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Friday, 20 December, 2024
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हिमाचल में Modi सरकार का हट्टी समुदाय को एसटी का दर्जा देना BJP के किसी काम नहीं आया

कईं एससी संगठनों ने हट्टी समुदाय को एसटी का दर्जा देने के कदम का विरोध करते हुए मार्च निकाला था. माना जा रहा है कि इस इलाके में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की एक वजह उसके प्रति दलितों की नाराजगी भी रही है.

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नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात का सबूत हैं कि राज्य के हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कवायद नाकाम ही साबित हुई है.

पहाड़ी राज्य में सत्तारूढ़ रही बीजेपी के कांग्रेस से हार जाने के एक दिन बाद विधानसभा चुनाव नतीजों के विश्लेषण में पाया गया कि पार्टी राज्य के हट्टी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी स्थिति सुधारने में विफल रही है. राज्य में बीजेपी को 25 और कांग्रेस को 40 सीटें हासिल हुई हैं.

यह स्थिति तब है जबकि भाजपा-नीत केंद्र की मोदी सरकार ने सितंबर में राजपूतों और ब्राह्मणों का एक सामाजिक समूह हट्टी समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया था.

हट्टी समुदाय की तरफ से लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी, लेकिन यह कदम राज्य के दलित समुदायों को रास नहीं आया और बड़े पैमाने पर उनकी नाराज़गी का कारण बना,राज्य में दलितों की आबादी करीब 25 प्रतिशत है.

इस कदम का विरोध करने वालों को डर था कि यह बदलाव उनके अपने मौजूदा आरक्षण को प्रभावित करेगा.

हालांकि, बीजेपी ने सिरमौर जिले की चार हट्टी बहुल सीटों में से पच्छाद और पावंटा साहिब को बरकरार रखा है. यह दोनों सीटें पार्टी ने 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में जीती थी. वहीं,कांग्रेस पिछली बार की तरह ही श्रीरेणुकाजी और शिलाई सीटें दोबारा हासिल करने में सफल रही.

पच्छाद और पावंट साहिब में मौजूदा भाजपा विधायकों रीना कश्यप और सुखराम चौधरी ने क्रमश: 21,215 और 31,008 वोटों के साथ अपनी सीटों पर कब्जा जमाया रखा.

इसी तरह, कांग्रेस के विनय कुमार और हर्षवर्धन चौहान ने भी श्री रेणुकाजी और शिलाई की अपनी सीटों को 860 और 382 मतों के अंतर से बरकरार रखा.

वहीं, हट्टी वोटबैंक के प्रभाव वाले एक अन्य जिले शिमला की आठ विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने केवल एक चोपाल सीट जीती है, जबकि 2017 में उसने यहां तीन सीटें जीती थीं.


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हट्टियों को एसटी का दर्जा, दलितों में नाराज़गी

सिरमौर जिले के कुल वोटबैंक में हट्टियों की हिस्सेदारी करीब 30 प्रतिशत की है.

हिमाचल में मुख्यत: टोंस और गिरि नदियों के बीच ट्रांस-गिरि क्षेत्र में बसे हट्टियों को यह नाम ‘हाट’ से मिला है-जो कि परंपरागत रूप से छोटे बाजारों में घरेलू सब्जियां, फसल, मांस, ऊन आदि बेचते थे.

सिरमौर के साथ लगी सीमा पर स्थित उत्तराखंड के जौनसार बावर में हट्टियों को एसटी का दर्जा मिलने के बाद 1967 से ही यह समुदाय अपने लिए भी इस दर्जे की मांग कर रहा था.

एसटी दर्जे की उनकी मांग ने पिछले कुछ वर्षों में जोर पकड़ा और जनजाति समुदाय से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने वाली पांरपरिक परिषदों यानी महा खुम्बलिस में कई प्रस्ताव पारित किए गए.

2016 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ट्रांस-गिरि क्षेत्र को आदिवासी का दर्जा देने के लिए केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय में एक फाइल भेजी थी.

पहली बार अपने 2009 के चुनावी घोषणापत्र में हट्टियों को एसटी का दर्जा देने का वादा करने वाली बीजेपी ने आखिरकार गत सितंबर में इसे पूरा किया था.

केंद्र सरकार की तरफ से समुदाय की मांग स्वीकारने से पहले ही सिरमौर के नाहन में कई अनुसूचित जाति संगठनों ने हट्टी को एसटी का दर्जा देने के किसी भी कदम का विरोध करते हुए मार्च निकाला था.

माना जा रहा है कि क्षेत्र में भाजपा के खराब प्रदर्शन की एक वजह दलितों के बीच नाराजगी रही है.

दलितों की तरफ से विरोध बढ़ने के बीच हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अक्टूबर में ‘हट्टी आभार रैली’ में कहा था, ‘यह हट्टियों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा था जो आने वाली पीढ़ियों को लाभ पहुंचाएगा. कुछ विपक्षी नेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जाति समुदाय को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे, जबकि उनकी चिंताओं का समाधान कर दिया गया है. सिरमौर राज्य के पहले चार जिलों में से एक था और पहले मुख्यमंत्री भी इसी जिले से थे.’

उसी रैली में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘मैं यहां अपने दलित भाइयों और बहनों को आश्वस्त करने आया हूं कि उनके अधिकारों में से कोई भी छीना नहीं जाएगा—चाहे आरक्षण हो या (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत.’

उन्होंने कहा, ‘हट्टी समुदाय के पचपन साल पुराने दर्द को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूर कर दिया है, जिनका हिमाचल से भावनात्मक जुड़ाव रहा है. 379 गांवों और 1.60 लाख लोगों वाली 154 पंचायतों को एसटी दर्जे से पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ होगा क्योंकि उन्हें विभिन्न आरक्षण नीतियों से फायदा मिलता रहेगा.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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