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Tuesday, 17 December, 2024
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नड्डा ने PM को अंधेरे में रखा; हिमाचल BJP के बागी नेता ने क्या किया कि ‘मोदी को फोन करना पड़ा’

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पर अपना राजनीतिक करियर बर्बाद करने का आरोप लगाने वाले हिमाचल प्रदेश भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष कृपाल परमार फतेहपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता कृपाल परमार के फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के फैसले के कारण न सिर्फ हिमाचल प्रदेश में चुनावी टिकट को लेकर में पार्टी में बगावत हुई बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उनसे संपर्क करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पूर्व राज्यसभा सांसद उन 17 बागी लोगों में शामिल हैं जो चुनाव में टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ने की योजना बनाई है. हिमाचल प्रदेश निवासी भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा बागी नेताओं को पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं.

परमार ने दिप्रिंट से कहा कि वह चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन जब वन मंत्री राकेश पठानिया ने उन्हें फोन पर अपशब्द कहें तो उन्होंने अपना मन बदल लिया. उन्होंने कहा, ‘ मैंने यह बात नड्डा जी को बताई लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. मैं बहुत दिनों से टिकट की मांग कर रहा था. मुझे 2012 में नकार दिया गया था और 2017 में मैं केवल 1,200 वोट से हार गया था. मुझे हराने के लिए एक बागी को मैदान में उतारा गया था.’

पिछले हफ्ते भाजपा से निकाले गए परमार 2000 से 2006 के बीच हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा सदस्य और राज्य भाजपा के उपाध्यक्ष थे.

शनिवार को परमार का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह कथित तौर पर एक ऐसे व्यक्ति से बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं जिसे वह नरेंद्र मोदी बता रहे हैं और नड्डा के खिलाफ अपने राजनीतिक करियर को खत्म करने की शिकायत करता है.

वीडियो क्लिप में फोन की दूसरी तरफ के व्यक्ति के द्वारा यह सुना जा सकता है जिसमें वह कह रहे हैं, ‘मैं कुछ नहीं सुनूंगा, चुनाव से बाहर हो जाओ.’ फिर परमार कहते हैं,’आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं. यह भगवान की ओर से एक निर्देश है. अगर यह कॉल दो दिन पहले आई होती तो बेहतर होता.’

हिमाचल में 12 नवंबर को मतदान होंगे. चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 25 अक्टूबर थी और नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 29 अक्टूबर थी.

वीडियो वायरल होने के तुरंत बाद कांग्रेस ने कहा कि यह क्लिप भाजपा की हताशा को दिखाता है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री खुद भाजपा के बागियों से आधिकारिक उम्मीदवारों की संभावना को खराब नहीं करने का आह्वान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मैं उम्मीद कर रहा था कि पार्टी 2021 में कांग्रेस विधायक सुजान सिंह की मृत्यु के बाद उपचुनाव में टिकट देगी लेकिन इसके बजाय नड्डा जी ने मेरे खिलाफ साजिश रची. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मुझे शिमला ले जाने के लिए हेलीकॉप्टर से मेरे पास आए थे और उन्होंने मुझे राज्य चुनाव में टिकट देने का आश्वासन दिया.

उन्होंने दिप्रिंट को आगे बताया कि लेकिन टिकट वितरण के वक्त पठानिया की सीट बदल दी गई और क्योंकि उनके पास उनका अपना जेब भरना और व्यावसायिक हित है. मेरी उम्मीदवारी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. मैंने इस पूरे प्रकरण के बारे में बता दिया है लेकिन नड्डा जी ने सुनिश्चित किया किया कि प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखा जाए.

भाजपा आलाकमान ने पठानिया को नूरपुर से फतेहपुर स्थानांतरित कर दिया था क्योंकि वह सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे थे.

परमार ने स्वीकार किया कि मोदी के हस्तक्षेप के कारण उन्हें पांच साल पहले चुनाव का टिकट मिला था. भाजपा के इस बागी नेता ने दावा किया कि पार्टी में उनके विरोधियों ने ऐसी स्थिति पैदा करने की साजिश रची ताकि उन्हें इस साल उम्मीदवारी से इनकार कर दिया जाए.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘नाम वापस लेने की तारीख बीत जाने के बाद प्रधानमंत्री जी का फोन आया. मैंने उनसे कहा कि मोदी जी, अगर आप पहले फोन किए होते तो यह संभव था. आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं लेकिन अब देर हो चुकी है.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा को अब डर है कि फतेहपुर उसके हाथ से फिसल रहा है क्योंकि लड़ाई मेरे और पठानिया के बीच है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा को मेरा समर्थन करना चाहिए और अपने संसाधनों को मेरी जीत के लिए लगाना चाहिए. मैं एक ऐसा नेता हूं जो कैडरों से उभरा हूं. अगर मेरा घर जलेगा तो औरो के घर भी जलेंगे.’

बीजेपी प्रवक्ता महेंद्र धर्माणी ने प्रधानमंत्री द्वारा कथित तौर पर परमार को फोन करने की खबरों को खारिज कर दिया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि बताया कि यह दिखाता है कि कैसे पार्टी का हर कार्यकर्ता चुनाव को लेकर गंभीर है, चाहे वह राज्य हो या पंचायत चुनाव. कांग्रेस के विपरीत, जहां राहुल गांधी के पास पार्टी के प्रचार के लिए समय नहीं है वहीं प्रधानमंत्री ने खुद विद्रोहियों से अपील की है. विभाजित कांग्रेस बिना नेता और कैप्टन के चुनाव लड़ रही है.


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बीजेपी से क्यों खफा हैं कृपाल

परमार भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज और पूर्व मुख्यमंत्री पी के धूमल के करीबी रहे हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बलदेव ठाकुर को टिकट दिया था जो कांग्रेस के दिग्गज नेता सुजाव सिंह पठानिया से हार गए थे. परमार 2017 में भाजपा के उम्मीदवार थे लेकिन ठाकुर से 1200 वोट के मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे जो एक निर्दलीय उम्मीदवार थे.

परमार ने कहा,’ उन्होंने मेरे खिलाफ 2017 में एक बागी उम्मीदवार को खड़ा करके मेरी हार सुनिश्चित की. 2021 के उपचुनाव में उन्होंने उसी उम्मीदवार को टिकट दिया जिसके कारण मुझे नामांकन से वंचित होना पड़ा. पार्टी ने मुझे अलग थलग करने की कोशिश की.

उन्होंने दावा किया कि एक युवा मोर्चा सचिव को मेरे खिलाफ एक तुच्छ मामला दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. बाद में उन्हें मोर्चा उपाध्यक्ष के रूप में पदोन्नति मिली.

उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा पिछले साल के पंचायत चुनाव में फतेहपुर से जीती थी लेकिन पार्टी नेतृत्व ने प्रधानमंत्री को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि उन्होंने पार्टी के जीत के लिए काम नहीं किया.

उन्होंने कहा, ‘यह एकतरफा रिपोर्ट थी, मुझे कितना अपमान सहना पड़ सकता है?’

फतेहपुर उपचुनाव में टिकट नहीं मिलने पर पिछले साल नवंबर में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. उस समय उन्होंने दिप्रिंट को बताया था कि उन्हें भाजपा में उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ा है.

बागियों से जूझ रही है बीजेपी

भाजपा ने 31 अक्टूबर को परमार और किन्नौर से विधायक तेजवंत सिंह नेगी, आनी से किशोरी लाल, इंदौरा से मनोहर धीमान और नामगढ़ से के एल ठाकुर को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया था.

पांचों बागी अपने अपने क्षेत्रों से निर्दलीय चुनाव लड़ने पर अड़े हैं.

नड्डा तीन नेताओं, पूर्व सांसद महेश्वर सिंह, जिन्होंने कुल्लू सदर से नामांकन दाखिल किया था, युवराज कपूर, जिन्होंने करसोग से लड़ने की योजना बनाई थी और धर्मशाला से पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष अनिल चौधरी को चुनावी दौड़ से हटने के लिए मनाने में कामयाब रहे हैं.

भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रतन सिंह पाल ने स्वीकार किया कि कई जगहों पर टिकट वितरण में समस्या है लेकिन लोग भाजपा को ही वोट करेंगे.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि हर कार्यकर्ता टिकट चाहते हैं लेकिन सभी को समायोजित करना संभव नहीं है. यह दर्शाता है कि हम सत्ता में तब आ रहे हैं जब हर निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के टिकट की भारी भीड़ है. कैडर आधारित पार्टी में लोग केवल पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वोट करते हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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