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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतPK ने विपक्ष को जीत के लिए सुझाया था 4M फॉर्मूला, कैसे मोदी-शाह को गुजरात में अपने मुफीद लग रहा

PK ने विपक्ष को जीत के लिए सुझाया था 4M फॉर्मूला, कैसे मोदी-शाह को गुजरात में अपने मुफीद लग रहा

अगले 10 दिनों में विपक्षी दलों के लिए यह जरूरी होगा कि मतदाताओं के मन में ये बात बैठा दें कि उनकी समस्याओं का समाधान वही कर सकते हैं. हो सकता है उन्हें पांचवां ‘एम’ मिल जाए जिसके बारे में पीके ने सोचा भी नहीं हो.

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जब चुनावों की बात आती है, तो यकीन कीजिए भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार ऐसे कनेक्शन जोड़ देते हैं जिनके बारे में सामान्य तौर पर तो कोई इंसान सोचेगा ही नहीं. जरा सोचिए, भारत में दूध और चाय के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों गुजरात-असम के बीच क्या लिंक हो सकता है? अब, वो सुनिए जो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को गुजरात के कच्छ जिले के अंजार में एक चुनावी सभा में कहा, ‘गुजरात का दूध और असम की चाय मिलाकर सबसे बढ़िया चाय बनाने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं…और इस तरह वह नव भारत का निर्माण कर रहे हैं.’

उनके इतना कहते ही रैली में मौजूद लोगों ने पूरे उत्साह से तालियां बजाकर ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए. अगले दिन एक अन्य चुनावी रैली में सरमा ने दिल्ली में श्रद्धा वालकर को कथित तौर पर उसके लिव-इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला द्वारा मार दिए जाने की घटना को ‘लव जिहाद’ का उदाहरण बताया. असम के सीएम साथ ही यह आगाह करना भी नहीं भूले, ‘अगर भारत में मोदी जैसा मजबूत नेता नहीं होगा, तो ‘हर शहर में एक आफताब पैदा होगा.’’

ये कहना गलत नहीं होगा कि दो दिनों में उन्होंने असम की चाय और गुजरात का दूध मिलाने से लेकर भारत माता, ‘लव जिहाद’ तक और एक चायवाले को मजबूत नेता बताकर पूरी महफिल ही लूट ली. बात यहां कुछ सही या गलत होने की नहीं, बल्कि सियासी कला-कौशल की है. तो फिर बस इसका आनंद लीजिए.

अब सोचिए, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश के बीच क्या कड़ी हो सकती है. पीएम मोदी कुछ परियोजनाओं के उद्घाटन के सिलसिले में चुनावी राज्य गुजरात से 2,000 मील दूर देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में थे. अब जरूरी थोड़े ही है कि उनकी सभी यात्राओं का संबंध राजनीति या चुनाव से ही हो, भले ही उनके आलोचक और प्रशंसक कुछ भी कयास क्यों न लगाते रहें. मोदी पूर्व में कह चुके हैं, ‘अरुणाचल में सूरज सबसे पहले उगता है और गुजरात में सबसे बाद में डूबता है.’ मोदी तो यह भी कहेंगे, ‘भगवान कृष्ण खुद गुजरात के द्वारका से थे और शादी उन्होंने अरुणाचल की रुक्मिणी से की थी.’

हालांकि, उन्हें अपनी यात्रा के दौरान इन संदेशों को दोहराना नहीं पड़ा. बहरहाल, गुजरात में पोरबंदर जिले के माधवपुर गांव के लोग इसका कोई बुरा नहीं मानने जा रहे. आखिरकार, वे खुद हर वर्ष कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का जश्न मनाने के लिए प्रसिद्ध माधवपुर मेले का आयोजन करते हैं. इसमें बड़ी तादात में भीड़ जुटती और पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्री भी शामिल होते हैं.

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अनुमानित तौर पर 13,000 से 15,000 मतदाताओं वाला माधवपुर कुटियाना निर्वाचन क्षेत्र का सबसे बड़ा गांव है, जहां पिछले दो बार के चुनावों में दिवंगत ‘गॉडमदर’ संतोकबेन जडेजा के बेटे कांधल जडेजा ने जीत हासिल की थी. कांधल ने इस साल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) छोड़ दी और अब समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. अब, यह कहना तो हास्यास्पद ही होगा कि माधवपुर के निवासियों को संदेश भेजने के लिए पीएम मोदी ने अरुणाचल का दौरा किया. वह पूर्व एनसीपी विधायक जडेजा को लेकर शायद ही कोई परवाह करेंगे, जिन्होंने राज्यसभा और राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों को वोट दिया था. लेकिन कोई इरादा हो या नहीं उनका संदेश गृह राज्य गुजरात पहुंचता है.

भाषाई राजनीति

अरुणाचल दौरे के बाद पीएम मोदी ने वाराणसी के लिए उड़ान भरी, जहां उन्हें काशी तमिल संगमम का उद्घाटन करना था. यह तमिलनाडु और काशी के बीच रिश्तों को सेलिब्रेट करने और उन्हें फिर से खोजने के लिए एक माह तक चलने वाला कार्यक्रम है. मोदी ने तमिल भाषा की प्रशंसा करते हुए 130 करोड़ भारतीयों से इसकी विरासत को संरक्षित करने का आह्वान किया. उनकी इस यात्रा के कुछ दिन पहले ही, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चेन्नई में थे जहां उन्होंने चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा में तमिल भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाने की सिफारिश की थी. निश्चित तौर पर द्रविड़ भूमि पर भाजपा की भाषाई राजनीति को लेकर शंकाएं-आशंकाएं मिटाने की कोशिश कर रहे थे, जहां पार्टी अपने कदम मजबूती से जमाना चाहती है. लेकिन शाह और मोदी की ये बातें शायद गुजरात में रहने वाले तमिलों—खासकर मोदी के पूर्व विधानसभा क्षेत्र मणिनगर के ‘मिनी तमिलनाडु’—के लिए बहुत मायने रखती हैं, जिनकी आबादी अहमदाबाद में करीब 1.5 लाख है.

चाहे बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं के साथ खिंचवाई गईं तस्वीरें हों या नई दिल्ली में तीसरी ‘नो मनी फॉर टेरर’ मिनिस्ट्रियल कांफ्रेंस के दौरान अपनाया गया सख्त लहजा, प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मतदाताओं समेत देशभर के लोगों को एक संदेश देते ही नजर आते हैं.


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भाजपा और विपक्ष में कितना अंतर

यही सब हमें काफी ख्यातनाम चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के 4एम फॉर्मूले के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, जिसे उन्होंने कभी कांग्रेस के लिए तैयार किया था—मैसेज, मैसेंजर, मशीनरी और मेकेनिक्स. उन्होंने यह फॉर्मूला भाजपा से मुकाबले के लिए सुझाया था.

कोई भी पीके के फॉर्मूले पर आंख मूदंकर भरोसा कर सकता है, क्योंकि विपक्षी दलों को सफलता का यह मंत्र सुझाने से पहले वह इसे भाजपा के लिए न केवल सफलतापूर्वक रच चुके हैं बल्कि उसे आजमा भी चुके हैं. अब, एक नजर इस पर डालते हैं कि गुजरात में यह कैसे काम कर रहा. खुद ही देखिए, भाजपा गुजरात में क्या संदेश दे रही है—मोदी विश्व गुरु हैं, भारत का नेतृत्व करने वाले सबसे मजबूत नेता हैं (जाहिर तौर पर गुजरात समेत), हिंदू धर्म और हिंदुत्व के रक्षक हैं (यह मायने नहीं रखता कि राहुल गांधी की नजर में दोनों के बीच क्या फर्क है), विचारों और संस्कृतियों को जोड़ने वाले नेता हैं, और इस सबसे ऊपर वह सर्वहारा वर्ग—एक चायवाला से आते हैं, जिसने बुर्जुआ वर्ग को शक्तिहीन कर दिया है (आलोचक अंबानी-अडानी को लेकर चाहे जो ताने मारते रहें).

मैसेंजर की बात करें तो यह हर तरह से मोदी ही है, और फिर उनके कद को और विराट रूप देने के लिए शाह, सरमा और कई अन्य नेता तो हैं ही. तीसरा सूत्र है मशीनरी और भाजपा की मशीनरी की ताकत निर्विवाद है. चौथा घटक मेकेनिक्स यानी यांत्रिकी है, और शब्दकोष के हिसाब से इसका मतलब होता गति और उसको उत्पन्न करने वाली शक्ति, जिसे भाजपा अपने किसी भी अन्य प्रतिद्वंद्वी की तुलना में ज्यादा बेहतर ढंग से समझती है. भाजपा 24x7x365 कार्यक्रम के माध्यम से अपने कैडर को लगातार गतिमान (सक्रिय) रखती है. मशीनरी की लगातार ऑयलिंग की तर्ज पर वह बूथों से लेकर पन्ना प्रमुखों और पन्ना समितियों तक उनके कामकाज को लगातार अपग्रेड भी करती रहती है.

यहां तक कि अपने एक-चौथाई विधायकों को टिकट न देना और नए चेहरों को आजमाना जितना संदेश से जुड़ा है, उतना ही यांत्रिकी का हिस्सा भी है. अब, विपक्ष यानी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) कैसे सामने आते हैं. अगर आखिरी दोनों सूत्रों मशीनरी और मेकेनिक्स की बात करें तो विपक्षी दल भाजपा के मुकाबले कहीं ठहरते भी नहीं हैं.

गुजरात में आप के एक नेता ने इस लेखक को बताया कि पार्टी को अपने समर्थन में 6.5 लाख ‘मिस्ड कॉल’ मिले थे. हर गांव में ‘10 से 100’ लोगों की एक समिति गठित की गई, और पांच गांवों को कवर करने वाले 10 ‘सर्किल इंचार्ज’ बनाए. फिर हर विधानसभा क्षेत्र में हर ब्लॉक में चार नेता जोड़े. कुल मिलाकर, उन्होंने कहा कि आप ने गुजरात में 2.81 लाख फुल-टाइम वालंटियर सहित 7.5 लाख कार्यकर्ताओं को तैयार किया है. वो भी एक साल के अंतराल में! कांग्रेस नेता इस मामले में कुछ ज्यादा कंजरवेटिव हैं—’हम कैडर बेस्ड पार्टी नहीं हैं लेकिन हमारे पास हर बूथ पर कार्यकर्ता हैं.’ अगर कोई इन दावों को मान भी ले तो इनकी तुलना भाजपा कार्यकर्ताओं की फौज से करने का कोई तुक नजर नहीं आता, जिन्हें पार्टी निरंतर ‘मोशन’ में रखती है. और उन्हें निरंतर गतिमान बनाए रखने के लिए पूरे साल कार्यक्रम तैयार करती रहती है.

इसलिए, गुजरात में विपक्ष तो बस मैसेज और मैसेंजर के सहारे ही चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहा है. आप के सबसे बड़े मैसेंजर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं, जो खुद को ईमानदार राजनीति के प्रतीक के तौर पर पेश करते हैं, जो 300 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह और बेरोजगार युवाओं को 3,000 रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता मुहैया करा सकते हैं. निश्चित तौर पर उनका शिक्षा और स्वास्थ्य का तथाकथित दिल्ली मॉडल सामने है. वह पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को अपनी नेकनीयत के प्रमाण के तौर पर सामने लाते हैं—यह बात अलग है कि आप सरकार पंजाब में महिलाओं से किए गए वादे लागू करने में कितनी भी नाकाम क्यों न रही हो.

आखिर सबसे बड़ा सवाल क्या है

सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या केजरीवाल गुजरातियों के दिलो-दिमाग में नरेंद्र मोदी की तरह जादू चला सकते हैं? आप के सीएम उम्मीदवार इसुदान गढ़वी लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं और लोगों में उत्सुकता भी जगाते हैं लेकिन गुजरातियों के बीच मोदी के विकल्प के तौर पर देखे जाने से पहले उन्हें एक लंबा रास्ता तय करना होगा. गुजरात में घूमकर देख लें, राज्य में अभी भी मोदी सरकार ही है. रही बात कांग्रेस की तो उसका कोई मैसेंजर भी नहीं है. परिवर्तन ही वह संदेश है जिस पर कांग्रेस और आप दोनों भरोसा कर रहे हैं. भाजपा यहां पहली बार 1990 में सत्ता में आई थी जब जनता दल के चिमनभाई पटेल सीएम बने और भाजपा के केशुभाई पटेल डिप्टी सीएम. लेकिन परिवर्तन की बात लोगों को खास प्रभावित नहीं करती है.

मैं अहमदाबाद में एक यूनिवर्सिटी कैंपस के बाहर एक स्ट्रीट वेंडर से बात कर रहा था. कुछ सप्ताह पूर्व रात में किसी ने उसका सामान चोरी कर लिया था. उसने चोर की पहचान की और साथियों की मदद से उसे पकड़कर थाने ले गई. वहां उसे ‘गलत आरोप’ लगाने के लिए फटकारा गया. जब मैंने उससे पूछा कि क्या वह सरकार में ऐसा बदलाव चाहती है जिससे सब चीजें ठीक हो जाएं, तो उसने सवालिया नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘बदलाव से क्या होगा? सब वैसे ही हैं.’ जब मैंने कहा कि कुछ पार्टियां उन्हें हर माह 1,000 रुपये देने का वादा कर रही हैं, तो उसने तपाक से कहा, ‘वादा तो सभी करते हैं, पूरा कोई नहीं करता.’

कुछ ही घंटों बाद, मैं कांग्रेस छोड़कर भाजपा के नेता बने अल्पेश ठाकोर से मिला. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, ‘हां, समस्याएं हैं…बेरोजगारी है…युवाओं, किसानों, महिलाओं, सभी के पास समस्याएं हैं…लेकिन अगर भाजपा इसका समाधान नहीं कर सकती तो फिर और कौन कर सकता है?’ गुजरात में विधानसभा के लिए पहले चरण के मतदान से पहले यानी अगले 10 दिनों में ही विपक्ष को इस सवाल का जवाब देना होगा और मतदाताओं के मन में यह बात बैठानी होगी कि वही इसे हल कर सकते हैं. यदि वे ऐसा कर पाए तो निश्चित तौर पर उनके पास पांचवां ‘एम’ होगा जिसके बारे में प्रशांत किशोर ने शायद सोचा भी नहीं होगा. फिलहाल पी.के. इस सबसे बेपरवाह नजर आ रहे हैं.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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