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Thursday, 25 April, 2024
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दक्षिणपंथी झुकाव या फिर हिंदुओं को लुभाने की कोशिश! क्या है केजरीवाल की अयोध्या यात्रा, दिवाली पूजा के पीछे का असल मकसद?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आप पार्टी द्वारा हाल ही में भाजपा के 'जय श्री राम' वाला नारे को अपनाया जाना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के खिलाफ उनकी पहले की सार्वजनिक टिप्पणी के बिल्कुल विपरीत लगता है.

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नई दिल्ली: पिछले गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडल के अन्य सहयोगियों ने शहर के त्यागराज स्टेडियम में एक भव्य पूजा समारोह के आयोजन के साथ दिवाली मनाई. इस समारोह में एक पंडाल बनाया गया था जो अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की प्रतिकृति जैसा था.

दिवाली के आने के कुछ दिनों पहले से हीं दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस पूजा का जोरदार प्रचार किया. शहर के निवासियों को यह सूचित किया गया कि इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा, और उन्हें अपने-अपने घरों से इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित भी किया गया. एफएम चैनलों पर जमकर चले इस विज्ञापन केजरीवाल का सम्बोधन ‘जय श्री राम’- एक ऐसा अभिवादन जो हाल के वर्षों में भाजपा का पर्याय बन गया है – के नारे के साथ समाप्त हुआ और साथ ही उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि दिल्ली पर हमेशा ‘राम जी का आशीर्वाद’ बना रहेगा.

हालांकि इस पूजा ने अपने आप में लोगों का ज्यादा ध्यान आकर्षित नहीं किया है – आखिरकार, रामायण में दीवाली को राम-सीता की अयोध्या वापसी के उत्सव के रूप में व्यापक रूप से दर्शाया गया है – एक और तथ्य यह भी है कि इससे पहले दिल्ली सरकार ने बुजुर्गों के लिए सरकार द्वारा करवाई जा रही मुफ्त तीर्थ यात्रा योजना के तहत आने वाले स्थानों में अयोध्या को भी शामिल कर लिया है. इस सब से आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा एक ऐसे देवता से समर्पित भाव से खुद को जोड़ने का सतत प्रयास दिखता है, जो लम्बे समय से भाजपा के राजनीतिक नैरेटिव का प्रतीक रहे हैं. साथ ही इसने केजरीवाल द्वारा खुद को एक राम भक्त के रूप में पेश करने के अथक प्रयासों की अनदेखी को मुश्किल बना दिया है.

अयोध्या के लिए मुफ्त तीर्थयात्रा योजना की घोषणा सीएम केजरीवाल द्वारा पिछले महीने राम मंदिर की नगर की अपनी यात्रा के तुरंत बाद की गई थी. विदित हो कि 26 अक्टूबर को राम मंदिर स्थल पर पूजा-अर्चना करने के बाद, केजरीवाल ने और अधिक तीर्थयात्रियों को इस पवन पूजा स्थल पर लाने की कसम खाई थी, और साथ ही उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की थी कि उन्होंने भी मंदिर निर्माण के लिए दान दिया है.

इससे पहले, सितंबर महीने में, आप ने अगले साल के यूपी विधानसभा चुनावों हेतु औपचारिक रूप से अपने अभियान की शुरुआत अयोध्या से ही की थी, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्य सभा सांसद संजय सिंह, ने राम जन्मभूमि और अयोध्या में हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना की थी. सिसोदिया को यह कहते हुए भी उद्धृत किया गया था कि ‘राम राज्य शासन का सबसे अच्छा स्वरूप था’ और यह भी कि सत्ता में आने पर आप पुरे यूपी में ‘राम राज्य’ को स्थापना करेगी.

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लेकिन, जैसा कि कुछ भाजपा नेताओं ने बड़ी शीघ्रता से इस पार्टी को याद दिलाया है, आप द्वारा प्रभु श्रीराम के प्रति हाल-फ़िलहाल ही में दिखाई देने वाली भक्ति और राम मंदिर का मुद्दा उठाना इस विषय पर उसके अपने ही कई पुराने बयानों के एकदम उलट है.

साल 2014 में कानपुर में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए, केजरीवाल ने कथित तौर पर कहा था कि उनके ‘राम किसी मस्जिद के मलबे के ऊपर बने मंदिर में निवास नहीं कर सकते’. 2014 की एक पुरानी फेसबुक पोस्ट में भी केजरीवाल को यही बात कहते हुए उद्धृत किया गया है, यहां अंतर सिर्फ इतना था उन्होंने यह बयान देने के लिए अपनी नानी का श्रेय दिया था.

केजरीवाल अकेले आप नेता नहीं हैं जिन्होंने अतीत में राम मंदिर निर्माण के खिलाफ कथित तौर पर आवाज उठाई थी. साल 2018 में, मनीष सिसोदिया ने भी तत्कालीन रूप से विवादित स्थल पर एक विश्वविद्यालय के निर्माण की बात उठाई थी.

केजरीवाल द्वारा पिछले महीने राम मंदिर का दौरा करते वक्त संबित पात्रा जैसे भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर कई पुराने वीडियो साझा किए थे, जिनमें केजरीवाल ने कथित तौर पर हिंदुत्व को ‘चुनावी मसले’ के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भाजपा की आलोचना की थी .

पात्रा ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘आज केजरीवाल जी ने उनकी ‘नानी’ को आहात किया है… सिर्फ उनकी नानी ही नहीं… बल्कि जवाहरलाल नेहरू भी परेशान होंगे… ‘सर जी’, इस तरह अपनों से बड़ों का अपमान करना सही नहीं है!’ आप नेता ने पूर्व में कथित तौर पर अपने द्वारा दिए गए बयान में कहा था कि कभी-कभी उन्हें आश्चर्य होता है कि क्या भारत का विकास संभव हो सकता था, अगर देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के बजाय मंदिरों का निर्माण किया होता.

भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने भी राम मंदिर यात्रा के लिए दिल्ली के सीएम को निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वे ‘अपने पापों को धोने की कोशिश कर रहे हैं’.

हालांकि राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि आम आदमी पार्टी भी बस वही सब कर रही है जो देश के अधिकांश अन्य राजनीतिक दल कर रहे हैं. देश में फ़िलहाल छायी हिंदुत्व की राजनीति की मजबूत लहर को ध्यान में रखते हुए ये सभी अपने-आप को हिंदू भावनाओं के प्रति सहानुभूति रखने वालों के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं.

दिप्रिंट ने आप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज और इसके मीडिया समन्वयक विकास योगी से फोन कॉल और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से संपर्क किया और यह समझने की कोशिश की कि वे उनकी हाल की राम भक्ति के पीछे का कारण क्या है? लेकिन इस खबर के प्रकाशन तक उनकी कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई थी.

भाजपा की पिच पर आप कर रही है बैटिंग

प्रयागराज स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर और जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार बद्री नारायण ने इस बारे में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती का उदाहरण दिया, जिन्होंने कहा है कि अगर अगले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सत्ता में वापस आती है तो वह राज्य की वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा अयोध्या, वाराणसी जैसे धार्मिक महत्व के स्थानों पर किए गए कार्यों में रुकावट नहीं आने देने का वादा करती हैं. उन्होंने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा वाराणसी में आयोजित एक रैली के दौरान मां दुर्गा का आह्वान करने और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के हालिया मंदिर दौरे की ओर इशारा करते हुए बताया कि कैसे आप पार्टी भी इसी हिंदुत्ववादी कथानक् में फिट होने की कोशिश कर रही है.


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भाजपा की कट्टर आलोचक ममता बनर्जी को भी इस साल के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले चंडी पाठ करते हुए देखा गया था.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के राजनीतिक विश्लेषक और प्रोफेसर संजय कुमार ने इसे एक प्रकार की राजनीतिक रणनीति बताया.

उन्होंने कहा, ‘क्रिकेट की भाषा में कहे तो यह भाजपा की पिच पर खेलने और उसकी चुनावी विचारधारा को हाईजैक करने (उड़ा ले जाने) की कोशिश के सामान है.’ उनके अनुसार, ‘आप का उद्देश्य, ‘हिंदू वोट बैंक को, विशेष रूप से हिंदी भाषी क्षेत्र में, इस बारे में आश्वस्त करना है कि वे हिंदू भावनाओं के प्रति सहानुभूति रखते हैं और हिंदू विरोधी नहीं हैं’.

उन्होंने कहा, ‘आप देश में अपनी राजनैतिक उपस्थिति का विस्तार करना चाहती है और वह ऐसा (एक धर्मनिष्ठ हिंदू छवि पेश करना) न सिर्फ 2022 के विधानसभा चुनावों को बल्कि 2024 के संसदीय चुनावों को भी ध्यान में रखते हुए कर रही है.’

कुमार ने कहा कि भाजपा का विरोध करने वाली पार्टियों ने 2019 के चुनावों के बाद हिंदुत्व की राजनीति के प्रभुत्व को स्वीकार करना शुरू कर दिया था. कुमार कहते हैं ‘2014 और 2019 के बीच, अधिकांश राजनीतिक दल भाजपा की आक्रामक हिंदुत्ववादी राजनीति का विरोध ही कर रहे थे, क्योंकि उनका मानना था कि इस तरह की राजनीति की ‘शेल्फ लाइफ’ (उपयोगिता अवधि) बहुत लंबी नहीं है.लेकिन 2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा को मिली भारी जीत ने अधिकांश राजनीतिक दलों को इस बारे में आश्वस्त कर दिया है कि यह (हिंदुत्ववादी राजनीति) भारतीय राजनीति में कम से कम अगले एक दशक के लिए सबसे महत्वपूर्ण नैरेटिव होने जा रहा है, और इसलिए उन सब ने अपने आप को हिंदू विरोधी नहीं होने के रूप में पेश करने के लिए व्यग्र कर दिया.‘

हालांकि, आप द्वारा भाजपा के सबसे अधिक जाने-माने हिंदुत्व के प्रतीक – श्रीराम – को अपनाना हाल-फ़िलहाल की घटना है, फिर भी यह पार्टी और इसके मुखिया केजरीवाल पिछले कुछ समय से अपने धार्मिक भक्ति भाव का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करते रहे हैं. पिछले साल के दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले, केजरीवाल ने सार्वजानिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया था और यह भी कहा था कि वह कनॉट प्लेस इलाके में स्थित हनुमान मंदिर में नियमित रूप से जाते रहते हैं.

इसी तरह हालांकि इस साल सितंबर में दिल्ली सरकार ने गणेश चतुर्थी के सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया था, फिर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने सहयोगियों के साथ गणेश पूजा की थी और लोगों को वर्चुअल रूप से इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था.

पिछले साल के दिल्ली दंगों के बाद भी अपने शुरूआती ख़ामोशी के लिए केजरीवाल सरकार पर ‘नरम-हिंदुत्ववादी रवैया’ अपनाने का आरोप लगते हुए इसके आलोचना की गई थी और इस पर सवाल खड़े किये गए थे, हालांकि बाद में पार्टी ने भाजपा पर इस हिंसा का ‘कथानक गढ़ने‘ का आरोप लगाया था

क्या असल आम आदमी पार्टी सामने आएगी?

एक ओर जहां बद्री नारायण को लगता है कि आम जनता राम मंदिर के खिलाफ आप के पहले के बयानों पर ध्यान नहीं देगी – उनके अनुसार ‘लोगों की राजनैतिक याददाश्त कम होती है’ – इस बारे में कुमार के विचार थोड़े से अलग हैं.

कुमार कहते हैं, ‘लोग इसे साफ-साफ उसी रूप में देख सकते हैं जो कि यह वास्तव में है – एक चुनावी चाल. लेकिन मुझे लगता है कि फ़िलहाल के लिए आप का लक्ष्य बस इतना सा ही है कि भले ही उसे इन सब से कोई ख़ास फायदा न हो, मगर कम से कम उन्हें हिंदू विरोधी नहीं माना जाना चाहिए.’

इस बीच, कांग्रेस नेताओं सहित आप के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने पार्टी की ‘वैचारिक स्थिरता की कमी’ पर सवाल उठाया है.

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, ‘एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसे अभी भी वे उम्मीदों याद हैं जो आम आदमी पार्टी ने प्रतिनिधित्व वाली राजनीति के अपने शुरुआती दौर में जगाई थीं; इसके द्वारा अपने पुराने आदर्शवाद को गैर-सैद्धांतिक कुटिलता (सैनिसिस्म) से प्रतिस्थापित करते हुए देखना वास्तव में निराशाजनक है. क्या आम आदमी पार्टी हमें बता सकती है कि वे सत्ता में बने रहने के अलावा और किस सिद्धांत के लिए खड़े हैं अथवा किसमें विश्वास करते हैं?’

इस बीच, कुछ भाजपा नेताओं और आरएसएस के समर्थकों का कहना है कि राम और भारतीय संस्कृति का गुणगान करने के लिए वे आप का स्वागत करते है, मगर उन्होंने इस पार्टी पर केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू समर्थक छवि पेश करने का आरोप भी लगाया.


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भाजपा प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा, ‘भाजपा तो 1990 के दशक से ही लगातार भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दे रही है. आप का भी ऐसा करने के लिए स्वागत है, लेकिन उन्हें इसे लगातार अपनाना चाहिए न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए.’

दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) द्वारा पहले छठ पूजा समारोह पर रोक लगाने के लिए केजरीवाल सरकार पर निशाना साधते हुए सिंह ने आरोप लगाया, ‘एक तरफ तो वे दिवाली पूजा का आयोजन कर रहे हैं और दूसरी तरफ वही छठ पूजा पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. इस सब में निरंतरता कहां है?’

सितंबर महीने में, डीडीएमए ने कोरोना महामारी के कारण छठ पूजा के सार्वजनिक रूप से मनाये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसकी भाजपा और कांग्रेस दोनों ने आलोचना की थी. इसके बाद केजरीवाल, जो डीडीएमए के उपाध्यक्ष हैं, ने शहर में छठ पूजा की अनुमति देने के लिए इसके अध्यक्ष और उपराज्यपाल अनिल बैजल को पत्र लिखा था. अब इसे पहले से निर्दिष्ट घाटों पर मनाये जाने की अनुमति दे दी गई है. आप सरकार ने इस मौके पर दिल्ली में सार्वजनिक अवकाश की भी घोषणा की है.

हालांकि इस बारे में लोगों की राय फ़िलहाल विभाजित है कि क्या आप द्वारा दिखाई गई हालिया धार्मिकता से वास्तव में भाजपा के प्रभुत्व और देश में धर्म और संस्कृति पर उसके वैचारिक-राजनीतिक रुख की प्रधानता को उजागर करने में मदद मिलेगी, फिर भी भाजपा और आरएसएस के कुछ विचारक अपनी और से यही संदेश देना चाहेंगे कि केजरीवाल और उनकी पार्टी से उन्हें प्रतिस्पर्धा का कोई डर नहीं है.

आरएसएस से जुड़े थिंक-टैंक विचार विनीमय केंद्र के शोध निदेशक और दिप्रिंट के साथ स्तंभकार के रूप में जुड़े अरुण आनंद ने कहा, ‘आरएसएस के लिए काफी यह उपयुक्त बात है कि अधिक से अधिक लोग इसके वैचारिक रुख के साथ आएं और भारतीय संस्कृति पर ध्यान केंद्रित करें. आरएसएस खुद को इस बात का लाइसेंस देने वाले प्राधिकार के रूप में नहीं देखता है कि कौन हिंदुत्व को अपना सकता है अथवा कौन इसका प्रचार-प्रसार करता है. जहां तक भाजपा का सवाल है, इस मुद्दे पर उसकी किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, क्योंकि वे ही असल में वह दल हैं जिसने भारतीय मूल्यों और संस्कृति के महत्व पर चर्चा शुरू की है.जो कोई भी अब इस नैरेटिव को अपनाने की कोशिश करता है उसे एक नकलची के रूप में ही माना जाएगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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