गुरुग्राम: मार्च में तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राजस्थान के जाट नेता जगदीप धनखड़ ने दिवंगत चौधरी देवी लाल को अपना मार्गदर्शक बताते हुए उनकी खूब तारीफ की थी. वकील से नेता बने धनखड़ ने कहा था कि जब देवी लाल ने उन्हें ‘प्लीडर’ (वकील) के ‘पी’ को हटाकर ‘लीडर’ बनने की सलाह दी, तभी से उनकी राजनीतिक यात्रा ने एक नया मोड़ लिया.
इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है कि जब धनखड़ ने सोमवार रात राज्यसभा के मानसून सत्र के पहले दिन की अध्यक्षता करने के बाद स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अचानक इस्तीफा दिया, तो हरियाणा की कई जाट खाप पंचायतों और देवी लाल के परिवार ने उनके प्रति सहानुभूति जताई.
देवी लाल के पोते और इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला ने धनखड़ के इस्तीफे को एक “साज़िश” बताया. उन्होंने कहा कि धनखड़ ने किसानों से किए गए केंद्र सरकार के वादों को याद दिलाया था, इसी वजह से उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया.
दिसंबर में मुंबई के एक कार्यक्रम में जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से यह सवाल पूछा कि किसानों से किए गए वादों का क्या हुआ, तब चौहान उनसे पहले भाषण दे चुके थे.
अभय सिंह चौटाला का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने मिलकर धनखड़ से इस्तीफा दिलवाया.
मंगलवार को अभय चौटाला ने एक्स पर लाइव आकर कहा कि मुंबई में कृषि अनुसंधान परिषद के कार्यक्रम में जो सवाल धनखड़ ने पूछे, उसी की वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़ा.
इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के नेता अभय सिंह चौटाला ने गुरुवार को दिप्रिंट से कहा कि किसानों के पक्ष में बोलने वाले धनखड़ को हटाने के लिए बीजेपी सरकार ने साज़िश रची थी.
जिसने खेत में हल चलाया हो वो जब संसद में सवाल करता है तो कुर्सियाँ काँप ही जाती हैं। एक किसान का बेटा जब देश के उच्चतम संवैधानिक पद पर बैठकर सरकार से पूछता है “किसानों से जो वादे किए थे उन्हें निभाया क्यों नहीं” तो जवाब की जगह इस्तीफे की साजिश रच दी जाती है…
इस किसान विरोधी… pic.twitter.com/4jBEcJC7fJ
— Abhay Singh Chautala (@AbhaySChautala) July 22, 2025
उन्होंने कहा, “बीजेपी किसी ऐसे व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती जो किसानों और उनकी भलाई की बात करे. धनखड़ जी ने चौधरी देवी लाल से राजनीति सीखी है और हमेशा किसानों की भलाई की बात करते हैं. उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया.”
जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता और देवी लाल के परपोते दुष्यंत चौटाला ने भी धनखड़ के इस्तीफे को देश और हरियाणा के लिए एक बड़ी क्षति बताया.
बुधवार को मीडिया से अपनी छोटी बातचीत में दुष्यंत ने धनखड़ के इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारण को नकार दिया और कहा कि असली वजह जल्द सामने आ जाएगी.
दुष्यंत 2019 से 2024 तक हरियाणा सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं, जब उनकी पार्टी JJP बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. मार्च 2024 में बीजेपी ने JJP से गठबंधन तोड़ दिया था.
दुष्यंत के पिता अजय सिंह चौटाला ने याद किया कि वे 1993 से 1998 तक राजस्थान विधानसभा में धनखड़ के साथ विधायक थे. वे नोहर से और धनखड़ किशनगढ़ से चुने गए थे.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमारे बीच राजनीतिक ही नहीं पारिवारिक रिश्ता भी है.”
अजय चौटाला ने भी “स्वास्थ्य कारणों” की बात को खारिज करते हुए कहा कि “सामान्य राजनीतिक समझ रखने वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह इस्तीफा क्यों हुआ.” उन्होंने कहा कि धनखड़ के हटने से हरियाणा के लोग निराश हैं, क्योंकि वे उन्हें एक जाट नेता के तौर पर उच्च संवैधानिक पद पर देख रहे थे.
वहीं, देवी लाल के छोटे बेटे रणजीत सिंह ने इस पूरे मामले को लेकर थोड़ी अलग और संतुलित राय रखी.
सिंह, जिन्होंने 2024 का लोकसभा चुनाव हिसार से बीजेपी टिकट पर लड़ा था और बाद में राज्य विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरे, उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति के तौर पर जगदीप धनखड़ को ज़्यादा संयम बरतना चाहिए था.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि किसानों को लेकर सरकार की नीतियों की आलोचना करना, पिछले महीने जयपुर में सभी दलों के पूर्व विधायकों की बैठक बुलाना और विपक्षी नेताओं से बार-बार मिलना — ये सब एक उपराष्ट्रपति को शोभा नहीं देता क्योंकि यह एक औपचारिक और प्रतीकात्मक पद होता है.
सिंह ने कहा कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या भारत के मुख्य न्यायाधीश जैसे उच्च पदों पर बैठे लोग आमतौर पर सभी से थोड़ी दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन धनखड़ ने ऐसा नहीं किया.
हरियाणा में जाट खापों के प्रतिनिधियों, जैसे धनखड़ खाप के अध्यक्ष युद्धबीर सिंह धनखड़ और कंडेला खाप के प्रमुख टेक राम कंडेला के बीच 70 वर्षीय धनखड़ के प्रति समर्थन साफ तौर पर देखा जा सकता है.
युद्धबीर सिंह ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने एक “राजनीतिक चाल” के तहत धनखड़ को हटाया है. उन्होंने कहा, “यह पार्टी (बीजेपी) इस समुदाय से बहुत दूर होती जा रही है.” साथ ही चेतावनी दी कि इस इस्तीफे के असर भविष्य में देखने को मिलेंगे.
युद्धबीर बोले, “हमारे लिए वे (धनखड़) गोती भाई हैं (यानी एक ही गोत्र के भाई). उनके इस्तीफे से सभी खापों और जाट समुदाय में गुस्सा है. जब उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया था, तो उन्हें कार्यकाल पूरा करने देना चाहिए था. उनके दफ्तर को सील करने जैसी खबरें सोशल मीडिया पर चल रही हैं, जो समुदाय को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रही हैं.”
धनखड़ को अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति बनाया गया था और उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था.
वहीं टेक राम कंडेला ने कहा कि स्वास्थ्य कारण तो बस एक बहाना है, असली वजह कुछ और है.
कई अन्य जाट नेताओं ने भी यही बात दोहराई कि धनखड़ की संसदीय गतिविधियों में सक्रियता और अगले दो दिनों के निर्धारित कार्यक्रम इस बात से मेल नहीं खाते कि उनकी तबीयत खराब है.
जाट समुदाय की प्रतिक्रिया दिलचस्प है, क्योंकि उनका धनखड़ से रिश्ता पहले बहुत उलझा हुआ रहा है. दिसंबर 2023 में जब विपक्षी सांसदों ने संसद में उनका मज़ाक उड़ाया था, तो ज़्यादा खाप या जाट नेता उनके समर्थन में आगे नहीं आए थे. उस समय धनखड़ ने इसे अपने समुदाय का अपमान बताया था.
इसके अलावा, 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी नीतियों के प्रति उनका झुकाव भी उन्हें अपने समुदाय से दूर कर गया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘तुगलकी SIR’ को लेकर बिहार चुनाव बहिष्कार पर INDIA के विचार पर कांग्रेस ने कहा – सभी विकल्प खुले हैं