कोलकाता: पश्चिम बंगाल के जिस विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर में 30 सितंबर को होने वाले बेहद महत्वपूर्ण उपचुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी किस्मत आजमाने जा रही हैं, उसके लगभग 40 प्रतिशत मतदाता गुजराती. मारवाड़ी, सिख और बिहार के रहने वाले लोग हैं. इसके अलावा यहां लगभग 20 प्रतिशत मुसलमान हैं, और बाकी 40 प्रतिशत बंगाली हैं.
जनसांख्यिकी के कारण कोलकाता जिले के इस निर्वाचन क्षेत्र को ‘मिनी भारत’ का दर्जा दिया जाता है, और यह धारणा भी बनी है कि गुजराती और मारवाड़ी मतदाताओं की इतनी अधिक संख्या के साथ यहां के मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर अधिक है.
हालांकि, चुनाव नतीजों का इतिहास देखें तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती है.
पिछले एक दशक में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यहां सिर्फ एक चुनाव हारी है—2019 का संसदीय चुनाव, जब भाजपा ने विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल की. भवानीपुर कोलकाता दक्षिण संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है.
भवानीपुर में पिछले 10 वर्षों के दौरान छह चुनाव हुए हैं, जिसमें 2014 और 2019 के दो लोकसभा चुनाव और 2011, 2016 और 2021 में हुए विधानसभा चुनाव और 2011 का एक उपचुनाव शामिल है.
2019 को छोड़कर, यहां तृणमूल ने हमेशा ही बढ़त हासिल की है.
2021 के चुनावों में राज्य के कृषि मंत्री शोभनदेब चट्टोपाध्याय ने भवानीपुर सीट पर 29,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की.
चट्टोपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘ज्यादा गुजराती और मारवाड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया. दरअसल केवल दो वार्डों—केएमसी वार्ड 70 और 74—में ही हम लगभग 3,500 और 450 वोटों से पीछे रहे हैं. अन्य छह वार्डों में हम भारी अंतर से आगे रहे.’
उन्होंने कहा, ‘2019 के आम चुनावों में (दक्षिण कोलकाता निर्वाचन क्षेत्र) भाजपा इस विधानसभा सीट के आठ में से छह क्षेत्रों पर आगे रहे थी, लेकिन इस चुनाव में वह आठ (वार्ड) में से छह में पीछे रही. मैं इसे वोटबैंक की अच्छी वापसी के तौर पर देखते हूं.’
उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री अब बंगाल के गुजराती और मारवाड़ी मतदाताओं की भी पसंद बन गई हैं.
चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘यह राज्य का चुनाव है. गैर-बंगाली मतदाता भी जानते हैं और उन्होंने देखा है कि ममता ने क्या काम किया है. लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की भावनाएं अलग तरह की होती हैं. लेकिन, विधानसभा चुनाव में गुजराती या बंगाली के बीच कोई विभाजन नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘सभी ममता को वोट देंगे. हम अभी मुख्यमंत्री के लिए ज्यादा से ज्यादा अंतर से जीत सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं.
चट्टोपाध्याय ने मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने के लिए जून में विधायक पद से इस्तीफा देकर भवानीपुर की सीट खाली कर दी थी.
हालांकि, भाजपा नेताओं का दावा है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में ममता बनर्जी को ‘झटका’ लग सकता है.
क्षेत्र में पार्टी पर्यवेक्षक के तौर पर तैनात किए गए भाजपा सांसद अर्जुन सिंह से सवाल किया, ‘मुख्यमंत्री कार्यकर्ताओं की बैठकों को संबोधित कर रही हैं, हर दिन मंदिरों-मस्जिदों में हाजिरी लगा रही हैं, चंडी पाठ का जाप कर रही हैं और मंत्रियों और सांसदों सहित पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं को वार्डों का जिम्मा संभालने के काम पर लगा दिया गया है. क्या यह सब सामान्य दिखता है?’
उन्होंने कहा, ‘क्या कभी किसी ने चुनाव हारने वाले राजनेताओं को देश में मुख्यमंत्री बनते देखा है? ऐसे मामले हैं जिनमें पार्टी प्रमुखों ने चुनाव नहीं लड़ा और मुख्यमंत्री बन गए और फिर जीत हासिल करके पद पर बने रहने के लिए चुनाव लड़ा.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन क्या किसी को याद है जिसमें हारने वाले उम्मीदवार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली? क्या किसी ने कभी किसी मुख्यमंत्री को इस तरह उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकते देखा है? इसका मतलब है कि वह अभी भी असुरक्षित महसूस कर रही हैं भवानीपुर में उन्हें झटका दे सकता है.’
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डेमोग्राफिक फैक्टर
भवानीपुर सीट कोलकाता नगर निगम के आठ वार्डों को मिलाकर बनी है. इनमें वार्ड नंबर 63, 70, 71, 72, 73, 74, 77 और 82 शामिल हैं.
चुनावी आंकड़ों पर काम करने वाले तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि वार्ड 70 और 72 में ज्यादातर गुजराती और मारवाड़ी आबादी रहती है, जहां सिखों की संख्या 2,000 से ज्यादा नहीं होगी.
इसके अलावा, भवानीपुर में मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी 20 फीसदी है, जो मुख्यत: हिंदी या उर्दू भाषी हैं. उक्त नेता के मुताबिक, मुस्लिम मतदाता ज्यादातर तीन वार्डों—77, 82 और 63 में बसे हुए हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक ममता बनर्जी ने यहां 2016 का विधानसभा चुनाव लगभग 25,000 मतों से जीता था. उन्होंने माकपा-कांग्रेस गठबंधन की उम्मीदवार दीपा दास मुंशी को हराया था.
शोभनदेव ने इस सीट पर भाजपा के रुद्रनील घोष को लगभग 29,000 मतों से हराया था. दरअसल, उन्होंने 2016 के चुनावों में मुख्यमंत्री को मिले 65,000 वोटों की तुलना में 73,000 से अधिक वोट हासिल किए थे.
तृणमूल सांसद और बनर्जी की कोर कमेटी के सदस्य सौगत रॉय ने कहा, ‘उपचुनाव में सत्ताधारी दल को हमेशा बढ़त मिलती है. आम तौर पर लोग सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में वोट देते हैं.’
क्षेत्र में ममता बनर्जी के अभियान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘ममता बनर्जी के लिए हर चुनाव एक जंग की तरह होता है. वह इसे कैडर में जोश भरने, संगठन को नया रूप देने और लोगों के साथ अपने संपर्क को और मजबूत बनाने के अवसर के तौर पर लेती हैं.’
हालांकि, भाजपा को लगता है कि सत्ताधारी पार्टी के लिए सब कुछ बहुत आसान रहने वाला नहीं है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और चुनाव समिति के सदस्य सिसिर बाजोरिया ने कहा, ‘दीदी 2021 के चुनाव के दौरान कठिन सीट मानकर भबानीपुर से भाग गई थीं. वैसे, यहां तक कि 2011 में जब यहां माकपा की हार तय मानी जा रही थी, उन्होंने इस सीट को लेकर कोई मौका नहीं लिया.’
साथ ही जोड़ा, ‘मुख्यमंत्री इतनी अतिसक्रिय क्यों हैं, अगर उन्हें यहां कुछ गंवाने का डर नहीं है? हमने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है और इस सीट के लिए प्रियंका (टिबरेवाल) से अधिक उपयुक्त उम्मीदवार कोई और नहीं हो सकता.’
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