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Monday, 25 November, 2024
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BJP व TMC दोनों की चुनावी तक़दीर के लिए अहम, उत्तरी बंगाल के चाय बाग़ानों ने कैसे अपने पत्ते नहीं खोले

उत्तरी बंगाल में 408 चाय बाग़ान हैं- 84 दार्जीलिंग पहाड़ियों पर हैं, और 324 तराई और डुआर्स में हैं. श्रम बलों की क्षेत्र की 16 विधान सभा सीटों पर एक अहम भूमिका है, जिनमें से 13 में आज मतदान हो रहा है.

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डुआर्स, जलपायगुड़ी: ‘आमियो एकजन चायवाला (मैं भी एक चायवाला हूं)’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली लाइन थी, जो उन्होंने 9 अप्रैल को उत्तरी बंगाल के सिलीगुड़ी में, एक चुनावी रैली के दौरान कही.

इसमें तनिक भी संदेह नहीं था, कि सोच समझकर कही गई इन पंक्तियों के निशाने पर कौन था. दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार और जलपाईगुड़ी के तीन ज़िलों में, कुल 408 चाय बाग़ान हैं और उनके मज़दूर, जिनमें गुरखा, मुंडा, और ओरांव आदि पहाड़ी जनजातियां शामिल हैं, उत्तरी बंगाल के इस इलाक़े की 16 सीटों पर, एक अहम भूमिका निभाते हैं.

कभी वाम दलों के समर्पित वोटर रहे चाय बाग़ान मज़दूरों ने, जो हाल ही में 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की हिमायत में आ गए थे, इस बार दोनों प्रमुख पार्टियों, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी को, बेचैन करके रखा हुआ है.

यहां की तेरह सीटों पर आज मतदान हो रहा है, जबति तीन पर पहले ही वोट डाले जा चुके हैं.

जहां बीजेपी इस इलाक़े में अपने लोकसभा प्रदर्शन को मज़बूत करने की कोशिश में है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने भी मतदाताओं को रिझाने के लिए, कई कल्याण योजनाओं का ऐलान किया है.

408 चाय बाग़ानों में से 84 पहाड़ी इलाक़ों में हैं, जहां बेहतरीन क़िस्म की चाय पत्तियां उगाई जाती हैं, जिन्हें दुनिया भर में ‘दार्जीलिंग चाय’ के नाम से ब्रांड किया गया है, जबकि 324 बाग़ान तराई और डुआर्स क्षेत्रों में हैं. डुआर्स के बाग़ानों में सीटीसी (क्रश, टियर व कर्ल) चाय पैदा की जाती है, जो चाय की सस्ती लेकिन लोकप्रिय क़िस्म है.

चाय बाग़ान परंपरागत रूप से वाम दलों का गढ़ रहे हैं, लेकिन 2016 के विधान सभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने यहां अपनी पैठ बना ली, और 16 में से 8 सीटें जीत लीं. लेकिन उसकी सारी कामयाबी पर, 2019 लोकसभा चुनावों में पानी फिर गया, जब बीजेपी ने यहां की सारी विधान सभा सीटों पर बढ़त बना ली.

लेकिन इन चुनावों में, मतदाता कोई संकेत नहीं दे रहे हैं, हालांकि बीजेपी और टीएमसी दोनों, निरंतर उन्हें लुभाने के प्रयास में लगे हैं.


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ममता की सौग़ात

हालांकि बीजेपी बढ़त में नज़र आ रही है, क्योंकि आरएसएस द्वारा समर्थित भारतीय टी वर्कर्स यूनियन की, 199 चाय बाग़ानों में अच्छी पकड़ है, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी यहां फिर से, अपनी पैठ बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.

पिछले एक साल में उनकी सरकार ने, चाय बाग़ान मज़दूरों के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं.

इस साल फरवरी में, उनकी सरकार ने ‘चा सुंदरी’ नाम से एक स्कीम शुरू की, जो राज्य के श्रम विभाग में पंजीकृत 370 चाय बाग़ानों के लगभग तीन लाख स्थाई कामगारों के लिए बनाई गई थी.

स्कीम के तहत, अगले तीन सालों में राज्य सरकार, ऐसे स्थाई चाय बाग़ान कामगारों को घर बनाने के लिए धन मुहैया कराएगी, जिनके पास अपने घर नहीं हैं.

इस साल अपने बजट भाषण में मुख्यमंत्री ने कहा, कि 2021-22 वित्त वर्ष में इस स्कीम के लिए, 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. उन्होंने ऐसे कम से कम 14 बंद पड़े बाग़ान फिर से खोलने का दावा किया, जिन्हें अब सहकारी समितियों के माध्यम से चलाया जा रहा है.

 Alipurduar MP John Barla (right) with Union Finance Minister Nirmala Sitharaman | By special arrangement
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अलीपुरद्वार एमपी जॉन बारला (दाहिने) /फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

उत्तर बंगाल विकास मंत्री रबींद्रनाथ घोष ने दिप्रिंट से कहा, ‘दीदी ने उत्तरी बंगाल में चाय बाग़ान को बचाया है. बंद पड़े बाग़ान में कितने लोग भूख से मारे गए थे. हमारी सरकार ने कम से कम 14 बाग़ान को अपने क़ब्ज़े में लिया, और उन्हें सहकारी समितियों के ज़रिए चला रही है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी सरकार उनके स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए पहले ही, 2 रुपए प्रति किलो चावल, मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य लाभ, और मिड-डे मील के साथ, और बहुत से फायदे पहुंचा रही है. ख़राब आर्थिक स्थिति की वजह से, इनमें से बहुत से मज़दूरों के पास घर नहीं हैं, जिन्हें वो अपना कह सकें. इसी सब को ध्यान में रखते हुए, दीदी ने चा सुंदरी परियोजना शुरू की है’.

उन्होंने कहा, ‘बुद्धवार को मैंने ऐसे कम से कम आठ चाय बाग़ान का दौरा किया था…मैंने वहां कामगारों से बीत की थी. उनमें से किसी ने कोई शिकायत नहीं की’.

लेकिन, बीजेपी नेता दावा कर रहे हैं, कि चाय बाग़ान अभी भी बंद हैं, और वो तृणमूल कांग्रेस पर चाय मज़दूरों को ‘झांसा देने’ का आरोप लगा रहे हैं.

अलीपुरद्वार से बीजेपी सांसद जॉन बारला ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार ने 14 बाग़ान के लिए फाइनेंसर्स नियुक्त किए हैं. लेकिन बाग़ान बंद पड़े हैं क्योंकि चाय मज़दूरों के पीएफ खाते चालू नहीं किए गए थे. उन्हें नियमित वेतन नहीं मिल रहा है’. उन्होंने आगे कहा, ‘पीने का पानी, बिजली, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं, अभी भी उपलब्ध नहीं हैं. यहां के कामगार मज़दूरी करने के लिए, दूसरे सूबों का रुख़ कर रहे हैं’.

बारला ने, जो भारतीय टी वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी हैं, ये भी कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, 14 अप्रैल को सिलीगुड़ी गईं थीं, जहां उन्होंने चाय मज़दूरों से बात की, और उनकी दैनिक मज़दूरी बढ़ाने का वादा किया.

बारला ने कहा, ‘सरकार को चाय बाग़ान मालिकों के साथ बैठकें करके, मज़दूरी की दरों पर सहमति बनानी है. हमने बातचीत शुरू की है, लेकिन इसमें राज्य को साथ आना होगा. हमें ममता बनर्जी की सरकार से, कभी कोई सहयोग नहीं मिला है’. उन्होंने आगे कहा, ‘मज़दूर संघों के नेता समझते हैं, कि वेतन समझौता कैसे काम करता है. ये कामगारों या यूनियनों तथा मालिकों के बीच, तीन साल का समझौता होता है’.

उन्होंने आगे कहा: ‘बंगाल में 2015 में वेतन संशोधित किए गए थे, और फिर छह साल के बाद 2021 में किए गए. छह साल के बाद मज़दूरी 176 रुपए से बढ़कर 202 रुपए हुई. छह साल में केवल 26 रुपए बढ़ाए गए. मैंने बक़ाया के भुगतान का मुद्दा उठाया. सभी कामगारों को पिछले तीन साल के लिए, बक़ाया राशि के रूप में कम से कम 30,000 रुपए मिलने चाहिएं, जब संशोधन की प्रक्रिया को रोक दिया गया था’.

बीजेपी ने 2019 में वादा किया था, कि केंद्र सरकार कम से कम 10 बंद पड़े बाग़ान को, अपने आधीन लेकर चलाएगी.

बारला ने दावा किया कि, ‘केंद्र बाग़ान को लेना चाहता था, लेकिन राज्य सहयोग नहीं कर रहा है’. उन्होंने आगे कहा कि इलाक़े में क़रीब 19 बाग़ान बंद पड़े हैं, और ये ऐसी स्थिति है जिससे कम से कम 60,000 मज़दूर, और उनके परिवार प्रभावित होते हैं.

इलाक़े में बैठकों को संबोधित करते हुए, मोदी ने चाय बाग़ान श्रमिकों की दैनिक मज़दूरी में, कम से कम 150 रुपए की बढ़ोतरी का ऐलान किया.

बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में वादा किया गया है कि ‘चाय बाग़ान में रहने वालों को, पार्जा पट्टा (भूमि पट्टा) अधिकार दिए जाएंगे, 350 रुपए प्रतिदिन मज़दूरी मिलेगी, और 11 भारतीय गुरखा उप-जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी जाएगी’.

पत्ते नहीं खोल रहे चाय मज़दूर

इस सब के बावजूद चाय मज़दूर, जिन्होंने 2019 में एक साथ बीजेपी को वोट दिया, इन विधान सभा चुनावों में अपने विकल्पों को तोल रहे हैं.

मालबज़ार विधानसभा चुनाव श्रेत्र की एलनबैरी टी एस्टेट के चाय मज़दूर, सुनील ओरांव ने कहा, ‘चुनावों से पहले, सभी पार्टियां हमारे पास वोट मांगने आती हैं, लेकिन बाक़ी समय किसी को हमारी याद नहीं आती. हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों में कितने लोग भूख से मारे गए हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी मज़दूरी छह साल बाद बढ़ाई गई. कुछ बाग़ान में भुगतान समय पर होता है, जबकि कुछ दूसरों में तीन महीने में एक बार आता है. इस बार हम एक समुदाय के तौर पर, मतदान पर फैसला लेंगे’.

बानरहाट के रेड बैण्ड टी गार्डन के एक 55 वर्षीय श्रमिक, बुद्धिमान तमंग ने बताया कि उनका बाग़ बंद कर दिया गया है. उन्होंने कहा, ‘हमारे बाग़ को बंद हुए 20 साल से अधिक हो गए हैं. लेफ्ट या तृणमूल किसी सरकार ने इसे खोलने की पहल नहीं की’. उन्होंने आगे कहा, ‘2019 में, राज्य सरकार ने कहा कि वो सहकारी सिस्टम के ज़रिए बाग़ान को चलाएगी, लेकिन हमने कोई काम होते हुए नहीं देखा. हम काम के लिए बाहर जाते हैं. हम में से कुछ पास की नदी के किनारे पत्थर तोड़ते हैं, और कुछ केरल, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में, निर्माण कार्यों में मज़दूरी करने चले गए हैं’.

एक अन्य श्रमिक रघु मुर्मू ने कहा: ‘सरकार ने हमें मुफ्त राशन देना शुरू किया था. लेकिन अब वो अनियमित हो गया है. अस्पताल बंद पड़े हैं, और हमें यहां कोई स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलती. पिछले दस सालों में बाग़ के अंदर कोई काम नहीं किया गया है. आप सड़कों और रहन-सहन का हाल देख सकते हैं. ये किसी नरक से कम नहीं है’.

लेकिन दोनों पार्टियों को उम्मीद दिखती है

एक वरिष्ठ तृणमूल कांग्रेस नेता का कहना है, कि पार्टी ने बिमल गुरंग के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा से गठबंधन किया है, जिसे चाय बाग़ान की गोरखा आबादी के बीच ख़ासा समर्थन हासिल है. गुरंग ने डुआर्स क्षेत्र में तृणमूल उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया है.

नागराकाटा से तृणमूल उम्मीदवार जोज़फ मुंडा ने कहा, ‘2019 में बीजेपी पक्ष में एक ‘हवा’ थी. इस बार ये हमारे पक्ष में है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमने अपनी खोई हुई ज़मीन फिर से हासिल कर ली है. एक बार हम चुनाव जीत जाएं, तो फिर यहां विकास का काम किया जाएगा’.

मुंडा का दावा था कि उनके पास, सरना आदिवासी संगठन और आदिवासी विकास परिषद जैसे, प्रमुख आदिवासी संगठनों का भी समर्थन था.

GJM’s Bimal Gurung campaigning for Trinamool candidate Joseph Munda | By special arrangement
जीजेएम के बिमल गुरुंग तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार जोसेफ मुंडा के लिए प्रचार करते हुए/स्पेशल अरेंजमेंट

बीजेपी भी आश्वस्त है

नागराकाटा से बीजेपी उम्मीदवार और एक रिटायर्ड बीएसएफ अधिकारी, पूना भेंगड़ा ने कहा, ‘मेरे चुनाव क्षेत्र में 40 चाय बाग़ान हैं, लेकिन उनमें से 8 बंद हैं. असम के चाय बाग़ान शायद बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि सरकार ने उनके लिए मालिकों से लड़ाई की’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम सत्ता में आते हैं तो वो सब कर पाएंगे, चूंकि केंद्र और राज्य की एक ही सोच होगी’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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