैं और न ही अपनी आधिकारिक कार और आवास का उपयोग किया है.

इस महीने की शुरुआत में विधानसभा सत्र में सीएम शर्मा को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से मीणा की अनुपस्थिति का मुद्दा उठाया.

इससे पहले, मीणा ने जयपुर में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट को वापस लेने की मांग की थी, क्योंकि उसे कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिली थी. मई में मीणा ने सीएम को पत्र लिखकर राज्य में जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन में “गड़बड़ियों” का आरोप लगाया था.

भाजपा के हलकों में इसे सीएम के खिलाफ विद्रोह के रूप में देखा गया. पत्र में मीणा ने विभिन्न स्तरों पर कई मुद्दों को ठीक करने और “सख्त निगरानी” के निर्देश दिए जाने की ज़रूरत पर जोर दिया.

उन्होंने कहा, “हमारी सरकार को भी उन्हीं आरोपों का सामना नहीं करना चाहिए, जो हमने छह महीने पहले कांग्रेस के खिलाफ लगाए थे.”

मीणा ने दो प्रमुख चिंताओं को भी उजागर किया — जल जीवन मिशन के टेंडरों की पूलिंग, और “गांवों में बिछाई गई पाइपलाइनों की गुणवत्ता और मात्रा में गबन”.

उन्होंने “सख्त निगरानी की मांग की ताकि जनता के पैसे की बर्बादी, गबन और घोटाला न हो और हमारी सरकार पर भी इसका आरोप न लगे”.

मीणा के अनुसार, पिछली सरकार के दौरान, “फर्मों ने राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण में उच्च दरों पर लगभग 20,000 करोड़ रुपये के टेंडर (कार्टेल) जुटाए”, लेकिन “हमारी पार्टी द्वारा उजागर की गई गड़बड़ियों के कारण, कांग्रेस सरकार ने टेंडर रद्द कर दिए”.

दिप्रिंट से बात करते हुए एक पूर्व मंत्री ने कहा कि “मीणा को अपनी अहमियत पता है”.

उन्होंने कहा, “वे गहलोत सरकार के दौरान फर्मों पर छापे मारकर, पेपर लीक मुद्दे पर अड़े रहकर और कई मामलों में सरकार पर दबाव बनाकर वस्तुतः विपक्ष के नेता थे. भाजपा सरकार बनने के बाद से वे एक और शक्ति केंद्र बन गए हैं, कोई भी उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.”

नेता ने कहा, “मीणा जानते हैं कि उनके गढ़ वाले क्षेत्रों में छह में से तीन राज्य उपचुनाव होने हैं और सरकार उनके बिना नहीं चल सकती. वे दौसा सीट के प्रभारी भी हैं, लेकिन वे दोहरी रणनीति का उपयोग कर रहे हैं — अगर भाजपा दौसा में हार जाती है, तो दोष उन पर नहीं डाला जा सकता क्योंकि वे पहले ही चुनावी हार के कारण इस्तीफा दे चुके हैं और अगर पार्टी जीत जाती है, तो सारा श्रेय उन्हें जाएगा क्योंकि वे आदिवासियों के एक वरिष्ठ नेता हैं.”

न्यायालय और केंद्र का दृष्टिकोण

1 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद — जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को उप-वर्गीकृत करके उन्हें आरक्षित श्रेणी के अंदर एक अलग कोटा देने के लिए राज्यों के अधिकार क्षेत्र की पुष्टि की गई थी और जिसमें न्यायाधीशों ने सुझाव दिया था कि क्रीमी लेयर की पहचान की जानी चाहिए और उसे आरक्षण नीति के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए — 9 अगस्त को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जोर देकर कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण पर लागू नहीं होता है.

कोर्ट के फैसले ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के फैसले द्वारा निर्धारित मिसाल को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण को अस्वीकार्य माना गया था.

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्पष्ट रूप से कहा कि फैसले पर व्यापक चर्चा हुई और कहा कि “बाबासाहेब के संविधान में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है”.

वैष्णव ने मीडिया से कहा, “यह सरकार बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर द्वारा दिए गए संवैधानिक प्रावधानों के लिए प्रतिबद्ध है. बाबासाहेब के संविधान में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. कैबिनेट का यह सुविचारित फैसला है कि बाबासाहेब के संविधान के अनुसार ही एससी/एसटी को आरक्षण दिया जाना चाहिए.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एससी और एसटी सांसदों को आश्वासन दिया, जिन्होंने क्रीमी लेयर को बाहर करने का मामला उनके समक्ष उठाया था कि सरकार एससी/एसटी समुदायों के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है.

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने अपने फैसले में कहा कि क्रीमी लेयर सिद्धांत आरक्षण लाभों पर कुछ लोगों के एकाधिकार को रोकेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि वास्तव में वंचित लोगों को लाभ मिले. उन्होंने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण की ज़रूरत थी क्योंकि इन श्रेणियों के भीतर कुछ समुदाय दूसरों की तुलना में अधिक आगे बढ़े हैं. उन्होंने उप-वर्गीकरण का समर्थन करने के लिए अनुभवजन्य डेटा की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला और कहा कि इसे राजनीतिक कारकों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने कहा कि एससी और एसटी के बीच कोटा पहली पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए, न कि दूसरी पीढ़ी तक, अगर पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुंच गया है.

गवई ने कहा, “यह भी सर्वविदित है कि असमानताएं और सामाजिक भेदभाव, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक प्रचलित हैं, शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में जाने पर कम होने लगते हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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