नई दिल्ली: जय राम ठाकुर सरकार के वार्डों की संख्या बढ़ाने वाले कदम के खिलाफ दायर जनहित लंबित होने से शिमला नगर निगम के दिल्ली की ही राह पर आगे बढ़ने और इसके चुनाव टलने के पूरे आसार हैं.
इस मामले में भाजपा का आधिकारिक रुख यह है कि शिमला चुनाव कराने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) की है.
पार्टी के हिमाचल प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव आयोग चुनाव नहीं करा रहा क्योंकि एक जनहित याचिका कोर्ट में लंबित है, और केवल कोर्ट ही चुनाव की अनुमति दे सकती है. हमारा काम तो संगठन को चुनाव के लिए तैयार करना है, वो चाहे जब भी हों. बाकी अभी तो इसकी जिम्मेदारी एसईसी और अदालत पर है.’
हालांकि, भाजपा सूत्रों के मुताबिक, देरी की असल वजह यह है कि पार्टी इस साल के अंत में प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले निगम के चुनाव कराने की अनिच्छुक है. भाजपा अभी राज्य के साथ-साथ शिमला नगर निकाय में भी सत्ता में है.
हिमाचल भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले नगरपालिका चुनाव कराने में एक बड़ा जोखिम है. हमें यकीन है कि हम स्थानीय निकाय चुनाव आराम से जीत लेंगे, लेकिन एक फीसदी संभावना के साथ भी अगर हम हार गए तो विधानसभा चुनाव जीतने के लिहाज से इसका काफी प्रतिकूल असर होगा.’
हिमाचल में 2021 में चार सीटों—तीन विधानसभा और एक लोकसभा—के उपचुनाव में मिली हार का जिक्र करते हुए उक्त नेता ने कहा, ‘कैडरों का मनोबल और राजनीतिक माहौल फिर से बिगड़ जाएगा. हमें याद है कि कैसे वीरभद्र सिंह (कांग्रेस के) पहले नगरपालिका चुनाव और फिर 2017 में विधानसभा चुनाव हारे थे.
शिमला नगर निगम के 2017 के चुनावों में भाजपा ने 31 वर्षों के नगर निकाय चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था और 34 में से 17 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 12 पर ही सफलता मिली थी.
इस बार आबादी के बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए सीटों की संख्या 34 से बढ़ाकर 41 कर दी गई है. भाजपा के सूत्र निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि इस कदम का उद्देश्य पार्टी के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में अधिक सीटें जोड़ना था.
उनका कहना है कि यह कोई नई रणनीति नहीं है. भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ‘2017 में नगर निगम की 25 सीटें थीं, लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने यह संख्या बढ़ाकर 34 कर दी थी.’
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शिमला में संभावित परिदृश्य
बहुत संभव है कि एक प्रशासक शिमला निगम का प्रभार संभाल ले, जैसा दिल्ली में किया गया था, जहां तीन स्थानीय निकायों के एकीकरण के कारण नगरपालिका चुनाव स्थगित कर दिए गए हैं.
शिमला नगर निगम का पांच साल का कार्यकाल जून में पूरा होने वाला है, और चुनाव आयोग को उससे पहले चुनाव कराने हैं. लेकिन मौजूदा स्थितियों में यह असंभव लग रहा है क्योंकि मतदाता सूची तैयार करने से लेकर चुनाव कराने तक आयोग को कम से कम 45 दिन का समय चाहिए होता है.
लेकिन जनहित याचिका की वजह से चुनाव प्रक्रिया अभी शुरू भी नहीं हुई है. दरअसल, कोर्ट में एक अन्य याचिका भी लंबित है जिसमें नगर निकाय में आरक्षण को चुनौती दी गई है.
राज्य चुनाव आयोग पहले ही जनहित याचिकाओं को निपटाने के लिए हाई कोर्ट से अनुरोध कर चुका है ताकि चुनाव जल्द हो सकें.
हिमाचल प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1994 के मुताबिक, चुनाव की समयसीमा पूरी होने के छह महीने के भीतर चुनाव हो सकते हैं, लेकिन पार्षद कार्यकाल समाप्त होने के बाद कार्य नहीं कर सकते.
राज्य के शहरी विकास सचिव देवेश कुमार ने कानून विभाग से शिमला नगर निगम चुनाव समय पर नहीं होने की स्थिति में उपलब्ध विकल्पों पर राय देने को कहा है.
सूत्रों के मुताबिक ऐसे में एक प्रशासक की जरूरत होगी जो चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचित निकाय की अनुपस्थिति में काम करेगा. नगर आयुक्त को प्रशासक के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है.
चुनाव के पीछे की राजनीति
भाजपा को 2017 की पुनरावृत्ति होने की आशंका सता रही है, जब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे और शिमला नगरपालिका के चुनाव जून में हाई कोर्ट के निर्देश पर कराए गए थे. नगर निकाय में सत्तारूढ़ कांग्रेस चुनाव हार गई और फिर उस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी उसे हार का सामना करना पड़ा.
हिमाचल भाजपा के एक दूसरे नेता ने कहा, ‘सबसे अच्छी स्थिति यह होगी कि दोनों चुनाव एक साथ कराए जाएं.’
उन्होंने कहा, ‘पिछले साल जब हम विभिन्न कारणों से हिमाचल में चार उपचुनाव हारे थे, तो पार्टी कैडर का मनोबल गिर गया था. हम ये भरोसा बहाल रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि राज्य में एक और कार्यकाल के लिए चुनाव जीत सकते है, जैसा हमने इस साल के शुरू में चार राज्यों में कर दिखाया है. इस समय, यहां तक कि नगर निगम चुनावों में भी हार गलत संदेश देगी.’
एक अन्य विकल्प यह है कि, यदि हाई कोर्ट नगर निगम चुनावों का आदेश देती है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में बृहन्मुंबई नगर निगम और मध्य प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों के संदर्भ में दिया था, तो भाजपा उम्मीदवारों को अपना चुनाव चिन्ह आवंटित न करने पर भी विचार कर सकती है, क्योंकि इससे चुनाव बाद निर्दलीय उम्मीदवारों को साधने में ज्यादा सहूलियत हो सकती है.’
शिमला में खुद को मजबूती से स्थापित करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने फरवरी में शिमला विकास योजना 2041 की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य 1979 में तैयार की गई एक अंतरिम विकास योजना की जगह लेना है.
शहरी विकास मंत्रालय ने न केवल शिमला के निवासियों को बिजली कनेक्शन के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र में छूट दी है, बल्कि बिजली और पानी की दरों को कम करने के अलावा झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए संपत्ति के अधिकार की भी घोषणा की है.
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