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Saturday, 20 April, 2024
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SUV तले रौंदा गया किसान, नज़रबंदी शिविर में दुर्गा- कोलकाता में पूजा की मुख्य थीम है सियासत

2011 में के सत्ता में आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस, दुर्गा पूजा कमेटियों में अपने प्रभाव और प्रभुत्व के लिए जानी जाती रही है, जिनकी एक कसी हुई कमांड और कंट्रोल संरचना होती है.

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कोलकाता: जब बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में दुर्गा पूजा शुरू होती है, तो लोग आमतौर पर पंडालों की थीम के ज़रिए, अपनी रचनात्मकता का इज़हार करते हैं.

पिछले साल कोविड-19 की वजह से उत्सव का स्तर हल्का रहने के बाद, रचनात्मकता की वो अभिव्यक्ति वापस आ गई है, जिसमें राजनीति और सामयिक विषयों के काफी हवाले दिए गए हैं.

एक पंडाल में, दुर्गा माता भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर एक नज़रबंदी शिविर के अंदर इंतज़ार कर रही हैं; एक दूसरे पंडाल में एक एसयूवी किसानों को रौंद रही है, जबकि उनके पैरों में पत्थर के चिप्स भरे हुए थे.

A puja pandal in Kolkata pays tribute to the farmers' protest | ANI
कोलकाता में एक पूजा पंडाल में किसानों के विरोध को श्रद्धांजलि | एएनआई

कोलकाता में दुर्गा पूजाओं को, जिनमें से अनेकों के पीछे तृणमूल कांग्रेस की बड़ी हस्तियां होती हैं, कभी पैसे की तंगी नहीं से दोचार नहीं होना पड़ता, हालांकि महामारी के पहले साल 2020 में, उनकी आय में कमी ज़रूर आई थी.

इस साल, कुछ प्रमुख पूजाओं के बजट, पिछले साल के मुकाबले 50 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं.

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पंडालों की थीम में राजनीतिक रंग भी साफ नज़र आता है- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), मोदी सरकार के क़ानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन, और लखीमपुर खीरी घटना.

कई पूजा कमेटियों ने दिप्रिंट को बताया, कि पहले राज्य का कोई मंत्री, सांसद, या विधायक जिस पूजा को स्पॉन्सर करता था, कोविड-19 से उसका बजट औसतन 40-50 लाख हुआ करता था.

क़रीब 2,500 पूजा कमेटियां हैं जो पुलिस और प्रशासन के साथ पंजीकृत हैं. शहर की तमाम पूजा समितियों के छाता संगठन फोरम फॉर दुर्गा पूजा के महासचिव, शाश्वता बासु ने कहा कि पिछले साल की गिरावट के बाद, इस साल बजट बढ़ गए हैं.

बासु ने कहा, ‘पिछले साल पंडालों के बजट में गिरावट देखी गई थी, और आयोजक क़रीब 10-12 लाख रुपए के प्रायोजक जुटा पाए थे. इस साल स्थिति धीरे धीरे बेहतर हो रही है, और बहुत सी समितियां ऐसी हैं जिनके बजट 30 लाख रुपए से अधिक हैं’.


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तृणमूल की छाप

2011 में के सत्ता में आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस, दुर्गा पूजा कमेटियों में अपने प्रभाव और प्रभुत्व के लिए जानी जाती रही है, जिनकी एक कसी हुई कमांड और कंट्रोल संरचना होती है.

पिछला साल, कोलकाता के बरीशा क्लब में, जो पूजा सीज़न में एक प्रमुख आकर्षण होता है, दुर्गा की एक प्रतिमा थी जिसमें देवी को, अपना बच्चा ले जा रही एक प्रवासी मां के रूप में दिखाया गया था, जो कोविड लॉकडाउन के बीच हज़ारों प्रवासी मज़दूरों के संघर्ष को एक श्रद्धांजलि थी.

इस साल, बेहाला के बरीशा क्लब में एनआरसी को थीम बनाया गया है. कमेटी ने नज़रबंदी शिविरों में मौजूद उन लोगों की दुर्दशा को दिखाया है, जो ‘निर्वासित किए जाने के इंतज़ार में’ हैं. इसके लिए भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास बसे गांवों को फिर से बनाया गया है.

क्लब की पूजा कमेटी के अध्यक्ष और एक स्थानीय तृणमूल पार्षद सुदीप पॉली ने दिप्रिंट से कहा, ‘मां दुर्गा का एक और नाम ढाकेश्वरी है. क़रीब 800 साल पहले राजा बल्लाल सेन, एक जंगल से उसकी प्रतिमा लेकर आए, और अविभाजित बंगाल के एक गांव में, उसे देवी के तौर पर स्थापित कर दिया. वो गांव अब बांग्लादेश में है. बांग्लादेश के राजधानी शहर ढाका का नाम ढाकेश्वरी देवी के नाम पर है. लेकिन विभाजन के दौरान परिवार गांव को छोड़कर, प्रतिमा के साथ बंगाल आ गया. वो प्रतिमा अब कुमारतुली के एक मंदिर में स्थापित है.

‘हमारे कलाकारों ने मां दुर्गा को अपने बच्चों के साथ, एक नज़रबंदी शिविर के अंदर इंतज़ार करते दिखाया गया है, क्योंकि मोदी सरकार की एनआरसी नीति उसके लिए, अपने घर और अपने देश को छोड़ने का ख़तरा, फिर से पैदा कर रही है’.

कोलकाता की पूजा समितियों में 2018 के बाद से, किसी न किसी रूप में एनआरसी थीम रखी गई है.

पूजा की एक और पसंद दम दम पार्क के भारत चक्र क्लब ने ऐसा पंडाल किया है, जिसमें मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों के खिलाफ, एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को दर्शाया गया है. रविवार की लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद जिसमें आठ लोग मारे गए, क्लब ने अपने पंडाल को अपडेट किया, और एक किसान को एक एसयूवी तले रौंदे जाते हुए दिखाया.

तृणमूल के प्रदेश महासचिव कुनाल घोष का कहना है कि ये थीम्स बंगाल की ‘राजनीतिक चेतना’ को दर्शाती हैं. उन्होंने कहा, ‘हम राजनीतिक रूप से एक जानकार और जागरूक समुदाय हैं. हमने बीजेपी को पराजित किया, और हमारी कला भी उनकी जन-विरोधी नीतियों की पोल खोलती है’.

पूर्व पश्चिम बंगाल बीजेपी प्रमुख दिलिप घोष ने, जो अब पार्टी के एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, दावा किया कि कोलकाता में दुर्गा पूजा का ‘पूरी तरह राजनीतिकरण हो गया है’. उन्होंने आगे कहा, ‘ये उत्सव तृणमूल कांग्रेस के कार्यक्रम में तब्दील हो गया है. पूजा समितियों को राजनीतिक आदेशों का पालन करना पड़ता है, वरना उन्हें पैसा नहीं मिलेगा’.


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(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 

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