भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के सभी नकलचियों में एक तो ऐसे हैं ही जिनके बारे में जान कर मोदी का 56 इंच का सीना गर्व और सुकून से और भी फूल जाएगा. वे एक हैं केरल के खांटी कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनराई विजयन.
अपनी सर्वसत्तावादी कार्यशैली और असहमति के प्रति असहनशीलता के लिए आलोचकों द्वारा ‘धोतीधारी मोदी’ कहे जाने वाले विजयन ने मुख्यमंत्री के रूप में अपना दूसरे कार्यकाल की शुरुआत मोदी के शासन मॉडल की नकल करके की है.
दोबारा चुनाव जीतकर सत्ता में आने के बाद उन्होंने जिस तरह अपने मंत्रियों का चयन किया और उनमें विभागों का बंटवारा किया, उसमें पूरी तरह मोदी शैली की छाप नज़र आई. मुख्यमंत्री ने खुद को 27 विभाग सौंपने के अलावा ‘सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों’ की ज़िम्मेदारी भी अपने हाथ में ले ली.
इसका मतलब यह हुआ केरल में कोई भी मंत्री मुख्यमंत्री की मंजूरी के बिना कोई नीतिगत फैसला नहीं कर सकेगा. यानी सारे मंत्री महज कठपुतली बनकर रहेंगे, जिनकी डोर विजयन की उंगलियों से बंधी होगी. यह सीधे प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली की नकल है.
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‘मोदी मॉडल’
मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के बाद यही किया था, कई मंत्रालयों के अलावा ‘सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मसलों’ को अपने हाथ में ले लिया था. उनके मंत्रियों को जल्दी ही समझ में आ गया था कि वे महज कठपुतली हैं और नीतिनिर्धारण में उनकी अगर कोई भूमिका है तो उसे प्रतीकात्मक ही कहा जाएगा.
विजयन के नियंत्रण वाले माकपा सचिवालय ने दूसरा फैसला यह किया कि मंत्रियों के निजी सचिवों को पार्टी ही नामजद करेगी. ऐसा ही तब हुआ था जब 2014 में मोदी सरकार ने बागडोर संभाली थी. उसने दिशानिर्देश जारी किया था कि पिछली यूपीए सरकार के किसी मंत्री के निजी स्टाफ (पीएस) के रूप में काम कर चुके किसी अधिकारी, कर्मचारी या व्यक्ति को एनडीए सरकार में इस भूमिका के लिए नहीं नियुक्त किया जा सकता. इसकी वजह यह बताई गई— ‘प्रशासनिक जरूरत’.
इस नियम को इतनी सख्ती से लागू किया गया कि उस समय के गृह मंत्री राजनाथ सिंह तक अपनी पसंद का पीएस नहीं रख सके थे. वे उत्तर प्रदेश काडर के एक आइपीएस अफसर को पसंद करते थे, जो यूपीए के एक मंत्री के पीएस भी रह चुके थे, और राजनाथ ने उसके लिए खुद पीएमओ से भी बात की थी. आज भी, मोदी के मंत्रियों के पीएस के रूप में कम करने वाले की गहन जांच की जाती है, तो ‘अफसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी)’ आदि दूसरे अधिकारियों का चयन आरएसएस या उससे जुड़े संगठनों, खासकर छात्र शाखा एबीवीपी से किया जाता है.
विजयन के लिए माकपा शासन का यह मॉडल लागू कर रही है. इसके पीछे मकसद सीधा-सा है— पीएस के जरिए मंत्रियों पर नज़र रखना. वास्तव में, दिल्ली में जब यह मॉडल लागू किया गया उसके करीब दो साल बाद ही विजयन को पीएस के जरिए मंत्रियों पर नज़र रखने का विचार पसंद आ गया था. 2016 के दिसंबर में ही उन्होंने मंत्रियों के निजी कर्मचारियों की बैठक की थी, जिससे उनके मंत्री बहुत चिढ़े थे. अब पांच साल बाद मुख्यमंत्री ने पार्टी से कहा है कि वह निजी सचिव चुनने के मंत्रियों के अधिकार को छीन ले.
मोदी की नकल
इतनी जल्दी यह कहना मुश्किल है कि विजयन सरकार अपनी दूसरी पारी में शासन के मोदी मॉडल को कितनी दूर तक लागू करेगी. केरल के मुख्यमंत्री अपने विरोधियों और पार्टी में अपने संभावित प्रतिद्वंद्वियों से जिस तरह निबटते रहे हैं उसके मद्देनजर राजनीतिक हलक़ों में उनमें और मोदी में समानता देखी जाने लगी है.
2016 में मुख्यमंत्री बनने के बाद विजयन ने अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी, पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन को प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त करके और चुनाव प्रचार से अलग करके इस तरह हाशिये पर डाल दिया था कि कहा जाने लगा था कि उन्हें ‘मार्गदर्शक मंडल’ में डाल दिया गया है. चुनाव से पहले की भविष्यवाणियों में जब कहा जाने लगा कि वाम मोर्चे को दोबारा सत्ता मिलेगी, तब विजयन ने संभावित प्रतिद्वंद्वियों को किनारे करना शुरू कर दिया था और लगातार दो बार विधायक चुने गए उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट देने से मना कर दिया. इसके कारण पांच मंत्रियों को चुनाव के मैदान से हटना पड़ा. चुनाव के बाद विजयन ने पिछली सरकार के सभी मंत्रियों को ‘नये खून’ को मौका देने के नाम पर हटा कर बाकी प्रतिद्वंद्वियों की छुट्टी कर दी.
विजयन की दूसरी पारी के शुरू में ही जो कुछ हुआ उससे केरल के कई कॉमरेडों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ होगा. अपनी सर्वसत्तावादी कार्यशैली और अपने महिमामंडन के लिए पार्टी तथा सरकार का इस्तेमाल करने के लिए आलोचकों द्वारा ‘धोतीधारी मोदी’ कहे जाने वाले विजयन आज देश के सबसे ताकतवर कम्युनिस्ट नेता हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत मोदी के शासन मॉडल की नकल से कर दी है.
उन पर केरल में एक तरह से ‘पुलिस राज’ कायम करने का आरोप भी लगाया गया. फर्जी मुठभेड़, पुलिस हिरासत में यातना में माओवादियों को मारे जाने, राजनीतिक हिंसा और हत्याओं के प्रति उदासीनता बरतने के भी आरोप लगाए गए. 2021 के विधानसभा चुनाव से महीनों पहले उन्होंने केरल पुलिस कानून में विवादास्पद संशोधन करने की कोशिश की, जिसे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के नाम पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगाने की कोशिश बताया गया. इस पर भारी विवाद होने के बाद इसे वापस ले लिया गया.
इस चुनाव से पहले ‘दप्रिंट’ को दिए इंटरव्यू में विजयन से जब पूछा गया था कि उन्हें केरल का मोदी कहा जाता है, तो उन्होंने जवाब दिया था, ‘मैं नहीं जानता कि मोदी किस तरह के व्यक्ति हैं. केरल के लोग वर्षों से जानते हैं कि मैं किस तरह का आदमी हूं. मुझे नरेंद्र मोदी की नकल करने की जरूरत नहीं है. मेरी अपनी शैली है, अपना तरीका है. मोदी की अपनी शैली होगी.’
इस इंटरव्यू के सात सप्ताह बाद विजयन जब अपना दूसरा कार्यकाल शुरू कर रहे हैं, तब लगता है कि मोदी की नकल करने में उन्हें दम नज़र आ रहा है.
यहां व्यक्त विचार निजी हैं
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