अहमदाबाद/नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2016 के उस आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया था.
अदालत ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख केजरीवाल की सूचना का अधिकार (आरटीआई) अर्जी ‘‘ठोस जनहित विचारों’’ पर आधारित होने के बजाय ‘‘राजनीतिक इरादे वाली और निहित हित’’ से प्रेरित प्रतीत होती है.
अदालत ने यह भी कहा कि केजरीवाल द्वारा अनुरोध और सीआईसी के आदेश दोनों ‘‘बिल्कुल अप्रासंगिक’’ थे और आरटीआई अधिनियम का ‘‘सरासर दुरुपयोग’’ था.
न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और उन्हें चार सप्ताह के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (जीएसएलएसए) में राशि जमा करने का निर्देश दिया.
सीआईसी द्वारा केजरीवाल के अनुरोध पर विचार करने और आदेश जारी करने को लेकर हैरानी जताते हुए एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा, ‘‘आरटीआई अधिनियम के इरादे और उद्देश्य का मजाक उड़ाते हुए इस तरह के अनुरोध नहीं किए जा सकते हैं.’’
अदालत ने 79 पन्ने के आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि सीआईसी संबंधित आदेश पारित करते समय अच्छी तरह से अवगत था कि वह जो निर्देश दे रहा वह विशिष्ट और निश्चित नहीं था बल्कि विषय से असंगत था.’’
सीआईसी के आदेश के खिलाफ गुजरात विश्वविद्यालय की अपील को स्वीकार करते हुए केजरीवाल के वकील पर्सी कविना के अनुरोध के बावजूद न्यायमूर्ति वैष्णव ने अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
आम आदमी पार्टी ने कहा कि वह आदेश के खिलाफ खंडपीठ के समक्ष अपील करेगी और केजरीवाल पर जुर्माना लगाए जाने को लेकर हैरानी जताई.
फैसले पर प्रतिक्रिया में केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘क्या देश को ये जानने का भी अधिकार नहीं है कि उनके प्रधानमंत्री कितना पढ़े हैं?’’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केजरीवाल पर मोदी के खिलाफ ‘‘झूठ बोलने’’ का आरोप लगाया और ‘‘असत्यापित’’ आरोप लगाने के लिए नेताओं से माफी मांगने के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा ‘‘इतिहास खुद को दोहरा रहा है.’’
कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘नए भारत’ में पारदर्शिता की भी सीमा निर्धारित है.
पीठ ने गुजरात विश्वविद्यालय की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील से सहमति व्यक्त की कि केजरीवाल का आरटीआई के जरिए मोदी की शैक्षणिक डिग्री प्राप्त करने का आग्रह, जबकि वह पहले से ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, दिल्ली के मुख्यमंत्री के उद्देश्य पर भी संदेह पैदा करता है.
जुर्माना लगाने को सही ठहराते हुए अदालत ने कहा कि यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर सभी के देखने के लिए डिग्री के उपलब्ध होने के बावजूद और इन कार्यवाही के लंबित रहने या अंतिम सुनवाई के दौरान भी केजरीवाल मामले पर टिके रहे. न्यायमूर्ति वैष्णव ने कहा, ‘‘इस याचिका को मंजूर करते समय जुर्माना लगाने का यह एक और कारण है.’’
अप्रैल 2016 में तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त एम. श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और गुजरात यूनिवर्सिटी को मोदी को प्राप्त डिग्रियों के बारे में केजरीवाल को जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया था. तीन महीने बाद, गुजरात हाईकोर्ट ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी, जब विश्वविद्यालय ने उस आदेश के खिलाफ अदालत का रुख किया.
सीआईसी का यह आदेश केजरीवाल द्वारा आचार्युलु को पत्र लिखे जाने के एक दिन बाद आया था, जिसमें कहा गया कि उन्हें (केजरीवाल) अपने सरकारी रिकॉर्ड को सार्वजनिक किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है और हैरानी है कि आयोग मोदी की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी को ‘‘छिपाना’’ क्यों चाहता है. पत्र के आधार पर आचार्युलु ने गुजरात विश्वविद्यालय को केजरीवाल को मोदी की शैक्षणिक योग्यता का रिकॉर्ड देने का निर्देश दिया था.
मई 2016 में, गुजरात विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एम.एन. पटेल ने कहा था कि मोदी ने 1983 में 62.3 प्रतिशत के साथ राजनीति विज्ञान में एमए किया था.
पिछली सुनवाइयों के दौरान, गुजरात विश्वविद्यालय ने सीआईसी के आदेश पर जोरदार आपत्ति जताते हुए कहा था कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत किसी की ‘‘गैर-जिम्मेदाराना बचकानी जिज्ञासा’’ सार्वजनिक हित नहीं बन सकती है.
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
यह भी पढ़ेंः मंदिर-प्रवेश का आंदोलन बहुत हुआ, अब ज्ञान-संस्कृति, न्याय और संपत्ति के मंदिरों में प्रवेश करने की जरूरत