कोलकाता: पश्चिम बंगाल में सोमवार को दुर्गा पूजा के पहले दिन की तस्वीर पिछले साल की तुलना में एकदम उलट नजर आ रही है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए कोई भी वर्चुअल संबोधन नहीं हुआ और ना ही भाजपा के वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं के कोलकाता दौरे का कोई कार्यक्रम ही बना, और ऐसा लगता है कि पार्टी की राज्य इकाई ने बंगाल के इस सबसे शोर-शराबे वाले सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन के अवसर पर चुप्पी साध ली है.
पिछले साल, विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले होने वाली दुर्गा षष्ठी को भाजपा ने पूरे धूम-धाम से मनाया था, ‘कमल के बिना कोई दुर्गा पूजा नहीं’ (कमल इस पार्टी का प्रतीक है) जैसे नारे गढ़े थे और राजधानी कोलकाता सहित अन्य जिलों के कई पूजा आयोजन समितियों में भी इसने प्रतिनिधित्व किया था.
साल्ट लेक स्थित ईस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर में पार्टी द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा का उद्घाटन करने से पहले बंगाली धोती-कुर्ता पहने हुए मोदी ने बांग्ला में अपना भाषण शुरू करते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था. पूजा में मशहूर हस्तियों के प्रदर्शन के साथ आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल था.
लेकिन अब, ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के हाथों करारी शिकस्त मिलने के करीब पांच महीने बाद लगता है कि भाजपा का मां दुर्गा से कोई लेना-देना ही नहीं है, और इस पूजा उत्सव पर यह पूरी तरह से मौन दिखाई देती है.
अब जरा इसकी तुलना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा पूजा-पंडालों के उद्घाटन की होड़ से करें! तृणमूल के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने, पिछले पांच दिनों में, कोलकाता में सौ से अधिक पंडालों का उद्घाटन किया है.
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि तृणमूल ने ‘दुर्गा पूजा को एक तरह के पार्टी कार्यक्रम में बदल दिया है’, और यही कारण है कि उनके स्वयं के उत्सव में चुप्पी का माहौल हैं. मगर सत्तारूढ़ दल के नेता इस दावे पर पलटवार करते हुए कहते हैं कि भाजपा ने बंगाल की दुर्गा पूजा और उसकी संस्कृति को कभी भी समझा ही नहीं और इस त्योहार के लिए उसका सारा उत्साह सिर्फ उसके ‘निहित चुनावी हितों’ को साधने का एक तरीका मात्र था.
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‘कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए इससे बच रहे हैं’
भाजपा ने इस साल भी ईजेडसीसी में दुर्गा पूजा का आयोजन किया है और बंगाल इकाई के नवनियुक्त प्रमुख और सांसद सुकांत मजूमदार ने इसका उद्घाटन किया. लेकिन इसके अलावा, अन्य पूजा समितियों में पार्टी का शायद ही कोई प्रतिनिधित्व है, और इससे भी ज्यादा मार्के की बात है के पिछले साल इन भूमिकाओं को निभाने वाले कई नेता, जैसे तृणमूल के पूर्व नेता सब्यसाची दत्ता और मुकुल रॉय, वापस ममता बनर्जी के खेमे में लौट आए हैं.
कुछ शीर्ष भाजपा नेताओं ने कहा कि पूजा पंडालों के आयोजकों को सत्ताधारी पार्टी ने ‘डराया’ और उनसे कहा कि वे अपने कार्यक्रमों में भाजपा कार्यकर्ताओं को शामिल न करें.
भाजपा के बंगाल प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि पार्टी के नेता जानबूझकर अपने कार्यकर्ताओं की (सुरक्षा की) खातिर ही दुर्गा पूजा में सक्रिय भागीदारी से बच रहे हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया ‘हमें नादिया और कोलकाता सहित कुछ क्षेत्रों से फोन आ रहे हैं. लेकिन मैंने इससे परहेज किया. अगर हम में से कोई भी इस तरह की पूजा में शामिल होता है, तो बाद में आयोजकों को प्रताड़ना का सामना करना पड़ेगा. चुनाव के बाद की हिंसा के कारण हमारे कार्यकर्ता वैसे ही हताश हैं. हम नहीं चाहते कि तृणमूल की ओर से कोई और ‘दंगा’ हो. हम चाहते हैं कि हमारे लोग फिलहाल सुरक्षित रहें. सही समय आने पर हम वहां जाएंगे,’ .
बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने तो तृणमूल पर दुर्गा पूजा को राजनीतिक कार्यक्रम में बदलने का आरोप भी लगाया.
उन्होंने दावा किया, ’बंगाल में दुर्गा पूजा अब कोई धार्मिक या सामाजिक त्योहार नहीं रह गई है. राज्य सरकार पूजा आयोजकों को 50,000 रुपये की वित्तीय सहायता वितरित करती है. तृणमूल कई पूजाओं की ब्रांडिंग भी करती है. पिछले साल हर पूजा समिति को अपने पंडाल के परिसर में मुख्यमंत्री का बड़ा सा कट आउट लगाने को कहा गया था. इस साल, उन्हें केंद्र में भाजपा सरकार की आलोचना करने वाले विषयों को दर्शाने के लिए कहा गया था. इस राज्य में दुर्गा पूजा अब एक राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित सत्तारूढ़ दल का कार्यक्रम बन गयी है.‘
भाजपा के बंगाल के सह-प्रभारी अमित मालवीय का आरोप है कि, ‘बंगाल ने चुनाव के बाद जिस तरह की प्रतिशोधात्मक हिंसा देखी है, उसमें यह एकदम स्वाभाविक है कि पूजा पंडाल के आयोजकों और पूजा समितियों के पास केंद्र सरकार और उसकी नीतियों को स्याह रोशनी में पेश करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. वे यह सब बस खुद को सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी की नजरों में प्रशंसा का पात्र बनाने के लिए कर रहें है. यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुर्गा पूजा जैसे उत्सव के सामाजिक-धार्मिक रूप से पावन अवसर पर राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है. समूचा बंगाल आज भय और दमनकारी पुलिस राज्य के अंधेरे साये तले जी रहा है.’
हालांकि, कुछ अन्य भाजपा नेताओं ने कहा कि पार्टी ने महामारी के कारण पूजा की व्यवस्था और गतिविधियों को लो-प्रोफाइल रखने और कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 1 अक्टूबर की दिए गए आदेश का पालन करने का फैसला किया है. इसके छह दिन बाद, अदालत ने इन प्रतिबंधों में कुछ ढील दी है.
एक वरिष्ठ नेता, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘हम हाईकोर्ट के आदेश का पालन कर रहे हैं. हम अभी भी महामारी के दौर में हीं हैं. लेकिन बंगाल में न कभी कोई महामारी थी और न अब है. लोग मरे, लेकिन किसी ने कोई परवाह नहीं की. इस साल, सीएम ने सभी प्रतिबंधों में ढील देकर लोगों को एक पंडाल से दूर पंडाल जाने के लिए प्रोत्साहित किया.’
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‘भाजपा को दुर्गा पूजा से कभी कोई लगाव नहीं था’
भाजपा नेताओं के आरोपों और दावों पर प्रतिक्रिया करते हुए, तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने कहा कि भाजपा दुर्गा पूजा और इससे जुड़ी आम बंगालियों की भावनाओं को समझने में विफल रही है.
दमदम के इस लोकसभा सांसद ने कहा, ‘दुर्गा पूजा मुख्य रूप से एक बंगाली त्योहार है. पिछले साल, बीजेपी ने इसे बड़े पैमाने पर मनाने की कोशिश की, जिसमें पीएम मोदी और अन्य वरिष्ठ नेता भी शामिल थे. लेकिन चुनाव के बाद वे बुरी तरह से निराश हो गए और उन्होंने अपनी रुचि खो दी. वे बंगाली मानस से कभी नहीं जुड़ ही नहीं सके. दुर्गा पूजा के लिए उनके मन में कभी कोई प्यार नहीं था; यह उनके लिए एक राजनीतिक कार्यक्रम भर था.’
तृणमूल के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने भी तृणमूल द्वारा दुर्गा पूजा समारोहों पर कब्जा किये जाने के बारे में भाजपा के दावों को खारिज कर दिया.
घोष का दावा है, ‘बंगाल के लोगों ने दीदी (ममता बनर्जी) में मां दुर्गा को देखा है. उन्होंने उन सब को भाजपा नामक फासीवादी ताकत से बचाया है. उन्हें दीदी पर किसी और से कहीं ज्यादा भरोसा है. इसलिए, वे उन्हें अपनी पूजा का उद्घाटन करने के लिए बुला रहे हैं. भाजपा लोगों के साथ ऐसा संबंध विकसित करने में विफल क्यों रही? उनके शीर्ष नेता कहां है? मुझे लगता है उनके (मोदी) के पास अब बंगाल और बंगालियों के लिए कोई समय नहीं है.’
वे कहते हैं, ‘वे (भाजपा वाले) वोट पाखी (ऐसे मौसमी पक्षी जो तभी आते हैं जब उन्हें वोट चाहिए) हैं. उनका हिंदुत्व और मां दुर्गा के लिए उनका प्यार, सभी कुछ राजनीतिक स्वार्थ और वोट की खातिर है.पिछले साल, उनके पास कुछ आयोजक और क्लब थे, लेकिन अब वे सब-के-सब तृणमूल के पाले में वापस आ गए हैं. तो अब वे करेंगे क्या? वे सिर्फ दिखावे के लिए तृणमूल पर आरोप लगाएंगे.’
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