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Friday, 26 April, 2024
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बिहार में ठंडी पड़ी ‘सुशांत को इंसाफ’ की मांग, एक्टर की मौत किसी पार्टी के लिए चुनावी मुद्दा नहीं

बिहार चुनाव प्रचार में कोई राजनीतिक पार्टी सुशांत सिंह राजपूत के बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रही है. मतदाताओं की भी उनकी बात में कोई दिलचस्पी नहीं है.

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पटना: सीबीआई जांच की मांग उठ रही थी, इंसाफ की गुहार लगाई जा रही थी, उसकी मौत को लेकर सियासी पैंतरेबाज़ियां चल रहीं थीं, लेकिन 5 महीने के बाद, ऐसा लगता है कि बिहार के सियासी दलों ने, एक्टर सुशांत सिंह राजपूत को भुला दिया है.

जून में ख़ुदकशी से हुई राजपूत की मौत के बाद, बिहार में कई पार्टियों ने सीबीआई जांच की मांग की थी, जिससे बीजेपी और महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार के बीच काफी रस्सा-कशी चली थी, और पटना व मुम्बई के पुलिस विभागों के बीच भी तकरार हो गई थी.

लेकिन अब, जब 28 अक्टूबर से शुरू होने वाले, तीन चरणों के विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार चल रहा है, तो कोई राजनीतिक पार्टी सुशांत सिंह राजपूत के बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रही है. मतदाताओं की भी उनकी बात में कोई दिलचस्पी नहीं है.

उसकी बजाय ऐसा लगता है कि पूरा प्रचार राजपूत के खिलाफ चला गया है. पटना की सरहद पर बसे मोकामा के निवासी सुधाकर सिंह ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘वो तो गांजा पीता था. हो सकता है उसी में मर गया हो’.

सिंह मोकामा के नदी के क्षेत्र में एक ऐसे गांव में रहते हैं, जो राजपूत बहुल है, जिस समुदाय से एक्टर का ताल्लुक़ था. पालीगंज नगरपालिका क्षेत्र के निवासी बसंत ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा, ‘वो मुम्बई में एक्टर था, हमको यहां और बहुत से इश्यूज़ हैं’.

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बीजेपी सूत्रों ने कहा कि ख़ुद एक्टर के कज़िन नीरज कुमार बबलू ने जो सहरसा की छतरपुर विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं, इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है. एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘नीरज और उनके समर्थक भी प्रचार करते हुए, इस मुद्दे का ज़िक्र नहीं करते’.

सुशांत को इंसाफ को लेकर जो थोड़ा बहुत उत्साह बचा हुआ था, वो भी तब हवा हो गया जब दिल्ली से एम्स की रिपोर्ट ने साफ कर दिया, कि उसकी मौत का कारण आत्महत्या थी.


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मुद्दा उठाने वालों ने ही उसे छोड़ा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में, अपने समर्थकों के साथ पहली वेब मीटिंग में ज़िक्र किया था कि उन्होंने सीबीआई जांच का आदेश इसलिए दिया था कि एक्टर के परिवार वालों ने इसकी मांग की थी. लेकिन उसके बाद से उन्होंने इस मुद्दे पर एक शब्द नहीं बोला है.

बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डे, जो जल्दी रिटायर होकर टिकट की आस में सत्ताधारी जेडी(यू) में शामिल हुए, ने एक गीत भी रिलीज़ किया जिसमें दावा किया गया था कि एक्टर को इंसाफ दिलाने के पीछे वही थे.

लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं डगमगा गई हैं. पाण्डे अपने गृह ज़िले बक्सर से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन एनडीए की सीटों के बंटवारे में, वो चुनाव क्षेत्र बीजेपी को चला गया.

बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देना चाहती थी, चूंकि शिव सेना उसके बिहार प्रभारी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस पर हमले कर रही थी.

शिवसेना कह रही थी कि क्या फडणवीस पाण्डे के लिए प्रचार करेंगे, जिन पर उसने मुम्बई पुलिस को बदनाम करने का आरोप गाया था. शिवसेना ने धमकी दी कि अगर पाण्डे ने चुनाव लड़ा, तो वो उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी. लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी को टिकट नहीं दिया गया.

फडणवीस ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि सुशांत सिंह राजपूत चुनावी मुद्दा नहीं था, और उन्होंने एक्टर के एक पोस्टर से भी ख़ुद को अलग कर लिया.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख ने दिप्रिंट से कहा, ‘सुशांत सिंह राजपूत केस हमारे लिए कभी सियासी मुद्दा था ही नहीं. ये एक भावनात्मक मुद्दा है, चूंकि वो एक बिहारी था. हम बस ये चाहते हैं कि सीबीआई इस केस को इसके तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचा दे’.

लेकिन एनडीए से पहले ही, आरजेडी इस केस में सीबीआई जांच की मांग करने में आगे आगे थी. तेजस्वी ने तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर, इस केस की अनदेखी का आरोप भी लगाया था. उन्होंने बॉलीवुड एक्टर शेखर सुमन के साथ एक साझा प्रेस कॉनफ्रेंस भी की, जिसमें उन्होंने अपनी मांग को दोहराया और राजगीर में प्रस्तावित फिल्म सिटी का नाम, एक्टर के नाम पर रखने की मांग की.

अब जब चुनाव सर पर हैं तो तेजस्वी ने इस मुद्दे पर एक शब्द नहीं बोला है. राजपूतों को लुभाने के लिए उनकी पार्टी ने, एक ज़्यादा पारंपरिक तरीक़ा चुना है- उन्होंने लवली आनंद और चेतन आनंद को टिकट दिए हैं, जो जेल में बंद पूर्व सांसद और डॉन, आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटे हैं.

आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सुशांत सिंह राजपूत केस हमारे लिए कभी सियासी मुद्दा था ही नहीं. एक्टर बिहार का बेटा था जिसने बिहार में अच्छा किया था. हम उसके परिवार के लिए इंसाफ चाहते थे, इसलिए तेजस्वी यादव ने सबसे पहले सीबीआई जांच की मांग की’.

‘अब हम चाहते हैं कि अगर ये आत्महत्या का केस है, तब भी सीबीआई इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को नामज़द करे और उन्हें सज़ा दिलाए’.

पटना स्थित एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ के सीनियर प्रोफेसर, डीएन दिवाकर ने दिप्रिंट से कहा कि एम्स की रिपोर्ट ने बिहार में कथानक बदल दिया.

उन्होंने कहा, ‘ये एक सतही मुद्दा था. सियासी पार्टियां पहचान की राजनीति कर रहीं थीं, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे उन्हें उस जाति का समर्थन मिलेगा, जिससे एक्टर का ताल्लुक़ था. लेकिन उसके बाद से हालात बदल गए हैं. एम्स ने हत्या की बात ख़ारिज कर दी है, और बॉलीवुड को ड्रग्स के कथित उपभोग के लिए कलंकित किया जा रहा है. सियासी दलों को अब लगता है कि इस मुद्दे को छोड़ देना ही बेहतर होगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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