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Tuesday, 25 June, 2024
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मध्य प्रदेश में भाजपा के दिग्गजों की भीड़ में कहीं खो तो नहीं जाएंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया

मध्यप्रदेश के भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर,प्रभात झा,जयभान सिंह पवैया और नरोत्तम मिश्रा कई बार सिंधिया पर हमला बोलते हुए नजर आए है. अब इन सभी के साथ सिंधिया को भी तालमेल बैठाना है.

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नई दिल्ली: ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल होने के बाद आज मध्य प्रदेश जाएंगे. पार्टी में शामिल होते ही उन्हें राज्य सभा भेजा जा रहा है. सिंधिया शुक्रवार को राज्य सभा के लिए नामांकन करेंगे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामने पर मध्यप्रदेश की राजनीति में कई समीकरण बनेंगे तो कई बिगड़ेंगे. एकओर जहां कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरायेंगे तो सिंधिया के सामने मध्यप्रदेश में कई हितों को साधना भी आसान नहीं होगा. सिंधिया के भाजपा में जाने से सबसे ज्यादा प्रभाव राज्य के ग्वालियर चंबल के क्षेत्र और उनके नेताओं पर पड़ेगा.

हालांकि इस प्रभाव की बात को भाजपा के पूर्व सांसद और प्रवक्ता प्रो.चिंतामणि मालवीय ने नकारते हुए दि​प्रिंट से कहा,’ सिंधिया जिस परिवार से आते है इसलिए सबका सम्मान उनके प्रति है. हमारी पार्टी में गुटबाजी जैसी कोई बात नहीं है. भाजपा में कद कम होने और ज्यादा होने की कोई व्यवस्था ही नहीं है. जिसे जो काम मिला है वह उसका कद है. कद का मापदंड भाजपा में नहीं है. उनके साथ आने से ग्वालियर चंबल संभाग में और तेजी आएगी.’

वहीं इस पर मामले पर दिप्रिंट से बातचीत में कांग्रेस प्रवक्ता और सीएम के मीडिया कोऑर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने कहा, ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के वीडी शर्मा, नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा और कैलाश विजयवर्गीय पचा ही नहीं सकते हैं. अब भाजपा में ग्वालियर चंबल संभाग में बड़ी अंतरकलह और गुटबाजी देखने को मिलेगी.’

अब सवाल उठता है कि कौन हैं ये नेता जिनसे ज्योतिरादित्य को बचना है और कैसे ये सिंधिया को प्रभावित कर सकते हैं.

नरेंद्र सिंह तोमर

नरेंद्र सिंह तोमर मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. तोमर ग्वालियर चंबल संभाग के दिग्गज नेता हैं. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव राज्य के इसी क्षेत्र में देखने को मिलेगा. अभी तक तोमर ही इस क्षेत्र से भाजपा के बड़े नेता रहे हैं. भाजपा की ओर से कभी सीएम पद की दावेदार और अन्य मामलों में तोमर का नाम ही सबसे आगे रहता है. तोमर के वैसे सिंधिया परिवार से अच्छे और करीबी रिश्ते भी रहे हैं. लेकिन अब जब सिंधिया के भाजपा में शामिल हो गए हैं तब ऐसा माना जा रहा है कि यहां के समीकरण तेजी से बदलेंगे. दोनों नेता एक दूसरे के सामने चुनौती बनकर उभरेंगे. दोनों नेताओं के बीच अपने समर्थकों को तवज्जो देने की गुटबाजी चलती रहेंगी.


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शिवराज सिंह चौहान

मध्यप्रदेश में भाजपा का फिलहाल सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान ही हैं. लेकिन सिंधिया के पार्टी में शामिल होने के बाद उनकी लो​कप्रियता में कमी आ सकती है. सिंधिया जनता के बीच सक्रिय हैं और युवाओं में उनका अच्छा क्रेज है. इस कारण शिवराज और सिंधिया एक दूसरे लिए चुनौती साबित होंगे. पिछले चुनावों में भाजपा ने यह नारा भी दिया था कि माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज. लेकिन अब मध्यप्रदेश की सियासत में कई मायने बदलते हुए नजर आएंगे.

प्रभात झा

प्रभात झा भी मध्यप्रदेश भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. झा की भाजपा के साथ-साथ संघ में अच्छी खासी पकड़ है. झा जब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे तब से लेकर अब तक लगातार कांग्रेस और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला बोलते रहे हैं. झा ने कई बार सिंधिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से लेकर सियासी हमले तक किए, लेकिन सिंधिया ने कभी भी प्रभात झा को अपने कद का नेता नहीं माना. वहीं कभी उनके हमलों का जवाब देना तक उचित नहीं समझा. झा का राज्यसभा का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है. वहीं भाजपा उन्हें दोबारा राज्यसभा में भेजने के मूड में भी नहीं दिख रही है. अब सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद झा का कद तो घटेगा लेकिन दोनों की पटरी बैठती है या नहीं यह देखने लायक होगा.

जयभानसिंह पवैया

भाजपा नेता और पूर्व मंत्री जयभानसिंह पवैया और ज्योतिरादित्य सिंधिया की लड़ाई मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में जगजाहिर है. पवैया की प्रदेश में राजनीति केवल सिंधिया के विरोध पर टिकी रही है. पवैया ने पहले माधवराव सिंधिया का विरोध किया, फिर उनकी मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य का खुलेमान विरोध करने लगे. राज्य की सियायत में सिंधिया को लेकर सबसे ज्यादा विरोधी बोल पवैया ने ही बोले हैं. लेकिन सिंधिया ने आजतक पवैया के आरोप का जवाब देना तक उचित नहीं समझा. पवैया ग्वालियर से ही आते है. वे 1998 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया और 2004 के लोकसभा चुनाव में  गुना लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी चुनौती दे चुके हैं. लेकिन दोनों ही चुनावों में पवैया को हार का मुंह देखना पड़ा था. लेकिन अब जब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया है तो पवैया के सामने भी उनके अस्तित्व को लेकर संकट होगा. वहीं सिंधिया को भी उनके साथ तालमेल बैठाना किसी चुनौती से कम नहीं होगी.


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नरोत्तम मिश्रा

नरोत्तम मिश्रा का कद भारतीय जनता पार्टी में पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ा है. ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर के बाद नरोत्तम मिश्रा का नाम दूसरे नंबर पर आता है. शिवराज सिंह चौहान सरकार में कई अहम मंत्री पदों पर रहे नरोत्तम मिश्रा सिंधिया के क्षेत्र में भी बहुत अच्छी पकड़ रखते है. इसके अलावा दिल्ली हाइकमान और प्रदेश के सभी बड़े नेताओं से उनके अच्छे संबंध जगजाहिर है.

नरोत्तम के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ -साथ उनकी दोनों बुआ यशोधरा राजे सिंधिया और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधराराजे सिंधिया से भी बेहद मधुर संबंध हैं. दतिया स्थित मां पीताम्बरा शक्ति पीठ भी नरोत्तम मिश्रा के निर्वाचन क्षेत्र में ही आता है. यहां आए दिन पूजा और हवन के लिए राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और सिंधिया परिवार आते जाते रहते है. सिंधिया की भाजपा में इंट्री नरोत्तम मिश्रा के बढ़ते कद को कम सकती है. वह सिंधिया अब ग्वालियर चंबल के भाजपा के बड़े नेता हो जाएंगे.

यशोधराराजे सिंधिया

पूर्व मंत्री और यशोधराराजे सिंधिया जयोतिरादित्य सिंधिया की छोटी बुआ हैं. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भाजपा में शामिल होने के लिए चला था तब यशोधरा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट भी किया था. उन्होंने कहा, ‘मुझे खुशी है और मैं उन्हें बधाई देती हूं. यह घर वापसी है. माधवराव सिंधिया ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनसंघ से की थी. ज्योतिरादित्य की कांग्रेस में उपेक्षा की जा रही थी.’

सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद यशोधराराजे के कद पर भी असर पड़ेगा. ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया घराने में पहला नाम ज्योतिरादित्य का हो जाएगा. इसका सीधा असर यशोधरा के राजनीतिक रसूख से लेकर पार्टी में महत्व तक में पड़ेगा.

माया सिंह

माया सिंह भारतीय जनता पार्टी का जाना पहचाना चेहरा हैं. माया सिंह ग्वालियर के शाही परिवार से संबंध रखती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया माया सिंह को मामी कहते हैं. वे उनके पिता माधवराव सिंधिया की मामी है. जिसके चलते वह ज्योतिरादित्य की नानी लगती हैं. माया सिंह भाजपा में कई अहम पदों पर रही हैं. वे मध्यप्रदेश राज्य महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष, भाजपा महिला मोर्चा की अखिल भारतीय महामंत्री तथा मध्यप्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही. पार्टी ने उन्हें 2002 और 2008 में राज्यसभा भी भेजा था. उच्च सदन में पार्टी की व्हिप भी रही हैं. 2013 में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और मंत्री भी रही है. माया सिंह का ग्वालियर और उसके आसपास अच्छी पकड़ है. ऐसे में सिंधिया के भाजपा में आने के बाद कुछ असर यहां भी देखने को मिलेगा.


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केपी यादव

केपी यादव वहीं व्यक्ति हैं जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया को उनकी पारंपरिक सीट गुना से हराया है. केपी यादव भी सिंधिया के बेहद करीबी रहे है. वे सिंधिया की कार्यशैली से परिचित हैं. वे पहले सिंधिया की चुनाव की तैयारियों को अच्छी तरह से देखते थे. यादव सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि भी रह चुके है.लेकिन विधानसभा उपचुनाव में टिकट नहीं मिलने के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया था. इसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें गुना से सिंधिया के सामने उतारा. यहां से उन्होंने एक लाख वोटों से ज्यादा जीत दर्ज की थी. अब  सिंधिया और केपी यादव फिर से एक ही दल में है. सिंधिया की पारंपिक सीट पर यादव का कब्जा है. अब आगे क्या होगा यह देखने लायक होगा.

पार्टी में नहीं होगी गुटबाजी

सिंधिया के सामने मध्यप्रदेश के दिग्गज नेताओं में असंतोष बढ़ेगा ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है. लेकिन भाजपा इसे सिरे से खारिज कर रही है. भाजपा का कहना है कि  पार्टी में गुटबाज़ी के लिए कोई स्थान नहीं है .

मालवीय आगे कहते हैं, ‘भारतीय जनता पार्टी में कद कम होने और ज्यादा होने की कोई व्यवस्था ही नहीं है. जिसे जो काम मिला है वह उसका कद है. कद का मापदंड भाजपा में नहीं है. उनके साथ आने से ग्वालियर चंबल संभाग में ओर तेजी आएगी.’

कांग्रेस मानती है कि कभी न कभी होगा भूल का एहसास

कांग्रेस में भी लोग इस इंतज़ार में है कि सिंधिया को अपनी ‘भूल’ का मलाल हो. पार्टी छोड़ भाजपा में इज़्ज़त और पद पाने की उनकी कोशिश पर कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार ट्वीट कर तंज़ कस रहे हैं.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया कोऑर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने दिप्रिंट से कहा,’कांग्रेस पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बहुत सम्मान दिया.आज उनके भाजपा प्रवेश से ही पता चल गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ही नदारद थे. उन्होंने भाजपा में जाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. यह सभी नेता उन्हें पचा नहीं पाएंगे और सहन नहीं कर पाएंगे.’


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सलूजा आगे कहते हैं, ‘ वर्षों से जो उनके कार्यकर्ता पद और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं अब देखना रूचिकर होगा कि उनके साथ गए लोगों को इस सभी गुटबाजी के बावजूद कैसा सम्मान मिलेगा यह समझा जा सकता है. अब भाजपा में ग्वालियर चंबल संभाग में बड़ी अंतरकलह और गुटबाजी देखने का मिलेगी.’

फिलहाल भाजपा ने सिंधिया राज्य सभा के लिए नामित किया है साथ ही केंद्र में वह किसी भूमिका पर डील कर रहे हैं ऐसे कयास राजनीतिक गलियारों में है, पर उनके गृह प्रदेश में उनके इस कदम पर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की नजर बनी हुई है.

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