कोलकाता: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने सोमवार को दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस सरकार ने राज्य को ‘पुलिस शासित राज्य’ में बदल दिया है और सत्ता द्वारा उनके पद की लंबे समय से अनदेखी की जा रही है जिसके कारण उन्हें संविधान के अनुच्छेद 154 पर विचार करना होगा.
संविधान के अनुच्छेद 154 में उल्लेख है कि राज्य के कार्यकारी अधिकार राज्यपाल में निहित होंगे और वह प्रत्यक्ष रूप से या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से उन अधिकारों का इस्तेमाल कर सकेंगे.
धनखड़ ने अपने पत्र का जवाब देने में ‘गैरजिम्मेदाराना रुख’ अख्तियार करने पर पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र की आलोचना की और कहा कि पुलिस अधिकारी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह काम कर रहे हैं.
राज्यपाल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘अगर संविधान की रक्षा नहीं हुई, तो मुझे कार्रवाई करनी पड़ेगी. राज्यपाल के पद की लंबे समय से अनदेखी की गयी है. मुझे संविधान के अनुच्छेद 154 पर विचार करने को बाध्य होना पड़ेगा.’
उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा की जा रही ‘इलेक्ट्रॉनिक निगरानी’ की वजह से उन्हें वॉट्सऐप वीडियो कॉल करने को मजबूर होना पड़ रहा है.
धनखड़ ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल पुलिस शासित राज्य बन गया है. पुलिस शासित राज्य लोकतंत्र का पहला शत्रु है. पुलिस का शासन और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते.’
उन्होंने यह दावा भी किया कि ‘पश्चिम बंगाल में पुलिस संविधान से इतर प्राधिकारों की दास बन गयी है’.
राज्यपाल ने कहा, ‘राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है. माओवादी उग्रवाद अपना सिर उठा रहा है. इस राज्य से आतंकी मॉड्यूल भी गतिविधियां चला रहे हैं.’
धनखड़ ने जुलाई 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कामकाज संभाला था और तब से ही उनका तृणमूल कांग्रेस सरकार से गतिरोध सामने आता रहा है.
उन्होंने डीजीपी वीरेंद्र को इस महीने की शुरुआत में पत्र लिखकर राज्य की कानून व्यवस्था की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी.
डीजीपी के एक पंक्ति के जवाब के बाद राज्यपाल ने उन्हें 26 सितंबर को उनसे मिलने को कहा. डीजीपी ने अपने जवाब में कहा, ‘पुलिस कानून द्वारा निर्धारित रास्ते पर चलती है’.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 26 सितंबर को राज्यपाल को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया कि वह ‘संविधान में निर्देशित कार्यक्षेत्र में रहते हुए काम करें’.
बनर्जी ने डीजीपी को लिखे उनके पत्र पर पीड़ा भी जताई थी.
धनखड़ ने कहा कि वह शासन के मामलों में पक्षकार हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को यह गलत धारणा है कि राज्यपाल का पद केवल ‘डाकघर या रबर स्टांप’ है.
पिछले साल कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से चिटफंड घोटाले की जांच के सिलसिले में पूछताछ की सीबीआई की कोशिश के खिलाफ मुख्यमंत्री द्वारा यहां धरना दिये जाने का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा, ‘जिन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, उन्हें बचाना लोकतांत्रिक शासन के अंत का सूचक है. पहले यह भौतिक तरीके से किया गया, अब पत्र के माध्यम से किया गया है.’
बनर्जी को पत्र लिखकर अपनी चिंताओं से अवगत कराने वाले धनखड़ ने पूछा, ‘अगर राज्यपाल चाहते हैं कि डीजीपी राजनीतिक हिंसा, राजनीतिक प्रतिशोध, विपक्ष के निर्मम दमन, सिंडिकेटों द्वारा अत्यधिक जबरन वसूली और लगातार बम फेंके जाने की घटनाओं के मद्देनजर कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर विस्तार से बताएं तो इसमें क्या गलत है?’
राज्यपाल ने कहा कि डीजीपी को लिखे पत्र में उन्होंने घुसपैठियों को हटाकर सत्ता के गलियारों की सफाई की वकालत की थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि बनर्जी अपनी मुख्यमंत्री पद की शपथ के अनुसार कम नहीं कर रहीं और डीजीपी के बचाव में उनका आना इस बात की पुष्टि करता है कि ‘सरकार पुलिस की बैसाखियों पर चल रही है’.
धनखड़ ने यह दावा भी किया कि मुख्यमंत्री ने अनेक मुद्दों पर उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं देकर संविधान के अनुच्छेद 167 का उल्लंघन किया है. उक्त अनुच्छेद मुख्यमंत्री के राज्यपाल के प्रति कर्तव्यों का उल्लेख करता है.
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