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Wednesday, 17 April, 2024
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चीन के साथ LAC पर भारत के पूर्वोत्तर रेल लिंक ने पकड़ी गति, 8 राजधानियों को भी जोड़ने की योजना

2010-11 में भारतीय सेना द्वारा प्रस्तावित इस रेल लाइन के माध्यम से अरुणाचल, मणिपुर और सिक्किम सहित प्रमुख सीमावर्ती क्षेत्रों को जोड़ने की योजना है. भालुकपोंग-तवांग लाइन का विशेष रणनीतिक महत्व भी है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार भारत ने पूर्वोत्तर में तीन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रेलवे लाइनों का अंतिम स्थल सर्वेक्षण (फाइनल लोकेशन सर्वे) को पूरा कर लिया है, जिसका उद्देश्य चीन के साथ लगे सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में, भारतीय सेना को अपने कर्मियों और उपकरणों को तेजी से आगे ले जाने में मदद करना है.

ये रणनीतिक रेलवे लाइनें, जो अगले एक दशक में पूरी होंगी, पहले से बन रहे राजमार्गों के व्यापक नेटवर्क में वृद्धि करेंगीं.

2010-11 में पहली बार भारतीय सेना द्वारा पेश की गई इस योजना में कई हजार करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है, और इसका उद्देश्य अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम सहित कई प्रमुख सीमावर्ती क्षेत्रों को ब्रॉड गेज वाले रेल मानचित्र पर लाना है.

जिन प्रमुख रेल लाइनों के लिए काम तेज किया गया है, वे हैं भालुकपोंग से तवांग (अरुणाचल प्रदेश) के बीच 200 किमी ब्रॉड गेज लाइन, सिलापथार (असम) से अलॉन्ग वाया बाम (अरुणाचल प्रदेश) के बीच 87 किमी लाइन और रुपई (असम) से पासीघाट (अरुणाचल प्रदेश) – जहां भारतीय वायु सेना का एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड भी है – के बीच की 217 किमी की लाइन.

इन तीनों प्रस्तावित रेलवे लाइनों को ‘रणनीतिक’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि इनकी लागत रेलवे और रक्षा मंत्रालय दोनों द्वारा वहन की जाएगी.

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पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (नार्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे -एनएफआर) के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सब्यसाची डे ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन तीन लाइनों पर फाइनल लोकेशन सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है, और रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंप दी गई है.’

फाइनल लोकेशन सर्वे का काम रेल लाइन के संरेखण और स्टेशनों के स्थान को तय करने के लिए किया जाता है. रेलवे की भाषा में कहें तो फाइनल लोकेशन सर्वे पूरा होने का मतलब है कि परियोजना अब अंतिम रूप ले चुकी है.

इधर रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘फाइनल लोकेशन सर्वे रिपोर्ट पर विचार किया जा रहा है.’

एक बार जब मंत्रालय फाइनल लोकेशन सर्वे को अपनी मंजूरी दे देता है, तो इन परियोजनाओं को अंतिम मंजूरी के लिए कैबिनेट में ले जाया जाएगा. अधिकारी ने कहा, ‘फिर यह ड्रॉइंग बोर्ड से बाहर आ जाएगा.’

इस बीच रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों का कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ चल रहे गतिरोध के कारण ही इन परियोजनाओं को गति मिली है. उन्होंने कहा कि भारतीय सेना इस रणनीतिक मोर्चे पर जोर दे रही है क्योंकि इससे सैनिकों और उपकरणों की आवाजाही में मदद मिलेगी.

उनके अनुसार भालुकपोंग-तवांग लाइन इन सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है, जो उस क्षेत्र में सेना की व्यापक जरूरतों को पूरा करेगी, जहां चीन के साथ तनाव बढ़ा हुआ है.

प्रस्तावित लाइन में कई सुरंगें होंगी और ये 10,000 फुट से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर बनाई जाएंगी.

राजमार्ग परियोजनाओं और सामरिक रेलवे लाइनों, इन दोनों को ही भारतीय सेना द्वारा रक्षा तैयारियों पर किये गए अपने आंतरिक अध्ययन के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया था.

एक सूत्र ने कहा, ‘2011-12 में सेना ने इन रेल लाइन्स के योजना को अंतिम रूप देने के लिए काम किया था. फिर साल 2012 में सेना के जोर दिए जाने पर ही रेलवे लाइन को भालुकपोंग तक अपग्रेड किया गया था और उस स्थल तक संचालन की सिफारिश की गई थी जहां से तवांग तक लाइन शुरू होगी.’

रक्षा सूत्रों ने कहा कि भारतीय सेना एनएफआर के अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं और बहुत सारे काम पूरे किए गए हैं, जिससे पूर्वोत्तर में रहने वाले सैन्य कर्मियों और नागरिकों दोनों को मदद मिली है.

आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 और 2022 के बीच, कुल 893.82 किमी ट्रैक को ब्रॉड गेज में बदला गया, 386.84 किमी नई रेल लाइनें जोड़ी गईं, 356.41 किमी दोहरी लाइनें चालू की गईं और 1,578 किमी नई लाइनों का सर्वेक्षण पूरा किया गया.

एनएफआर के आंकड़ों के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले आठ वर्षों में प्रति वर्ष औसत फंड एलोकेशन 51,787 करोड़ रुपये था, जो 2009-14 के दौरान के वार्षिक औसत फंड एलोकेशन से 254 प्रतिशत अधिक है.


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और अधिक रेलवे लाइनों की योजना बनाई जा रही है

एक ओर सभी तीन रणनीतिक रेल लिंक परियोजनाए, का फाइनल लोकेशन सर्वे का काम पूरा हो चुका है, सभी अरुणाचल प्रदेश में हैं, वहीं एनएफआर एक अन्य रणनीतिक रेल लाइन – 26 किमी लंबी ब्रॉड गेज ट्रैक जो मुरकोंगसेलेक, धेमाजी, उत्तरी असम के एक गांव को अरुणाचल प्रदेश में स्थित पासीघाट से जोड़ती है – पर भी काम शुरू करने वाली है.

एनएफआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि असम और अरुणाचल प्रदेश दोनों ही वर्तमान में रेल लाइन से जुड़े हुए हैं, मुर्कोंगसेलेक-पासीघाट लाइन रणनीतिक है क्योंकि यह अरुणाचल प्रदेश के अंदर रक्षा बलों की आवाजाही को आसान बनाएगी.’

एनएफआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इसके अलावा, एनएफआर यह देखने के लिए एक ‘व्यवहार्यता अध्ययन’ (फिजिबिलिटी स्टडी) भी कर रहा है कि क्या असम के कोकराझार को भूटान में स्थित गेलेफू से जोड़ने के लिए एक ब्रॉड गेज लाइन को तैयार किया जा सकता है?’

गेलेफू असम-भूटान सीमा पर स्थित है तथा असम और भूटान के बीच रेल संपर्क प्रदान करने का प्रस्ताव कुछ समय से विचाराधीन है.

भारतीय रेलवे सिक्किम को रेल भी मानचित्र पर लाने की अपनी योजना के साथ आगे बढ़ रहा है.

पहले उद्धृत एनएफआर के वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा था, ‘रंगपो और सिक्किम की राजधानी गंगटोक के बीच रेल लाइन और ट्रेन स्टेशन के स्थान के संरेखण का निर्णय लेने के लिए फाइनल लोकेशन सर्वेक्षण चल रहा है, साथ ही इस बात की जांच के लिए एक प्रारंभिक इंजीनियरिंग-सह-यातायात सर्वेक्षण भी चल रहा है कि क्या गंगटोक और नाथू ला के बीच एक रणनीतिक ब्रॉड गेज लाइन बनाई जा सकती है.’

पूर्वोत्तर की सभी आठ राजधानियों को रेल लाइन से जोड़ना

यह केवल सामरिक रेल संपर्क की बात ही नहीं है, बल्कि रेल मंत्रालय यह सुनिश्चित करने के लिए भी काम कर रहा है कि पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों की राजधानियां ब्रॉड गेज लाइन से जुड़ी हुई हों.

डे ने कहा, ‘हालांकि, गुवाहाटी (असम), ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) और अगरतला (त्रिपुरा) पहले से ही रेल मानचित्र पर हैं, कोहिमा (नागालैंड) साल 2026 तक ब्रॉड गेज लाइन पर होगा. इंफाल (मणिपुर) और आइजोल (मिजोरम) के बीच की रेल लाइन को जोड़ने के लिए काम पहले से ही एक उन्नत चरण में है. दोनों लाइनें साल 2023 तक तैयार हो जाएंगी.’

हालांकि, मेघालय रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है, लेकिन एनएफआर इस राज्य में ‘इनर लाइन परमिट’ की मांग को लेकर खासी समूहों द्वारा जताये जा रहे विरोध के चलते इसकी राजधानी शिलांग को रेल लाइन से जोड़ने के बारे में खास प्रगति नहीं कर पाया है.

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: अलमिना खातून)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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