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Saturday, 23 November, 2024
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फसल बिक्री को आसान बनाने के लिए मनोहर लाल खट्टर की प्रिय योजना से किसान परेशान

'मेरी फैसल मेरा ब्यौरा' योजना के लिए किसानों को खेती से लेकर फसलों की खरीद तक के लिए पोर्टल पर अपना नामांकन करने को कहा गया है.

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चंडीगढ़ः हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने विधानसभा चुनावों से महीनों पहले, पिछले सप्ताह किसानों के लिए एक योजना शुरू की है, लेकिन इसको लेकर वह जिस तरह के उत्साह की उम्मीद कर रहे थे, वह नहीं दिख रही है.

‘मेरी फैसल मेरा ब्यौरा’ कही जाने वाली योजना शुरू से लेकर अंत तक सरकार का सहयोग पाने – खेती से लेकर फसलों की सुचारू खरीद सुनिश्चित करने तक किसानों को अनिवार्य रूप से पोर्टल पर पंजीकृत करने के लिए कहती है.

मांगे गए विवरण में फसल की जानकारी, बैंक खाते का विवरण और मोबाइल नंबर शामिल है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की योजना है कि किसान-केंद्रित पहलों का लाभ – जिसमें केंद्र द्वारा लांच की गईं योजनाएं शामिल हैं- सीधे लाभार्थियों तक पहुंचें.

हालांकि, किसान निकायों ने योजना के बारे में संदेह व्यक्त करते हुए इसकी खामियों की ओर इशारा किया है, इसके अलावा आशंका जताई है कि पंजीकरण प्रक्रिया में संभावित निजीकरण की बू आती है. वे जो योजना बनाते हैं, वास्तव में बैंकों को लाभ पहुंचाने वाली होती हैं.


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पोर्टल एक डेटाबेस है

मुख्यमंत्री खट्टर ने 4 जुलाई को पोर्टल www.fasalhry.in के उद्घाटन के साथ योजना का शुभारंभ किया, जहां किसान अपना डेटा मुहैया कराते हैं.

यह पोर्टल कृषि भूमि मालिकों, खेती करने वालों और कमीशन एजेंटों के डेटाबेस रखता है, और इसमें फसल की बुवाई सहित खेती के तहत जमीन के एक-एक वर्ग इंच का विवरण भी रहेगा.

पिछले साल, इसे हरियाणा के कुछ जिलों में पायलट आधार पर शुरू किया गया था, और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि ट्रायल रन के दौरान आई गड़बड़ियों को ठीक कर दिया गया है. पंजीकरण करने वाले प्रत्येक किसान को हस्ताक्षर करने पर प्रति एकड़ 10 रुपये का भुगतान किया जाएगा. जो लोग खुद पंजीकरण करने में असमर्थ हैं, उन्हें मुफ्त में गांव के सामान्य सेवा केंद्रों की सहायता लेने को कहा गया है.

राज्य सरकार के अनुसार, प्रत्येक किसान द्वारा दी गई जानकारी को मंडियों के साथ, फिर फसल की खुद जाकर जांच के माध्यम से और आखिर में, हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर द्वारा भू-स्थानिक आंकड़ों को इकट्ठा किया जाएगा.

खरीद आसान नहीं बनाता

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पोर्टल पर पंजीकरण यह सुनिश्चित करेगा कि किसान को बुवाई से लेकर मंडियों में बिक्री के अधिकार में सहयोग मिले.

4 जुलाई को योजना के शुभारंभ पर बोलते हुए खट्टर ने कहा कि जिन फसलों के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया है, निश्चित रूप से उसे इस योजना के तहत खरीदा जाएगा.

हालांकि, भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह ने इसका मजाक उड़ाया है.

उन्होंने कहा, ‘यह सच नहीं है.’ ‘कुरुक्षेत्र में पायलट परीक्षण के दौरान, किसानों के पोर्टल पर पंजीकरण के बावजूद, कुछ किसानों से केवल सूरजमुखी की फसल खरीदी गई. साथ ही, खरीद के लिए प्रति एकड़ सरकार द्वारा तय की गई मात्रा उपज से कम थी.’ उन्होंने कहा, ‘सरकार धीरे-धीरे खरीद प्रक्रिया से हटना चाहती है और इस आंकड़े को निजी एजेंसियों को देना चाहती है, जो बाद में फसलों की खरीद शुरू कर देंगे.

सिंह ने अनिवार्य क्लाज के बारे में भी सवाल उठाए.

सिंह ने कहा, ‘क्या सरकार का मतलब है कि जो किसान खरीद के समय पंजीकरण नहीं करा पाएंगे, वे अपनी उपज मंडियों में नहीं बेच पाएंगे?’

उन्होंने एक उदाहरण फिर से देते हुए कहा कि 200 किसान अपनी उपज शाहबाद मंडी में बेचने में विफल रहे थे क्योंकि वे पोर्टल के साथ पंजीकरण करने में सक्षम नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘ऑनलाइन पंजीकरण फॉर्म भरने के दौरान गलती करने वाले लगभग 400 किसानों को पंजीकृत नहीं माना गया था.’

सिंह ने कहा किसानों को डायरेक्ट मनी ट्रांसफर पर भी संदेह था.

उन्होंने कहा, ‘काफी संख्या में किसान लोन ले रहे हैं लेकिन वे ब्याज और बैंक का मुख्य धन चुकाने में नाकाम हो रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘अधिकांश किसान कर्ज के दायरे में हैं और बैंकों को उनकी ब्याज या मूल राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं,’ उन्होंने कहा, ‘अगर कोई भुगतान सीधे कर्ज में डूबे किसान के खाते में किया जाता है, तो यह बैंक द्वारा तुरंत ऋण अदायगी के रूप में ले लिया जाएगा. इसलिए बहुत कम किसान चाहते हैं कि कोई भी पैसा सीधे उनके बैंक खातों में भेजा जाए.’


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कमीशन एजेंट भी चिंतित

खट्टर के आश्वासन के बावजूद कमीशन एजेंट, जो मंडियों में किसानों और खरीदारों के बीच कड़ी के रूप में काम करते हैं, ने भी संदेह जताया है कि उनके माध्यम से फसलों की खरीद जारी रहेगी.

कमीशन एजेंटों के लिए एक प्रतिनिधि संस्था, हरियाणा बीपर मंडल के अध्यक्ष, बजरंग दास गर्ग ने कहा, ‘जो भी योजना हो, अंत में, कमीशन एजेंटों को सिस्टम से बाहर निकालने का इरादा रखती है.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले चार वर्षों में, हमने किसानों और कमीशन एजेंटों के बीच पारंपरिक संबंध को तोड़ने से रोकने के लिए आठ बार विरोध किया है.

हालांकि, सरकारी अधिकारी ने चिंता पर ध्यान देने को कहा, यह कहते हुए कि प्रणाली पारदर्शी भू- स्वामित्व के तहत खरीद सुव्यवस्थित करने के मकसद से लाई गई है.

कई मालिकों के साथ एक भूखंड के संदर्भ में पारदर्शिता के तर्क को स्पष्ट करते हुए, अधिकारी ने कहा, ‘यदि भूमि के मालिकों में से एक खुद को पंजीकृत करता है, तो अन्य मालिकों को एक संदेश भेजा जाएगा. इसी तरह, जब कोई कृषक अपना पंजीकरण करता है, तो भूमि के मालिक को एक संदेश भेजा जाएगा. यदि कोई विसंगति है, तो एक अलार्म दिया जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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