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Wednesday, 24 April, 2024
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हरियाणा में पुलिस की नौकरी पाना, पहाड़ पर चढ़ने से ज्यादा कठिन है

इस हफ्ते की शुरुआत में नेपाल सरकार ने हरियाणा के तीन पर्वतारोहियों के खिलाफ चढ़ाई में हेराफेरी करने के आरोप में कार्रवाई शुरू कर दी है.

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चंडीगढ़: हरियाणा में पुलिस की नौकरी पाने के लिए वहां के युवा किसी भी हद तक जा सकते हैं. यहां तक कि वो पहाड़ पर भी चढ़ सकते हैं लेकिन दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ को स्केल करना भी अब काम नहीं कर रहा है, राज्य सरकार को उसकी दोषपूर्ण नीति के लिए धन्यवाद, जो भ्रष्टाचार, मनमानी और हेरफेर के आरोपों से ग्रस्त है.

2013 को हरियाणा सरकार ने एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले खिलाड़ियों को कैश इनाम देने की घोषणा की थी. लेकिन इसे 2015 में वापस ले लिया गया था. लेकिन पहाड़ की चोटी पर चढ़ने वाले कई लोगों को न केवल कैश अवार्ड दिए गए बल्कि हरियाणा पुलिस विभाग की नौकरी भी दी गई.

कुछ नियुक्तियों के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के ऑर्डर का पालन किया गया, वहीं अन्य लोगों के लिए स्पेशल सुपरन्यूमरी पोस्ट क्रिएट किया गया.

एवरेस्ट पर चढ़ाई करना जल्द ही सरकारी नौकरी पाने का एक रास्ता बन गया.

इस हफ्ते की शुरुआत में नेपाल सरकार ने हरियाणा के तीन पर्वतारोहियों के खिलाफ चढ़ाई में फर्जीवाड़ा करने के आरोप में कार्रवाई शुरू कर दी. तीनों पर्वतारोहियों, विकास राना, शोभा बनवाला और अंकुश कसाना का चढ़ाई करके वापस लौटने पर गर्मजोशी से स्वागत किया गया, लेकिन बाद में उन्हें अपने एवरेस्ट चढ़ाई करने के डॉक्युमेंट प्रूफ देने को कहा गया.

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इसकी शुरुआत कैसे हुई

साल था 2010, 29 साल की ममता सोढ़ा एवरेस्ट पर चढ़ाई के बाद घर लौट आई थी. तब मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जल्द ही उन्हें 21 लाख रुपये और राज्य में पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) की प्रतिष्ठित पद से पुरस्कृत किया. उस समय इनमें से किसी भी पुरस्कार को मंजूरी देने का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं था.

हुड्डा की उदारता से उत्साहित, 2011 में कुछ युवाओं ने शिखर सम्मेलन के लिए एक डैश बना दिया. उनमें से सात उस पर्वत की चढ़ाई करने में कामयाब रहें. 2012 में, एक व्यक्ति ने उस कठिन मुकाम को हासिल किया वहीं 2013 में, छह अन्य लोगों ने दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर चढ़ाई की लेकिन एक आधिकारिक नीति के बिना, इन पर्वतारोहियों को पुरस्कार देना मनमाना था.

2016 में पर्वतारोहण सुनीता चोकेन का हाईकोर्ट में केस लड़ने वाले के.एस बनयाना ने कहा, ‘सोढ़ा के मामले के बाद यह एक रैंडम चुनने का तरीका बन गया था. मजबूत राजनीतिक कनेक्शन वाले लोगों को लाभ मिला जबकि अन्य को अदालत का रुख करना पड़ा. सुनीता ने 2011 में एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी और आखिरकार उन्हें पिछले साल नौकरी की पेशकश की गई.

खेल नीति में बदलाव

पुलिस विभाग में सोढ़ा की नियुक्ति के बाद माउंट एवरेस्ट के शिखर तक पहुंचने के लिए अचानक से लगे होड़ को देखते हुए राज्य सरकार ने 2013 में मौजूदा खेल नियमों को बदलने का फैसला किया.

मई 2013 में, हुड्डा के मंत्रिमंडल में मंत्रियों की परिषद ने 2009 की खेल नीति में संशोधन किया, ताकि 2005 से शिखर पर चढ़ाई कर रहे खिलाड़ियों को 5 लाख रुपये का एकमुश्त नकद पुरस्कार दिया जा सके.

हालांकि, उन्हें सरकारी कर्मचारी नहीं होना चाहिए या पहले सरकारी नौकरी से पुरस्कृत नहीं होना चाहिए. इस निर्णय के बाद 10 पात्र पर्वतारोहियों को नकद पुरस्कार प्रदान किए गए.

ऐच्छिक रोजगार

राज्य सरकार ने 2014 में एक आदेश दिया था कि अब से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को कोई नौकरी नहीं दी जाएगी. बावजूद इसके उसी साल हरियाणा पुलिस की तीन महिला कांस्टेबल जिन्होंने चोटी पर चढ़ाई की थी, उन्हें फिर से सब-इंस्पेक्टर (एसआई) के रूप में नियुक्त किया गया था. इसे हुड्डा प्रशासन द्वारा लागू किया गया एक और ऐच्छिक कदम कहा जा सकता है.

हालांकि, 2012 में एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली एक अन्य महिला कांस्टेबल को एसआई नहीं बनाया गया था.

एक पर्वतारोही ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमें बताया गया कि खेल विभाग में बहुत अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है. अगर कोई सोढ़ा को दिए गए लाभों को हासिल करना चाहता है, तो उसे अदालत जाना होगा, वकीलों को भारी शुल्क देना होगा, या सरकारी नौकरी पाने के लिए सही लोगों को रिश्वत देनी चाहिए.’

हालांकि, सबसे बुरा होना अभी बाकी था.

मई 2015 में बनाई गई नई खेल नीति में, 5 लाख रुपये नकद पुरस्कार देने का प्रावधान हटाने के अलावा नई नीति में पर्वतारोहण का कोई उल्लेख नहीं किया गया.


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हाईकोर्ट से ली गई मदद

2015 में चार पर्वतारोहियों ने पंजाब और हरियाणा कोर्ट में गुहार लगाई. उनकी मांग थी कि उन्हें भी 2010 में पुरस्कृत की गई सोढ़ा की तरह सम्मान मिलना चाहिए. उसके बाद एक के बाद 6 पर्वतारोही 2016 में इसी मांग को लेकर कोर्ट पहुंचे. 2017 और 2018 में इसी तरह की चार और याचिका दायर की गई. इनमें से कुछ अभी भी कोर्ट में लंबित हैं.

2013 में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले 24 साल के रामलाल हाईकोर्ट से 2016 में राहत पाने वाले पहले व्यक्ति थे. सरकार ने उन्हें 2016 में एसआई नियुक्त किया था.

बनाया गया एसआई, बनना चाहते थे डीएसपी

रामलाल की नियुक्ति के बाद 2017-2018 में तीन और लोगों को कोर्ट ने राहत प्रदान किया और वे एसआई नियुक्त हुए. उन्हें 21 लाख रुपये कैश अवार्ड भी दिए गए. कई सारे लोगों को जिन्हें बाद में एसआई बनाया गया, उन्होंने डीएसपी बनने के लिए याचिका दायर की.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खेल विभाग के ऑफिस इन चार्ज आलोक वर्मा बताते हैं, ‘राज्य की किसी भी खेल नीति के तहत पर्वतारोहियों को नौकरी देने का कोई प्रावधान नहीं था. सोढ़ा को इनाम देना एक बार की बात थी. उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद अन्य सरकारी नौकरियों की पेशकश की गई थी. मुझे अदालत के आदेश के बिना किसी भी महिला पर्वतारोही को पुलिस विभाग में नौकरी पाने की जानकारी नहीं है.’

पर्वतारोहण खेल नहीं

चोकेन को पिछले साल नौकरी देने के उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद, राज्य सरकार ने फिर से पर्वतारोहियों के लिए नीति को कारगर बनाने का फैसला किया. जून 2018 में, मुख्यमंत्री खट्टर की अध्यक्षता में एक बैठक के बाद, यह निर्णय लिया गया कि एवरेस्ट को फतह करने वाले पर्वतारोहियों को ग्रेड सी खेल उन्नयन प्रमाण पत्र के साथ 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा (उन्हें खेल कोटे के भीतर एक वर्गीय सरकारी नौकरी के लिए पात्र बनाया जाएगा).

बाद में खेल विभाग को एक नीति तैयार करने के लिए कहा गया. मंत्रियों की परिषद के लिए एक ज्ञापन तैयार करते समय, तत्कालीन खेल सचिव अशोक खेमका ने कहा कि पर्वतारोहण एक प्रतिस्पर्धी खेल नहीं था और इसे एक जैसा नहीं माना जाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि कैसे कई प्रसिद्ध एवरेस्ट पर्वतारोहियों के साथ विचार-विमर्श से पता चला है कि चोटी पर चढ़ना अब इंसान के धैर्य की परीक्षा नहीं थी, क्योंकि यह मुख्य रूप से शेरपा द्वारा संचालित एक उद्यम बन गया है. इसलिए, खेमका ने सुझाव दिया कि माउंट अन्नपूर्णा, के-2 और कंचनजंगा जैसी अधिक कठिन चोटियों पर चढ़ने वालों को भी लाभ दिया जाना चाहिए.

कोर्ट में लंबित है निर्णय

फरवरी 2019 के कैबिनेट ज्ञापन में यह जानने की मांग की गई कि क्या जो लोग अदालत गए थे उन्हें 21 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और एक एसआई की नौकरी दिया जाए. हालांकि, अभी तक कैबिनेट नोट पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन राज्य की खेल नीति में कुछ बदलाव किए गए हैं. नए सिरे से प्रस्ताव सामने रखा गया है.

प्रधान सचिव, खेल, आनंद मोहन शरण का कहना है, ‘ताजा प्रस्ताव राज्य में पहाड़ पर चढ़ने को प्रोत्साहित करता है. इसे कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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