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Monday, 4 November, 2024
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‘हम मराठी मानुस हैं’ – कर्नाटक के सीमावर्ती गांवों में पीढ़ियों से चल रहा है पहचान का संघर्ष

कर्नाटक की 7 करोड़ आबादी में 50 लाख मूल निवासी मराठी भाषी हैं. लेकिन सीमा विवाद को सिर्फ ‘भाषा’ से जोड़कर इस बहस को बेहद संकुचित कर दिया गया है. इसके साथ और भी कई मुश्किलें एवं मसले जुड़े हैं.

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बेलगावी: बेलागवी में लोकप्रिय राजहंस गढ़ किले के रास्ते से गुजरते हुए एक बेहद खूबसूरत छोटा सा गांव येल्लुर पड़ता है. यहां लगभग सभी साइनबोर्ड मराठी में हैं. इस क्षेत्र को देखते हुए यह थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि ये इलाका महाराष्ट्र में नहीं बल्कि बेलगावी शहर से सिर्फ 12 किमी दूर दक्षिण में कर्नाटक में स्थित है.

मुख्य सड़क के पास मराठी में एक पोस्टर जल्द ही छत्रपति शिवाजी की एक प्रतिमा की स्थापना किए जाने की घोषणा कर रहा है. 17वीं सदी के शासक की एक और छोटी मूर्ति पहले से ही सड़क के उस पार खड़ी है. वहां कुछ सीढ़ियां बनी हैं. यह जगह भयंकर गर्मी से राहगीरों को राहत देती है, यहां तक कि सर्दियों के दौरान भी लोग यहां बैठकर अपनी थकान मिटाते हैं.

येल्लूर कर्नाटक के उन कई गांवों में से एक है जहां के लोग मराठी भाषा और संस्कृति को अपनी पहचान मानते हैं. इससे दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को बढ़ावा मिला है.

Chhatrapati Shivaji sculpture in Yellur | Sharan Poovanna | ThePrint
येल्लूर में छत्रपति शिवाजी की मूर्ति | शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

पिछले कुछ सालों में येल्लूर कई बार सुर्खियों में आया है. ठीक साल 2014 की तरह. जब मराठी समर्थक कार्यकर्ताओं ने यहां एक बोर्ड लगाया था. बोर्ड बता रहा था कि गांव कभी महाराष्ट्र का हिस्सा था, भले ही वह निकटतम राज्य की सीमा कम से कम 70 किमी दूर है. बोर्ड वहां ज्यादा दिनों तक नहीं रहा. उसे हटा दिया गया था. लेकिन येल्लूर की पहचान का मुद्दा बोर्ड के साथ नहीं गया. वह लगातार बना रहा.

दुश्मनी की नई लहर हिचकोले ले रही है. क्योंकि दोनों राज्यों में चल रहे शीतकालीन सत्र में तनाव का माहौल हावी है. दरअसल यह तनाव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और चुनावी राज्य कर्नाटक में भाजपा की सरकार का नेतृत्व करने वाले बासवराज बोम्मई के एक विवादास्पद फैसले के बाद उपजा है. उन्होंने कर्नाटक में मराठी भाषी सीमावर्ती गांवों के ‘शहीदों’ (सीमा विवाद में मारे गए) के परिजनों को ‘स्वतंत्रता सेनानी जैसी’ पेंशन देने का वादा किया है.

‘राजनेता लड़ते हैं, हम मरते हैं!’

येल्लुर में सरकारी महाराष्ट्र हाई स्कूल में सभी 170 छात्रों को मराठी में पढ़ाया जाता है.

स्कूल के एक शिक्षक ने कहा, ‘मेरी पीढ़ी को भूल जाओ… लेकिन मेरे बच्चे और जो बाकी बच्चे मराठी पढ़ रहे हैं… उनका पूरा भविष्य दांव पर है. हम मराठी मानुस हैं. यही एकमात्र मुद्दा है जिसकी वजह से हम महाराष्ट्र में अपने विलय की मांग कर रहे हैं.’ उन्होंने अपना नाम नहीं बताया क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी टिप्पणियों के लिए कर्नाटक सरकार उन्हें निशाना बना सकती है.

Maharashtra High School in Yellur | Sharan Poovanna | ThePrint
येल्लूर में महाराष्ट्र हाई स्कूल | शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

सीमा विवाद के बारे में दिप्रिंट से बात करने वाले कई स्थानीय लोगों ने दावा किया कि महाराष्ट्र के पक्ष में टिप्पणी करने वाले किसी भी व्यक्ति पर कार्रवाई करना कर्नाटक में राज्य मशीनरी के लिए असामान्य नहीं है.

महाराष्ट्र के सांगली और कोल्हापुर के कन्नड़ भाषी क्षेत्रों में भी स्थिति अलग नहीं है. यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों को मानना है कि कर्नाटक का हिस्सा बन जाने पर उन्हें शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे.

अनौपचारिक अनुमानों के मुताबिक, महाराष्ट्र से सटे राज्य की सीमा पर बसे गांवों में लगभग 25 लाख लोग रहते हैं. कर्नाटक के उत्तर-पश्चिम में कारवार से लेकर पूर्वोत्तर में बीदर तक बसे ये लोग पीढ़ियों से इस विवाद में लगे हुए हैं.

हालांकि इस मसले को ‘भाषा’ पर एक बहस बनाकर संकुचित कर दिया गया है, लेकिन सीमा विवाद से जुड़ी कई परतें हैं. और हर एक परत दूसरे की तुलना में बेहद जटिल नजर आती है.

Poster in Marathi announcing installation of Shivaji statue in Yellur | Sharan Poovanna | ThePrint
येल्लूर में शिवाजी की मूर्ति स्थापित करने की घोषणा वाला मराठी पोस्टर | शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

अब यहां रहने वाले काफी सारे मराठी इस ‘संघर्ष’ के साथ नहीं खड़े हैं. वो आगे बढ़ गए हैं. लेकिन उनके मन में एक सवाल रह-रह कर आता हैं कि कभी-कभी ही यह मसला क्यों उठाया जाता है.

मराठी बहुल येल्लूर में रहने वाले एक सेवानिवृत्त छावनी कर्मचारी जी.आर गणाचारी ने कहा, ‘हमें सवाल करना चाहिए कि यह मुद्दा सिर्फ चुनाव के दौरान ही क्यों उठता है. ये लोग जो ‘जय महाराष्ट्र’ (समर्थक मराठी गुट) का नारा लगाते रहते हैं, अपने बच्चों को अंग्रेजी और कन्नड़ दोनों भाषा में पढ़ाते हैं और हम गरीबों को अपने बच्चों को मराठी स्कूलों में रखने के लिए मजबूर करते हैं. वे (राजनेता) लड़ते हैं और हम इस प्रक्रिया में मर जाते हैं.’

इस बहस में मराठा समुदाय भी एक अन्य घटक है. कुछ दावों के अनुसार राज्य की लगभग सात करोड़ आबादी में उनकी संख्या लगभग 50 लाख हैं. बेलगावी में भाजपा के पहले विधायक मनोहर पी. कडोलकर ने कहा, राज्य भर में बिखरा हुआ और कई निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाला यह समुदाय अब ज्यादा आरक्षण की मांग कर रहा है. इसने संसदीय और विधानसभा दोनों चुनावों में भाजपा का समर्थन किया था.

यह पंचमसाली लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरुबा जैसे प्रमुख समुदायों द्वारा बोम्मई सरकार के समक्ष उठाई गई समान मांगों में से एक है. अगर सरकार अपनी ओर से चुनावी साल में दूसरे का पक्ष लेती है, तो उसे दूसरे पक्ष के विरोध का सामना करना पड़ेगा.


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‘यह एक सार्वजनिक लड़ाई है’

1940 के दशक में गठित, महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) दशकों से मुख्यधारा की पार्टियों के हाथों लगातार राजनीतिक आधार खोते जाने के बावजूद, आज भी अपना ‘संघर्ष’ जारी रखे हुए है.

एमईएस नेता पूरे कर्नाटक में मराठी भाषी आबादी को तितर-बितर करने के लिए दशकों से परिसीमन की साजिश का हवाला देते हैं ताकि ‘चुनावों पर समुदाय की शक्ति और प्रभाव पर नजर रखी जा सके’.

1960 और 1970 के दशक की शुरुआत में यह संगठन अपने चरम पर था, जब इसके समर्थित अधिकांश उम्मीदवारों ने विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. 2013 में इसने दो विधानसभा सीटें और बेलगावी नगर निगम की 58 में से 38 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. लेकिन धीरे-धीरे इसका आधार घटता चला गया. इसने 2018 के बाद से कोई विधानसभा सीट नहीं जीती है और 2021 के निगम में जीतने वाले 12 निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल दो को MES से संबद्ध माना जाता है.

लेकिन शिवसेना, शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसी पार्टियों द्वारा समर्थित MES कर्नाटक में मराठी समर्थक प्रतिरोध का चेहरा बना हुआ है, विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर रहा है. साथ ही मांग कर रहा है कि 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से महाराष्ट्र का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाले मराठी भाषी लोगों के साथ किए गए ‘अन्याय’ सुधारने की कोशिश की जाए.

A Chhatrapati Shivaji installation in Yellur | Sharan Poovanna | ThePrint
येल्लूर में छत्रपति शिवाजी के स्टेच्यू की स्थापना | शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

एमईएस के एक प्रमुख पदाधिकारी और बेलगावी दक्षिण के पूर्व विधायक उम्मीदवार प्रकाश मार्गले ने दिप्रिंट को बताया, ‘चूंकि भाजपा कर्नाटक, महाराष्ट्र (शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के गुट के साथ गठबंधन में) और केंद्र में सत्ता में है, तो महाजन आयोग के निष्कर्षों की संसद में चर्चा की जानी चाहिए. हमने 1956 से अपनी लड़ाई जारी रखी है. मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्रियों से मुलाकात की और आखिरकार हम न्याय के लिए (सर्वोच्च) अदालत तक गए हैं.’

उन्होंने स्वीकार किया कि एमईएस की ओर से समर्थित कई विधायक भाजपा और कांग्रेस जैसे मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में शामिल हो गए हैं, लेकिन उनके संघर्ष पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है.

मार्गले ने कहा, ‘चुनाव हमारे एजेंडे का हिस्सा है लेकिन यह एक सार्वजनिक लड़ाई है. अगर मैं छोड़ देता हूं, तब भी जनता इसके लिए लड़ती रहेगी.’

बेलागवी जिला कन्नड़ संगठनों की कार्य समिति से जुड़े कन्नड़ समर्थक अशोक चंद्रगी के अनुसार, शिंदे ने भी 1986 में बेलगावी में एक एमईएस आंदोलन में भाग लिया था. इस साल की शुरुआत में तनाव को फिर से भड़काने वाले सीमा विवाद पर उनके बयानों पर असर पड़ने की संभावना है.

Suvarna Vidhana Soudha in Belagavi | Sharan Poovanna | ThePrint
बेलगावी में सुवर्ण विधान सौधा | शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

18 विधानसभा सीटों के साथ, बेलगावी निर्वाचन क्षेत्रों के मामले में राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला है और भाजपा अपनी अधिकांश निर्वाचित संख्या ‘कित्तूर-कर्नाटक’ (पूर्व में बॉम्बे-कर्नाटक) क्षेत्र से प्राप्त करती है. हालांकि लिंगायतों और मराठों के ज्यादातर समर्थन के कारण वह इस मुद्दे पर सावधानी बरतती रही है.

इस महीने की शुरुआत में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक बैठक में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद उन्हें निर्देश दिया था कि वे तनाव को हवा न दें या दूसरे के क्षेत्र पर दावा न करें क्योंकि यह भाजपा की स्थिति को खराब कर सकती है. और हो सकता है कि कर्नाटक आगामी चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर दे.

बेलगावी जिला कन्नड़ संगठनों की कार्रवाई समिति से जुड़े कन्नड़ समर्थक अशोक चंद्रगी ने कहा, ‘यह उनके (एमईएस) अस्तित्व और चेहरे को बचाने का सवाल है क्योंकि वे अपनी जमीन खोते जा रहे हैं. इसी वजह से वे इस मसले को बार-बार हवा दे रहे हैं.’

आरोप लगाया जा रहा है कि क्योंकि एमईएस मुख्यधारा में बने रहने का अपना आधार खो चुका है इसलिए वह इस मुद्दे को बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र स्थित पार्टियों को बढ़ावा दे रहा है. लेकिन इस क्षेत्र के मौजूदा और पूर्व विधायक – भाजपा और कांग्रेस दोनों – सीमा पर बढ़ते तनाव को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि मराठी भाषी लोग कई निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं का सबसे बड़ा हिस्सा हैं.

2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि बेलागवी की कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत मूल मराठी भाषी हैं.

बेलगावी के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए दावा किया, ‘ज्यादातर लोग कर्नाटक में रहना चाहते हैं क्योंकि वहां बेहतर विकास, अधिक अवसर और बेहतर सब्सिडी है. एमईएस जमीन खो रहा है और प्रासंगिक बने रहने के लिए इस मुद्दे को उठा रहा है.’

लेकिन चीजों के साथ जैसा कि वे अभी खड़े हैं, स्थिति कुछ ऐसी है कि मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी सीमा विवाद को ‘हल करना असंभव’ कहा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: अलमिना खातून)


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