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Sunday, 23 June, 2024
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हिमाचल विधानसभा चुनाव में 12 बागियों ने बिगाड़ा खेल, कांग्रेस और BJP दोनों को पड़ा महंगा

विधानसभा चुनावों में निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमाने वाले बागियों ने जहां आठ सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों की जीत की संभावनाओं पर पानी फेर दिया, वहीं कांग्रेस उम्मीदवारों को उनके चलते चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

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नई दिल्लीः हिमाचल प्रदेश में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में बागियों ने 68 में से 12 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ा.

विधानसभा चुनावों में निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमाने वाले बागियों ने जहां आठ सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों की जीत की संभावनाओं पर पानी फेर दिया, वहीं कांग्रेस उम्मीदवारों को उनके चलते चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

चुनाव मैदान में उतरे कुल 99 निर्दलीयों में से 28 बागी थे. तीनों विजयी निर्दलीय उम्मीदवार-नालागढ़ से के. एल. ठाकुर, देहरा से होशियार सिंह और हमीरपुर से आशीष शर्मा ने टिकट न मिलने के बाद बीजेपी से बगावत कर दी थी.

ठाकुर ने 2012 का विधानसभा चुनाव जीता था, लेकिन 2017 में वह हार गए थे. भाजपा ने उनकी जगह दो बार के कांग्रेस विधायक लखविंदर सिंह राणा पर दांव लगाने का फैसला किया, जो चुनाव से पहले पार्टी में शामिल हुए थे.

वहीं, देहरा से निर्दलीय विधायक सिंह ने चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया था, लेकिन पार्टी ने रमेश धवाला को टिकट दे दिया. इसी तरह, हमीरपुर से उम्मीदवार न बनाए जाने से नाराज आशीष शर्मा ने भी पार्टी से बगावत कर दी थी.

बागियों ने किन्नौर, कुल्लू, बंजर, इंदौरा और धर्मशाला में भाजपा प्रत्याशियों की जीत की संभावनाएं धूमिल कर दीं, जबकि पच्छाद, चौपाल, आनी और सुलह में कांग्रेस उम्मीदवारों को उनके चलते हार का मुंह देखना पड़ा.

निर्दलीय और अन्य छोटे दलों का कुल वोट प्रतिशत 10.39 फीसदी रहा.

किन्नौर में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने वाले भाजपा के पूर्व विधायक तेजवंत नेगी को 19.25 फीसदी यानी 8,574 वोट मिले. यह आंकड़ा कांग्रेस प्रत्याशी जगत सिंह नेगी के जीत के अंतर (6,964 वोट) से अधिक है और इसने भाजपा उम्मीदवार सूरत नेगी की हार में अहम भूमिका निभाई.

वहीं, कुल्लू में भाजपा के बागी राम सिंह को 16.77 फीसदी यानी 11,937 वोट हासिल हुए, जबकि पार्टी प्रत्याशी नरोत्तम ठाकुर को 4,103 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंदर ठाकुर के हाथों हार झेलनी पड़ी.

बंजर में भी परिदृश्य अलग नहीं था. निर्दलीय के रूप में ताल ठोकने वाले हितेश्वर सिंह को 24.12 फीसदी यानी 14,568 वोट मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी खिमी राम को 4,334 मतों से हार का सामना करना पड़ा. हितेश्वर सिंह भाजपा नेता महेश्वर सिंह के बेटे हैं.

धर्मशाला में भाजपा के बागी विपिन नहेरिया के खाते में 12.36 फीसदी यानी 7,416 वोट गए, जो कांग्रेस उम्मीदवार सुधीर शर्मा के जीत के अंतर (3,285 वोट) से काफी अधिक हैं.

सुल्ला और अन्नी में भी कुछ ऐसा ही परिदृश्य देखने को मिला, जहां मुकाबला भाजपा उम्मीदवारों और कांग्रेस के बागियों के बीच था और कांग्रेस का आधिकारिक प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा.

पच्छाद और चौपाल में कांग्रेस के बागियों गंगू राम मुसाफिर और सुभाष मैंग्लेट ने क्रमश: 21.46 प्रतिशत और 22.03 फीसदी वोट हासिल किए, जो उक्त सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों के जीत के आंकड़े से दो से तीन गुना ज्यादा हैं.

हिमाचल में हुए ताजा चुनावों में निर्दलीयों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने 68 में से 40 सीटों पर जीत दर्ज कर स्पष्ट जनादेश हासिल किया है. लेकिन, राज्य में अतीत में हुए कुछ चुनावों में निर्दलीयों ने निर्णायक भूमिका निभाई है, जहां हर विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी एक-एक कर दोनों प्रमुख दलों के हाथों में जाने का रिकॉर्ड रहा है.

1982 के चुनावों में कांग्रेस ने हिमाचल विधानसभा की 68 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी और निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. इन चुनावों में भाजपा और जनता पार्टी को क्रमश: 29 और दो सीटें हासिल हुई थीं, जबकि छह सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे थे.

जनता पार्टी के दो निर्वाचित विधायकों द्वारा समर्थन का आश्वासन देने के बाद भाजपा नेता शांता कुमार सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राज भवन गए थे. हालांकि, जनता पार्टी के दोनों विधायक वहां नहीं पहुंचे, अलबत्ता चार निर्दलीयों ने कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर दिया.

1998 में एक मात्र निर्दलीय विधायक रोमेश धवाला ने सरकार गठन में निर्णायक भूमिका निभाई थी. उन्होंने पहले कांग्रेस और फिर भाजपा-हरियाणा विकास कांग्रेस गठबंधन के समर्थन की घोषणा की थी. अंतत: राज्य में भाजपा नीत गठबंधन ने सत्ता संभाली.


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