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Sunday, 22 December, 2024
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क्यों ‘कोली हृदय सम्राट’ पुरुषोत्तम सोलंकी के लिए ‘एक परिवार, एक टिकट’ का नियम तोड़ रही है भाजपा

चुनावी राज्य गुजरात में भाजपा ने दोनों सोलंकी भाइयों - पुरुषोत्तम और हीरा सोलंकी - को मैदान में उतार रही है, जो कोली समुदाय के प्रमुख चेहरे माने जाते है हैं. पुरुषोत्तम को भावनगर ग्रामीण और हीरा को राजुला से टिकट दिया गया है.

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अहमदाबाद: इस बात को भांपते हुए कि गुजरात में लगा चुनावी दांव बहुत बड़ा है, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने ‘एक परिवार, एक टिकट’ वाले नियम को ताक पर रखते हुए राज्य के कोली समुदाय के बड़ा चेहरा माने जाने वाले दोनों सोलंकी बंधुओं, पुरुषोत्तम और हीरा, को गुजरात के चुनावी मैदान में उतार दिया है.

अपनी खराब तबीयत के बावजूद, पांच बार के विधायक रहे पुरुषोत्तम सोलंकी को भावनगर ग्रामीण से मैदान में उतारा गया है. इस सीट से उन्होंने पहली बार साल 2012 में जीत हासिल की थी और 2017 में भी यह सीट अपने पास बरकरार रखी थी. उनके भाई हीरा सोलंकी, जो पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे, अमरेली जिले के राजुला से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

सोलंकी बंधु जिस कोली समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, वह गुजरात की कुल आबादी में एक तिहाई हिस्सा रखता है और कम से कम 32 विधानसभा सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है.

भावनगर जिले में पार्टी को बढ़त दिलाने के लिए भाजपा अपने कद्दावर नेता पुरुषोत्तम पर भरोसा कर रही है. हालांकि, यह इस तथ्य के बावजूद है कि कुछ साल पहले उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था और साल 2017 में उन्होंने पार्टी को बता दिया था कि वह चाहते हैं कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी जगह पर उनके बेटे जयेश को टिकट दिया जाये. इस सब के बावजूद, वह गुजरात के लिए जारी भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल हैं.

हालांकि, स्वयं पुरुषोत्तम का कहना है कि वह चुनावों से पहले के दौर में ‘ज्यादा यात्रा करने में सक्षम नहीं हो पायेंगें’, लेकिन पार्टी ने उन्हें भावनगर जिले में आने वाली सभी नौ सीटों पर अपनी जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी है.

सोलंकी सीनियर की गुजरात में कोली समुदाय का चेहरा बनने की यात्रा कई सारे विवादों से भरी हुई है, जिसमें मत्स्य घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता और राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या और पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के साथ हुई उनकी खींचतान भी शामिल है.

भाजपा के साथ सोलंकी सीनियर का जुड़ाव

भाजपा ने पहली बार साल 1998 में सोलंकी के ऊपर भरोसा जताते हुए उन्हें घोघो विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, जिसे उन्होंने 16,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता. बाद में, साल 2002 और साल 2007 के विधानसभा में चुनावों में उन्होंने इस सीट को अपने पास बरकरार रखा. फिर, साल 2012 में, उन्हें भावनगर ग्रामीण सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. उन्होंने न केवल 18,000 से अधिक मतों के अंतर से यह सीट जीती, बल्कि 2017 में भी इस पर अपना कब्जा जमाए रखा.

सोलंकी पर भाजपा की निरंतर निर्भरता के बारे में बात करते हुए अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ पत्रकार जापान पाठक ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा को साल 1996 के लोकसभा चुनाव में तब सोलंकी की अहमियत का एहसास हुआ जब उन्होंने तत्कालीन गुजरात भाजपा अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राणा को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि सोलंकी सिर्फ 7,000 मतों से हार गए, लेकिन इस चुनाव के तुरंत बाद राणा ने उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.’

पार्टी के भावनगर जिला महासचिव भूपतभाई बरैया ने कहा कि तत्कालीन भाजपा नीत राज्य सरकार में मंत्री रहे महेंद्र त्रिवेदी ने सोलंकी के दोस्त धीरू भाई सी.आर. और राणा के साथ मिलकर सोलंकी को भाजपा में लाने में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाई थी.

बरैया ने कहा, ‘उसके बाद सोलंकी ने कोली समुदाय के लिए खूब काम किया और इसी वजह से साल 1998 के विधानसभा चुनावों में उनकी जीत के तुरंत बाद भाजपा ने उन्हें (केशुभाई पटेल सरकार में) मत्स्य मंत्री बनाया. लेकिन जब साल 2021 में विजय रुपाणी  और उनके पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया गया था तो उन्हें (सोलंकी को) भी हटा मंत्री पद से हटा दिया गया था. वह नाराज थे और भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी, यही वजह है कि उन्हें और उनके भाई दोनों को टिकट दिया गया है.’

भूपतभाई ने समझाया कि साल 1995 तक भाजपा को कोली समुदाय का समर्थन प्राप्त नहीं था. वे कहते हैं, ‘भावनगर में अहीर और राजपूत समुदायों का बोलबाला था. किरीटसिंह गोहिल, जो चिमनभाई सरकार में गृह मंत्री थे, एक प्रभावशाली व्यक्ति थे और तालुकों से लेकर जिलों तक हर जगह उनकी ही तूती बोलती थी. जब सोलंकी भाजपा में शामिल हुए, तो उन्होंने सुनिश्चित किया कि जिले में गोहिल की पकड़ ढीली हो.’

किरीटसिंह के भतीजे परबतसिंह गोहिल ने साल 1998 में सोलंकी के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था, जबकि किरीटसिंह के अपने बेटे महावीरसिंह गोहिल को भी साल 2002 में सोलंकी ने चुनावी पटखनी दे दी थी. तब से, अन्य कोली नेताओं, जैसे करसनभाई पटेल, और राजपूत नेताओं, जैसे शक्तिसिंह गोहिल, ने भी सोलंकी को हराने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ रहा.’

गुजरात भाजपा के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया,  ‘सोलंकी सीनियर इस बार अपने बेटे को मैदान में उतारने में दिलचस्पी दिखा रहे थे, लेकिन पार्टी जानती थी कि उनके बेटे का अपने पिता की तरह का प्रभाव नहीं है और वह यह जोखिम नहीं उठाना चाहती थी. वह (पुरषोत्तम सोलंकी) ‘कोली हृदय सम्राट’ हैं.’


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मत्स्य घोटालारूपाणी के साथ खींचतान

हालांकि,  बार-बार भाजपा के लिए वोट बटोरने में कामयाब रहने के बावजूद पुरुषोत्तम कभी भी पार्टी के साथ अपने मतभेदों को सार्वजनिक करने से कतराते नहीं हैं.

साल 2017 में गुजरात में भाजपा के फिर से सत्ता में आने के बाद, सोलंकी को विजय रुपाणी कैबिनेट में कनिष्ठ मंत्री के रूप में मत्स्य पालन विभाग के प्रभार के साथ शामिल किया गया था. यह भाजपा सरकार में उनका चौथा कार्यकाल था. कोई भारी-भरकम विभाग न मिलने से नाराज सोलंकी ने कैबिनेट की बैठक में हिस्सा नहीं लिया और इसके बजाय कोली समुदाय के नेताओं से मिलने चले गए. राज्य के एक भाजपा नेता के अनुसार, उन्होंने तत्कालीन सीएम रूपाणी को उनके कुछ मंत्रालयों को उन कैबिनेट सहयोगियों को सौंपने का सुझाव भी दिया था, जो एक ही विभाग को संभाल रहे थे.

पुरुषोत्तम के भाई हीरा, जो उन्हें कैबिनेट के जगह न मिलने से नाराज थे, ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में कोली समुदाय के ‘कम प्रतिनिधित्व’ के विरोध में अहमदाबाद में एक रैली भी आयोजित की थी.

उनके लंबे राजनीतिक जीवन का एक और मुख्य भाग श्रीकृष्ण आयोग द्वारा साल 1993 के मुंबई दंगों में उनकी कथित संलिप्तता के लिए उनपर लगाया गया अभियोग है. एक उग्र भीड़ का कथित रूप से नेतृत्व करने के लिए उनके खिलाफ आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट – टाडा) जैसे सख्त कानून के तहत मुक़दमा भी दर्ज किया गया था.

साल 2019 में, सोलंकी का नाम फिर से सुर्खियों में उछला जब एक अदालत ने उनके खिलाफ साल 2008 – जब वह मत्स्य मंत्री थे –  से चले आ रहे कथित रूप से 400 करोड़ रुपये के मत्स्य घोटाले के सिलसिले में गैर-जमानती वारंट जारी किया. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा जांच किया जा रहा यह मामला – जिसमें पूर्व मंत्री दिलीप संघानी भी आरोपी के रूप में शामिल हैं – अभी आरोप तय करने के चरण में है. एसीबी की एक विशेष अदालत ने पिछले साल मार्च में इस मामले में सोलंकी और संघानी की तरफ से उन्हें आरोप से मुक्त किये जाने हेतु दायर की गयी याचिका खारिज कर दी थी.

गुजरात के एक पत्रकार, जिन्होंने उनका नाम न जाहिर करने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की, ने बताया कि साल 2000 में जब केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे और सोलंकी उनके मंत्रिमंडल में कनिष्ठ श्रम मंत्री थे, तो उनके भाई पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘वह (सोलंकी) तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या  – जिनकी साफ-सुथरी छवि थी और जो नियम- कायदों के हिसाब से ही काम करते थे – पर दबाव बना रहे थे. उन्होंने (पांड्या ने) दवाव में आने से इनकार कर दिया और इस्तीफा दे दिया. स्वयं केशुभाई और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा किये गए हस्तक्षेप के बाद ही पांड्या सरकार में वापस आए लेकिन फिर भी उन्होंने सोलंकी की इच्छाओं को पूरा करने से साफ इनकार कर दिया.’

इन पत्रकार ने कहा कि इस बात से नाराज पुरुषोत्तम ने कोली समुदाय की एक रैली आयोजित की, जहां उन्होंने अपने भाई की गिरफ्तारी को ‘कोली समुदाय पर हुए हमले’ के सामान बताया. साथ ही, उन्होंने कहा कि उनका (सोलंकी का) राजनीतिक रसूख ऐसा है कि ‘भाजपा ने उन्हें उनके तमाम नाज-नखरों के बावजूद समायोजित किये रखा है ‘

गुजरात भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने उनका नाम न लिए जाने की शर्त पर कहा, ‘सोलंकी अपने समुदाय के लिए काम करें या नहीं, पर वह संकट के समय में हमेशा आपके (कोली समुदाय) साथ खड़े रहते हैं और शादियों एवं जन्मदिनों में शामिल होना कभी नहीं भूलते. वह बहुत ही व्यावहारिक व्यक्ति हैं.’

उधर,  पाठक ने बताया कि हीरा सोलंकी साल 2017 में विधानसभा चुनाव हार तो जरूर गए थे, लेकिन वे अमरेली जिले में लगातार सक्रिय रहे. साथ ही, उन्होंने कहा कि हीरा अपने समुदाय के लोगों के लिए ‘108 आपातकालीन सेवा’ की तरह है. पाठक के अनुसार- ‘लोग कभी नहीं भूलते कि कैसे उन्होंने (हीरा ने) साल 2002 में हुए अक्षरधाम मंदिर हमले के दौरान कई लोगों को बचाया था.’

कोली समाज का प्रतिनिधित्व करने की लड़ाई

गुजरात का कोली समुदाय, जो राज्य की कुल आबादी में 22 प्रतिशत का हिस्सा रखता है, मुख्य रूप से सौराष्ट्र क्षेत्र में केंद्रित है. कुछ जिलों में उनकी संख्या 30 प्रतिशत से अधिक है और सुरेंद्रनगर उनमें से एक है.

संयुक्त रूप से, कोली पटेल और कोली ठाकोर समाज का 80 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में काफी बोलबाला है. इस समुदाय के भीतर तलपदा कोली, चुनवालिया कोली और घेडिया कोली जैसी उप-जातियों पर आधारित विभाजन के बावजूद भाजपा ने गुजरात में इस समुदाय के बीच अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए कोली समुदाय के कई नेताओं को तैयार किया है.

तलपदा कोली समाज की मौजूदगी मुख्य रूप से सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात में है, जबकि चुनवालिया कोली सुरेंद्रनगर में एक प्रमुख हिस्सा रखते हैं. उत्तरी और मध्य गुजरात में कोली ठाकोर तथा सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों में घेडिया कोली एक प्रमुख समुदाय है.

पुरुषोत्तम और रूपाणी सरकार (2017-2021) में मंत्री रहे कुंवरजी बावलिया, तलपदा कोली समुदाय से आते हैं.

मगर, वे गुजरात में कोली समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले अकेले नेता नहीं हैं.

इस साल की शुरुआत में सुरेंद्रनगर से भाजपा के पूर्व सांसद रहे देवजीभाई फतेपारा ने कोली समुदाय के नेताओं की एक बैठक आयोजित की थी. जिन लोगों को इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया था, उनमें सोलंकी के अलावा सुरेंद्रनगर से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री महेंद्र मुंजपारा, कुंवरजी बावलिया, भारतीबेन धीरूभाई सियाल के नाम शामिल थे.

भूपेंद्र पटेल कैबिनेट में शामिल एक मंत्री ने उनका नाम न बताये जाने की शर्त पर कहा, ‘हालांकि अब उनका प्रभाव उस तरह का नहीं है जैसा पहले हुआ करता था और बावलिया अब कोलियों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं, मगर सोलंकी अभी भी इस समुदाय में काफी सम्मान रखते हैं. बूढ़ा शेर भी आखिरी शेर ही होता है.’

इस बीच, जसदण से चुनाव लड़ रहे भाजपा के पूर्व सांसद बावलिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा ने कोली समुदाय के लोगों की पर्याप्त टिकट नहीं दिए हैं. (हमारा) और अधिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए था लेकिन उसके लिए समय अब बीत चुका है. चुनाव के बाद हम देखेंगे कि अगर भाजपा फिर से सरकार बनाती है तो कैबिनेट में (कोली समुदाय से) कितने लोगों को शामिल किया जाता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः ऋषभ राज)
(अनुवादः राम लाल खन्ना)


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