नई दिल्ली: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य सरकार के बीच जारी तनातनी इस समय चरम पर है. राज्यपाल की तरफ से 11 यूनिवर्सिटी के वीसी से इस्तीफा मांगने और इसकी आलोचना करने वाले मंत्रियों की खिंचाई करने को लेकर विवाद अभी पूरी तरह थमा भी नहीं था कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान अब राज्य के वित्त मंत्री के. बालगोपाल की बर्खास्तगी चाहते हैं. और जैसा कि स्वाभाविक ही था मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने मंत्री को हटाने से साफ इनकार कर दिया है.
राज्य सरकार के साथ पिछले कुछ हफ्तों में बिगड़े संबंधों के बीच आरिफ मोहम्मद खान ने 25 अक्टूबर को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा कि ‘मैंने जो शपथ दिलाई थी’ उसका उल्लंघन करके बालगोपाल ने ‘पद पर बने रहने का अधिकार खो दिया’ है.
पत्र के पीछे मूल कारण केरल यूनिवर्सिटी में 19 अक्टूबर को दिया गया वो भाषण था जिसमें बालगोपाल ने राज्य में ‘लोकतांत्रिक ढंग से काम कर रहे’ शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की तुलना उत्तर प्रदेश से की थी. उन्होंने दावा किया था कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के कुलपति के साथ चलने वाले बंदूकधारियों ने छात्रों पर गोली चला दी थी.
बालगोपाल ने बतौर स्टूडेंट एक्टिविस्ट अपने दिनों की याद करते हुए कहा था, ‘वहां तमाम अन्य यूनिवर्सिटी में ‘स्थिति (वीसी का सशस्त्र गार्डों के साथ चलना) ऐसी ही थी.’
यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले आरिफ मोहम्मद ने अपने पत्र में संकेत दिया है कि वह खुद को मंत्री की टिप्पणी का निशाना मान रहे हैं.
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उन्होंने लिखा कि बालगोपाल की टिप्पणियां ‘क्षेत्रवाद’ को बढ़ावा देने वाली हैं. साथ ही इस तरह की बातें ने न केवल राष्ट्रीय एकता और अखंडता बल्कि उस संवैधानिक व्यवस्था को भी चुनौती देने वाली हैं, जो हर राज्य में राज्यपाल के किसी दूसरे राज्य से होने को अपरिहार्य बनाती है.’
उन्होंने आगे लिखा कि बीएचयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है और यूपी सरकार के नियंत्रण में नहीं आती है. यही नहीं, ‘यहां यूपी की तुलना में अन्य राज्यों, दक्षिण भारत समेत, के वीसी अधिक रहे हैं.’ साथ ही कहा कि सीएम को बालगोपाल के खिलाफ ‘उचित संवैधानिक कार्रवाई’ करनी चाहिए.
हालांकि, पीटीआई ने एक आधिकारिक सूत्र के हवाले से दी गई खबर में बताया है कि विजयन ने पत्र में की गई इस मांग को खारिज कर दिया और साथ ही कहा कि बालगोपाल पर उनका भरोसा ‘कतई नहीं घटा’ है.
उन्होंने कथित तौर पर लिखा, ‘संवैधानिक दृष्टिकोण के साथ हमारे देश की लोकतांत्रिक परंपराओं और व्यवस्थाओं को ध्यान में रखकर देखा जाए तो (बालागोपाल का) यह बयान राज्यपाल की तरफ से पद से बर्खास्तगी की मांग का आधार नहीं हो सकता है…मुझे उम्मीद है कि राज्यपाल भी इस बात को समझेंगे कि इस मामले में आगे किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है.’
गौरतलब है कि हाल ही में आरिफ मोहम्मद खान ने जब 11 वीसी से इस आधार पर इस्तीफा मांगा था कि चयन प्रक्रिया में खामियां पाई गई हैं, तब लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार के कई नेताओं ने उनके कदम को ‘मनमाना’ करार दिया था. यही नहीं मुख्यमंत्री विजयन ने तो यह आरोप तक लगा दिया था कि राज्यपाल ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इशारे’ पर काम कर रहे हैं.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, मौजूदा विवाद ‘क्षेत्रवाद’ के मुद्दे की तुलना में कहीं ज्यादा राजनीतिक है.
राजनीतिक टिप्पणीकार जे. प्रभाष ने कहा, ‘बालगोपाल उत्तर और दक्षिण भारत की कैंपस पॉलिटिक्स की तुलना कर रहे थे. लेकिन मौजूदा बहस को क्षेत्रवाद से जोड़कर देखना सही नहीं है. क्या कोई किसी एक राज्य की तुलना दूसरे राज्य से नहीं कर सकता? दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य इकाई जो नहीं कर सकती, उसे राज्यपाल के जरिये करवाया जा रहा है.’
यह एक ऐसा आरोप है जिसे पिछले कुछ दिनों में कई बार उठाया जा चुका है, और राज्यपाल की नाराजगी की वजह भी बनता रहा है, जिन्होंने इस महीने के शुरू में वीसी मुद्दे पर टीका-टिप्पणी करने वाले मंत्रियों को ‘पद से हटाने की चेतावनी’ दी थी.
आलोचकों को लेकर जताई ‘अपनी नाराजगी’
आरिफ मोहम्मद खान की तरफ से कुलपतियों को इस्तीफा देने के लिए कहने के एक दिन बाद सोमवार को केरल हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्यपाल की तरफ से अंतिम आदेश जारी किए जाने से पहले तक वीसी अपने पदों पर बने रह सकते हैं. लेकिन आरोप-प्रत्यारोप का दौर इससे पहले ही शुरू हो चुका था.
हालांकि, आरिफ मोहम्मद ने आधिकारिक तौर पर केवल बालगोपाल को ही ‘बर्खास्त करने’ की मांग उठाई है लेकिन उन्होंने अपने पत्र में राज्य की उच्च शिक्षामंत्री आर. बिंदू से जुड़ी कुछ न्यूज रिपोर्ट का भी हवाला दिया.
उन्होंने रविवार को मीडियाकर्मियों से कहा था कि राज्यपाल की तरफ से कुलपतियों को नोटिस एक अभूतपूर्व कदम था और इसे उच्च शिक्षा क्षेत्र की ‘मौजूदा गतिविधियों में दखल देने का इरादा रखने वाला माना जा सकता है.’
बिंदू इस माह के शुरू में भी राज्यपाल के साथ टकराई थीं, जब उन्होंने आरोप लगाया कि वह राज्य के हायर एजुकेशन सिस्टम से जुड़े मसलों में ‘आरएसएस का एजेंडा लागू करने की कोशिश कर रहे हैं.’
फिर, 17 अक्टूबर को आरिफ मोहम्मद ने कथित तौर पर बिंदू की टिप्पणी के जवाब में ट्वीट किया, मंत्रियों के जो बयान ‘राज्यपाल के पद की गरिमा को कम करने वाले हैं, उनके खिलाफ पद से बर्खास्तगी समेत अन्य कड़ी कार्रवाई की जा सकती है.’
वीसी मामले पर हंगामे के बीच जब कानून मंत्री पी. राजीव ने कहा कि वह राज्यपाल के आदेश की वैधता की जांच करेंगे, तो आरिफ मोहम्मद ने उन्हें एक ‘अज्ञानी, अशिक्षित व्यक्ति’ करार दिया और कहा कि उन्हें राज्यपाल से ऊपर शक्तियां हासिल नहीं हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘बुद्धिमान लोग राज्य से बाहर चले जाएं क्योंकि यहां अज्ञानी शासन कर रहे हैं.’
सीएम विजयन खुद भी आरिफ मोहम्मद के प्रखर आलोचकों में शुमार हैं, जो अक्सर राज्यपाल पर केंद्र सरकार का एजेंट होने का आरोप लगाते रहे हैं.
पिछले महीने, जब आरिफ मोहम्मद ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि कन्नूर यूनिवर्सिटी में उनके खिलाफ कथित तौर पर धक्का-मुक्की की घटना के पीछे मुख्यमंत्री कार्यालय का हाथ है, तब मुख्यमंत्री ने उनके खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी थी.
विजयन ने कहा, ‘बतौर राज्यपाल उन्हें संविधान के संरक्षण की शपथ दिलाई जाती है. संविधान में कहा गया है कि राज्यपाल को कैबिनेट की मदद और सलाह से कार्य करना चाहिए लेकिन वह सरकार के साथ खुलकर टकरा रहे हैं, जो संविधान के खिलाफ है.’ उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ राज्यपाल की मुलाकात की भी आलोचना की.
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