बेंगलुरू: कर्नाटक में आगामी लोक सभा चुनावों के मद्देनज़र जनता दल (सेक्युलर) के संरक्षक एचडी देवेगौड़ा के बीजेपी के साथ गठबंधन करने के फैसले को लेकर पार्टी में अलग अलग विचार दिख रहे हैं. राज्य के पार्टी प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री सीएम इब्राहिम ने इसे लेकर विद्रोह की संभावना का ज़िक्र किया है.
इब्राहिम ने मंगलवार को दिप्रिंट से एक विशेष बातचीत में कहा, ”जेडी(एस) विधायक भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते हैं. या तो वे स्वतंत्र रहना चाहते हैं या वे इंडिया (कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी दलों के गठबंधन) के साथ जाना चाहते हैं. ऐसा ही माना जाता रहा है.”
उन्होंने कहा: “अगर कोई सेक्युलर स्टैंड नहीं है, तो मुसलमान साथ नहीं रहेंगे. सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, वोक्कालिगा भी पार्टी के साथ नहीं रहेंगे.”
इब्राहिम के अनुसार, कुमारस्वामी ने भाजपा के साथ गठबंधन करने का निर्णय लिया, गौड़ा ने “दबाव” में इसे स्वीकार कर लिया, और पार्टी के अन्य प्रमुख नेताओं को इस पूरे समीकरण से बाहर कर दिया गया.
दरअसल क्षेत्रीय पार्टी जेडी(एस) ने पहले भी भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन किया है और इस वक्त वह अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. 2023 के विधानसभा चुनावों में, पार्टी की सीटें 224 से घटकर 19 रह गईं और उसका वोट शेयर 2018 में 18 प्रतिशत से घटकर लगभग 13 प्रतिशत हो गया.
लेकिन चुनावी रूप से कमज़ोर हो जाना ही एक मात्र समस्या नहीं है. जेडी(एस) एक परिवार द्वारा चलाई जाने वाली पार्टी है, जिसमें गौड़ा के अपने परिवार से आठ से सदस्य सक्रिय रूप से राजनीति में हैं. राजनीति पर बारीकी से नज़र रखने वालों का कहना है कि परिवार के भीतर दरारें पार्टी के अन्य पहलुओं में भी छाने लगी हैं. भाजपा के साथ गठबंधन से अब उसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है.
‘देवेगौड़ा दबाव में’
22 सितंबर को, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक्स पर एक तस्वीर पोस्ट करते हुए घोषणा की कि जेडी(एस) औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हो गई है. इस दौरान नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ कुमारस्वामी और उनके बेटे, अभिनेता-राजनेता निखिल गौड़ा समेत अन्य नेता खड़े थे.
हालांकि, इस दौरान खास बात यह थी कि उनकी अनुपस्थिति में जेडी(एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा और राज्य प्रमुख इब्राहिम उपस्थित नहीं थे.
गठबंधन की घोषणा के तुरंत बाद, जेडी(एस) और भाजपा दोनों के खेमों में असंतोष की लहर दौड़ गई.
इब्राहिम के अनुसार, जेडी(एस) की अपनी रूल बुक में कहा गया है कि गठबंधन के फैसले पार्टी द्वारा लिए जाने चाहिए, न कि केवल विधायी विंग द्वारा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इब्राहीम ने पूछा, “यहां तक कि कुमार स्वामी के भाई एचडी रेवन्ना जो कि विधायक हैं और जेडी(एस) के एक मात्र सांसद प्रज्ज्वल (रेवन्ना) भी इसमें शामिल नहीं थे. निखिल (दिल्ली) गए हैं लेकिन किस हैसियत से?”
2006 में कुमारस्वामी ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ दिया और राज्य में पहली बार बीजेपी से हाथ मिलाया. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि देवेगौड़ा को तब गठबंधन मंजूर नहीं था, लेकिन इस बार उन्होंने इसे अपना आशीर्वाद दिया है. उनका कहना है कि इससे कांग्रेस और अन्य को उस पार्टी के साथ गठबंधन करने की पूर्व प्रधानमंत्री की “धर्मनिरपेक्ष” विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का मौका मिल गया है, जिसे “सांप्रदायिक” कहा जाता है.
हालांकि, इब्राहिम ने दिप्रिंट को बताया कि उनका मानना है कि 89 वर्ष के गौड़ा जो कि स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित हैं, वह इस फैसले में सच्चे भागीदार नहीं थे.
उन्होंने दावा किया, “देवेगौड़ा दबाव में हैं. वह अपने निर्णय स्वयं नहीं ले सकते. पहले वह स्वतंत्र थे लेकिन अब वह दूसरे पर निर्भर हैं. कुमारस्वामी सभी निर्णय ले रहे हैं.”
जेडी(एस) के भीतर दरार 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी देखी गई थी क्योंकि कुमारस्वामी और उनके भाई एचडी रेवन्ना पार्टी के भीतर वर्चस्व के लिए आमने-सामने थे.
विधायक रेवन्ना के बेटे प्रज्ज्वल संसद में हासन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि दूसरे बेटे सूरज एमएलसी पद पर हैं. उनकी पत्नी भवानी जो कि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हैं, ने हासन शहर से टिकट मांगा, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला.
कुमारस्वामी दो बार सीएम हैं और उनकी पत्नी पूर्व विधायक हैं. उनके बेटे निखिल ने 2019 के लोकसभा चुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव में असफलता हासिल की है.
पार्टी सूत्रों का दावा है कि जेडी(एस) के कई वरिष्ठ नेता कुमारस्वामी या गौड़ा परिवार के खिलाफ अपनी आवाज या चिंताएं उठाने की कोशिश करते हुए लड़ाई हार गए हैं.
लेकिन अब इब्राहिम ने एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है.
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‘एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी को फिर से बनाएं’
एक अनुभवी नेता, इब्राहिम जेडी(एस) में अपने मौजूदा कार्यकाल से पहले जनता पार्टी, कांग्रेस में भी रह चुके हैं. पूर्व राज्य और केंद्रीय मंत्री इब्राहिम की मुसलमानों के बीच अच्छी पैठ है और उन्हें लिंगायत संप्रदाय की गहरी समझ रखने के लिए जाना जाता है, जो अक्सर पवित्र ग्रंथों और इसके संस्थापक बसवन्ना की शिक्षाओं का हवाला देते हैं.
उन्होंने दावा किया कि उन्होंने जेडी(एस) के सभी 19 विधायकों से बात करना शुरू कर दिया है और उन्हें विश्वास है कि भाजपा के साथ गठबंधन नहीं होगा.
यदि ऐसा होता है, तो उन्होंने कहा, जेडी(एस) पुराने मैसूरु जिलों सहित अपने पारंपरिक गढ़ों में पकड़ खो देगा, और मुस्लिम मतदाता अपना समर्थन वापस ले लेंगे.
कुछ गठबंधनों के पार्टी के लिए विनाशकारी होने के उदाहरण मौजूद हैं. कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन बुरी तरह से गलत हो जाने के बाद 2019 में जेडी(एस) सिर्फ एक लोकसभा सीट पर सिमट गई, जिसके कारण दोनों पार्टियों के नेताओं का पलायन हुआ और 2019 में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार गिर गई.
जेडी(एस) पहले की अविभाजित जनता दल की एक शाखा है, और इब्राहिम का कहना है कि वह इसकी “धर्मनिरपेक्ष” विचारधारा को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रहे हैं.
“जनता पार्टी की मूल विचारधारा को बहुत नुकसान हुआ है. धर्मनिरपेक्ष का क्या मतलब है? भारतीय संविधान का मसौदा डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किया गया था. भाजपा ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को खत्म कर दिया है.’ क्या जेडी(एस) इसे स्वीकार करता है? अगर आपका गठबंधन है तो इसका मतलब है कि हमने इसे स्वीकार कर लिया है.”
2024 के विधानसभा चुनावों को बमुश्किल एक साल बचे हैं. इब्राहिम ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वह भारत गठबंधन के साथ एक अच्छा सौदा कर सकते हैं.
वह इस बात पर जोर देते हैं कि कांग्रेस इस गठबंधन का सिर्फ एक हिस्सा है क्योंकि ज्यादातर फैसले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ले रहे हैं.
“इंडिया के साथ जाने का मतलब कांग्रेस के साथ गठबंधन करना नहीं है. नीतीश कुमार हैं, ममता बनर्जी हैं, शरद पवार हैं, (एमके) स्टालिन हैं… कांग्रेस तो इसका एक हिस्सा मात्र है.”
इब्राहिम ने कहा कि उन्होंने अपने प्रयासों को एकजुट करने के लिए जनता दल (यूनाइटेड), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और पूर्ववर्ती जनता परिवार की अन्य शाखाओं के साथ बातचीत भी शुरू की है.
उन्होंने दावा किया कि जेडी(एस) की केरल और महाराष्ट्र इकाइयां भी भाजपा के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं.
उन्होंने कहा, “पुरानी जनता पार्टी को वापस लाने के लिए हम जल्द ही अहमदाबाद या बेंगलुरु में एक बैठक करेंगे- जो लोग बीजेपी के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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