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Monday, 25 November, 2024
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ABVP के पूर्व नेता रेवंत रेड्डी कैसे पार्टी में शामिल होने के चार साल के भीतर ही तेलंगाना कांग्रेस के अध्यक्ष बने

तेलंगाना कांग्रेस में रेवंत रेड्डी का कद बढ़ाए जाने को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं, जो 2017 में ही पार्टी में शामिल हुए थे और जिनकी नियुक्ति कई दिग्गजों की कीमत पर हुई है.

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हैदराबाद: यह कैसे हुआ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के धुर आलोचक राहुल गांधी ने उसे चुना जिसने राजनीतिक गुर सीखने की शुरुआत ही संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से की थी?

खुले तौर पर राजनीतिक और वैचारिक निष्ठा को तरजीह देने वाले गांधी परिवार ने किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे चुना, जो आज तेलंगाना में मायने रखने वाले हर राजनीतिक दल-भाजपा, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी)-का सदस्य रहा है?

तेलंगाना राज्य के लिए चले किसी भी आंदोलन का हिस्सा नहीं रहे अनुमुला रेवंत रेड्डी कैसे उस राज्य में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए पसंदीदा विकल्प बन गए, जहां अब भी टीआरएस को आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण ही समर्थन मिलता है?

कांग्रेस की तरफ से रेवंत रेड्डी को अपनी तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए जाने के बाद पार्टी हलकों में इस पर सवाल उठ रहे हैं और जवाब में कांग्रेस नेताओं का कहना है इसके पीछे वजह पार्टी के उन नेताओं के साथ उनकी निकटता में निहित है, जो दिल्ली में थे और हैं.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने लगभग दो साल पहले इसकी कवायद शुरू की और यह सुनिश्चित किया कि वह राहुल गांधी के करीबी सहयोगी कोप्पुला राजू की गुड बुक में शामिल हो जाएं.’

आंध्र प्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी राजू ने कांग्रेस के साथ काम करने के लिए 2013 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. वह गांधी परिवार के साथ काफी निकटता से जुड़े रहे हैं और राहुल गांधी के 12, तुगलक लेन निवास-सह-कार्यालय में बैठते हैं.

पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक, रेवंत कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार, तमिलनाडु के सांसद जोथिमणी और सबसे बड़ी बात मणिकम टैगोर- जो तमिलनाडु के ही एक अन्य सांसद और तेलंगाना में एआईसीसी प्रभारी भी हैं- के साथ नजदीकियां कायम करने में सफल रहे हैं.

एक अन्य वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘डी.के. शिवकुमार दक्षिण के अहमद पटेल की तरह हैं, इसलिए आप समझ सकते हैं कि उनकी राय कितनी अहमियत रखती होगी.’

रेवंत की शादी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत जयपाल रेड्डी की भतीजी गीता रेड्डी से हुई है, जिन्होंने आपातकाल के दौरान कांग्रेस छोड़ दी थी और फिर 22 साल बाद पार्टी में लौटे थे.

पूर्व एबीवीपी नेता जिसने पार्टी के दिग्गजों को पीछे छोड़ा

मलकाजगिरी निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस सांसद रेवंत को शनिवार को तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया था.

हालांकि, उन्हें इस तरह आगे बढ़ाए जाने में कुछ आश्चर्यजनक नहीं है. 53 वर्षीय कार्यकारी अध्यक्ष तो तभी से इस पद के लिए दावेदारी में सबसे आगे चल रहे थे जब करीब दो साल पहले आलाकमान ने एक नए अध्यक्ष की तलाश पर ध्यान केंद्रित किया था.

लेकिन जिस बात से राज्य कांग्रेस के कुछ नेता नाखुश हैं, वो यह कि रेवंत सिर्फ चार साल पहले अक्टूबर 2017 में पार्टी में शामिल हुए थे और पार्टी के कम से कम चार अन्य दिग्गजों—भोंगिर से लोकसभा सदस्य कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी; छह बार के विधायक और मौजूदा एमएलसी टी. जीवन रेड्डी; चार बार विधायक रह चुके मंथानी निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा विधायक श्रीधर बाबू; और पूर्व सांसद मधु याक्षी, जो कभी न्यूयॉर्क में वकील थीं—को पीछे छोड़कर इस पद पर पहुंच गए हैं.

कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी पहले ही इस नियुक्ति पर निशाना साधते हुए कह चुके हैं कि रेवंत रेड्डी की पदोन्नति के साथ कांग्रेस कार्यालय तो एकदम टीडीपी कार्यालय बन जाएगा.


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वेंकट रेड्डी ने रविवार को कहा, ‘वोट के बदले नोट मामले में पहले जो हुआ वही यहां (पीसीसी प्रमुख के चुनाव में) दोहराया गया है. मुझे यह दिल्ली जाने के बाद पता चला…मैं गारंटी नहीं दे सकता कि कांग्रेस कार्यालय टीडीपी कार्यालय में तब्दील नहीं होगा.’

वेंकट रेड्डी परोक्ष रूप से रेवंत रेड्डी पर टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के प्रभाव का जिक्र कर रहे थे.

नए राज्य कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने राजनीतिक जीवन के कुछ अहम साल टीडीपी में नायडू के नेतृत्व में बिताए हैं. और हालांकि वह पार्टी छोड़ चुके हैं लेकिन दोनों ने कभी भी सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं बोला. नायडू और कुछ अन्य टीडीपी नेताओं के साथ रेड्डी भी नोट के बदले वोट घोटाले में आरोपी हैं, जिसमें 2015 के तेलंगाना विधान परिषद चुनावों में कथित तौर पर वोट खरीदने की कोशिश की गई थी.

हालांकि, यह उनके राजनीतिक जीवन का एक हिस्सा भर है जो कि राज्य के सभी प्रमुख दलों से जुड़ा रहा है.

रेड्डी 1980 के दशक में अपने छात्र जीवन के दौरान एबीवीपी के सदस्य थे. लेकिन मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) और उनके बेटे आईटी मंत्री के.टी. रामा राव के धुर आलोचक कांग्रेस के नए अध्यन ने सही मायने में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 2003 में केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ ही की थी.

चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिए जाने पर असंतुष्ट होकर उन्होंने 2005 में पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद 2006 में जिला परिषद प्रादेशिक समिति के सदस्य बने, और 2008 में विधान परिषद का चुनाव जीता—दोनों बार उन्होंने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था.

2008 में टीडीपी में शामिल हुए और कोडंगल निर्वाचन क्षेत्र में लगातार दो बार (2009 और 2014 में) जीत हासिल कर विधायक के तौर पर काम किया.

2017 में उन्होंने टीडीपी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में कोडंगल के तेलंगाना का हिस्सा बनने के बाद इस सीट पर हार गए. हालांकि, उन्होंने मलकाजगिरी से लोकसभा चुनाव जीत लिया.

‘आक्रामक, मुखर, युवाओं के बीच पैठ’

राज्य के राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, पार्टी की तरफ से राज्य में दिग्गजों की टीम के नेतृत्व के लिए रेवंत रेड्डी को चुने जाने की बड़ी वजहें उनकी आक्रामक राजनीति वाली शैली, सरकार के एक घोर आलोचक के तौर पर नजर आना, एक अच्छा वक्ता होना, युवाओं के बीच अच्छी पैठ और सोशल मीडिया पर उपस्थिति आदि हो सकती हैं.

यह सब इसलिए मायने रखता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कभी मजबूत विपक्षी नेताओं के तौर पर पहचान नहीं बना पाए और यहां तक कि कुछ को तो चोरी-छिपे केसीआर के साथ हाथ मिला लेने वाला भी माना जाता है.

रेवंत के पहले करीब पांच साल तक यह पद संभालने वाले उत्तम कुमार रेड्डी के नेतृत्व में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को कई बार हार और अपने नेताओं को दलबदल कर सत्तारूढ़ पार्टी में जाते देखना पड़ा है.

2018 में विधानसभा चुनावों में 19 सीटें जीतने वाली पार्टी राज्य में अपने एक दर्जन विधायकों के सत्तारूढ़ टीआरएस में शामिल होने के बाद राज्य में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा खोना पड़ा था.

भाजपा के उपचुनाव जीतने और राज्य भर में नगरपालिका चुनावों में जीत हासिल करने के साथ कांग्रेस के तीसरे स्थान पर खिसकने का खतरा खड़ा हो गया.

यही नहीं, पार्टी अपने केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से मांग पूरी किए जाने के बावजूद अलग तेलंगाना बनने का श्रेय लेने का दावा भी नहीं कर सकी.

रेवंत किसी भी पार्टी में रहे हों, उससे इतर उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि वह एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में दिखाई दें जो केसीआर और केटीआर के शासन का मुकाबला कर सकता है.

उदाहरण के तौर पर, 2020 में उन्होंने कथित तौर पर सरकारी मानदंडों का उल्लंघन करके एक फार्महाउस बनाने के लिए केटीआर को निशाना बनाया. उन्होंने अपने समर्थकों के साथ फार्महाउस में घुसने की कोशिश भी की और उन्हें एहतियातन हिरासत में ले लिया गया. रेड्डी ने इसके बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया, जिस पर मंत्री को नोटिस जारी किया गया.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रो. नागेश्वर राव कहते है, ‘उनमें आक्रामकता तो हमेशा से थी, तब भी जब 2007 में वह एमएलसी थे. मैं तब विधान परिषद का ही हिस्सा था. मैं उनके अंदर ये दृढ़ता देख सकता था कि वह निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. कांग्रेस को इस समय ऐसे ही दृढ़ निश्चयी नेताओं की जरूरत है जो केसीआर, नायडू और वाई.एस. जगन रेड्डी जैसे तेवर रखते हों.’

उन्होंने बताया, ‘जब राहुल गांधी तेलंगाना में थे और जनसभाएं करते थे, तो हर बार जब रेवंत रेड्डी को मंच पर बुलाया जाता तो अन्य नेताओं की तुलना में उनके समर्थन में सबसे ज्यादा नारे लगते थे. (कांग्रेस) शीर्ष नेतृत्व ने इस पर गौर किया होगा.’

2019 में रेवंत रेड्डी भी उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पार्टी में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

( इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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