scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमराजनीति'हैदराबाद को 17 सितंबर 1948 को मिली आज़ादी', 'मुक्ति दिवस' विवाद पर क्या BJP को मिला खरगे का साथ?

‘हैदराबाद को 17 सितंबर 1948 को मिली आज़ादी’, ‘मुक्ति दिवस’ विवाद पर क्या BJP को मिला खरगे का साथ?

BJP चाहती है कि 17 सितंबर, 1948 को ' हैदराबाद मुक्ति दिवस' के रूप में मनाई जाए, जबकि सत्तारूढ़ BRS इसे 'एकीकरण दिवस' कहती है. इसी दिन तत्कालीन हैदराबाद रियासत भारत का हिस्सा बनी थी.

Text Size:

हैदराबाद: अपने एक बयान में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रविवार को कहा, “मैं बहुत खुश हूं क्योंकि आज 17 सितंबर को हैदराबाद कर्नाटक, तेलंगाना और मराठवाड़ा का मुक्ति दिवस मनाया जाता है.” बता दें कि यह 17 सितंबर को हैदराबाद के ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की भारतीय जनता पार्टी की लंबे समय से चली आ रही मांग का समर्थन करते हुए दिख रहा है.

17 सितंबर का जश्न- 1948 में जिस दिन पूर्ववर्ती हैदराबाद रियासत को भारत संघ का हिस्सा बनाया गया था- BJP और तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी BRS (पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति) के बीच एक निरंतर टकराव का मुद्दा रहा है. BRS इस दिन को ‘एकीकरण दिवस’ कहती है.

रविवार को हैदराबाद के बाहरी इलाके में कांग्रेस की विजया भेरी रैली में बोलते हुए, खरगे ने कहा, “हमें [कर्नाटक-तेलंगाना क्षेत्र और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों के लोग, जिन्होंने हैदराबाद की पूर्ववर्ती रियासत का गठन किया] आज आजादी मिली थी. जबकि भारत को 15 अगस्त, 1947 को आज़ादी मिली, यहां हैदराबाद क्षेत्र में हमें 17 सितंबर, 1948 को आज़ादी मिली. हम 13 महीने बाद आज़ाद हो गए थे.”

कांग्रेस अध्यक्ष की टिप्पणी को 17 सितंबर को बीजेपी के रुख के समर्थन के तौर पर देखा जा रहा है.

खरगे, जो कर्नाटक के कल्याण के बीदर क्षेत्र (जो निज़ाम के शासन के अधीन था) से हैं, ने कथित तौर पर “रज़ाकारों द्वारा लगाई गई आग” में अपनी मां और बहन को खो दिया था – जो हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम की निजी मिलिशिया थी, जिन्होंने कथित तौर पर कई जगह आग लगा दी थी. 1947 में हैदराबाद को भारत में विलय करने के बजाय, निज़ाम द्वारा स्वतंत्र रहने का निर्णय लेने के बाद, इलाके में रहने वाली हिंदू आबादी के खिलाफ आतंक का शासन शुरू हो गया था.

17 सितंबर, 1948 को, हैदराबाद के सातवें निज़ाम, मीर उस्मान अलीम खान- जो हैदराबाद रियासत के तत्कालीन शासक थे- भारतीय सेना के हस्तक्षेप के बाद भारत में साथ एकीकरण के लिए सहमत हो गए थे.

गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को सिकंदराबाद परेड ग्राउंड में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘मुक्ति दिवस’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “तेलंगाना की मुक्ति ने आज [रविवार] 75 साल पूरे कर लिए, जो सरदार [वल्लभभाई] पटेल (भारत के पहले गृह मंत्री) के द्वारा हस्तक्षेप के बिना संभव नहीं होता. क्रूर निज़ाम शासन के तहत पीड़ित स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, उनके द्वारा बनाई गई हैदराबाद पुलिस की कार्रवाई के कारण निज़ाम रजाकारों (मिलिशिया) ने बिना रक्तपात के आत्मसमर्पण कर दिया.”

रजाकार (मिलिशिया) का गठन मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) नेता कासिम रज़वी द्वारा किया गया था, जब उन्होंने 1944 में बहादुर यार जंग की मृत्यु के बाद MIM का शासन संभाला था.

हैदराबाद के भारत में विलय के बाद रज़वी को जेल में डाल दिया गया और 1957 में अपनी रिहाई के बाद वह पाकिस्तान चले गए.

उन्होंने MIM की बागडोर अब्दुल वाहिद औवेसी को सौंपी, जिन्होंने पार्टी का नाम बदलकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) कर दिया. अब्दुल वाहिद औवेसी मौजूदा AIMIM अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन औवेसी के दादा थे.

AIMIM ने तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल BRS के साथ राजनीतिक गठबंधन किया है. ऐसा लगता है कि BJP चुनावी राज्य में राजनीतिक रूप से इसका फायदा उठा रही है. तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.

कुछ BJP नेताओं द्वारा कथित तौर पर उन्हें ‘रजाकार’ कहे जाने की ओर इशारा करते हुए ओवैसी ने रविवार को एक सार्वजनिक बैठक में कहा, “वे रजाकार पाकिस्तान भाग गए और वफादार आपके सामने खड़े हैं. साथ ही वह अपने अधिकारों के लिए लड़ भी रहे हैं. हम किसी भी कीमत पर यह देश नहीं छोड़ेंगे.”

के.चंद्रशेखर राव (KCR) सरकार का नाम लिए बिना, शाह ने आरोप लगाया था कि 2014 में अलग राज्य तेलंगाना के गठन के बाद, हैदराबाद ‘मुक्ति दिवस’ आधिकारिक तौर पर नहीं मनाया गया.

शाह ने कहा, “तुष्टिकरण, वोटबैंक की राजनीति में डूबी पार्टियों को ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप तथ्यों, इतिहास से मुंह मोड़ेंगे तो लोग आपसे दूर हो जाएंगे.” उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल जश्न मनाने की परंपरा शुरू करने का फैसला किया था. शाह ने पिछले साल उसी स्थान पर मुक्ति दिवस के उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लिया था.

BJP सीएम राव पर BRS के राजनीतिक सहयोगी, अपने मुस्लिम मित्र AIMIM को खुश करने के लिए ‘मुक्ति दिवस’ मनाने और 1948 के शहीदों का सम्मान करने से इनकार करने का आरोप लगा रही है.

पिछले साल केंद्र की ‘मुक्ति दिवस’ समारोह की घोषणा के बाद, KCR सरकार ने AIMIM द्वारा समर्थित तेलंगाना जातीय समैक्यथा दिनोत्सवम (राष्ट्रीय एकीकरण दिवस) मनाने की घोषणा की.

रविवार को शाह के कार्यक्रम के तुरंत बाद, KCR सार्वजनिक उद्यान पहुंचे जहां उन्होंने पिछले साल की तरह राष्ट्रीय ध्वज फहराया.

KCR ने कहा, “हमने इसे एकीकरण दिवस कहने का फैसला किया क्योंकि यह वह दिन है जब हैदराबाद, तेलंगाना को भारतीय संघ में एकीकृत किया गया था. उस समय के सामान्य लोगों के असाधारण संघर्ष, बलिदान हमेशा हमारे विचारों में अंकित रहेंगे.”

शाह के कथित आरोपों पर प्रतिक्रिया दिए बिना, KCR, जो नवंबर-दिसंबर में होने वाले चुनाव में हैट्रिक जीत की उम्मीद कर रहे हैं, ने अपनी सरकार द्वारा किए गए विकास और कल्याण कार्यों के बारे में बात की. इसमें पलामुरू-रंगारेड्डी लिफ्ट सिंचाई परियोजना भी शामिल है, जिसका उन्होंने शनिवार को उद्घाटन किया था.

AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने “राष्ट्रीय एकता दिवस” ​​के समर्थन में रविवार दोपहर पुराने शहर में एक तिरंगा बाइक रैली का नेतृत्व किया.

सांसद ने बाद में एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा, “निजाम का शासन लोगों के हित में था. उन्होंने अस्पताल, विश्वविद्यालय, जलाशय, हवाई अड्डे बनाए और यहां तक ​​कि मंदिरों के लिए भी जमीन दान की.”

हैदराबाद के निज़ामों पर रिसर्च कर रहे रिसर्चर सैयद इनाम-उर-रहमान ने दिप्रिंट को बताया, “1948 के विलय के आसपास की घटनाएं हैदराबाद के इतिहास में एक काला अध्याय थीं. जहां हिंदुओं को काफी कष्ट सहना पड़ा था, वहीं मुसलमानों को भी रजाकारों के अत्याचारों का सामना करना पड़ा. अब समय आ गया है कि राजनेता राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक मुद्दे का राग अलापना पूरी तरह से बंद करें.”


यह भी पढ़ें: ‘सड़ती लाशों की बदबू, विकृत चेहरे, शरीर पर गंभीर चोट’— मणिपुर हिंसा ने डॉक्टरों को भी व्याकुल कर दिया है


1948 में क्या हुआ था?

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो निज़ाम ने भारत से स्वतंत्र रहने का फैसला किया. हालांकि, हैदराबाद रियासत में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी, और वह भारत में शामिल होना चाहती थी.

शाह ने रविवार को अपने भाषण में आरोप लगाया कि राज्य को भारत में एकीकृत करने से पहले, निज़ाम की प्रजा को 400 दिनों तक भारी मुश्किल का सामना करना पड़ा. उन्होंने भारतीय ध्वज फहराने के लिए तेलंगाना के परकला, महाराष्ट्र के परभणी और बीदर कर्नाटक के पास गोर्टा में कथित नरसंहार और निज़ाम के खिलाफ अन्य विरोध प्रदर्शनों का हवाला दिया, जिन्होंने पटेल को हैदराबाद के भारत में एकीकरण के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया.

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, “सरदार पटेल ने स्वतंत्र हैदराबाद (निज़ाम के अधीन) की तुलना पेट के कैंसर से की.”

इसके बाद पांच दिवसीय युद्ध हुआ, जिसे “पुलिस कार्रवाई” या ऑपरेशन पोलो के नाम से जाना जाता है, जो 13 सितंबर, 1948 को शुरू हुआ था, जब भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुंचे. इसका समापन निज़ाम और रजाकारों के आत्मसमर्पण और एकीकरण के रूप में हुआ. 17 सितंबर को हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया.

इतिहासकार अक्सर बताते हैं कि ‘ऑपरेशन पोलो’ एक दर्दनाक स्मृति थी, खासकर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के लिए. सुंदरलाल समिति की रिपोर्ट, जो 1949 में प्रस्तुत की गई थी, में कहा गया था कि ऑपरेशन के दौरान लगभग 27,000 से 40,000 लोग मारे गए थे. रिपोर्ट में कथित तौर पर यह भी बताया गया है कि कैसे भारतीय सैनिक कथित तौर पर असंख्य मुसलमानों की लूटपाट, बलात्कार और हत्या में शामिल थे.

हालांकि निज़ाम का शासन कथित तौर पर सांप्रदायिक तनाव से काफी हद तक मुक्त था, लेकिन 1947-48 के दौरान कासिम रज़वी के नेतृत्व में रजाकारों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ फैलाए गए कथित आतंक को अक्सर एक काले दौर के रूप में याद किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि रज़वी ने 1947 में भारत में शामिल न होने के निज़ाम के फैसले को प्रभावित किया था.

1948 में भारतीय सैनिकों की कार्रवाई से पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेतृत्व वाला तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष हुआ था, जो हैदराबाद के तत्कालीन जमींदारों के खिलाफ एक किसान विद्रोह था.

हैदराबाद के भारत का हिस्सा बनने के बाद, देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा तत्कालीन निज़ाम को ‘राज प्रमुख’ की उपाधि दी गई थी.

पिछले कुछ सालों में, BJP तेलंगाना विमोचन दिवस (स्वतंत्रता दिवस) की थीम पर यहां की जनता की भावना को प्रेरित करने की कोशिश कर रही है. साथ ही हैदराबाद के भारत में एकीकरण के महत्वपूर्ण अवसर को “एक अत्याचारी निज़ाम के शासन से हिंदुओं के विशाल बहुमत की मुक्ति के रूप में चित्रित कर रही है”.

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य की आबादी में मुसलमान लगभग 13 प्रतिशत है.

जबकि यह आबादी हैदराबाद के सात विधानसभा क्षेत्रों में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM के लिए एक प्रमुख वोटबैंक है. मुस्लिम मतदाता भी कई मुफस्सिल विधानसभा क्षेत्रों में एक निर्णायक कारक हैं, जिन्हें BRS बरकरार रखना चाहता है.

KCR के तहत BRS पर 1948 के शहीदों का सम्मान करने से इनकार करने का आरोप लगाते हुए, फायरब्रांड नेता, करीमनगर के सांसद और पूर्व BJP तेलंगाना प्रमुख बंदी संजय ने पिछले महीने लोकसभा में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष द्वारा उठाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि “KCR का मतलब कासिम चन्द्रशेखर रिज़वी” है.

2014 में तेलंगाना के गठन के बाद के सालों में, 17 सितंबर को राष्ट्रीय ध्वज फहराना TRS और कांग्रेस कार्यालयों तक ही सीमित था. हालांकि, पिछले कुछ सालों में, BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक स्थानों पर तिरंगा फहराना शुरू कर दिया.

जबकि AIMIM, कम्युनिस्ट पार्टियां और अन्य लोग निज़ाम के खिलाफ 1948 के आंदोलन में BJP की अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हैं, शाह ने रविवार को कहा कि निज़ाम के खिलाफ विद्रोह में आर्य समाज और हिंदू महासभा के लोगों से लेकर उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्र और बीदर के किसान शामिल थे.

पिछले साल शाह को लिखे पत्र में, ओवैसी ने लिखा था, “तत्कालीन हैदराबाद राज्य के आम हिंदू और मुस्लिम एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और गणतांत्रिक सरकार के तहत एकजुट भारत के समर्थक थे. उपनिवेशवाद के खिलाफ तत्कालीन हैदराबाद राज्य के लोगों का संघर्ष , सामंतवाद और निरंकुशता केवल भूमि के एक टुकड़े की ‘मुक्ति’ का मामला होने के बजाय राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: स्टालिन के अचानक हिंदी प्रेम के पीछे क्या कारण है? DMK के ट्वीट की टाइमिंग कई सवाल खड़े करती है


 

share & View comments