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Saturday, 20 April, 2024
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आज़म ख़ान को जेल से बाहर लाने के लिए मुलायम, सपा कुछ ज्यादा कर सकते थे, मैं योगी से बात करूंगा: शिवपाल

भतीजे और SP प्रमुख अखिलेश से एक और खींचतान तथा BJP से नज़दीकियां बढ़ाने की ख़बरों के बीच, शिवपाल यादव का कहना है कि वो आज़म से हाथ मिलाने की तभी सोचेंगे जब वो जेल से बाहर आ जाएंगे.

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लखनऊ: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से अलग हो गए चाचा शिवपाल यादव को लगता है कि पार्टी और उसके कुलपिता- उनके भाई मुलायम सिंह यादव- कई बार के सांसद और विधायक आज़म ख़ान को जेल से बाहर लाने के लिए कुछ अधिक कर सकते थे.

शिवपाल ने, जिनकी अपने भतीजे के साथ लंबे समय से चली आ रही कलह बहुत अच्छे से दर्ज है, बृहस्पतिवार को दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में कहा, ‘आज़म ख़ान के साथ बहुत अन्याय और क्रूरता हो रही है. उनके खिलाफ कई फर्ज़ी मामले दर्ज किए जाने के बाद, पिछले 26 महीने से उन्हें जेल की सलाख़ों के पीछे रखा गया है’.

उन्होंने आगे कहा कि ‘नेता जी’ (मुलायम) के अंतर्गत एसपी को इस मामले को प्रधानमंत्री के साथ उठाना चाहिए था, या उस ‘अन्याय तथा क्रूरता और फर्ज़ी मामलों’ के विरोध में धरने पर बैठना चाहिए था, जिन्होंने ख़ान को पिछले 26 महीनों से जेल में रखा हुआ है.

शिवपाल का बयान उत्तर प्रदेश के कुर्सी के खेल में बदलती निष्ठाओं की गाथा में एक ताज़ा घटनाक्रम है. आज़म ख़ान और अखिलेश यादव के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र, जसवंतनगर से एसपी विधायक ने जो कहा है वो अहमियत रखता है.

पिछले सप्ताह से शिवपाल खुले तौर पर ख़ान के प्रति अपनी हमदर्दी का ऐलान कर रहे हैं, जो एसपी के सबसे विवादित नेताओं में से हैं. रामपुर विधायक के खिलाफ 87 आपराधिक मामले दर्ज हैं और वो फरवरी 2020 से जेल में हैं. इनमें से 84 मामले बीजेपी के 2017 असेम्बली चुनाव जीतने के बाद दर्ज किए गए, जिस जीत को उसने इस साल दोहराया है.

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ग़ौरतलब है कि शिवपाल ख़ुद कथित रूप से भारतीय जनता पार्टी से नज़दीकियां बढ़ा रहे हैं, बावजूद इसके कि इस साल का विधान सभा चुनाव उन्होंने एसपी के टिकट पर जीता था.

एसपी नेता रविदास महरोत्रा ने, जो 24 अप्रैल को जेल में आज़म ख़ान से मिलने गए थे, दिप्रिंट से कहा कि बीजेपी ख़ान और एसपी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश कर रही है, जिससे कि वो पार्टी से मुसलमानों का समर्थन अपनी ओर खींच सके.

उन्होंने कहा, ‘आज़म ख़ान साहब एक बड़े नेता हैं लेकिन उन्हें वो बी-क्लास सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं, जो किसी सांसद-विधायक को जेल के अंदर मिलनी चाहिए. जेल अधिकारी उन्हें उकसाते हैं और पूछते रहते हैं कि एसपी से कोई उन्हें मिलने के लिए क्यों नहीं आता’.

महरोत्रा ने भी आरोप लगाया: ‘जब हम जाते हैं तो हमें ये कहकर मुलाक़ात की अनुमति नहीं दी जाती कि आज़म हमसे मिलना नहीं चाहते, लेकिन कौन जानता है कि जेल अधिकारी हमारी पर्चियां उन्हें भेजते भी हैं कि नहीं? बीजेपी सरकार नहीं चाहती कि एसपी आज़म से मिले, ताकि उन्हें पार्टी से दूर किया जा सके’.


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‘अभी गठबंधन की कोई बात नहीं’

शिवपाल ने, जिनके समाजवादी पार्टी ख़ासकर भतीजे अखिलेश के साथ तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं जबसे 2016 में उनका सार्वजनिक रूप से झगड़ा हुआ था, दिप्रिंट से कहा कि आज़म ख़ान से हाथ मिलाने की कोई भी बातचीत तभी होगी जब वो जेल से बाहर आ जाएंगे.

जब शिवपाल से पूछा गया कि रामपुर और आज़मगढ़ के आगामी लोकसभा उप-चुनावों में, क्या उन दोनों के एक मंच साझा करने की संभावना बन सकती है, तो उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने इस बारे में सोचा नहीं है’.

‘पहले आज़म भाई को बाहर आना चाहिए और फर्ज़ी मुक़दमे वापस लिए जाने चाहिए, तभी जाकर कोई बातचीत हो सकती है’.

उन्होंने कहा, ‘जैसे ही मुख्यमंत्री लखनऊ आते हैं, मेरा प्रयास होगा कि उनसे कुछ समय लूं और हाल की कुछ अपराधिक घटनाओं – ललितपुर, प्रयागराज या चंदौली- और आज़म भाई के खिलाफ मुक़दमों के बारे में उनसे बात करूं’. शिवपाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ‘साधु’ व्यक्ति बताया.

शिवपाल प्रयागराज, ललितपुर, और चंदौली में बहुत सारी अपराधिक घटनाओं का ज़िक्र कर रहे थे. जहां प्रयागराज में सामूहिक हत्याओं की कई घटनाएं सामने आईं, जहां एक एसएचओ तथा कुछ अन्य पुलिसकर्मियों पर ग़ैर-इरादतन हत्या का मुक़दमा दर्ज किया गया, जब एक पुलिस रेड के दौरान एक हिस्ट्री-शीटर की 24-वर्षीय बेटी की कथित रूप से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. यूपी के ललितपुर ज़िले में एक इंस्पेक्टर को गैंग-रेप की शिकायत करने आई एक 13 वर्षीय लड़की के बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसकी वजह से एक पूरा पुलिस थाना जांच के घेरे में है.

रामपुर और आज़मगढ़ दोनों एसपी के मज़बूत गढ़ हैं. रामपुर आज़म ख़ान की अपनी सीट थी जो उन्होंने इस साल मार्च में- यूपी असेम्बली चुनावों के बाद- अपनी असेम्बली सीट बचाए रखने के लिए छोड़ दी थी. आज़मगढ़ सीट जिसे मुलायम ने 2014 में और उनके बेटे अखिलेश ने 2019 में जीता था, उस समय ख़ाली हो गई जब अखिलेश ने अपनी करहाल असेम्बली सीट बचाने के लिए वहां से इस्तीफा दे दिया.

ये बयान तब आए हैं जब आज़म ख़ान ख़ेमे के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ख़ान एसपी की निष्क्रियता को लेकर नाराज़ हैं.

अपनी ओर से अखिलेश ने आज़म ख़ान और शिवपाल के बीच गठबंधन को लेकर किसी भी बातचीत से इनकार किया है.

बृहस्पतिवार को उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘शिवपाल जी मेरे चाचा हैं, स्वाभाविक है कि वो मुझसे एक क़दम आगे होंगे’.

आज़म ख़ान के 2022 लोकसभा चुनाव के लिए दाख़िल हलफनामे से पता चलता है कि उनके खिलाफ 87 में से 31 मामले मौहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के सिलसिले में ज़मीन कब्ज़ाने से जुड़े हैं, जो एक निजी संस्थान हैं जिसके आज़म ख़ान चांसलर हैं. तेरह मामले 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान और उसके बाद उनके बयानात से जुड़े हैं, जबकि 26 मामले 2016 में डूंगरपुर में घरों को अवैध रूप से तोड़े जाने से संबंधित हैं. उनके ऊपर एक मदरसे की किताबें चुराने, एक व्यक्ति से 16,500 रुपए लूटने, और अपने बेटे के जन्म प्रमाण पत्र तथा पैन कार्ड में हेराफेरी करने के भी आरोप हैं.

आज़म ख़ान के पीआरओ फसाहत अली ख़ां ने दिप्रिंट से कहा: ‘उन्हें ज़्यादातर मामलों में ज़मानत मिल गई है और सिर्फ एक केस बचा है जिसमें इलाहबाद हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर 2021 से अपना आदेश सुरक्षित रखा हुआ है’.

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ख़ान की ज़मानत याचिका की सुनवाई में देरी न्याय का उपहास है, और उसने सुनवाई की अगली तारीख़ 11 मई तय कर दी.

ख़ान ने देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाज़ा तब खटखटाया, जब इलाहबाद उच्च न्यायालय ने उनकी ज़मानत अर्ज़ी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.


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‘SP में कोई स्वीकार्यता नहीं’

शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधान सभा चुनाव लड़ने, और किसी भी दूसरे विपक्षी नेता से ज़्यादा वोट हासिल करने के बाद भी, एसपी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है.

उन्होंने कहा, ‘चूंकि एसपी ने मुझे स्वीकार नहीं किया है, इसलिए हमने अपनी पार्टी (प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया) को पुनर्गठित करने और मज़बूत करने का फैसला किया है’.

उन्होंने कहा कि हालांकि समाजवादी पार्टी के ज़्यादा सीटें न देने से उन्हें तकलीफ हुई थी, लेकिन जिस चीज़ से उन्हें ज़्यादा तकलीफ हुई वो ये थी, कि एसपी ने उन्हें असेम्बली चुनावों के बाद पार्टी प्रदर्शन की समीक्षा बैठक से बाहर रखा.

उन्होंने कहा, ‘चुनाव के बाद मुझे केवल एक सीट मिली. मैंने वो सीट सबसे अधिक वोटों से जीती. उसके बाद भी समाजवादी पार्टी नेता (अखिलेश) ने मुझे उस मीटिंग में नहीं बुलाया’.

अपने भतीजे के हाथों कथित रूप से ग़लत व्यवहार के बारे में उनके हालिया ट्वीट पर सवाल किए जाने पर, जिसमें उन्होंने इशारा किया था कि जिसे उन्होंने चलना सिखाया था वहीं उनसे पलट गया है, उन्होंने कहा: ‘समझदार को इशारा ही बहुत है और इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहा क्लिक करें)


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