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Tuesday, 17 December, 2024
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कैसे देवेंद्र फडणवीस 2019 में सत्ता छोड़ने की निराशा को पीछे छोड़ ‘मी पुन्हा ये’ के वादे पर खरे उतरे

अब से करीब 31 महीने पहले भाजपा नेता द्वारा विश्वास मत से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले एमवीए सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ था, अब ठाकरे के भी इस्तीफा देने के साथ ही फडणवीस के लिए जीवन का एक चक्र पूरा हो गया है.

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मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा में विश्वास मत से एक दिन पहले, नवंबर 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह महसूस करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था कि उनके पास अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक संख्या नहीं है. वह सत्ता की दौड़ में इस बार हार गए थे.

फडणवीस के इस्तीफे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवसेना अध्यक्ष ठाकरे की ताजपोशी के साथ सरकार बनाने का दावा करने का मार्ग प्रशस्त किया. एमवीए शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है.

इसके 31 महीने बाद, महाराष्ट्र में बुधवार को फिर से वही पटकथा दोहराई गई, पर इस बार ‘विजित’ और ‘विजेता’ की भूमिकाएं आपस में बदल गईं हैं. गुरुवार को सीएम उद्धव ठाकरे ने अपनी सरकार के बहुमत को साबित करने के लिए ज़रूरी विश्वास मत की पूर्व संध्या पर इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह जानते थे कि शिवसेना में हुई अब तक की सबसे खराब बग़ावत के बाद उनकी हार को टाला नहीं जा सकता. इस महीने में कुछ समय पहले मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों का एक समूह पार्टी से अलग होकर एमवीए सरकार के खिलाफ हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप उसे विधानसभा में अपना बहुमत खोना पड़ा.

ठाकरे के इस्तीफे ने महाराष्ट्र में फडणवीस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सत्ता में संभावित वापसी का रास्ता साफ कर दिया है.

इसके साथ ही, फडणवीस ने 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए दंभ से भरे ‘मी पुन्हा ये’ (मैं वापस आऊंगा) वाले प्रचार अभियान के बाद 80-घंटे की एक सरकार बनाने वाले एक हताश एवं बदनाम हुए नेता से लेकर आज की महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में खड़े शख़्श के रूप में जीवन के पूर्ण चक्र को पूरा कर लिया.

बुधवार की रात, जैसे ही ठाकरे ने इस्तीफा दिया, भाजपा में एक छोटा सा उत्सव मनाया गया. हालांकि अधिकारिक रूप से उसने अपने आप को शिवसेना के भीतर उपजे विद्रोह, जिसके कारण ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई है, से दूर रखा है.

भाजपा विधायक मनीषा चौधरी ने फडणवीस को पेड़े खिलाने के लिए मिठाई का एक डब्बा खोला, जिसके बाद महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने भी उन्हें मिठाई खिलाई. साथ ही, पार्टी ने ‘मी पुन्हा ये’ वाले वादे को सच साबित करने के लिए फडणवीस के भाषणों का एक संग्रह ट्वीट किया.


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भाजपा अध्यक्ष पाटिल ने जीत के जश्न की एक तस्वीर ट्वीट करते हुए कहा, ‘देवेंद्र फडणवीस जी ने इस सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी जो एक अप्राकृतिक गठबंधन के जरिए सत्ता में आई थी. देवेंद्र जी को सफलता मिलने के लिए बधाई.’

हालांकि, फडणवीस ने अपनी तरफ से कुछ समय के लिए सतर्क रुख बनाए रखा, और पत्रकारों के सवालों को ‘कल तक सब कुछ पता चल जाएगा’ के साथ टालते रहे.

फिर से सुर्खियों में हैं फडणवीस

भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को कई मौकों पर बताया है कि 2019 के चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भाजपा के विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भी उसके सरकार बनाने में विफल रहने की वजह से फडणवीस कुछ समय के लिए पार्टी नेतृत्व की पसंद से दूर हो गये थे.

उस समय भाजपा की सरकार बनाने में असमर्थता का कारण चुनाव के बाद शिवसेना का यह आरोप लगाते हुए भाजपा के साथ गठबंधन से बाहर हो जाना था कि भाजपा सीएम की कुर्सी सहित सभी पदों को समान रूप से साझा करने के अपने वादे से मुकर रही है. अंततः शिवसेना ने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों, कांग्रेस और राकांपा के साथ एक गठबंधन बना लिया.

फडणवीस की राजनीतिक पूंजी को उस समय एक और झटका लगा जब उन्होंने अजीत पवार के नेतृत्व में राकांपा विधायकों के एक धड़े के समर्थन से सरकार बनाने का असफल प्रयास करते हुए आनन फानन में आधी रात को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करवाया. वह सरकार केवल 80 घंटे चली क्योंकि पवार और उनके अन्य साथी विधायक अपने पार्टी के खेमे में वापस लौट गये.

हालांकि, उसके बाद से इस भाजपा नेता ने 2020 और 2022 के बिहार और गोवा के विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत के लिए पार्टी के अभियान का नेतृत्व करते हुए और इस महीने कुछ समय पहले महाराष्ट्र में हुए राज्यसभा और एमएलसी चुनाव के दौरान एमवीए में उथल-पुथल मचाते हुए, जबर्दस्त वापसी की है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, फडणवीस ने एमवीए सरकार के गठन के बाद से महाराष्ट्र में पार्टी के आधार को मजबूत करने के लिए भी कड़ी मेहनत की है. उन्होंने कोविड -19 महामारी की दो लहरों के दौरान पूरे राज्य की बड़े पैमाने पर यात्रा की, और पिछले साल महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में आई बाढ़ के बाद जमीन पर हालात का जायजा भी लिया.

राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने इस साल फरवरी में दिप्रिंट को बताया था, ‘इस सरकार का विपक्ष इतना मजबूत है कि आपको सीएम की शारीरिक अनुपस्थिति का अहसास होता है. एक तरफ एक ऐसा व्यक्ति है (उद्धव ठाकरे) जो घर से बाहर ही नहीं निकलते हैं (यह एक ऐसी आलोचना है जिसका उद्धव ठाकरे को लगातार सामना करना पड़ा है, खासकर महामारी के दौरान), और दूसरी तरफ एक विपक्षी नेता (देवेंद्र फडणवीस) हैं जो कभी अपने घर पर बैठे नहीं रहते.’

फडणवीस ने एमवीए के शासन की तीखी आलोचना के साथ एमवीए सरकार को लगातार परेशानी में डाले रखा, और राज्य की नौकरशाही के भीतर अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए आरे मेट्रो कार शेड, सचिन वाजे मामले और एक कथित आईपीएस के ट्रांसफर और पोस्टिंग रैकेट जैसे मुद्दों पर आधिकारिक रिकॉर्ड पेश करने के साथ सरकार को निशाने पर लेते रहे.

एक दर्जन से अधिक एमवीए नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही विभिन्न जांचों ने भी एमवीए पर फडणवीस के अथक हमलों को और अधिक धार दी.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘फडणवीस एक बहुत ही सफल विपक्षी नेता निकले. वे लगातार दौरे और कार्यक्रम करते रहते थे, और अपनी आलोचनाओं के साथ हमेशा एमवीए सरकार को बैकफुट (रक्षात्मक मुद्रा) पर रखते थे. एमवीए सरकार की पूरी शासन अवधि में, वह राजनीतिक चर्चा के लिए नैरेटिव स्थापित कर रहे थे और एमवीए के तीनों दलों के बीच के मतभेदों को उजागर करने की लगातार कोशिश कर रहे थे.’

देसाई ने आगे कहा: एक ओर ज़हां उद्धव ठाकरे ने सीएम के रूप में बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र के लोगों की सद्भावना अर्जित की, वहीं उनमें कुछ कमियां भी थीं. जैसे कि उनकी प्रशासनिक कौशल की कमी, सभी को एक सीएम के रूप में साथ ले चलने में असमर्थता आदि. उन्होंने पार्टी संगठन पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना की ज़रूरी था, और उनके स्वास्थ्य की समस्या भी उनके लिए एक बड़े नुकसान का कारण बनी.’

भाजपा के भीतर फडणवीस का उदय

भाजपा के भीतर फडणवीस का कद 2013 के बाद से बढ़ने लगा, जब पार्टी ने उन्हें एक ऐसे समय में राज्य भाजपा अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जब गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी जैसे वरिष्ठ नेता अपने-अपने उम्मीदवारों का नाम आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. फडणवीस को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता था जो किसी विशेष खेमे से संबंध नहीं रखते थे.

गडकरी समर्थकों द्वारा अपने नेता को राज्य का शीर्ष पद दिए जाने की मांगों के बावजूद वह साल 2014 में सीएम के रूप में उनकी नियुक्ति के बाद धीरे-धीरे महाराष्ट्र में भाजपा का प्रमुख चेहरा बन गए. पार्टी सूत्रों ने कहा कि फडणवीस इस पद के लिए पार्टी की पसंद इसलिए बने क्योंकि पार्टी नेतृत्व गडकरी के रूप में मोदी के समानांतर एक और सत्ता केंद्र बनाने से बचना चाहता था.

तब से, पिछले आठ वर्षों के दौरान, फडणवीस ने विनोद तावड़े, एकनाथ खडसे और पंकजा मुंडे जैसे पुराने नेताओं, जो पार्टी के भीतर उनकी स्थिति को संभावित रूप से चुनौती दे सकते थे, को किनारे करते हुए महाराष्ट्र भाजपा पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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