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Sunday, 22 December, 2024
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केरल, WB कुलपति विवाद: मोदी सरकार ने संसद को बताया, राज्य के कानून राज्यपालों को यूनिवर्सिटी VC बनाते हैं

केरल के राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाना विवादास्पद हो गया है. पिनाराई और ममता सरकारों को वीसी नियुक्तियों पर अदालत की तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है.

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नई दिल्ली: राज्य विश्वविद्यालयों के शासन से संबंधित कानूनों में संशोधन करने और राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटाने वाले विधेयकों पर कम से कम दो राज्य सरकारें अपने राजभवन से मंजूरी का इंतजार कर रही हैं. केंद्र ने संसद में एक जवाब में साफ कर दिया है कि एक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधानमंडल का अनिवार्य अधिकार है.

शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने सोमवार को लोकसभा को बताया, ‘राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित, संबंधित विश्वविद्यालय अधिनियम में उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार राज्यपालों को राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति के रूप में नियुक्त किया जाता है. लेकिन हाल ही में कुछ राज्यों ने एक्ट में संशोधन कर, कुछ अन्य संवैधानिक प्राधिकारी को चांसलर के रूप में प्रस्तावित किया है.’

वह कांग्रेस सांसद अदूर प्रकाश द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रही थीं. इस महीने की शुरुआत में केरल में पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाने के लिए विधानसभा में दो विधेयक लेकर आई थी. विधेयकों का पारित होना एक लंबे समय से चले आ रहा विवाद की एक नई कड़ी है, जिसमें एलडीएफ सरकार और राज्यपाल 14 राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर उलझे हुए हैं.

केरल में यह विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद से शुरु हुआ था. कुछ खामियां पाने के बाद शीर्ष अदालत ने केरल की एक यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति को गलत ठहराया दिया था. इस फैसले के आने के तुरंत बाद विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में राज्यपाल खान ने राज्य यूनिवर्सिटी के नौ उप-कुलपतियों को इस्तीफा देने के लिए कहा. अदालत के आदेश के बाद यह आदेश अनावश्यक था, लेकिन उसके बाद वीसी की एक और नियुक्ति को भी रद्द कर दिया गया. तब राज्य सरकार खान को चांसलर के पद से हटाने वाले बिल के साथ जवाब लेकर आई.


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पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु में भी मुद्दा

उधर पश्चिम बंगाल में भी वीसी नियुक्तियों का मामला तब विवादास्पद हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति की शक्तियों का हनन नहीं कर सकती है.

जून में पश्चिम बंगाल विधानसभा में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालयों के चांसलर बनाने का विधेयक पारित किया. उस बिल को तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने वापस कर दिया था, जो अब उप-राष्ट्रपति हैं. नए गवर्नर के आ जाने के बाद भी बिल अधर में लटका हुआ है. शीर्ष अदालत ने तब सरकार पर चांसलर की शक्तियों का ‘हड़पने’ का आरोप लगाया था.

इसी तरह की कहानी तमिलनाडु में भी चल रही है, जहां वीसी की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल आर एन रवि और राज्य सरकार के बीच ठनी हुई है. राज्यपाल पर आरोप लगाया गया कि वह विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में उनकी जगह सीएम एमके स्टालिन को लाने वाले बिल को दबाकर बैठे हैं.

अपने लिखित उत्तर में मंत्री ने वी-सी नियुक्तियों के मामले पर बात करते हुए कहा कि केंद्र को केरल से कोई संदर्भ नहीं मिला है. उन्होंने कहा, ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 18 जुलाई, 2018 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित यूजीसी रेगुलेशन, 2018 तैयार किया था. उपरोक्त नियमों के खंड 7.3 में कुलपति के चयन के लिए मानदंड शामिल हैं. इस मंत्रालय को मामले पर केरल राज्य सरकार से कोई संदर्भ प्राप्त नहीं हुआ है.’

विचाराधीन अनुच्छेद V-C के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति की पात्रता और नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित है. इसके मुताबिक, ‘उच्चतम स्तर की क्षमता, अखंडता, नैतिकता और संस्थागत प्रतिबद्धता रखने वाले व्यक्ति को कुलपति के रूप में नियुक्त किया जाना है. कुलपति के रूप में नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद होना चाहिए, जिसके पास किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कम से कम 10 साल का अनुभव हो या फिर किसी प्रतिष्ठित अनुसंधान और/या अकादमिक प्रशासनिक संगठन में 10 वर्ष का अनुभव हो और साथ में शैक्षणिक नेतृत्व प्रदर्शित करने का प्रमाण भी हो.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवादः अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)


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