गुरुग्राम: हरियाणा में अहीरवाल बेल्ट सरल और साहसी लोगों के लिए जाना जाता है जो प्राचीन काल से अपनी बहादुरी और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. इसी तरह यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस क्षेत्र में राजनीतिक परिवारों का भी अपना समूह है, जिनका उल्लेख राज्य के तीन लाल राजवंशों- पूर्व मुख्यमंत्रियों बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल- से कम नहीं है.
अहीरवाल के तीन परिवारों की तीसरी पीढ़ी महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और गुरुग्राम जिलों वाले इस क्षेत्र में अपनी वंशवादी विरासत को आगे बढ़ा रही है. इनमें से एक परिवार का वंश राव तुला राम से जुड़ा है, जो एक सरदार थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था.
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं. साथ ही वह पूर्ववर्ती राज्य रेवाड़ी के रामपुरा हाउस के प्रमुख सदस्य भी हैं.
गुरुग्राम सांसद के दो भाई भी हैं जिनका नाम राव अजीत सिंह और राव यादवेंद्र सिंह हैं. राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव जहां हरियाणा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी सदस्य हैं, वहीं अजीत सिंह के बेटे राव अर्जुन सिंह अब कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं.
केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राव इंद्रजीत सिंह नूंह में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर मनोहर खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार से कड़े सवाल पूछने के लिए चर्चा में हैं.
राव अभय सिंह के बेटे कैप्टन अजय सिंह यादव रेवाड़ी से छह बार विधायक रहे हैं. उनके पिता ने 1952 में रेवड़ी से राव बीरेंद्र सिंह को हराया था. अजय सिंह के बेटे चिरंजीव राव ने 2019 में अपने पहले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में रेवाड़ी से जीत हासिल की थी.
इस क्षेत्र का तीसरा महत्वपूर्ण परिवार राव मोहर सिंह द्वारा स्थापित बूढ़पुर हाउस है. मोहर सिंह को गुरुग्राम में विभाजन से पहले पहला सहकारी बैंक खोलने का श्रेय दिया जाता है. उनके पुत्र राव महावीर सिंह और राव विजयवीर सिंह विधायक बने. राव महावीर सिंह के बेटे राव नरबीर सिंह तीन बार के विधायक हैं, उन्होंने 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में बादशाहपुर से अपनी आखिरी जीत दर्ज की थी.
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हरियाणा की राजनीति के राजनीतिक विश्लेषक पवन कुमार बंसल ने कहा कि अहीरवाल क्षेत्र में तीनों राजवंश लगभग सात दशकों से सक्रिय हैं, लेकिन राव बीरेंद्र सिंह से शुरू हुआ राजवंश सबसे प्रभावशाली है.
बंसल ने दिप्रिंट को बताया, “राव बीरेंद्र सिंह और अब, राव इंद्रजीत सिंह ने न केवल अपने दम पर चुनाव जीता, भले ही उन्हें किसी भी पार्टी ने मैदान में उतारा हो, बल्कि उनके पास अहीरवाल बेल्ट की अन्य विधानसभा सीटों से अपने समर्थकों को चुनाव जीताने की क्षमता भी है.”
राव बीरेंद्र सिंह की विरासत
फरवरी में डाक विभाग की ओर से राव बीरेंद्र सिंह की याद में एक डाक टिकट जारी किया गया था. इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राव बीरेंद्र सिंह को “जनता के लोकप्रिय नेता के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने हमेशा लोगों, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के मुद्दों का समर्थन किया और राष्ट्र निर्माण में बहुत योगदान दिया.”
राव बीरेंद्र सिंह, पंडित भगवत दयाल शर्मा के स्थान पर हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि वह 24 मार्च, 1967 से 2 नवंबर, 1967 तक ही इस पद पर रह पाए. स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के वंशज, राव बीरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों की सेवा की थी 1939 से 1947 तक भारतीय सेना में कैप्टन पद पर काम किया था. 1950 से 1951 तक वह एक कमीशन अधिकारी के रूप में प्रादेशिक सेना में थे.
उनका चुनावी पदार्पण काफी मुश्किल भरा रहा क्योंकि वह 1952 में रेवाड़ी से राव अभय सिंह से हार गये थे. रेवाड़ी तब पंजाब विधानसभा का हिस्सा था. इसके बाद वह 1954 में कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें अविभाजित पंजाब के लिए विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया और 1966 तक लगातार दो कार्यकाल तक पद पर बने रहे.
इस अवधि के दौरान, वह प्रताप सिंह कैरों सरकार में पीडब्ल्यूडी, सिंचाई, बिजली, राजस्व और चकबंदी जैसे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे. इस समय राव बीरेंद्र सिंह उन नेताओं में से थे जिन्होंने लगातार अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई.
नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा बनने के बाद, पंडित भगवत दयाल शर्मा पहले मुख्यमंत्री बने और राव बीरेंद्र सिंह नवगठित राज्य के पहले स्पीकर बने.
1967 में हरियाणा के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह पटौदी से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने गए. हालांकि, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी विशाल हरियाणा पार्टी की स्थापना की.
उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण समय तब आया जब उन्हें 24 मार्च, 1967 को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन नवंबर 1967 में, विधानसभा भंग कर दी गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
राज्यपाल बी.एन. चक्रवर्ती ने राव बीरेंद्र सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया था क्योंकि उन्हें पता चला था कि दो विधायकों ने दो बार कांग्रेस और विशाल हरियाणा पार्टी के साथ पाला बदल लिया था. यह वह साल था जब हरियाणा में पहली बार एक ऐसी संस्कृति का आगमन हुआ, जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों ने तत्परता के साथ अपनी वफादारी बदल ली – जो कि ‘आया राम, गया राम’ वाक्यांश में समाहित है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि राव बीरेंद्र सिंह ने गढ़ा था, जो खुद इसके शिकार हुए थे.
(संपादनः ऋषभ राज)
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