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Sunday, 8 December, 2024
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झारखंड बीजेपी के नए प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने कहा- भ्रष्टाचार और आदिवासी मुद्दों पर सोरेन सरकार से लड़ेंगे

झारखंड के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी को इस महीने की शुरुआत में राज्य भाजपा प्रमुख बनाया गया था. एक साक्षात्कार में, उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी यूसीसी पर आदिवासी समुदाय के सुझावों के लिए तैयार है.

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नई दिल्ली: पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कहा कि झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)  “भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था” व राज्य में “आदिवासियों की आकांक्षाओं को कुचलने” के मुद्दे पर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार को घेरेगी.

राज्य की सबसे बड़ी जनजाति, संथाल से संबंधित, मरांडी झारखंड में भाजपा का सबसे प्रमुख आदिवासी चेहरा हैं.

उन्हें इस महीने की शुरुआत में राज्य भाजपा प्रमुख के रूप में चुना गया था क्योंकि पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों और बाद में अगले साल होने वाले राज्य चुनावों से पहले सोरेन – एक अन्य संथाल नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता – को टक्कर देने की तैयारी कर रही है.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में, मरांडी ने झारखंड में आदिवासियों का दिल जीतने के लिए भाजपा की रणनीतियों, लोकसभा चुनावों की “प्राथमिक चुनौती”, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और “भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के सबसे बड़े मुद्दे” के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री कार्यालय एक बिचौलिए का कार्यालय बन गया है. सोरेन हर दिन भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड बना रहे हैं और आदिवासियों की आकांक्षाओं को उनकी सरकार ने कुचल दिया है. ये वे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा अगले साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ेगी.”

मरांडी ने प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के बारे में भी बात की, उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार आदिवासी समुदाय के सुझावों के लिए खुली है और कानून आयोग के माध्यम से लोगों की आवाज सुन रही है, जिसने पिछले महीने इस विषय पर जनता के विचार आमंत्रित किए हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘आदिवासियों के कल्याण के लिए एक कानून बनाया जाएगा और इसीलिए विधि आयोग में विस्तार से चर्चा हो रही है.’

मरांडी 2000 में झारखंड के पहले सीएम बने थे, जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने राज्य के गठन के तुरंत बाद सत्ता हासिल की थी और 2003 तक इस पद पर रहे. हालांकि, उन्होंने 2006 में बीजेपी छोड़कर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) बना ली. 2020 में, उन्होंने पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उनका स्वागत किया.

हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा 2014 से झारखंड के आदिवासियों के बीच समर्थन खो रही है क्योंकि उसने उस वर्ष राज्य चुनावों में ओबीसी नेता रघुबर दास को सीएम की कुर्सी दी थी.

2019 के विधानसभा चुनावों में, पार्टी राज्य में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 28 सीटों (कुल 81 विधानसभा सीटों में से) में से केवल दो ही जीत सकी, जो 2014 में जीती गई 14 सीटों से कम है. आरक्षित आदिवासी सीटें संथाल परगना क्षेत्र में हैं, जहां से मरांडी और सोरेन दोनों आते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा उन्हें इसलिए आगे बढ़ा रही है क्योंकि वह राज्य के आदिवासी इलाके में अपना आधार खो रही है, दो बार के विधायक मरांडी, जो वर्तमान में अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र धनवार का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने जोर देकर कहा कि “भाजपा झारखंड में मजबूत है”.

“भाजपा पहले भी राज्य में सत्ता में रही है, और उसने पहली बार सरकार बनाई थी. 2009 के आम चुनावों में इसने अच्छी संख्या में लोकसभा सीटें (14 में से आठ) जीतीं और अभी इनमें से 11 सीटें हैं. हम कुछ कारकों के कारण कुछ चुनाव हार गए होंगे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी कमजोर है.”

“मुझे राज्य इकाई प्रमुख नियुक्त किया गया क्योंकि अध्यक्ष हर तीन साल में बदल जाता है. हमारी प्राथमिकता भाजपा सरकार को वापस लाना और 2024 में अपनी लोकसभा सीटें बरकरार रखना है.”

सीएम सोरेन पर निशाना साधते हुए मरांडी ने कहा, ”मुझे सोरेन के प्रति कोई गुस्सा नहीं है, बल्कि मैं आभारी हूं कि उन्होंने मुझे तीन साल तक विपक्ष के नेता का दर्जा न देकर पार्टी अध्यक्ष का पद दिलाने में मदद की. ”

झारखंड विधानसभा अध्यक्ष ने अभी तक मरांडी को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया है – जिन्हें भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया था – क्योंकि भाजपा में अपनी पार्टी का विलय करने के बाद उनके खिलाफ `याचिका लंबित है.

उन्होंने कहा, “पार्टी आलाकमान ने सोचा कि मरांडी तीन साल से बिना किसी पद के राज्य में लड़ रहे हैं और सोरेन से लड़ने के लिए उन्हें राज्य इकाई का प्रमुख बनाना बेहतर है.”


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‘सोरेन भ्रष्टाचार के प्रतीक’

मरांडी के अनुसार, भाजपा की तात्कालिक चुनौती झारखंड में वर्तमान में मौजूद 11 लोकसभा सीटों को बरकरार रखना है और इसके लिए पार्टी का लक्ष्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के काम को बढ़ावा देना और राज्य सरकार में कथित भ्रष्टाचार को उजागर करना है.

उन्होंने कहा, ”फिलहाल हमारी चुनौती लोकसभा चुनाव है. पिछले विधानसभा चुनाव में हम कई कारणों से हार गये थे. हालांकि, झामुमो और सोरेन ने जनता से किये वादे पूरे नहीं किये. सोरेन सरकार वंशवाद की राजनीति और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है, जो इस समय उच्चतम स्तर पर है. आदिवासी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और भाजपा में लौट रहे हैं.”

हालांकि, भाजपा 2019 में चार उपचुनाव (बेरमो, दुमका, मधुपुर और मंदार) हार गई है, जिसमें दो सीटें (मंदार, दुमका) रिज़र्व्ड एसटी सीट है.

राज्य में भाजपा के चुनाव अभियान के बारे में बात करते हुए, मरांडी ने दिप्रिंट से कहा: “हम केंद्र में नौ वर्षों में किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्छे काम के साथ लोगों के पास जाएंगे, चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना हो या किसान सम्मान निधि या मुफ्त राशन हो. ऐसी कई केंद्रीय योजनाओं का राज्य में व्यापक प्रभाव पड़ा है.”

उन्होंने कहा,“जबकि लोगों ने 2019 में झामुमो को यह सोचकर जनादेश दिया था कि सोरेन आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करेंगे, उन्होंने उस भरोसे का सम्मान नहीं किया. उसने उन्हें धोखा दिया. इसलिए, हमें लोगों को बताना होगा कि भाजपा सरकार उनके कल्याण के लिए अथक प्रयास कर रही है,”

मरांडी ने सोरेन के खिलाफ “लाभ के पद” मामले के बारे में भी बात की, जिसमें भाजपा ने सीएम पर राज्य खनन और पर्यावरण विभाग का प्रभार संभालते हुए 2021 में खुद को खनन पट्टा देने का आरोप लगाया है.

चुनाव आयोग (ईसी) ने पिछले साल सोरेन को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा था कि आरोपों पर उन्हें विधायक के रूप में अयोग्य क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए. मामला फिलहाल राज्य के राज्यपाल के पास है, जिन्हें चुनाव आयोग ने विवाद पर अपनी राय भेजी थी. हालांकि, चुनाव निकाय की सिफ़ारिश को सार्वजनिक नहीं किया गया है.

मरांडी ने इस मामले को “भारत में पहला मामला बताया जहां किसी मुख्यमंत्री ने विभाग का प्रभार संभालते हुए अपने नाम पर खनन पट्टा आवंटित किया”.

जब पूछा गया कि वह खनन पट्टे का मामला क्यों उठा रहे हैं जबकि इस मामले पर चुनाव आयोग की सिफारिश सार्वजनिक नहीं की गई है, तो सोरेन ने दिप्रिंट से कहा: “हमारे आरोप अभी भी बरकरार हैं. पट्टा आवंटन रिकॉर्ड में है, यह कोई आरोप नहीं है. एक मौजूदा मुख्यमंत्री, जो खनन विभाग के प्रमुख थे, ने अपने, अपनी पत्नी, अपने प्रेस सचिव और अपने स्थानीय प्रतिनिधि के नाम पर एक खनन पट्टा आवंटित किया. यह मामला बिल्कुल स्पष्ट है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि “मामला चुनाव आयोग और राज्यपाल के बीच है लेकिन सोरेन गलत काम करने के दोषी हैं और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए. यही आज हमारी पार्टी की मांग है.”

सोरेन ने पिछले साल चुनाव आयोग को संबोधित एक पत्र में अपने खिलाफ सभी आरोपों से इनकार किया था. उन्होंने कथित तौर पर लिखा, “सबसे पहले, मैं मई 2021 में मेरे द्वारा प्राप्त खनन पट्टे के आधार पर झारखंड विधानसभा का सदस्य होने के लिए मेरी कथित अयोग्यता के बारे में भाजपा के सभी आरोपों से इनकार करता हूं और इस पर संदेह प्रकट करता हूं.”

‘सरकार UCC पर लोगों के विचारों को शामिल करने को इच्छुक’

2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड की आबादी में एसटी की हिस्सेदारी लगभग 26.5 प्रतिशत है, और राज्य भाजपा जिन मुद्दों को उजागर कर रही है उनमें से एक है “आदिवासी आबादी में गिरावट”.

इसमें विशेष रूप से संथाल परगना डिवीजन में “बदलती जनसांख्यिकी” के बारे में बात की गई है, जिसमें गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ के छह जिले शामिल हैं, जो पश्चिम बंगाल के साथ सीमा साझा करते हैं.

इस फरवरी में, गृहमंत्री शाह ने राज्य की एक रैली में एक सभा में कहा कि सीएम सोरेन ने आदिवासियों की घटती आबादी पर आंखें मूंद रखी हैं, जबकि रघुबर दास ने “संथाल परगना डिवीजन में तेजी से बदलती जनसांख्यिकी” का हवाला देते हुए पिछले महीने वादा किया था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू किया जाएगा.

पार्टी प्रस्तावित यूसीसी पर भी सावधानी से आगे बढ़ रही है, जिसने झारखंड आदिवासी समुदाय के विरोध को भड़का दिया है. आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने इस महीने आगाह किया था कि “यूसीसी को आदिवासियों के परंपरागत कानूनों को कमजोर नहीं करना चाहिए”.

मरांडी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘सरकार लोगों के कल्याण के लिए कानून बना रही है.’

उन्होंने कहा, “जो कोई भी यूसीसी का विरोध कर रहा है, मैं उनसे अपील करता हूं कि वे अपनी चिंता लिखित रूप में दें. हमें सबसे पहले विरोध के बिंदु को जानना होगा. मैं इसे भाजपा आलाकमान और केंद्र को भेजूंगा,”

उन्होंने बताया कि विधि आयोग इस मुद्दे पर परामर्श कर रहा है और कानून पर संसदीय पैनल के अध्यक्ष सुशील मोदी ने आदिवासियों को इसके दायरे में शामिल नहीं करने का सुझाव दिया है.

मरांडी ने कहा, “यह दर्शाता है कि सरकार इस मामले पर पहले से कुछ तय नहीं किया है और लोगों के विचारों को समायोजित करने की इच्छुक है. पार्टी परामर्श के लिए भी तैयार है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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