मुंबई: कर्नाटक के साथ दशकों पुराने सीमा विवाद को लेकर बढ़े तनाव के बीच एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने दोनों राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में औपचारिक तौर पर मराठी भाषा के संरक्षण की दिशा में काम करने वाले संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की एक योजना शुरू कर दी है.
शिंदे सरकार ने इस योजना की रूपरेखा जून में ही तैयार कर ली थी. लेकिन, दिप्रिंट की तरफ से एक्सेस किए गए 30 नवंबर के एक सरकारी प्रस्ताव के मुताबिक, राज्य मराठी भाषा विभाग ने आधिकारिक तौर पर इसे पिछले महीने ही शुरू किया था.
विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि विचार सिर्फ यह सुनिश्चित करना था कि ‘मराठी भाषा और साहित्य न केवल संरक्षित हैं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में फलते-फूलते भी हैं जहां मराठी और कन्नड़ दोनों भाषाओं का प्रभाव है.’
शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेबंची शिवसेना के कैबिनेट मंत्री दीपक केसरकर—जो मराठी भाषा विभाग देखते हैं—ने दिप्रिंट के फोनकॉल और टेक्स्ट मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.
भाषा के संरक्षण की यह नई योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारें छह दशक पुराने सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर आमने-सामने हैं, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर तनाव बना हुआ है.
1950 के दशक में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से ही महाराष्ट्र की तरफ से कर्नाटक सीमा पर स्थित 814 गांवों और बेलगावी शहर—जहां मराठी भाषी आबादी ज्यादा है—को अपने क्षेत्र में शामिल करने की मांग की जा रही है.
ये मुद्दा फिलहाल न केवल कर्नाटक की भाजपा सरकार और महाराष्ट्र की भाजपा-बालासाहेबंची शिवसेना गठबंधन सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का विषय बना हुआ है, बल्कि महाराष्ट्र के अंदर भी विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) इसे लेकर सत्ताधारी गठबंधन को निशाना बना रहा है.
एमवीए में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल हैं.
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मराठी को बढ़ावा देने की योजना
सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के मुताबिक, राज्य सरकार महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा क्षेत्रों में मराठी भाषा को बढ़ावा देने वाले प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये तक का वित्तीय अनुदान देगी.
इसमें सीमावर्ती क्षेत्रों में मराठी लेखकों, दार्शनिकों, कहानीकारों या कवियों की गोष्ठियों का आयोजन करना, सब्सिडी वाले दामों पर मराठी पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए प्रदर्शनियों का आयोजन करना और नो-प्रॉफिट, नो-लॉस के आधार पर मराठी पुस्तकों का प्रकाशन और वितरण करना भी शामिल है.
जीआर के मुताबिक, सीमावर्ती कस्बों और गांवों से संचालित होने वाले मराठी अखबार और अन्य प्रकाशन भी अनुदान पा सकेंगे.
इसी तरह, राज्य सरकार मराठी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लिपि देवनागरी को लोकप्रिय बनाने और संरक्षित करने संबंधी गतिविधियों के लिए भी वित्तीय सहायता देगी.
ऊपर उद्धृत सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस योजना के जरिये सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों में युवाओं और बच्चों के लिए मराठी साहित्य उत्सवों को भी बढ़ावा देना चाहती है. छात्रों के लिए निबंध लेखन, वाद-विवाद, रंगमंच आदि मराठी भाषी प्रतियोगिताओं का आयोजन करने वाले संस्थानों को भी सहायता देने पर विचार किया जाएगा.
शिंदे सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए और भी कदम उठाए
सीमावर्ती क्षेत्रों में मराठी को बढ़ावा देने वाले संगठनों के लिए वित्तीय अनुदान देने की योजना उन फैसलों में से एक है, जो शिंदे सरकार ने दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद गहराने के बीच लिए हैं.
पिछले महीने, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विवादित क्षेत्रों में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन बहाली की योजना शुरू की थी.
साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि वह विवादित क्षेत्रों में महात्मा फुले जन आरोग्य योजना के विस्तार के लिए भी कदम उठाएंगे. यह महाराष्ट्र सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना है.
पिछले महीने उन्होंने सीमा विवाद पर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति में फेरबदल किया और खुद उसके अध्यक्ष बन गए. उसी समय ही, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर महाराष्ट्र की ओर से कानूनी लड़ाई का मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी कैबिनेट मंत्री चंद्रकांत पाटिल और शंभुराज देसाई को सौंपी.
रविवार को, शिंदे के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने सांगली के जाट तालुका के सूखा प्रभावित 48 गांवों में म्हैसल लिफ्ट सिंचाई योजना के विस्तार के लिए 2,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
अभी महाराष्ट्र में शामिल ये 48 गांव पर्याप्त पानी नहीं मिलने को लेकर पिछले एक दशक में कई बार कर्नाटक में विलय की मांग कर चुके हैं.
शिंदे ने राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के पहले दिन अपने संबोधन में कहा, ‘पिछली सरकार (ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए) ने सीमावर्ती क्षेत्रों में कई योजनाओं को रोक दिया, (लेकिन) हमने उन्हें फिर से शुरू कर दिया है. हालांकि, मैं इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहता.’
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(अनुवाद : रावी द्विवेदी )
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