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Thursday, 19 December, 2024
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हिमाचल चुनावों के लिए BJP 20% विधायकों को नहीं बनाएगी उम्मीदवार, प्रदर्शन समीक्षा के आधार पर होगा फैसला

विरोधी लहर पर क़ाबू पाने के लिए BJP एक भारी प्रदर्शन समीक्षा कर रही है. पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में पार्टी, मंडी लोकसभा सीट और तीन विधान सभा सीटें हार गई थी.

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नई दिल्ली: इसी साल होने वाले विधान सभा चुनावों की तैयारी करते हुए, बीजेपी की हिमाचल प्रदेश इकाई प्रदर्शन समीक्षा के आधार पर, अपने 20 प्रतिशत मौजूदा विधायकों को टिकट न देने पर विचार कर रही है, ये ख़ुलासा पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट से किया है.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी पहले ही कई प्रदर्शन समीक्षाएं कर चुकी है. सूत्रों ने बताया कि पार्टी विचार कर रही है, कि जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, उनकी जगह नए चेहरों को उतारा जाए, ताकि विरोधी लहर पर क़ाबू पाने में सहायता मिल सके.

लेकिन, बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वो मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी. ये ऐलान 11 अप्रैल को राज्य के दौरे पर आए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया था.

सूत्रों ने कहा कि पार्टी अपनी ‘डबल इंजिन सरकार’- एक वाक्य जिसका इस्तेमाल बीजेपी अकसर केंद्र और राज्य में अपनी सरकारों के लिए करती है- और दोनों स्तरों पर अपनी विकास नीतियों पर निर्भर कर रही है.

हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन दशकों में कोई पार्टी, लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं आ पाई है- एक ऐसा रुझान जिसे बीजेपी बदलने की उम्मीद कर रही है.

बीजेपी ने 2017 में राज्य की 68 सदस्यीय विधान सभा में 44 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस के हिस्से में 21 सीटें आईं थीं.

दिप्रिंट से बात करते हुए बीजेपी के हिमाचल प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने स्वीकार किया, कि पार्टी 20 प्रतिशत मौजूदा विधायकों को टिकट न देने पर विचार कर रही है.

खन्ना ने कहा, ‘समीक्षा की अंतिम प्रक्रिया चल रही है, और जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, उन्हें मैदान में नहीं उतारा जाएगा. अंतिम फैसला जल्द ही लिया जाएगा’.


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विरोधी लहर को हराना

ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी ने विरोधी लहर का सामना करने के लिए, ख़राब प्रदर्शन करने वाले विधायकों को चुनाव न लड़ाने का निर्णय किया है. बीजेपी की गुजरात इकाई नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री के दिनों से इस रणनीति पर अमल कर रही है, और दूसरे राज्यों की पार्टी इकाइयों ने भी इस प्रथा को अपनाया है.

2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में, पार्टी क़रीब 25-30 प्रतिशत सिटिंग विधायकों को टिकट न देने पर विचार कर रही थी, लेकिन पार्टी में कुछ सिलसिलेवार इस्तीफों के बाद, उसे अपनी रणनीति बदलनी पड़ी.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘गुजरात में, विरोधी लहर को काटने के लिए असेम्बली चुनावों से पहले मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया गया था. लोग बीजेपी को एक अवसर देना चाहते हैं, लेकिन साथ ही वो पुराने चेहरों से ऊब जाते हैं. बहुत मरतबा मौजूदा विधायक भी आत्म-संतुष्ट हो जाते हैं, और काम करना बंद कर देते हैं. हमारा अनुभव कहता है कि लोगों के एक ही व्यक्ति को दो बार वोट देने की संभावना कम रहती है’.

विरोधी लहर का मुद्दा बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है. पार्टी के लिए एक बड़ी परेशानी के संकेत के तौर पर, पिछले साल नवंबर में हुए उप-चुनावों में, वो मंडी लोकसभा सीट और तीन विधान सभा सीटों पर हार गई.

ये हार पार्टी के लिए एक झटका थी, क्योंकि हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है. पार्टी की एक समीक्षा के अनुसार, इस हार से न केवल अंदरूनी कलह और जीतने योग्य उम्मीदवारों की उपेक्षा, बल्कि राज्य में विरोधी लहर भी खुलकर सामने आ गई.

आंतरिक सर्वेक्षण

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा कि पार्टी आंतरिक सर्वेक्षणों का सहारा ले रही है, जिनसे उसे ये तय करने में सहायता मिलेगी, कि मौजूदा विधायक कितने लोकप्रिय हैं, और उन्हें फिर से मैदान में उतारा जाए, या उनकी जगह नए चेहरों को लाया जाए.

पार्टी सूत्रों ने बताया कि बीजेपी आलाकमान भी इसमें आगे आ गया है, और संगठन का सरकार के साथ तालमेल बिठाने के लिए कई बैठकें हुई हैं, और विरोधी लहर को ध्यान में रखते हुए मौजूदा विधायकों के काम की एक बड़ी समीक्षा की गई है.

बीजेपी के हिमाचल प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने दिप्रिंट को बताया, कि उन्होंने पार्टी के मौजूदा विधायकों से अपने काम का ‘रिपोर्ट कार्ड’ देने के लिए कहा है जो उन्होंने किया है.

खन्ना ने कहा, ‘असली चीज़ प्रदर्शन है और यही कारण है कि हमने अपने विधायकों से उस समय रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए कहा था, जब सरकार के तीन साल पूरे हुए थे, और फिर एक रिपोर्ट कार्ड चार साल होने पर मांगा था’.

हिमाचल बीजेपी नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने चुनावी प्रचार के लिए अपना ज़मीनी कार्य पहले ही कर लिया था, जिसमें केंद्रीय नेतृत्व ने एक अहम भूमिका निभाई थी.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘उत्तराखंड में हालिया जीत ने भी काडर में एक ऊर्जा भर दी है, और उन्हें काफी विश्वास है कि पार्टी एक बार फिर सत्ता में आएगी, जैसा कि हमने दूसरे पहाड़ी सूबे में किया है. यहां पर भी हमारा फोकस डबल-इंजिन सरकार पर रहेगा’.


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AAP का एंगल

ये विधान सभा चुनाव थोड़ा अलग रहने वाले हैं, क्योंकि पंजाब में ज़बर्दस्त जीत हासिल करने के बाद, आम आदमी पार्टी (आप) ने भी चुनाव मैदान में उतरने का फैसला कर लिया है.

लगता है कि बीजेपी ने पहले से संभावित बदलाव का अंदाज़ा लगा लिया है, और हाल ही में उसने अपनी भर्ती गतिविधियां बढ़ा दी हैं. वो कई आप नेताओं को पार्टी में शामिल कराने की कोशिशें कर रही है.

बीजेपी में बहुत से लोगों का दावा है, कि केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी की प्रदेश इकाई से सुनिश्चित करने को कहा है, कि ‘समान सोच’ वाले लोगों को पार्टी में शामिल किया जाए, और उस संगठनात्मक ढांचे को ‘तोड़ने’ की कोशिश की जाए, जिसे आप खड़ा करने की कोशिश कर रही है.

एक पार्टी नेता ने कहा कि इसका लक्ष्य ये सुनिश्चित करना है, कि चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के बीच दो-कोने वाली दौड़ बने रहें.

एक अन्य नेता ने कहा, ‘ये सुनिश्चित करना हमारे हित में है, कि चुनाव सिर्फ दो पार्टियों के बीच की टक्कर बने रहें. हम त्रिकोणीय मुक़ाबला नहीं चाहते, और ये सुनिश्चित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, कि आप राज्य में अपना संगठन खड़ा न कर पाए’.

अविनाश राय खन्ना ने कहा कि एक ‘महा संपर्क अभियान यात्रा’ आयोजित की गई थी, जिसमें मौजूदा विधायक और वो लोग भी जो चुनाव नहीं जीत पाए थे, लोगों से मिल रहे थे और उन्हें सरकार द्वारा किए गए कार्यों से अवगत करा रहे थे.

बीजेपी नेता ने कहा कि नवंबर उप-चुनावों में उनकी हार के पीछे महंगाई भले ही एक कारक न रही हो, लेकिन उसने विरोधी-लहर की समस्या के प्रति उनकी आंखें ज़रूर खोल दीं.

बीजेपी नेता ने कहा, ‘उपचुनाव हारने से हमने बहुत कुछ सीखा है. हमारी हार का बहुत कुछ संबंध हमारे कुछ विधायकों के खिलाफ विरोधी-लहर से था. लेकिन उप-चुनाव हारने का मतलब ये नहीं है, कि हम असेम्बली चुनाव हार जाएंगे. लोकतंत्र की यही ताक़त है. बीजेपी ने राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग नहीं किया, जैसा कि पश्चिम बंगाल में किया जाता है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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